जटायु, खण्ड-22 / अमरेन्द्र

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विधाता रोॅ आवै भर के देर छेलै, गाँव में फेनू सें पहले वाला माहौल आवेॅ लागलोॅ छेलै। रवि चक्रवर्ती, कमरुद्दीन, एकबाली यादव, रंगीला मंडल, लतांत, योगी आरनी के मनोबल बढ़ी गेलोॅ छेलै। है कहना तेॅ एकदम ग़लत होतै कि गामोॅ के नब्ज एकदम सुधार पर आवी गेलोॅ छेलै, ऊ तेॅ आबेॅ शात हुवौ नें पारै छेलै, मतरकि नारा, कनफुसकी, सरेआम उलटा-सीधा बोलवोॅ ज़रूरे रुकी गेलोॅ रहेॅ।

गाँव में उतरतैं विधाता गाँव के हवा-पानी केॅ सूँघी-साँघी सब बातोॅ केॅ जानी लेलेॅ छेलै। ऊ भोरे-भोर, जखनी गाड़ी सें उतरलोॅ छेलै, आपनोॅ घोॅर जाय सें पहिनें ऊ मीरा भाभिये सें मिललोॅ छेलै। अनिरुद्ध सें जादा मीरा भाभी ही गाँव आरो गाँव के एकेक आदमी के बारे में एक सांस में सुनाय गेलोॅ छेलै। विधातां एक-एक बात केॅ सुननें छेलै आरो वही सब पर गुनतें-छिगुनतें घोॅर आवी गेलोॅ छेलै। घरोॅ में ऊ घंटो भरी सें बेसी नें ठहरलोॅ होतै। काका, काकी, भाभी, भैया-सबतेॅ ठीक छेलै। फेनू की। घंटा भरी के बादे ऊ जे घरोॅ सें निकललोॅ छेलै तेॅ आय ताँय शायते घंटा-दू घंटा सें बेसी आपनोॅ घरोॅ में सुस्तैलोॅ होतै। केकरो कन खाना, केकर्हौ कन सुती रहना-यहेॅ तेॅ विधाता के जीवन बनी गेलोॅ छेलै। ...विधाता जानै छै, जों केन्हौं केॅ शनिचर केॅ ठीक रास्ता पर लानी देलोॅ जाय, तेॅ सब मामला आपनेआप सुधरी जैतै, फेनू केकरौ सुधारै के कोय ज़रूरते नें। मतरकि शनिचर केॅ रास्ता पर लाना कि एतन्है आसान छै? ऊ आपनोॅ रास्ता छोड़ी केॅ जोॅन-जोॅन रास्ता होतें भंगटी गेलोॅ छै, वहाँ सें ओकरा लौटाना कत्तेॅ बड़ोॅ मुश्किल बात छै-ई विधातौ केॅ मालूम छै। ठीक बात छेकै कि शनिचर अभियो ओकरोॅ होने मित्रा छेकै, मतरकि खाली मित्रहैं वास्तें वैं आपनोॅ सब कुछ की छोड़ी देतै, जेकरोॅ लेॅ वैं विधाता साथें अनिरुद्ध, गंगा, खुशी आरो लतांतो हेनोॅ दोस्तो सें अपरिचय बनाय लेलेॅ छै...पर चुप्पी सें तेॅ समस्या सुधरै वाला नें छै? ई सब तेॅ गाँव केॅ नरक बनाय के तैयारी छेकै...आरो यही सब सोची केॅ विधातां दिनोॅ में एक-दू बार तेॅ ज़रूरे शनिचर के घरोॅ पर होय आवै छै। ई अलग बात छेकै कि शनिचर ओकरा शायते मिलै छै। मिलवो करै छै तेॅ बहुत ज़रूरी के काम बताय केॅ ऊ निकली जाय छै। शनिचरो केॅ खूब मालूम छै कि विधाता आखिर कैन्हें ओकरोॅ घरोॅ पर आना-जाना तेज करी देनें छै? वैं मने-मन सोचै छै, "कुछु हुएॅ, वें भैरो, सोराजी, गोपी काका आरनी के साथ नैं छोड़ेॅ सकै छै...