छळावौ / कन्हैयालाल भाटी

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जोधपुर रै ठैसण माथै अेक-दूजै नै आमै-सामै देख‘र अचरज में पडयां बौल उठयां, ‘थूं’ ? जेठ रै तपतै तावड़ियै रो दौपेरी रौ बखत हो। सपना नै मुंबई जावणौ हो, जदकि तिरलोक हाउड़ा सूं आयी गाड़ी सूं उतरयो हो। ठैसण री भीड़ बीचाळै दोनुं जणा होस-हवास गुमायौड़ा उभां हां। आसै-पासै सौर-सराबै सूं अणजाण हुयोड़ा ठैसण रै बीचौ-बीच इण भांत उभा रैवणे सूं आवण-जावण आळै मुसाफिरों ने दिक्कत हौवती ही। अर बैं चालता-चालतां होठां रै मांय-मांय बड़बड़ावतां हां। परंतु बीयां ने सुणणे री कठै बखती ही ? सपना री गाड़ी रो रवानग्यी रो बखत हुग्यो हो।

दोनूं चुपचाप ऊभां-ऊभां अेक-दूजै नै दैख रहयां हां। छैकड़ सपना रो हाथ पकड़यां तिरलोक ठैसण रै बारै एक रेस्टोरेंट में लैग्यो। चाय-कॉफी मंगवायी अर दौनुं चाय-कॉफी री चुसक्यां लैवण लाग्यां।

तिरलोक चाय री चुस्की लैवतों बोल्यो, ‘थूं मजै में तो है नीं ? म्हैं तो थनै देखपरो‘र चमगुंगो ईं हुग्यो हो। बीं बात्यां नै कितौ बखत हुग्यौ, परंतु ठैसण माथै म्हनै देखते ई थूं गळबाथ पड़ग्यी ...’

‘नीं, नीं थूं म्हारै गळबाथ पड़यौ !’ सपना मुळकती बीचै ईं तिरलोक ने टौक्यो जाणै के कालै ईं आपां आखिरी दफै मिल्यौड़ां हा, जियां आपानै लखावै है। बियां तो आपां ने मिळयां बोळा बरस बीतग्यां है।’

‘हां, लगै-टगै पंदरे बरस हुग्या ईं हुवैला’, सपना बोली !

‘थनै कितौ चौखीतरे याद है। पंदरे बरस। अेक जुग बीतग्यौ, नीं कईं सपना ?’ तिरलोक बोल्यो, ‘थूं ब्याव करलियौ कंई ? हांचलै किं टींगर-टांगर हुवैलां ? आजै अठीनै-कठिनै जावै है, कठै तंई दिसावरी है ?’

‘थोड़ौक खटाव रांख, खथावळ मत कर, बांरी-बांरी सूं पूछ। थ्हारी खथावळ वाळी टैव हजी तंई पैळा जिस्सी है। थ्हनै रातीदौं हुयौड़ो है कंई ? थारी आंख्यां रै सामै बैठयी हूँ। थनै दिसै है म्हारै हांचळै टींगर ! जिकौ तूं कैवै है, थारै टींगर-टांगर है, कईं ? बैतुकी बांत्या नां करयांकर। थनै ठां रहवणौ चईजै कै म्है अजूं तंईं ब्याव नीं करयौ है। थूं तो जाण्यै ईं है कै हर-हमेसं रै कांम-काज में मिनख रै सामै किती अड़ाचाओं आवै है। जीव अेक अर छाती-कूटा घणा अर मिनख जीवण में आगे बढणो चावै ही तो उण बखत ईं कठै मिलै है। अर बखत ही तो कितौ चंचल है, अठीनै-उठीनै जौवां जितै कितै दूर आगै निकळ जावै। जिकौ मिनख बखत री कीमत समझै जिकौ दिनौं-दिन आगै बढैईं है।’

‘खेर, छोड़ बात नै। अबै थूं बतां कै काम कईं करै है ? याने कै बो इसौ कंई काम है के जिकै, रै कारण थंने बखत ईं नीं मिळै ?’ तिरलोक उण नै बड़ी उत्सुकतां सूं टळक-टळक दैख रहयौ हो, परंतु सपना बारी रै बांडै गांछ री डाळी माथै बैठयां सूअै-सूवटी रे जोड़ै ने अैक मीट सूं देखती रहयी।

‘म्है अठै अेक कॉलेज में व्याख्यातां हूं। अबै थूं खुदईं अंदाज लगां लै के बड़ै सहरौं रै दोड़-भाग रै जीवण में बखत कियां बीत जावै है।’

‘कंई बांत करै है !’ तिरलोक उतावळै बोळयौ, ‘बधाजयै।’

सपना हवै तिरलोक नै घणै गौर सूं देखती रहती। उणरौ चैरो लाल हुग्यो हो, बधाई री बात सुण‘र।

‘थैं तो घणी परगती कर .....’ तिरलोक बौल्यौ, ‘म्हैं तो थारी सगली बात्यां समझग्यौ भाई ! अर अबै बंताव के थूं छुट्टयां मनावण ने कठै जांय रहयी है ?’

