छाती / सत्यनारायण सोनी

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दीवाळी रा दिन दस रैया हा, लोग-बाग घरां री सफाई, रंग-रोगन अर लीपा-पोती में जुटर्या हा, कीं नै ई औसाण कोनी हो। चौफेर दीवाळी री उमंग ही। मौज-मजां रा दिन हा, पण मीरां तो दोघाचींती में दिन-दिन दूबळी हुयां बगै ही। चिन्ता तो हुवै ई, राणती अबकै फेर बापू मांगसी। कठै सूं देÓसी बा बापू बीं नै? कियां समझाÓसी? करै तो कांई करै। सवा बरस सूं बेसी हुयग्यो बीं रै घरधणी नै गुजर्यां। राणती बापड़ी के जाणै, फकत च्यार बरस री जिवाक। अब तांई तो बा बीं नै बस इयां कैयÓर भुळांवती रैयी है के बेटा तेरा बापू गाम गयेड़ा है। तेरै खातर भांत-भांत री चीजां ल्याÓसी, सैंडल ल्याÓसी-सूट ल्याÓसी, अर खावण नै तो के ठा के-के? राणती अै बातां सगळै बास में कैंवती फिरती- मेरा बापू आÓसी नीं, जद है नीं, इत्ती चीजां ल्याÓसी।ÓÓ अर बींरा हाथ बायरै मांय फैल ज्यांवता। बास-आळा टाबर बीं री बातां सुणÓर हाँसबो करता, पण बीं रो भोळो मन बांरी हाँसी रो अरथ सोधण री आफळ नीं करतो। मीरां बैठी सोचै, लारली दीवाळी नै अर पछै होळी नै ई तो अण बापू नै याद करण कानी कोई कसर को छोड़ी ही नीं। बीं नै बस इत्ती कैयÓर भुळाई ही कै बेटा, तेरै बापू रो समचार आयो है, बै अबकै त्यूंहार पर जरूर-जरूर आवैला। अब मीरां राणती सारू घणी ई सांतरी-सांतरी चीजां बपरावै। बूथै सूं ऊपर कर खरचो करै। नीं तो फगत च्यार घरां में बुहारा-झाड़ी अर भांडा-मांज्यां पछै पेट लिवाड़ी ई मसां हुवै, पण बा आपरै पेट नै रीतो राखै अर राणती री मनस्यावां पूरी करै। ईं छोटै-सै कस्बै मांय मीरां आपरो अर आपरी बेटी रो पेट पाळै। घर में फगत दोवा-दो जीव। आगै-पाछै जिका हा, बै रैया कोनी, अर रैया है जिका बां री तिथ ई को बांचै नीं। धणी रै गुजर्यां पछै बिरादरी रा कई रिस्ता ई बीं सारू आया। पण बासोचती, जठै पैÓलपोत ब्याहीजी, बण ई न्ह्याल को करी नीं अर पछै दूजै पड़थावै ई किस्यो सुख दियो। पांच बरस रो साथ निभायÓर बीं रो धणी रामजी नै प्यारो हुयो। वा रैयगी निरभागण री निरभागण। दूजो खसम ई छोडग्यो उणनै अेकली - दुखां सूं बांथेड़ो करण नै। अर अबार आ पड़ी जूण पूरी करै है ईं घर में। घर रै नांव पर अेक कच्चो-कोठो है अर है चौफेर कच्चो चौभींतो, पण हिम्मत-आळी लुगाई है। नीं तो पैंतीस बरस री ईं लुगाई री ज्यान नै जोखो ई जोखो। पण नैणां में इस्यो रौब कै कोई री निजर उठावण री हिम्मत ई को पड़ै नीं। दीवाळी रा दिन नेड़ै आयां बगै हा, बास-गळी में पटाखा बाजण लागग्या हा। छोरियां दिनूगै काती न्हावै, आथण चूंतरियां पर गीत गावै। अर इस्यै वगत में सांझ पड़्यां मीरां आपरी लाडली नै थेपड़Óर सुवावै। पछै आपरी चूनड़ी मूंडै ऊपर गेर लेवै। चूनड़ी रो पल्लो भीजै तो भीजतो रैवै, छाती भरियावै। हूबकियां छूट जावै। पण रोंवती नै थामणवाळो कुण? छेकड़ आप ई हिम्मत करै। सोचै, हिम्मत रो बेली राम। हिम्मत राख्यां ई पार पड़सी। नीं तो अेकली रो बंटै ई कांई? आछो-माड़ो किस्यो ई हुवै, माणस तो लुगाई रो अडसर हुवै है, आसरो हुवै है। माणस बिनां लुगाई री कोई जूण हुवै? पण बा हिम्मत नीं हारै। छाती राखै। दीवाळी रा दिन दोय रैया। राणती तो रीरो कर लियो, माऊ! तू कैवै ही नीं, अबकै तो बापू आÓसी नीं?ÓÓ हां, बेटा!ÓÓ मेरै खातर के-के ल्याÓसी?