जटायु, खण्ड-14 / अमरेन्द्र

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दीपा बड़ी उदासी आरो असमंजस के बीच डूबतें-उतरैतें एकदम भोररिये गाँव छोड़ी देनें छेलै। फरचोॅ होय सें पहिनैं। विधाता नें ऐलोॅ छेलै। ई बात दीपाहौं जानै छेलै कि जाय वक्ती विधाता विदाय दै लेॅ आव्है नें पारेॅ-कहियो नें आरो केकरोॅ लेॅ नें, तबेॅ ओकरे वास्तें केना ऐतियै। तैहियो दीपा केॅ यहेॅ विश्वास छेलै कि ऊ केकरोॅ लेॅ कहियो विदाय दै लेॅ भले नें ऐलोॅ रहेॅ, मतरकि हमरा लेॅ ज़रूरे ऐतै, आरो जबेॅ विधाता दीपाहौ वक्ती नें ऐलोॅ छेलै तेॅ दीपा बड़ी टूटी गेलोॅ छेलै। एक मोॅन तेॅ ओकरोॅ यहेॅ होलोॅ छेलै कि वहीं जाय केॅ विधाता सें मिली लै, पर एत्तेॅ भोरे ओकरोॅ घोॅर जान्हौ तेॅ मुश्किले छेलै? ...गाड़ी नें छूटी जाय, वैनें आपनोॅ अटैची, बैग उठैनें छेलै आरो वीरेन बाबू के साथें गाँव के बाहर होय गेलोॅ छेलै।

ई बात विधातौं जानै छेलै कि दीपा फरचोॅ होय के पहिले गाँव छोड़ी देतै। फरचोॅ होतेॅ-होतेॅ गाड़ियो तेॅ बस्ती के पार सड़कोॅ पर आवी केॅ लगी जाय छै। बस एक-दू बार पों-पों करलकोॅ कि हुर्र-र्र-र्र...रात भरी कहाँ सुतलोॅ छेलै विधाता...एकदम टुकटुक छप्पर दिश ताकत्हैं रही गेलोॅ छेलै। केन्होॅ-केन्होॅ अंधर-बिन्डोवोॅ ओकरोॅ मनोॅ में रात भरी उठत्हैं रही गेलोॅ छेलै। ठीक फरचोॅ होतें-होतें मोटर गाड़ी के आवाज सौंसे गामोॅ में गूंजी उठलोॅ छेलै ...वहेॅ तीन-चार बार पों-पों के आवाज आरू फेनू घर्र-र्र-र्र के आवाज दूर होतें-होतें गायब होय गेलोॅ छेलै। एकदम गायब होय गेलोॅ आवाज केॅ विधाता नें आपनोॅ कान वही दिश करी केॅ सुनै लेॅ चाहलकै, कत्तेॅ देर नी, मतरकि वहाँ कोय आवाज नें छेलै। कोय आवाज नें पकड़ैलै...विधाता एकदम तड़पी केॅ उठी गेलै, जेना खटिया के रस्सी सुइया बनी केॅ चुभी गेलोॅ रहेॅ आरो ऊ छलमलाय केॅ बैठी गेलोॅ छेलै आबेॅ दीपा बिनाहै ओकरा कुच्छू दिन रहेॅ लेॅ लागतै, जेकरोॅ बिना एक्को पल पहाड़े नाँखि बुझैतेॅ ऐलोॅ छै ओकरा-विधाता मने-मन सोचनें छेलै।