‘हां, म्हैं मुंबई जाऊं हूँ। म्हारै तंई घणौ जरूरी हुग्यौ है। कारण कै अेक ईं कॉलेज में पढ़ती अर पढ़ावती अमूंजग्यी हूँ। थूं तो केवै है तिरलोक अजकालै कंई करै है ? म्हैं तो ईये डील-डौळ ने सुधार राखण रो काम करयौ है।’

तिरलोक मन-ईं-मन में सौच रहयौ हो-जदि इण नै इतरौ सोरौ काम नीं मिळयौ होतौ तो ठीक रैवता। पछै तो म्हैं इण ने बकारं लैवतो कै थूं हजै तंई म्हनै चावै है कंई, पण अबै, नां-भाई-नां, अबै आ बांत कैवतां चौखी कौनीं लागै। बां म्हारी ई बात ने हंसी में टाळ दैसी, पछै बा म्हारी बांत री मंझाक उडावैलां।

सपना उण री बांत नै अणदैखी करती बौली: ‘थूं अबार कंई काम रै है ?’

म्हैं धीरै सीक बोल्यौ: ‘अबार तो म्हारां पण भाग जागौड़ां है। म्हैं पैलां काम करतौ हो जिकै ने छोड़ दियौ। म्हैं अेक मील में मैनेजर रै होदै मांथै काम करूं हूं। म्हैं ओ काम करतां लगै-टगै च्यार बरस हुग्या है।’

सपना उण री बात्यां नै बड़े ध्यान सूं सुण रहयी ही, किन्तु सागै-सागै तिरलोक री आंगळी में ब्याव री बींटी ने ढूंढ रहयी ही, परंतु आंगळी में बींटी नीं ही। अबै सपना रो मन बीतौड़े बखत री बांरियां में झांक रहयौ हो। आज सूं पंदरै बरस पैलां दौनूं रे बीचै विछौह हुग्यौ हो। अेक छोटी-सी बांत लारै दौनूं रे मन में खटास आग्यौ हौ। अर अचाणचक दौनूं रो हेत रो हार टूटग्यो हो। उण रै पछै दौनूं अबारं तंईं नीं मिल सक्यां। वौं उण बखत अेक नां कई मोटर मिसतरी रो काम सीख रहयौ हौ। उण री औछी कमाई गाभा-लता में तेल री बदबूं, सपना उण नै घणा ई मौसा मारती ही के ‘जीवण में कीं चौखो काम-धंधा करपरो‘र दिखावं, किंई मिनख बण‘र बतावं। म्हैं पछै दूंजी बातां माथै सोच-विचार कर सूं।’ वौ कितौ नादानपणै रौ बखत हौ। बातं खींचती ग्यी अर दौनूं उळझ पडयां, बियां उण दौनूं रौ झगड़ौं करण रौ मतौं नी हो। ईण झगड़े री आयी खटास नै मिठास में नी बदळ सक्यां अर आपस में मिळण-जुळण रै अभाव में कीं नीं कर सक्या। इण हालांतां में ई सपना मन में सौचती रैवती के तिरलोक कंई बण‘र बतावें।

वा बोली, ‘बखत आपारौ साथ दियौ अर आपां दौनूं सफलतां हांसीळ करी आ आपणै तंई चौखी बांत हुवीं है’, पण ईंरै सागै-सागै मन में सौच रहयी ही कै तिरलोक री उमर पाक्की हुग्यी पण ओ कितौ फूंटरौ अर मन मोहणौ लाग रहयौ है। वौं इति परगती नीं करतौ अर नीं ई बणतौ इतौ बड़ौ मिनख, तौ घणौ चौखों रैवतों। जणा म्हैं उण नै पूछती कै थारै-मारै बीचाळै हुयोड़ै झगड़ै ने थूं अजी तंई भूल्यौ कोनीं ? म्हनै चावै है अजै तंई थूं ? पण अबै म्हैं किसै मूंडै पूछूं ?

