जग्गा जासूस : संगीतमय ऑपेरानुमा फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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जग्गा जासूस : संगीतमय ऑपेरानुमा फिल्म
प्रकाशन तिथि : 21 मई 2014


यह सचमुच खुशी की बात है कि कुछ फिल्मकार कम बजट की सिताराविहीन असफल पुरानी फिल्मों को याद करते हैं और उनसे पे्ररणा लेते हैं। अनुराग बसु ने अमोल पालेकर की अनिता कंवर, नाना पाटेकर अभिनीत फिल्म 'थोड़ा सा रूमानी हो जाएं' के गीतों में संवाद के प्रस्तुतीकरण से प्रेरणा ली और उनकी रनवीर कपूर और कटरीना अभिनीत 'जग्गा जासूस' में नायक-नायिका पद्य में बात करते हैं और उनके बीच कोई पच्चीस गीत हैं। यह नई विधा नहीं है, दरअसल यह हजारों वर्षों से चली आ रही परंपरा है। वाल्मीकि की 'रामायण', तुलसीदास की 'रामचरितमानस' और वेदव्यास की 'महाभारत' पद्य में हैं। सच तो यह है कि दुनिया भर के सारे पुराने ग्रंथ पद्य रूप में ही हैं और कालिदास तथा शेक्सपीयर के नाटक भी पद्य रूप में ही लिखे गए हैं और हमारा पारसी थिएटर भी इसी तरह प्रस्तुत होता था। ब्रॉडवे के नाटक तथा यूरोप के ऑपेरा भी इसी विधा में आज भी प्रस्तुत होते हैं। हॉलीवुड की 'साउंड ऑफ म्यूजिक' व बर्नाड शॉ की 'पिगमेलियां' से प्रेरित 'माय फेयर लेडी' भी इसी तरह की रचनाएं हैं और इसी से कुछ हद तक प्रेरित देव आनंद और टीना मुनीम अभिनीत 'मनपसंद' थी और गुलजार की 'परिचय' पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट देखा सकता है।

इस विधा की पहली भारतीय फिल्म किशोर साहू की 'हैमलेट उर्फ खूने नाहक' थी। उस फिल्म के दृश्य की बानगी प्रस्तुत है- 'गार्ड, हुजूर मेरा तो फर्ज है कि आपको लड़कियों से बचाऊं', तो हेमलेट का जवाब है, 'क्या मैं कब्र में चला जाऊं,'। इस विधा में आखिरी फिल्म चेतन आनंद की राजकुमार और प्रिया राजवंश अभिनीत 'हीर रांझा' थी जिसे कैफी आजमी ने लिखा था और मदनमोहन ने संगीत दिया था।

ज्ञातव्य है कि अनिता कंवर रमेश सिप्पी के सीरियल 'बुनियाद' की नायिका थी और उसने अपनी विलक्षण अभिनय प्रतिभा से सबको चकित कर दिया था। उसने उस दौर के सफलतम सीरियल 'बुनियाद' में काम करने के बाद अनेक खूब धन मिलने वाले प्रस्ताव यह कहकर खारिज कर दिए कि उसका डूबकर किया गया अभिनय टेलीविजन के दर्शक पकौड़े खाते हुए आपस में बतियाते हुए देखते हैं और यह दर्शक वर्ग अत्यंत फूहड़ है, इनके लिए काम नहीं करूंगी। अनिता कंवर सरीखे धन और अवसर को अपने सिद्धांत के लिए ठुकराने वाले लोग विरल हैं और उनका नायक आलोकनाथ आज तक काम कर रहा है, वह स्वयं के पात्र का कैरीकेचर बन चुका है। अपने-अपने निर्णय हैं और यथार्थ को देखने तथा उससे जूझने के अपने-अपने दृष्टिकोण हैं जिन्हें गलत या सही के तराजू पर नहीं तौला जा सकता।

बहरहाल अनुराग बसु ने अपनी संगीतमय ऑपेरानुमा फिल्म का नाम 'जग्गा जासूस' रखा है। ऑपेरा में कथा का 'मोटिफ' अर्थात केंद्रीय विचार प्राय: लोककथा या पौराणिक साहित्य तथा इतिहास से लिया जाता है। अनुराग बसु ने आधुनिक युवा पीढ़ी के बॉक्स ऑफिस महत्व को देखते हुए जासूस को नायक बनाया है, यह वैसा ही है जैसा शरलॉक होम्स पर ऑपेरा बनाया जाए। चाल्र्स डिकेन्स की गरीबी के कोख में जन्मे लोगों के जीवन पर रची 'ऑलिवर टिवस्ट' अनेक बार अंग्रेजी में और अन्य भाषाओं में बनाई गई है परंतु इसका ऑपेरा स्वरूप संस्करण ही श्रेष्ठ माना जाता है। जब मैं 'ऑलिवर टिवस्ट' पर नसीरूद्दीन शाह और अमजद खान के साथ 'कन्हैया' बना रहा था तब राजकपूर ने मुझसे कहा था कि गरीबी और दुखों की दास्तान संगीत के माधुर्य के साथ प्रस्तुत करने पर यथार्थवादी परिवेश की फिल्म फंतासी की तरह सुखद लगती है दर्शकों को और सफल होती है, जैसी उनकी स्वयं की बच्चों पर आधारित फिल्म 'बूट पॉलिश' हुई थी। उन्होंने 'कन्हैया' के कमजोर संगीत के कारण असफलता की आशंका जताई थी जो सही सिद्ध हुई।

मनोरंजन जगत और राजनीतिक संसार की रहस्यमय प्रणाली समझना कठिन है। विगत चुनाव में युवा मतदाता को निर्णायक शक्ति प्रचारित किया जा रहा था परंतु चुने गए सदस्यों की औसत आयु इसे युवा संसद नहीं बना पाई और अधिकतम सीटों को जीतनेवाले दल को मात्र 30 प्रतिशत मत मिले हैं जबकि इससे पूर्व की संसदों में विजयी दलों को 40 से 47 प्रतिशत मत मिले थे। दरअसल इस चुनाव में पड़े मतों का विशद अध्ययन देश के अवचेतन को समझने में मदद करेगा। मनोरंजन जगत में भी सबसे बड़ी सफल फिल्मों को सिनेमाघरों में मात्र चार करोड़ लोग ही देखते हैं। अत: यह नतीजा निकालना भी गलत होगा कि देश के सारे हिंदू कट्टर हिन्दुत्व को स्वीकार क चुके हैं।

बहरहाल अनुराग बसु की 'जग्गा जासूस' संगीतमय मनोरंजक फिल्म सिद्ध हो सकती है और रनवीर कपूर के प्रशंसकों की संख्या बढ़ा सकती है। संगीतकार प्रीतम के कॅरिअर की सबसे बड़ी चुनौती है यह फिल्म। ज्ञातव्य है कि प्राय: जग्गा नाम डाकुओं के रहे हैं फिल्मों में और स्वयं रनवीर कपूर के दादा राजकपूर की सफलम फिल्म 'आवारा' का खलनायक जग्गू दादा था।