दिन तेॅ बीतन्है छेलै आरो लोगें कहीं विधाता के मनोभाव नें ताड़ी लै, यही लेॅ ऊ सब्भे सें बचले रहेॅ...ठीक फरचोॅ होत्हैं खेतोॅ दिश सोझियाय जाय। खेतोॅ सें लौटला के बादो ऊ लोगो सें कम्मे बोलै-चालै, यहाँ तक कि आपनोॅ मित्रो सिनी सें जेना कटले-कटले रहैॅ। कारण कोय पूछै, तेॅ कुच्छु सें कुच्छु बताय देवोॅ ओकरोॅ आदत बनी गेलोॅ छेलै...आबेॅ हाल ई छेलै कि एकदम नगीच के दोस्ते ओकरा टोकवो करै आरो ओकर्है सें विधाता कुच्छु बतयैय्यो लै छेलै, नैं तेॅ वहेॅ खेत, वहेॅ घोॅर। ओकरोॅ ई मनस्थिति ताड़िये केॅ एक दिन शनीचरो कहनें छेलै, "धुर मरदे, कुछ बोललोॅ-बाजलोॅ करें। तोरोॅ बोलला-बाजला सें हमरोॅ सिनी के टोलोॅ गन-गन करै छै...धरनै नैं तेॅ छप्पर कहाँ सें मिलतै! आबेॅ तेॅ कुछू करन्हौ-धरन्हो छोड़ी देनें छै-नें दूसरा लेॅ, तेॅ आपने जुकुर बोल्लोॅ करें।" पर विधातां ई कही केॅ टारी देनें छेलै, "शनिचर, वें की करतै, जेकरा अपने थेगोॅ नें छै। अपनोॅ जुकुर कुछ करी ले, ॅ यहेॅ बहुत...दादाहौ के बीमारी एत्ते बढ़ी गेलोॅ छै कि माथोॅ कामे नें करै छै...आबेॅ तेॅ भाभियौं दवो-दारू पीना छोड़ी देनें छै, सोचलेॅ छियै कि कल्हे कायरी काका के गाड़ी सें बाँका इलाज वास्तें भेजी दियै, भेजिये देवै, अभी तेॅ हमरोॅ देवे वाम छै।" विधातां आपनोॅ दोस्तोॅ सें बातोॅ के क्रम में ई टा आखरी में ज़रूरे कहै। यही कारण छेलै कि ओकरोॅ दोस्त जबेॅ भी मिली जाय तेॅ यहेॅ कहै-"अरे भाय के उमिरो तेॅ अस्सी के पार जाय रहलोॅ छौ, एत्तेॅ दुख में रहभैं तेॅ तहूँ जैभै।" ई बातोॅ सें विधाता केॅ राहत मिली गेलोॅ छेलै।

अभ्यास आदमी केॅ सब स्थिति लेॅ अभ्यस्त बनाय दै छै। जों दीपा ई बात जानै छेलै कि विधाता विदा वक्ती नें आवेॅ पारै, तेॅ विधाताहौ ई बात जानै छेलै कि दीपा परीक्षा खतम होत्हैं नें आवेॅ पारै। आव्हौ केना पारेॅ? खाली परीक्षे के बात तेॅ छै नें। घोॅर-गृहस्थी, लोर-जोर, सोर-सम्बंधियो के मनो तेॅ जोगना छै। आरो यहेॅ जोगै में यहेॅ साल भरी के दौरान विधाता देखनें छै कि दीपां जबेॅ-जबेॅ भी कहनें छै, "बस पाँचे रोज में लौटी ऐवै" तबेॅ-तबेॅ ऊ बीस-पच्चीस रोज बादे लौटलोॅ छै। आरो अबकी तेॅ परीक्षे बीस-पच्चीस रोजोॅ तक चलतै...महिना सें ऊपरे बीतेॅ लागलोॅ होतै। दीपा के लौटै के बात तेॅ दूर, ओकरोॅ कोय चिट्ठियो नें ऐलोॅ छेलै। पन्द्रह-बीस रोज तक विधाता चिट्ठिये फेरोॅ में दीपा के घोॅर जैतें-ऐतें रहलोॅ छेलै। कैक दिन तेॅ ऊ आपन्है डाकघर पहुंची जाय। डाक बँटवो करै छै तेॅ तीन बजे दिन के बादे आरो एत्तेॅ समय तांय विधाता केॅ इन्तजार करतें रहवोॅ बश के बात नहियो रहतै, ऊ रहै।

