जटायु, खण्ड-5 / अमरेन्द्र

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तै तमन्ना के मुताबिके नकुल बाबू के मकान के बाहर वाला बरामदा पर मिटिंग बैठैलोॅ गेलोॅ छेलै। छवारिक सें लै केॅ बूढ़ोॅ-बुजुर्ग सब्भे उपस्थित भेलोॅ छेलै। कुछ अधवेसुओ आगू-पीछू होय के बैठलोॅ रहेॅ। यै में पाँच अधवैसू तेॅ शनिचर के ही अगल-बगल में विराजमान छेलै। प्रफुल्ल, ढीवा, खखरी, रामलोचन भी शनिचरे सें सटलोॅ बैठलोॅ छेलै। एकदम एक दिश। बाकी दुसरोॅ दिश में। मिटिंग में पहले मिडिल इस्कूल के गुरूजी मंटुवे बाबू बोलना शुरू करलकै, "तेॅ ई सब्भे केॅ मालूम छौं कि है मिटिंग कथी लेॅ बुलैलोॅ गेलोॅ छै। यै लेली, यै बारें में कुछुवे बात नैं करी केॅ सीधे ई बातोॅ पर विचार करना चाहियोॅ कि श्रीज्ञान विद्यापीठ कहाँ बनेॅ आरो ओकरोॅ प्रिंसिपल के हुएॅ। चूँकि विद्यापीठ वास्तें कोय महल-उहल खड़ा करना तेॅ नहिंये छै, दू-चार काठ केरोॅ ठाठ-पलनियाँ गिराना छै। यै में हजार-दू हजार जे भी खरच बैठतै, सब हमरोॅ दिश सें। काठ-कोरोॅ के तेॅ कभी छै नें, छप्पर-छौनी चूतेॅ तेॅ हम्में साले-साल की, महिने-महिना बदलवावेॅ पारौं। विचार यहेॅ करना छै कि विद्यापीठ हुएॅ तेॅ हुएॅ कहाँ आरो एकरोॅ सब तरह देखभाल सें लै केॅ पढ़ाय तक के व्यवस्था करै वाला पिं्रसिपल के बनेॅ? हम्में चाहवै कि यै विषय पर पहिनें वसन्त दा ही बोलेॅ तेॅ अच्छा।"

"जहाँ तक प्रिंसिपल चुनै के बात छै, ऊ तेॅ लगभग ई तैय्ये छै कि विधाताहै ऊ पदोॅ के लायक छै आरो ई बात सब्भे लोगोॅ केॅ मंजूरो छै। रहलै बात स्थान के, से तेॅ विधाता के कहना छै कि हरगौरी बाबू के मठ वाला परती जमीने यै वास्तें उपयुक्त होतै। एकदम शांतो छै आरो गाँमों सेॅ दूरो नैं।"

वसन्त चौधरी के बात खतम होत्है शनीचरें रामलोचन दिश देखलेॅ छेलै आरो रामलोचन पट सना उठी केॅ खाड़ोॅ भै गेलै। वैनें खड़े-खड़ दोनों पंजा केॅ दोनों बाँही में फँसैतेॅ हुएॅ डोली-डाली कहना शुरू करी देलेॅ छेलै, "वसन्त काका के हौ बात तेॅ ठीक छै कि विधाताहै ऊ विद्यापीठ के प्रिंसिपल बनेॅ। सब तरह सें ऊ योग्यो छै। मतरकि है बात विधाता केना अपने-आप तै करी लेलकै कि दिवंगत हरगौरी बाबू के जमीन विद्यापीठ वास्तें मिलिये जैतै।"

"मिलि जैतै, हरगौरी बाबू के गोतिया श्याम बिहारी बाबू सें हमरोॅ साफ-साफ बात होय चुकलोॅ छै।" विधातां बड़ा विश्वास के साथें शांत स्वरोॅ में कहलकै।

"मतरकि एक गोतिया के कहलें सें की होय जाय छै। आरो चार गोतिया हामी भरतै, तबेॅ नी?"

