छोटा तिनका बड़ा तिनका / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जून माह के एक दिन एक तिनके ने घने पेड़ की छाया से कहा, "तुम अक्सर ही कभी दाएँ और कभी बाएँ घूमती रहकर मेरी शान्ति भंग करती रहती हो।"

छाया ने जवाब दिया, "नहीं, मैं नहीं। ऊपर की ओर देखो। सूरज और जमीन के बीच खड़ा वह पेड़ हवा के झोकों से पूरब की ओर और पश्चिम की ओर घूमता रहता है।"

तिनके ने ऊपर देखा। पहली बार उसका ध्यान पेड़ पर गया। वह अपने मन में बोला, "अरे बाप रे! इतना बड़ा तिनका!!"

इससे अधिक वह कुछ न बोल सका।