छलिया रे! / एक्वेरियम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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तुम्हें खुद को छिपाने का रोग था तुम खुद को मुखौटों के पीछे सुरक्षित रखते थे। हर बार तुमने एक नया चेहरा बनाया और उसके पीछे छिप गए. अपने अनगिनत चेहरों की आड़ में तुमने कई पाप किये, कई दिल तोड़े, कई नदियों को सुखा दिया, कई पहाड़ों को रुला दिया। तुमने प्रेम जैसी पवित्र चीज का खूब इस्तेमाल किया, प्रेम पर प्रवचन दिए. कई ग्रन्थ लिखे और पुरस्कार पा लिए. अपने अनगिनत चेहरों से तुमने हर वह काम किया जिसकी इच्छा तुम्हारे मन में कई जन्मों से थी।

अपने ही बनाये क्लोन तुम्हें बहुत भाते थे, तुम अपनी प्रयोगशाला में इन क्लोनों को छिपा कर रखते थे तथा समय और सुविधा के अनुसार उनका प्रयोग करते। हर क्लोन की भाषा अलग, कहानी अलग, पता अलग और नाम अलग होता था।

तुम अपने इस हुनर पर फूले नहीं समाते थे। कभी-कभी तुम खुद को ईश्वर समझने लगते थे। तुमने कभी किसी से प्रेम नहीं किया, तुमने हर बार प्रेम के साथ प्रयोग किये, शोध किये। प्रेम में डूबी स्त्री जब बेसुध होकर तुम्हारे करीब आती तब तुम उसे देखकर सुन्दर कवितायें रचते, तुम इतने अभागे थे कि तुमने बहुत नजदीक आने पर भी प्रेम को चूमा नहीं, तुम व्यस्त रहे चूमने के मनोविज्ञान को जांचने में, प्रेम को कागज पर उकेरने में, तुमने प्रेम के सुन्दर चित्र बनाये कागजों पर...तुम इतने उत्साह में रहते थे कि तुमने हर स्त्री के मन में पल रहे प्रेम और उसकी तासीर का हू-ब-हू विश्लेषण कर दिया।

जो स्त्री सिर्फ़ तुम्हारे प्रेम में डूबी थी और समर्पित थी तुमने उसे ही शोध का सब्जेक्ट बना दिया। तुमने प्रेम और कविता के कई सारे आयाम खोजे, वे सब इतने सटीक और तर्कसंगत थे कि आने वाले समय में तुम्हारे इन विचारों और तर्कों को विश्व मानेगा। तुम्हें विश्व साहित्य का ज्ञाता घोषित कर दिया जायेगा। तुमसे प्रेम पर प्रश्न पूछे जायेंगे, तुम शोध-पत्र बांचोगे, कार्यशालाएँ आयोजित कराई जाएंगी, तुम्हें मुख्य अतिथि बनाया जाएगा और तुम प्रेम का मनोविज्ञान दुनिया को समझाओगे।

तुमने विश्व की हर महत्त्वपूर्ण पुस्तक पढ़ी, लेकिन तुम कितने अनपढ़ हो ये बात सिर्फ़ प्रेम जनाता है कि तुम उस स्त्री की आंखों में प्रेम नहीं पढ़ पाए जो तुम्हरी प्रतीक्षा में तुम्हारे पैरों के पास ही सो गयी थी।

कई बार प्रेम ने तुम्हारे दरवाजे पर दस्तक दी लेकिन तुमने डरकर दरवाजा नहीं खोला। एक दिन प्रेम 'की-होल' से जब तुम्हारे कमरे में आ घुसा तो तुम परेशान हो गए.

तुमने अब दरवाजे की जगह दीवार खड़ी कर दी थी। प्रेम उस दीवार से टकराकर टूट गया। तुम तब भी उसके करीब नहीं गए, तुमने उसे नहीं उठाया।

तुमने फॉरेंसिक टीम की तरह पहले दस्ताने पहने और फिर प्रेम के टूटे हुए टुकड़े उठाये, तुम्हारे हाथों के फिंगर प्रिंट न आ जायें इसलिए तुमने बड़ी सावधानी से हर वह चीज अपने सफेद रूमाल से पोंछ दी जिससे तुम्हें पकड़े जाने का भय था।

और इस तरह तुमने अपने आसपास से प्रेम के नामोनिशान मिटा दिए. फिर तुम वॉशरूम गए, नहाये और फिर एक नया मुखौटा पहनकर बाज़ार चल दिए.