"हमरा श्याम बिहारी बाबू विश्वास दिलैनें छै कि कोय गोतिया तरफोॅ सें कोय विरोध नैं होतै। बलुक यै बातोॅ सें सबकेॅ खुशिये भेतै।"

"आबेॅ खुशी भेतै कि दुख, है बात तेॅ हरगौरी बाबू के एक गोतिया अखौरी बाबू के मुंशी विपिन बाबू ही बतैतै। की विपिन बाबू।"

प्रफुल्ल के इशारा पावी केॅ अखौरी बाबू के मंुशी विपिन घोष खड़ा होय केॅ आपनोॅ चश्मा के शीशा आपनोॅ कमीजोॅ सें मिनिट भरी रगड़तें रहलै, फेनू ओकरा आपनोॅ आँखी पर चढैतें शीशा के ऊपर सें एकबार वहाँ उपस्थित लोगोॅ केॅ देखलकै, जेना कुरूक्षेत्रा मेें खाड़ोॅ अर्जुन आपनोॅ रिस्तेवाला केॅ पहचानी रहलोॅ रहेॅ। फेनू वें शनिचर केॅ देखलकै, जेना वें ओकरा सें कहतें रहेॅ, हम्में हिनकोॅ खिलाफ केना लड़ेॅ पारौं।

शनिचरो बड़ी अर्थपूर्ण आँखी सें कनखी में देखलेॅ छेलै, जेकरा वहाँ खाली कमरूद्दीन आरो जोगी ही देखलेॅ रहै। कमरूद्दीनें कंगूरिया अंगुरी विधाता के जांघी में गड़ैतें हुएॅ है दिश इशारो करलेॅ छेलै, मतरकि विधातां कुछ नें समझेॅ पारलेॅ छेलै, से फेनू ऊ मुड़ी झुकाय केॅ मुंशी विपिन घोष के बात सुनै में लागी गेलै।

"आरो सब गोतिया के बात तेॅ हम्में नें कहेॅ पारौं, मतरकि अखौरी बाबू साफ-साफ कही देलेॅ छै-हम्में जमीन दै के पक्षोॅ में नें छियै। हवेली गिरला के बाद ऊ मलवा के ठीक-ठीक छानबीन नैं करलोॅ गेलोॅ छै। हुएॅ सकै छेॅ, वैं मलवा में लाखो-करोड़ो के जेवरात गड़लोॅ रहेॅ।" विपिन बाबू के बात खतम होना छेलै कि सौंसे मिटिंग खुसुर-पुसुर के शोर में डूबी गेलै। विधाता के झुकलोॅ मुड़ी कुछु आरो झुकी केॅ रही गेलै, जेना ओकरोॅ सब कुछ हेराय गेलोॅ रहेॅ, वहाँ जेना ओकरोॅ कोय्यो नें रहेॅ। कमरूद्दीन ओकरा है रँ टुटतें देखलकै तेॅ निराशा आरो खुसुर-पुसुर केॅ फाड़तें हुएॅ कड़ा बोली में कहना शुरू करलकै, "जों अखौरी बाबू यै लेली तैयार नैं छोॅत तेॅ चिन्ता नें। मतरकि यहेॅ कारण हमरोॅ सपना तेॅ नें टूटेॅ पारेॅ। चानन नद्दी के किनारा वाला जमीन, जेकरा पर मील भरी शीशम गाछ लागलोॅ छै-वांही विद्यापीठ खुलतै आरो आबेॅ वांही खुलतै, कोय दुसरोॅ जग्घोॅ नें। हम्में तेॅ विधाता सें कहलेॅ छेलियै कि हमरोॅ इस्कूल के सामनों में जे दसबिघिया जमीन छै, वांही संस्था खोलै, मतरकि यें मानवे नैं करलकै। हों चाननपट्टी वास्तें विधाता तैयार छेलै-ठाकुरबाड़ी वाला जमीन के बाद। तेॅ आबेॅ वांही विद्यापीठ खुलतै ...हम्में तेॅ ई विधाता केॅ पहलो कहलेॅ छेलियै-एक अखोरी बाबू नें, कै अखोरी बाबू तोरोॅ योजना के खिलाफ लागलोॅ छौ। एक केॅ समझाय केॅ काम बनैलोॅ जावेॅ सकेॅ, मतरकि ऊ सब अखौरी बाबू केॅ नैं, जे खोटी-खोटी केॅ ई गाँव के सुख-सपना, समृद्धि केॅ खाय में लागलोॅ छै।"

कमरूद्दीन आरो कुछु कहतियै कि बीचे में चेहरा कुछ कड़ा करतें शनिचर नें टोकतें हुएॅ कहलकै, "कमरूद्दीन तोहें ज़रूरत सें ज़्यादा बोली रहलोॅ छैं। जों तोंहें यै में केकरोॅ पेंच-पाँच समझै छें तेॅ सीधे नाम लै के बोल। है मौगयाही वाला चाल छोड़।"