आखिर हमरोॅ एक्के तेॅ इच्छा छै, मुखिया बनी केॅ रुपसा वाला पर हुकुम चलाय के आरो हमरा ई पदोॅ पर लानै लेॅ भैरो का आरनी की-की नें करी रहलोॅ छै। हम्में करिये की रहलोॅ छियै? सब तिकड़म आरो शकुनी के चाल तेॅ हुनके सिनी के...ई मुखिया के चुनाव की छेकै? कुरूक्षेत्रा। आरो ई कुरूक्षेत्रा के तेॅ हिनके सिनी सेना आरो सेनापति। हम्में तेॅ खाली युधिष्ठिर...असकल्ला युधिष्ठिर करतै की? ...नें-नें हम्में विधातौ के कहला पर आपनोॅ सेना-सेनापति केॅ नें छोड़ेॅ पारौं। ई विधाता हमरा पास आवी केॅ कुरूक्षेत्रा कमजोर करै लेॅ चाहै छै, ई नें हुवै वाला छै...ई रुपसा के मुखिया बनतै तेॅ शनिचर...शनिचर के सिवा कोय नें बनेॅ पारेॅ...ई गाँववाला हमरा तड़पिया-गंजक्कड़ समझै छै, यही नी! एकदिन हमरोॅ मंडली में दस सेर चीनी वास्तें बैठतै, तखनी...शनिचर केॅ पूरा विश्वास छै, अबकि ऊ मुखिया बनिये केॅ रहतै आरो मुखिया बनैलेॅ गोपी का, भाखर का, हेनोॅ आदमी के ज़रूरत छै, जे मिनिट में राम्हौ के मनोॅ में सीता लेॅ शंका पैदा करी देॅ। नैं, ऊ ई बारे में विधाता सें गप करै नें पारेॅ।" से ऊ विधाता केॅ दूरहेॅ सें देखथैं कोय दिश चली दै छै। तहियो विधाता केॅ एक्के जिद छै, ओकरा आपनोॅ बातोॅ में आनै के. ऊ ओकरो घोॅर आकि ओकरोॅ अड्डा पर जैवे करतै। ई बात केॅ लै केॅ खुशी, जोगी, रवि आरनी खुश छै, है केन्होॅ केॅ नें कहलोॅ जावेॅ सकै। यैं सिनी कै बार खुली केॅ कहलेॅ छै कि आखिर है रँ ओकरोॅ खुशामद करला सें तेॅ अच्छो आदमी के मनोबल गिरै छै, शनिचर के प्रभाव तेॅ बढ़िये रहलोॅ छै। खुशी बोलै, "तोहें जे मूड़ी झुकाय रहलोॅ छैं, तेॅ की मूड़ी झुकाय के अरथ समझै के मूड़ियो ओकरोॅ पास छै? ...चीटी के पंख निकललोॅ छै तेॅ वैं आपनेॅ केॅ जटायु बूझेॅ लागलोॅ छै, बूझै दैं, है समझवे नें करी रहलोॅ छै कि ओकरोॅ आखरी दिन आवी रहलोॅ छै...शनिचर सें शनिचर बाबू कहावेॅ लागलोॅ छै तेॅ ओकरोॅ माथोॅ ठिकानोॅ पर रहेॅ भला, मतरकि है ओकरा मालूमे नें छै-ओकरा बाबू कहवैय्या सिनी के करम केन्होॅ प्रसिद्ध रहलोॅ छै..." पर ई सब बातोॅ के असर विधाता पर नें छेलै। ओकरोॅ तेॅ एक्के कोशिश छै कि केन्हौं केॅ शनिचर केॅ सही रास्ता पर लै आवै। यही सें तेॅ रातो-बेरात ऊ शनिचर के घरोॅ पर पहुची जाय छै।