विधाता के यही मनस्थिति देखी केॅ चौरासी आरो खखरी खूब सक्रिय होय गेलोॅ छेलै। दसे रोज के भीतर ओकरा दोनों के हुलिये बदली गेलोॅ छेलै। शनिचरे नाँखि खादी के खलता आरो पाजामा-दोनों केॅ नेता के आदमी बनाय देलेॅ छेलै। बोलियो-चाली में जेना हठाते परिवर्तन आवी गेलोॅ छेलै। रुकी-रुकी बोलै, जेना बातोॅ के कीमत होय छै, यै लेली ऊ सब जे-से केना बोलतियै आकि फेनू एकदम शुद्ध-शुद्ध बोलै के क्रम में वाक्य मनेमन पहलें सिहारतें रहेॅ। जे भी हुएॅ, आबेॅ चौरासी आरो खखरी के बोल-चाल जेना एकदम बदली गेलोॅ छेलै। कोय कहै-मुखिया के चुनाव हुऐ वाला छै नी, पक्षोॅ में लोगोॅ केॅ पटियैतै, यही लेली है हुलिया बनैलेॅ छै। "कोय कहै," अबकी यहू सब मुखिया-चुनाव में खाड़ोॅ भेतै। "गाँव-गाँव बुली-बुली लोगों सें दोनों मिली रहलोॅ छै। लोगें कनफुँस करै," अरे नें जानै छैं, ई दोनों घोंघा आरो शनिच्चर जे एकरोॅ सिनी के शंख छेकै, ओकरै देखी केॅ ई धरान धरलेॅ छै। " कोय कुछू, तेॅ कोय कुछू। मतरकि है सब बातोॅ सें दोनो पर कोय असर पड़ैवाला नें छेलै।

दोनों गाँव-गाँव घूमी केॅ गरीब-गुरबा केॅ चानन-पट्टी में गाछ काटी-उटी केॅ बसी जाय लेॅ उकसैलेॅ छेलै, ई कही-कही कि सरकार तोरोॅ सिनी के पक्षोॅ में तेॅ छेवे करौं, गाँमोॅ के ताकतो तोरे पक्षोॅ में छौं। मजकि गाछ काटी केॅ बसै के नामोॅ पर कोय्यो तैयार नें भेलोॅ छेलै, "बाप रे बाप, ऊ गाछ थोड़े छेकै, साधू-मुनि के जटा छेकै, हुनके सिनी के धोॅड़, हाथ-गोड़। गाछ काटी केॅ के पाप लिएॅ।" से मुखिया वास्तें शनिच्चर खाड़ोॅ होय रहलोॅ छेलै। गामोॅ के हाकिम बनतै शनिच्चर, तबेॅ देखना छै-के ओकरोॅ विरोधोॅ में सभा-मिटिंग करै छै आरो कौनें ओकरा कोय काम करै सें रोकी लै छै...शनिच्चर पक्षोॅ के भैरो चौधरी लोगोॅ केॅ कही रहलोॅ छै, "शनिचर, जों मुखिया भेलों तेॅ गाँव स्वर्ग बनी जैतै-स्वर्ग।" मजकि दुसरोॅ पक्षोॅ के लोगोॅ के यही कहना छेलै, "मुखिया होय के देर भर छै, लोगोॅ के साँसो लेभौ दूभर करी देतौं।" यही लेली दखिनवारी पट्टी सें यहू आवाज उठी रहलोॅ छेलै कि मुखिया-चुनाव में विधाता केॅ खाड़ोॅ करलोॅ जाय...विधातौ मुखिया पदोॅ वास्तें खाड़ोॅ भै रहलोॅ छै। "

शनिच्चर यै बातोॅ केॅ लै केॅ सीधे कै बार विधाता सें मिलियो चुकलोॅ छेलै, ' देख भाय, जों तोरा मुखिया बनै के किंछा छौ, तेॅ हम्में आपनो मोह तजै छियौ। एक्के बातोॅ वास्तें दू दोस्त लड़ेॅ, हमरोॅ नीति के विरुद्ध छेकै। फेनू वहाँ, जहाँ तोहीं छैं। "विधाताहौ ओकरा सें साफ-साफ कहनें छेलै," ई अफवाह छेकै, तोहें सोचलैं केना कि हम्में तोरोॅ खिलाफ कुछू सोच्हौ पारौं, करै के बात तेॅ दूर। "मजकि विधाता के बातोॅ पर शनिच्चर पक्षोॅ के लोग नें मुश्किले सें विश्वास करनें छेलै। खखरीं-ढीवा केॅ तेॅ साफ कहनें छेलै," शनिच्चर ई युद्ध छेकै आरो युद्ध में झूठ-साँच कुछ नें होय छै। सब झूठ, नें तेॅ सब साँच...की मालूम विधाता भीतरे-भीतर आपनोॅ रास्ता बनाय रहलोॅ रहेॅ आरो तोहें निश्चिन्त होय केॅ सुतले रही जो-खराहें नाँखि। "