इते में तिरलोक बोल्यौ, ‘अरै, म्हैं तो नाकाम ई थारौ बखत गुमावी रहयौ हूँ। थारी सैर-सपाटै री छुट्टियां सरू हुग्यी है।’ वौ इण भांत बात्यां कैवतौ रहयो, पण सपना रै मुंडै सामै जौवण री हिम्मत नीं कर सक्यौ। कंई ठा, किण खातिर ?

‘नीं रै, हूं तो तीन आळी गाडी सूं रवाना हौय जासूं। अर बीयां देख जणा तो म्हैं ईं थारौ कीमती बखत खराब कर रहयी हूँ। तो ठीक है, थारौं कंई छोटौ-मोटौ जरूरी काम हुवैलां या पछै किणी सूं मिळणों-जुळणों हुवैलां।’

‘थूं इण बात री चिंत्यां मत कर। म्हनै अठै सूं लेवणं तांई गाड़ी आय जास्सी। म्हैं लांबी मुसाफरी करूं जणा म्हारी गाड़ी नै घरां ई छोड़ दैऊं हूं, इण बांत री थनै ठां ई है ? आज रै बखत रै ट्राफिक री हालत तो थांसूं छांनी नीं है। घरां पूगै जितै तंई मिनख थक‘र अधमरयौ हौय जावै है।’

‘थारै कैवंणो सोळै आना सांचौ है ? म्हैं पण आई बात कैवणी चावूं हूं।’ पछै सपना तिरलोक री आंख्या सामै देख‘र बोली, ‘थूं ब्याव करलीयौ के पछै बींटी अर घरआळी ने पण घरां छोड़‘र मुसाफरी कर‘र आयौ है ?’ आ बांत कैवतै ही दौनूं जणा जौर-जौर सूं हंसण लाग्या कै रेस्टोरेंट लोगौं नै घणौ अटपटौ सौ लाग्यौ।

तिरलोक बोल्यौ: ‘नां, म्हैं ब्याव हजैतई नीं करयौ हूँ। इण में पण राज है, कोई अड़चण ही है, बात अेड़ी है कै म्हैं जिनै चावूं हूँ, बीसी म्हनैं जगत में जौयां ई लाधी नीं हैं अर जीकी म्हनै चावै है वां म्हारै खानी झांकणौ ईं नीं चावै। ईण में पण बगत मिळणौ चईज्यैं अर वौं पछै सांचौ जीवणसाथी ढूंढण तांई।’ वौं मन में सोच-विचार कर रहयौ हौः म्हैं इण ने कैयं दैवूं कै थनै अबार तंई भूल नीं सक्यूं हूँ। आज पंदरै बरस बीतग्या है पण कोई लुगाई म्हनै आपनै खानी नीं डिगां सकी है। ईणनै अै सगळी बांत्या किणं तरै कैऊं ? अबै बौ बखत कितौ अगै निकळग्यौ है। नां, अबै तो घणौ मोड़ौं हुग्यौ है। वां ईण बांत सूं घणी हंसी उड़ासी। उण‘री हंसी अजै तंई म्हारै कानां में गूंजै है।

अठीनै सपना रै मन में अैई भाव उठतां रहया हा। वीरै मन में लौर उठ रहयां हा कै म्हनै तिरलोक नै कैय देणौ चइज्यै कै म्हैं आजै पण थ्हारै ईसारै पर चालण नै तैयार हूँ। म्हारै जीवन में जद-कदैई कोई दूजौ मिनख आयो हो म्है उण‘री बराबरी तिरलोक सूं करती रैवती ही। म्हैं मन में पक्को ईरादौ कर राख्यां हो के जीवण रौ साथी-संगी हुवै तो तिरलोक जिस्सौ हुवणौ चइज्यै पण म्हनै तो उण जिसौ कठै ई निजरां में नी आयौ। पण अबै उण नै बांत कैवां तो कीं मतलब नीं है। आजै वौं चोखी इज्जतदार नौकरी कर रहयौ है, सगळी बांत्यां सूं सौरो-सुखी है। अबै तो वौं म्हारी बांत रौ मखौल ई उड़ावैलां। अर भलै मुंडैसूं नीं बोलै पण मन में तो सोच ई लैवेलां, ‘अबै थांसूं म्हारै कंई तलौ-बलौ है। छोड़ दें, इण बांत ने, अर भूल जां म्हनै।’