ÓÓ घणी ई चीजां ल्याÓसी बेटा!ÓÓ बण कैय तो दियो, पण सोच्यो, अबकै बा कियां राणती नै भुळाÓसी? बीं रै गतागम में कीं कोनी आवै। पण कियां ई आंख्यां में चिलकतै पाणी नै उण काबू कर्यो, नाक में जुळबुळांवतै पाणी नै ऊंचो साÓर्यो। दीवाळी रै पैलै दिन राणती भळै बोली, माऊ! बापू तो कोनी आया नीं, आज तो आÓसी नीं?ÓÓ हां।ÓÓ कैवती मीरां काम-धंधा में उलझण रो बहानो-सो करण लागी। पण बीं रै भीतर तो घरळ-मरळ चालै ही। राणती ले-धे बारणै साम्हीं ऊभी हुयÓर गळी कानी तकावै। अर पछै बा तो गेड़ चढगी, अेक सांस लागी माऊ रा खोदा काढण, कदसी आÓसी? कदसी आÓसी? बता दे माऊ!ÓÓ माऊ के बतावै? कीं बताण जोगी बात हुवै तो बतावै, पण भळै बण छोरी नै थ्यावस बंधायो- बस बेटा, आज ई आÓसी, साची, रात नै मोड़ै तांई आ ज्यासी।ÓÓ रात नै बण बीं नै भौत दोरी सुवाई। नींद आयां पछै ई राणती रा होठ जागता हा। बा कदै मुळकै ही तो कदै बरड़ावै ही। लागै हो जाणै राणती सुपनै मांय ई बापू साथै बातां करै है। दिनूगै उठतां पाण बा भळै बापू मांगसी। अबार बा करै तो करै कांईं? कांईं कैयÓर भुळावै बीं नै? अर बीं रै नैणां सूं टळक-टळक करता आंसू ढळक पड़्या। पण कोई न कोई जतन तो करणो ई पड़सी। बा सोचै, पण बो जतन बीं रै गतागम में अजै ई नीं आवै हो। मीरां मुंह-अंधारै उठी तो छोरी सागै री सागै जागगी, मां! बापू?ÓÓ उण आंख्यां मसळती ई पूछ्यो। माऊ रो काळजो फड़कै चढग्यो। पण पछै धीजै सूं उत्तर दियो, बेटा! बां रो समचार आयो है, आज आथण तांई आÓसी।ÓÓ हम्बै आÓसी। ......थूं तो रोज-रोज बस झूठ भुळाबो करै।ÓÓ अर बा तो बोकण लागगी। मीरां बीं नै बुचकारै। अर म्हैं रोवण लागगी तो! बा मन ई मन सोचै। दिन मांय बा राणती नै लेयÓर बजार गई। पटाखा, फुलझड़ी, टिकड़ी......घणी ई चीज्यां दिरवाई। आथण सीरो रांध्यो, पण राणती नै तो बस बापू री उडीक। मीरां थाळी मांय सीरो ठार दियो अर खुद दीयां सारू बाती बंटण लागगी। सीरो कीं ठंडो हुयो तो बोली, बेटा, आज्या, जीमले।ÓÓ पण छोरी तो हठ पकड़ लियो। क्यूं कोनी खाऊं भी, बास में सगळां गा बापू आयग्या। मेरा बापू क्यूं कोनी आया? बता! बता!ÓÓ अर बा लागगी मीरां रै मगरां में मुक्का मारण। म्हैं तो बापू सागै ई जीमस्यूं।ÓÓ जीमले बेटा! इयां कोनी कर्या करै है, लै म्हैं जीमूं तेरै सागै।ÓÓ क्यूं? रैवण दे हां, कद लागी भुळाण नै, कोनी जीमूं हां, कोनी जीमूं।ÓÓ कैवती राणती तो हाथ-पग मारण लागगी। अलवाड़ै टाबर दांई बोकती-बोकती आंगणै में पसरगी। कोनी मानै के राणती? नूंवा घाबा कोझा कर लिया।ÓÓ हेऽ कोनी मानूं भी।ÓÓ बा तो गेड़ चढगी। बियां ई बोकै, आंगणै में लिटै अर हाथ-पग मारै। आखती हुयÓर मीरा राणती रै अेक चट्टू चेप दियो अर भळै खुद पर काबू को राख सकी नीं। छोरी नै गोदियां में लेयÓर आप ई घुघाण लागी। दोनूं मां-बेटी रोयां जावै ही। दीया आंगणै में पड़्या तेल अर बाती नै उडीकै हा। सीरो थाळी मांय बियां ई पड़्यो हो। अर छेकड़ रोंवती-रोंवती बण बा बात कैय ई दी, जकी आज तांई बीं सूं लकोंवती आई ही- बेटा, म्हैं ई हूं तेरी जो कुछ हूं। म्हैं ई तेरी मां, म्हैं ई तेरो बापू, भाई-बैण....सो कीं म्हैं ई हूं.....थूं म्हंनै अब घणी दुखी ना कर बेटा! मेरी छाती ना बाळ!ÓÓ छोरी अेकर मां री आंख्यां में आंख्यां घालÓर देख्यो अर पछै बांथ घालÓर माऊ री छाती सूं काठी चिपगी।

(1999)