शनिचर केॅ कड़ा रुख करतें देखलकै तेॅ खखरी, ढीवा, चौरासियो होकरे सुर में एक-एक करी केॅ बोलेॅ लागलै, "हों कमरूद्दीन, तोहें जोॅन खोटी-खोटी खायवाला अखौरी बाबू दिश अभी बोललें, ओकरोॅ नाम ले। मास्टर छेकैं, तेॅ मास्टर हेनोॅ साफ मन राखें, कैथो हेनो पेटोॅ में घुरची राखी केॅ नें बोल। यहाँ साहू टोली के लोग सब नें बैठलोॅ छै कि साँढ़ हेनोॅ जैवैं आरो सब आपनोॅ दुकान बन्द करी लेतै।"

"खखरीे, बोली पर लगाम राख। सरपंच के बेटा छेकैं तेॅ आपनोॅ घरोॅ में। जों कैथोॅ केॅ घुरची-ऊरची वाला कभियो बोललैं तेॅ ठिक्के कैथोॅ के घुरची विसाय जैतौ, हों।" हठाते शनिचर के पीछू बैठलोॅ प्रेमरत्न बलबलाय उठलोॅ छेलै, जेकरा शनिचरें घूमी केॅ आगू बोलै सें टोकी देलेॅ छेलै। सब शांत भेलै तेॅ कमरूद्दीन वहे बोली में फेनू कहना शुरू करलकै, "समय ऐतै तेॅ नामो बिछाय केॅ राखी देभौ। एक बात तेॅ यहाँ पर फेनू सें कहिये दियौ कि पठाने के बेटा छेकियै हमरोॅ बाबू ई जानै छेलै कि झपटलोॅ सिंह के जबड़ा में हाथ घुसाय केॅ ओकरोॅ जीभ केना खींची लेलो जाय छै। पठान कोय चौधरी, मंडल, घोष के धौंस नें सहलेॅ छै, नें सहतौ।"

"कमरू तोंहें बिरनी केॅ हुरकच्ची रहलोॅ छैं। जथी पर बात-विचार करै वास्तें तोहें ऐलोॅ छैं, ओकर्है पर बतियाव।" चौरासी बोललै।

' तोहें कौन मेंठ, मुखिया या हमरोॅ इस्कूली के हेडमास्टर छेकैं, जे तोरोॅ बातोॅ पर हम्में चलवौ। आरो बिरनी-उरनी के बातोॅ सें कमरूद्दीन केॅ नें डरावैं। जुग जमाना बदली गेला के बादो चौधरी परिवार के खूनोॅ में कोय नरमी नें ऐलोॅ छै ...परसू ताँय अखोरियो बाबू केॅ जमीन दै में कोय आपत्ति नें छेलै, कल सें की भै गेलै। खेतोॅ के जमीन दलदल भै रहलोॅ छै, तेॅ की हम्में नें जानै छियै, कौनें-कौनें आपनोॅ नाली के पानी भीतरे-भीतर खेतोॅ दिश खोली केॅ राखलोॅ छै। सबनें जानी रहलोॅ छै, सब्भैं देखी रहलोॅ छै। हमरा सें नाम पूछी केॅ की होतौ। जबेॅ नामे बताय के नौबत ऐतै तेॅ यहू जानी लेॅ, एकेक करी केॅ, ऊ सबके दीवाल ढाही केॅ नाली-मोरी हरोॅ सें जोतवाय केॅ भतवाय-भत्ती देवौ। "

"तेॅ पहलें तोहें यहेॅ कर।" ई कही केॅ शनिचर आपनोॅ जग्घोॅ सें उठलै आरो सीधे बरामदा सें घड़धड़ैलोॅ बाहर निकली गेलै। शनिचर के बाहर निकलना छेलै कि ओकरोॅ पीछू-पीछू परफुल्ल, ढीवा, प्रेमरत्न, खखरी, चौरासियो सिनी निकली गेलै, पर ओकरोॅ पक्ष के लड्डूकापरी, धीरेनदास, भैरो चौधरी, सोराजी चौधरी आरनी वांही बैठलोॅ रहलै, शायत ई जानै लेॅ कि मिटिंग में आखिर की फैसला लेलोॅ जाय छै। यहो हुएॅ पारेॅ कि भैरो मिसिर आरनी वसंत मण्डल आरनी केॅ सामना आपनोॅ पक्ष-विपक्ष खुलै दै लेॅ नैं चाहै छेलै।