"खखरी ठिक्के कहै छैं।" बहुत तरह सें सोच-विचार करी केॅ शनिचरौं मनेमन राय बनैलेॅ छेलै, "आबेॅ आदमी हरिश्चन्दर तेॅ नहिंये नी रही गेलोॅ छै कि जे बोलेॅ वही करेॅ। आबेॅ आदमी पर विश्वास करी लेवोॅ होने मुर्खता छेकै, जेना कंगनवाला बाघोॅ पर विश्वास करी पंडितें जान गंवैलेॅ छेलै।"

यहेॅ कारण छेलै कि एक दिन गाँव में जबेॅ विन्डोवे नाँखि ई कानाफुसी उठलै कि ढीवां आपनोॅ टोला के नाक-आँख नीचेॅ करी देलकै आरो एकरा में शह छेलै विधाता के, तबेॅ शनिच्चर पक्ष-विपक्ष में कुछ बोलै के बदला गुम्मी साधी लेलेॅ छेलै। बातो कोनो साधारण होतियै, तेॅ होतियै...बात ई छेलै कि ऊ दिन घोर अमावश्या के पक्ष छेलै-एकदम गुज-गुज अन्हार। निरयासी के देखलौ सें आपनोॅ हाथ नें सूझेॅ। भाखर के बेटी साँवली सँझवाती बेला के बाद बाँधी दिश असकरी जाय रहलोॅ छेलै कि पाकड़ गाछ के पीछू नुकलोॅ ढीवा हठाते निकली ऐलोॅ छेलै। साँवली केॅ कस्सी केॅ पकड़ला के बाद आपनोॅ बांया हाथ सें ओकरोॅ मुंह टटोरी केॅ, दांया हाथोॅ सें, छिछयैन्नी गंधवाला मोॅद केरोॅ बड़ोॅ रँ झिन्नुक सौंसे साँवली के मुँहोॅ में घुसाय देलेॅ छेलै, आरो खलिया झिन्नुक लेनें वहाँ सें सरपट भागी गेलोॅ छेलै, खेतोॅ के बीचे-बीच गिरतें-बजड़तें। पहनें तेॅ साँवली डरोॅ सें देर ताँय थरथरैंतें रहलै। फेनू ई सोची केॅ कि चोर-बदमास दोबारा नें कहीं से...से ऊ भागै के बदला पूरे जी-जान सें चिकरना शुरू करी देलकै, "चोर! चोर! चोर!" देखत्हैं-देखत्हैं बीसो टार्च के रौशनी चारो टोला सें झकझकावेॅ लागलोॅ छेलै। फेनू देखत्हैं-देखत्हैं बान्होॅ पर पाँचो सौ आदमी टूटी पड़लोॅ छेलै...साँवली नें मोद से लेधरैलोॅ मुंहोॅ केॅ अँचरा सें पोछी लेनें छेलै ..."अरे ई तेॅ भाखर के बेटी छेकै...है रात-बेरात भला असकरी आवै के हिन्नें की ज़रूरत? ...आबेॅ असकरी दिशा मैदान जाय के समय रहलै? ...तोहों देखलैं बेटी कि ऊ कन्ने भागलै?" खंतेसर नें आपनोॅ तीन सेलवाला टार्च के रौशनी सें चारो दिश केॅ झकझकैतें पूछलकै।

