जग घूमेया थारे जैसा न कोई / जयप्रकाश चौकसे

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जग घूमेया थारे जैसा न कोई
प्रकाशन तिथि : 19 दिसम्बर 2021


आनंद बक्शी ने राजेश खन्ना अभिनीत शक्ति सामंत की फिल्म ‘आराधना’ के लिए गीत लिखा- ‘कोरा कागज था मन मेरा, लिख लिया नाम इस पर तेरा’ और दशकों बाद आज के लोकप्रिय फिल्म गीतकार इरशाद कामिल महसूस करते हैं कि वे कोरा कागज देखकर भी डर जाते हैं। क्या यह पीढ़ियों के विचार का अंतर है या वर्तमान समय में चलती हवा का बदला हुआ रुख है? क्या यह संभव है कि सृजन करने वालों को अब यकीन हो गया है कि पढ़ने-लिखने से समाज नहीं बदलता। पहले कहावत थी कि कलम, तलवार से अधिक ताकतवर होती है। महात्मा गांधी ने ताउम्र अन्याय और परतंत्रता के खिलाफ लिखा। ‘पैराडाइज लॉस्ट’ के महाकवि जॉन मिल्टन ने प्रगतिवादी राजनीतिक दल के लिए 30,000 से अधिक विरोध पत्र लिखे थे। इसी लेखन ने उनसे देखने की क्षमता छीन ली थी। दृष्टिहीन व्यक्ति की वेदना फिल्म ‘मेरी सूरत तेरी आंखें’ में शैलेंद्र और सचिन देव बर्मन ने इस तरह बयान की है- ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, इक पल जैसे, इक जुग बीता, जुग बीते, मोहे नींद न आई...।’‘जागते रहो’ का शैलेंद्र रचित गीत आशावादी है- ‘किरण परी गगरी छलकाए, ज्योत का प्यासा प्यास बुझाए, मत रहना अंखियों के भरोसे, जागो मोहन प्यारे, नगर-नगर सब गलियां जागी, डगर डगर उजियारा छाए।’

इरशाद कामिल ने पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एमए की परीक्षा पास की है पर कबीर पर शोध कार्य कर नहीं पाए। लेखन में उन्होंने खूब नाम कमाया। सलमान और अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म ‘सुल्तान’ में उनका लिखा गीत ‘जग घूमेया थारे जैसा न कोई’ अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। जब वह पंजाब में छात्र थे तब कुछ हुड़दंगी छात्र परीक्षा को स्थगित कराने के लिए आंदोलन कर रहे थे। इरशाद कामिल ने समय पर परीक्षा आयोजन के पक्ष में पढ़ने वाले छात्रों को एकजुट करके दूसरा आंदोलन खड़ा किया। जिसका नारा था ‘साड्डा हक एथे रख’। ज्ञातव्य है कि इम्तियाज अली की रणबीर कपूर अभिनीत फिल्म ‘रॉकस्टार’ में ‘साड्डा हक एथे रख’ गीत के रूप में प्रस्तुत हुआ। शैलेंद्र, हसरत ने राज कपूर और शंकर जयकिशन के साथ काम किया। संतोष आनंद ने मनोज कुमार की ‘शोर’ के लिए लोकप्रिय गीत लिखा- ‘एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं...तेरी मेरी कहानी है’ । परंतु मनोज कुमार ने उन्हें दूसरा अवसर नहीं दिया। इन्दीवर को उतने अवसर नहीं मिले। महान शायर साहिर लुधियानवी कभी संगीतकार की बनाई धुन पर गीत नहीं लिखते थे। फिल्मकार से कथा सुनकर वे गीत लिखते थे। फिल्मों के लिए गीत लिखने से पहली ही वे शायरी के क्षेत्र में बहुत नाम कमा चुके थे। उनका काव्य संकलन ‘परछाइयां’ लाखों की संख्या में पाठकों ने पढ़ा था। फिल्मों में लिखने के पहले शैलेंद्र की रचनाएं वामपंथ का प्रचार लगती थीं। फिल्मों में उन्होंने सरल भाषा में गहराई लाने वाले गीत लिखे। फणीश्वरनाथ रेणु की कथा से प्रेरित उनकी फिल्म ‘तीसरी कसम’ राज कपूर के अभिनय का श्रेष्ठ प्रयास माना जाता है। चिट्ठियां हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचा जाए, बैरी हो गए करमवा हमार’

दरअसल शैलेंद्र ‘तीसरी कसम’ के बाद रेणु की ‘मैला आंचल’ और परती परिकथा बनाना चाहते थे। पटकथा लेखक नबेंदु घोष ‘तीसरी कसम’ की सबसे बड़ी शक्ति रहे। उन्होंने 30 पन्नों की कथा पर 3 घंटे चलने वाली फिल्म की रचना की और मूल की भावना को ठेस नहीं पहुंचने दी। इरशाद कामिल के भय निराधार नहीं हैं। इस भय की अभिव्यक्ति ही उनकी साहसी दुविधा को अभिव्यक्त करती है। कुछ समय पहले इरशाद कामिल एक पटकथा लिख रहे थे और उससे प्रेरित फिल्म का निर्देशन भी करना चाहते थे परंतु कॉरपोरेट ने पूंजी निवेश नहीं किया। इरशाद किसी महान साहित्य रचना से प्रेरित फिल्म बनाते ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है। बहरहाल यह दौर बाहुबली का है और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?