चूहे / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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चूहे आजकल थोड़े निर्भीक हो चले थे। ऐसा तो ना था कि आगे-पीछे के दस मोहल्ले की बिल्लियों ने मांसाहार छोड़ दिया था, कारण था कि चूहे-बिल्ली के इस खेल में आजकल बाजी चूहों के हाथ थी। चूहे इतने चतुर और सक्रिय हो गए थे कि आसानी से बिल्लियों के हाथ ना आते। अब दूध- मलाई इतने महंगे हो रखे थे कि इंसानों को ही नसीब ना थे तो बिल्लियों को कहाँ से मिलते, नतीजा यह हुआ कि बिल्लियाँ मरगिल्ली हो गईं। इन हालात से उबरने के लिए किसी विशेषज्ञ वास्तु-शास्त्री की राय पर बिल्लियों ने विंड-चाइम बाँध लिए, वैसे बांधना तो घर में था लेकिन खुद की नज़र में कुछ ज्यादा चतुर बिल्लियों ने तुरत फायदे की खातिर वो विंड-चाइम घंटियाँ अपने गले में ही बाँध लीं।

चूहे चकित थे कि जो प्लान उनके पुरखों ने सदियों पहले बनाया था उसका क्रियान्वयन बिना उनके तकलीफ उठाये अचानक कैसे हो गया। उन्होंने सोचा जो हो सो हो दुनिया में पहली बार चूहों के भागों छींका फूटा। वो और भी निडर हो गए।

कुछ दिन तो यूँ ही चला लेकिन एक दिन चूहों के एक नेता को यह आज़ादी नागवार गुज़री। मुखिया, जो प्रखर बुद्धिजीवी भी था। को इस सबमे किसी भीषण षड़यंत्र की बू आने लगी, चूहों का भविष्य उसे खतरे में दिखा। उसने तुरंत एक सभा बुलाई, ठीक वैसे ही जैसे कई हज़ार साल पहले बिल्ली के गले में घंटी बाँधने के लिए बुलाई गई थी। गहन मंत्रणा हुई और देर रात तक आवाजें आती रहीं,

-यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है

-हम ऐसे नहीं रह सकते

-डर तो हमारा स्वाभाविक लक्षण है, वह कैसे छोड़ा जाए।

-अगर बिल्लियों से निडरता हमारे जीन में आ गई तो गज़ब हो जाएगा।

किसी ने सुझाव दिया कि उसी वास्तुशास्त्री की मदद ली जाए जिसके पास बिल्ली गई थी। सब रात के तीसरे पहर वास्तुशास्त्री के पास पहुंचे। अपनी शुल्क पहले झटकते हुए उसने निडरता दूर करने का शर्तिया इलाज़ बता दिया।

अब बिल्लियाँ फिर मोटी होने लगी थीं, उनके हाथ अब पहले से भी आसानी से चूहे आने लगे थे। बिल्लियाँ अचंभित थीं कि जिस भी चूहे को मारतीं उसके कानों में कॉर्क ठुंसे मिलते। उन्हें यह सब विंड-चाइम का कमाल लगा।

उधर चूहों की घट रही जनसँख्या ने उनमे फिर से डर भर दिया, आखिर वो चूहे थे। उन्हें चूहों की तरह ही रहना था।