"हुन्नें, हौ दिश" साँवली बतैनें छेलै।

"हौ दिश...हौ दिश तेॅ पूबारी टोला पड़ै छै। विधाता के टोला ...ई खेतो तेॅ विधाताहे के छेकै...आयकल आपनोॅ खेतोॅ पर विधाता छोड़ी केॅ आरो कोय तेॅ रहवो नें करै छै। भोरे सें लै केॅ भर शाम ताँय।" आरो फेनू फरचोॅ होतेॅ न होतेॅ विन्डोवोॅ उठिये तेॅ गेलोॅ छेलै..."विधाता भाखर के बेटी साथें राती बदमाशी करै लेॅ चाहै छेलै...अन्हरिया के मजा लूटै लेॅ चाहै छेलै...अरे हिन्नें नी साधू बनी गेलोॅ छै, एकरोॅ संगतियो तेॅ होने रहलोॅ छै...गाँमोॅ में केकरा नें ई मालूम छै कि विधाता खाली नामे लेॅ छै, ओकरोॅ सब संगतिया तेॅ दारू-ताड़ी के प्रेमी, आय साधू कत्तो बनौ, चोर चोरी सें गेलै तेॅ हेरो-फेरी सें गेलै...बेचारी साँवली बची गेलै, नें तेॅ काहूँ मूँ दिखाय लायक नें रही जैतियै।" विन्डोवो एकबारगिये जमीन सें सरँगोॅ ताँय उठलोॅ छेलै। सब्भैं ई बातोॅ केॅ सुनलेॅ छेलै। मतरकि है सिनी बात के विन्डोवोॅ, कोॅन टोला सें उठलै? केकर्हौ मालूम नें हुएॅ पारलै...कमरूद्दीन के देहोॅ के तेॅ जेना सौंसे खून मगज पर चढ़ी गेलोॅ छेलै। कोॅन टोला में नैं जाय केॅ ई बात कहै वाला के करेजोॅ नापै के बात कहलेॅ होतै। पर कोय सामना में नें ऐलोॅ छेलै। एकदम चुपचाप। शक जाय छै तेॅ रही-रही केॅ शनिचरे पर। पर वें हेनोॅ नीच बात नें बोलेॅ पारेॅ। हों हुएॅ सकै छै, केकर्हौ सें ई बात उड़वैलेॅ रहेॅ। कोय अचरज नें। हुएॅ-न-हुएॅ मुखिया-चुनाव सें पहिनें विधाता केॅ बदनाम करै वास्तें कहीं वें ई ढेंस विधाता पर लगवैंने रहेॅ...जों विधाता चुनाव लड़वो करेॅ तेॅ ई घटना के बाद ओकरा वोटे के देतै? ..."से बिना आव-ताव देखले खुशी लाल आरो प्रसून लतांत केॅ लेनें-देनें जोगी, शनिच्चर के दुआरी पर पहुँची गेलोॅ छेलै। वाकिफ छै, लतांत खुशीलाल आरो योगी के गोस्सा सें, काँही गोस्सा में अनर्गल नें होय जाय, से लतांतै बात शुरू करनें छेलै," शनिच्चर तोहें सब बात सुनले होभैं।

"हों, सुनलियै। आबेॅ एत्तेॅ बड़ोॅ गाँव छै रुपसा। कन्नें सें की बात उठै छै, कन्नें खतम होय जाय छै, है के पता लगावेॅ पारेॅ...पहिनें तोरा सिनी बैठ तेॅ।"

"हम्में सिनी यहाँ बैठै लेॅ ऐलोॅ छियै की?" जोगी के आवाज में गोस्सा के अंश छेलै, "अरे हम्में तेॅ ई जानै लेली ऐलोॅ छियै कि केकरोॅ बित्ता भरी के करेजोॅ रातो-रात कोस भरी के होय गेलोॅ छेलै, जौनें विधाता पर हेनोॅ आरोप लगाय के साहस करलकै।"

"अनिरुद्धें भेजलोॅ छौ तोरा तीनो केॅ की?"

"हों, अनिरुद्धैं भेजलेॅ छै।" लतान्ते कहनें छेलै

"कैन्हें, ऊ नें आवेॅ पारै छेलै?"

"ऊ तेॅ हौ करेजा वाला के पता लगले पर ऐतै। एखनी नें।" योगी के बोली एकदम कठोर होय गेलोॅ छेलै।

"तबेॅ तेॅ ठिक्के छै। सी0 बी0 आई0 सें जाँच करावैं...खैर छोड़ें ई सब बातोॅ केॅ। अबकी हम्में मुखिया-चुनाव में खाड़ोॅ भेलोॅॅ छियै। खाड़ोॅ होय के तेॅ बबुआन टोला सें चैतो सिंह, कैथटोली सें रतन सिन्हा आरो बभनटोली सें बांके पाड़े भी खाड़ोॅ होलोॅ छै। सब्भैं आपनोॅ-आपनोॅ जातोॅ केॅ वोट देतै। ई तेॅ बोल-तोरा सिनी के वोट हमरा मिलतै की नें? एकटा जाति के सभो बुलैनें छियै आबेॅ तोरा तीनों सोचतें होवैं कि वोट-वाट में जात-पात शनिच्चर की बोलै छै। कोय है बात सुनतै तेॅ की बोलतै...अरे की बोलतै। जाति महासभा कहिया नें छेलै, अरे नेहरुवो जी के समय में ब्राह्मण महासभा, चन्द्रवंशी महासभा, कायस्थ महासभा, सूर्यवंशी महासभा, ब्रह्मर्षि महासभा छेलै। वैश्य महासभा, कुरमी महासभा देखी-सुनी के केकरो चूतड़ कथी लेॅ फाटै छै। सब्भे केॅ राजे करना छै ई देशोॅ में, लोकतंत्रा कहिया रहलोॅ छै, जे आय होय जैतै। माथा पर सें खाली टोपी तेॅ हटावैं, सब के नीचें ओकरोॅ जात लिखलोॅ छै। है जे उजरोॅ, कारोॅ, पीरोॅ, लाल, हरा टोपी छेकै, ऊ खाली देखशोभा"