छेकड़ में दौनूं जणां जुदां सबदां में अेक ईं बात सोचता रहया हां, ‘आपारौ जीवण सफल हुयौ। मान-सनमानं, धन-दौलत बगैर जिकौ आपां चावतां हा वौ सगळौ मिळग्यौ।’ तिरलोक सिगरेट रां सूट खींचतौग्यौ पर अे बात्यां कैवतौ रहयौ। सपना धीमै-धीमै दही लस्सी रां गुटका गळै में उतार रहयी ही। तिरलोक बैठयो-बैठयो सपना ने दैख्यी रहयो कै उण री आंख्यां खनै जरासौक सळ दिख्यौ, परंतु वौं सळ उण रै फुटरापै में बढ़ोतरी कर रहयौ हो।

सपना री गाड़ी रो बखत हुवण आळौ हो। तिरलोक सपना नै सागै लैय‘र ठैसण पुग्यौ। दौनूं जणां अेक-दूजै रै सामै नीं देख रहयां हां। थोड़ीक ताळ तंई वैं दोनूं कीनीं बौल्यां, चुपचाप खड़ा रहयां, वै खाली आवण-जावण आलै मुसाफिरौं नै दैख रहया हा। थौडीक तांळ पछै गाड़ी ठैसण माथै आग्यी ही। सपना गाड़ी मांय बैठगी, पछै तिरलोक उण रो सामान उण‘री सीट रै हैठै राख दिनौं। अजै पण दोनूं आपस में मीट नीं मिल्या रहया हां। उण रो बोलणरो मन हुयौ के अबै तो की तूं मुंडै सूं बोल-साच कैव। पण तिरलोक गाड़ी सूं हेठै उरतग्यौ हौ। सपना डब्बे में बैठळी विदाय री धुन में हाथ हिलायौ ! ज्यूं ईं गाड़ी ठैंसण सूं आगै निकळी वां तुरंत दूसरे डब्बे में जाय‘र बैठग्यी। अबै वां अखबार री ओट में मोरनी री तरै ढळक-ढळक आंसूंडां ढळकावण लाग्यी अर मन में सौच्यौ के म्हैं किती नांढ हूँ। म्हैं जद म्हारै भलै री बात नीं सोच सकी तो दूंजै रै बारै में कंई सौच सकूं ? म्हैं कूड़ बात री ओट क्यूं लीनी, म्हैं उण नै साच्यी बांत्यां कैवती तौ म्हारौ कांई बिगड़तौ, अफूटौ कई-न-कई बां तरो सळटीवाड़ौ हुवतौ। म्हैं उण नै साफ साफ क्ंयूनीं कैयो कै सैलस गर्ल हूँ। म्हारी बांई जूनी नौकरी है, अेक नांनी सी दुकान में, परंतु अे सैगं बात्यां किण तरै कैवती ? म्हारै मन में डर बैठलो हो कै वौं म्हारी बांत्यां नै हंसी मझाक में टाळ दैसी ? अबै तो वौं मोटौ मिनख बणग्यौ हैं ? अरे, बीज्यौं कीं नीं तो कम सूं कम उण रौ ठीकाणौं तो लैवणौ चईज्तौ हो। ओ म्हारौ कितौ नांढपणौ-बचपणौ है। म्हैं उण ने नांडाणी ईं झूंठ री ओट लियां बढां-चढां‘र बात्यां कहयी ही।

अठी नै तिरलोक ठैसण सूं बारै निकळ‘र बस अड्डै खानी गयौ। बस री टीकट बारी रै आगै कतांर में खड़ौ हुग्यौ हो। घरां रो काम चालतौ हो। बो बठै पूग्यौ। आपरौ परिचउ दियौ ‘म्हैं कीरैन रौ डराईवर हूँ।’

‘हं.....कालैं थूं कठै रहग्यौ हो ? म्हैं तो थनै दिनभर उड़ीकता रहया। खैर ! सूपरवाईजर, इण नै काम बताई दें अर सोवण-उठण तांई कमरौ खौल‘र बतां दे। काल सूं काम माथै लागणौ है।’

तिरलोक ने सपना री याद सतावण लाग्यी, सपना री गाड़ी दौड़ती जा रहयी हुसी। म्हैं उण ने साची-साची क्यूं नीं कहयौ कै आजै ई मामूली डराईवर हूँ। परतुं किणं तरै उण नै कैवतो ? वां खुद ईं किती आगै बढ़ग्यी है। अबै तो वां घणी सारी कंमाई कर रहयी है। वां म्हारी बांत नै हंसी में डाळ दैवती ! अर म्हैं पाणी पाणी .......