सब्भे केॅ चुप देखी शनिचरें झट आगू बात बढ़ैनें छेलै,

"देखें जोगी। कैथटोली छै की नें छै?"

"छै"

"ग्वरटोली छै की नें छै?"

"छै"

"कदरसी छै की नें छै"

"छै"

"आरो बभन टोली छै की नें छै"

"वहोॅ छै"

"हम्में पूछै छियौ, जबेॅ कुम्हर टोली छेवे करै, राजपूत पट्टी छेवे करै, डोमसी छेवे करै, चमरटोली छेवे करै, तेॅ सब जातोॅ केॅ आपनोॅ-आपनोॅ संगठन जों बनै छै तेॅ केकरोॅ कैन्हें कुच्छू फाटै छै आरो कथी लेॅ। पट्टी रहतै तेॅ पार्टियो रहतै। दल आरो पार्टी खतम करै लेॅ चाहै छै, तेॅ पहिलें कदरसी कैथटोली के बीच बसाव आरो बभनटोली केॅ डोमासी बीच। होतौ? ई नें होतौ तेॅ संगठन बनवे करतौ। ज़्यादा पादें नें। शहरोॅ में की नें होय रहलोॅ छै, बोल!"

"हम्में गाँव के बात करै छियौ। जबेॅ बात गामोॅ के हुएॅ तेॅ गामे के बात करें। गाँव केॅ शहर में, शहर केॅ गाँव में नें घुसियाव" खुशीलाल नें आपनोॅ ठोर सीएॅ नें पारलोॅ छेलै, ऊ आरो कुछ बोलै वाला छेलै, मजकि ओकरा रोकतें हुएॅ लतांते कहनें छेलै, "तोरोॅ बात तेॅ ठीक छौ, मजकि पाप केॅ पुण्य समझी, यै लेली नें ढोलेॅ जावेॅ सकेॅ कि ऊ पाप हमरोॅ पूर्वज नें ढोलेॅ छै। गू, गुए छेकै, गोड़ सें लगावें कि कपारोॅ सें; की होय छै।" लतांते ई कही केॅ आपनोॅ मंसा साफ करी देनें छेलै। आगू के बात खुशीलाल नें पूरा करतें कहलेॅ छेलै, "ई तेॅ हमरासिनी विधाता साथें आगू तै करबै कि की करना छै।"

खुशी के बात सुनत्हैं शनिच्चर के मूड बदली गेलोॅ छेलै। वैं वहेॅ मूडोॅ में कहलकै, "हम्में तेॅ नें पुलिस के आदमी आरो नें मुखिया कि कुच्छू तोरोॅ सिनी के मदद करेॅ पारहौं। हों मुखिया-चुनाव हमरोॅ पच्छोॅ में भेलोॅ तेॅ ई मदद ज़रूरे करवाय देवौ।" फेनू ऊ रुकी केॅ कहनें छेलै, "ई बात अनिरुद्ध साथें विधातो केॅ कही दियैं...जो, कत्तेॅ देर खाड़ो रहवे। गोड़ दुखी जैतौ। फेनू कोस भरी कलेजो वाला केॅ तेॅ खोजना छौ, गोड़ केॅ थकै सें बचैय्ये लेॅ लागै। पता नें ऊ कोस भरी कलेजावाला कहाँ रहेॅ। रहेॅ की नें रहेॅ।" कहतें-कहतें शनिच्चर एकदम ठहाका मारी के हाँसी पड़लोॅ छेलै।

जोगी, प्रसून आरो खुशी लाल लौटी ऐलोॅ छेलै, बिना कुच्छू बोलले। एकदम गुमसुम उदास मनोॅ सें, जेना तीनो आखरियो बाजी हारी गेलोॅ रहेॅ आरो पासा पर सें बड़ा अपमानित होय केॅ उठै लेॅ पड़लोॅ रहेॅ।