शनिचर सिनी के है रँ उठी केॅ चली देला के कारण मिटिंग मेें अनचोके एगो अजीब रँ के सन्नाटा आवी गेलै। कोय कुछ नैं बोली रहलोॅ छेलै। एकबारगिये जेना सबकेॅ गोवध लागी गेलोॅ रहेॅ।

"तोरासिनी है रँ गुम्मी कैन्हें साधी लेलौ। है मिटिंग शनिचरें नैं बोलैलेॅ छेलै, जे ओकरो चल्लोॅ गेला सें मिटिंग रुकी जैतै।" रवि चक्रवती झुँझलाय केॅ कहलकै।

"ठिक्के तेॅ बोलै छै चक्रवर्ती। जे निर्णय लेना छौं, लेॅ। आरो निर्णय की लेना छै। जबेॅ आरो अखोरी सिनी साथें अखोरियो बाबू जमीन दै में कुनमुनाय रहलोॅ छै तेॅ, यहेॅ मानलोॅ जाय कि चानन वाला जमीने पर विद्यापीठ खोललोॅ जैतै। विद्यापीठ वास्तें हौ मुर्दघट्टी सें तेॅ यहेॅ जमीन हजारो गुणा बड़ियाँ आरो स्वर्ग छै। छै की नें!" कमरूद्दीन एक तरह सें मिटिंग में लेलोॅ जाय वाला फैसला पर मुहर लगैतें कहलकै।

आरो होवो करलै वही। एक्के सुरोॅ में सब्भैं ई फैसला के समर्थन करी देलकै। समर्थन नैं करलकै तेॅ सोराजी शर्मा, भैरो मिसिर आरो लड्डूू कापरीं। समर्थन के तेॅ बात दूर, धीरेन दासें तेॅ दबलोॅ जुबान में ई फैसला के विरोधे करतें हुएॅ कहलेॅ छेलै, "हमरा लागै छै, एत्तेॅ जल्दीबाजी में है रँ के फैसला लेवोॅ ठीक नें छेकै। चानन-पट्टी पर विद्यापीठ खाड़ोॅ करै वास्तें गाँव के एकेक आदमी सें पूछना चाहियोॅ, यहेॅ गामोॅ केॅ नें, आस-पास के सब्भे गामोॅ के लोग्हौ सें। सार्वजनिक आरू सरकारी सम्पत्ति पर है रँ आपनोॅ संस्था खोली लै के फैसला गामोॅ में गुस्सा आरू फूट के कारण हुएॅ पारेॅ।"

"तोहें एकरा आपनोॅ संस्था केना बोली रहलोॅ छौ?" रवि चक्रवर्तीं ज़रा गोस्सा में ऐतें कहलेॅ छेलै।

"अरे ई विद्यापीठ विधाता के आपनोॅ संस्था नें छेकै तेॅ की गाँमोॅ के छेकै? गाँमोॅ के दू-चार आदमी करतै कि सौंसे गाँववाला? आमदनी सें कुछुवे लोगोॅ के पेट भरतै कि सौंसे गाँव वाला के? तबेॅ ई विद्यापीठ आपनोॅ नें भेलै तेॅ की गाँववाला के भेलै।" सोराजी चौधरी के ई बातोॅ पर विधाता कुछ कहै वास्तें उठै लेॅ चाहवे करी रहलोॅ छेलै कि ओकरा हाथ पकड़ी केॅ बैठैतें हुएॅ कमरूद्दीन कहै लेॅ खाड़ोॅ होय गेलै। वातावरण जत्तेॅ विषाय गेलोॅ छेलै, वहेॅ कम नैं छेलै, ई एकदम्मे महुराय नें जाय, यै लेली कमरूद्दीन केॅ इशारे सें बसन्त मंडल नें बैठै के आदेश देलकै। वसन्त चौधरी के इशारा-आदेेश गाँव के मुखिया के आदेश से कोनो कम नैं होय छै। कमरूद्दीन कसमसाय केॅ फेनू बैठी रहलोॅ छेेलै।

जेना कोय महीन चीज हेराय गेला पर तरहत्थी सें कोय ओकरा खोजतेॅ रहेॅ, होने वसन्त चौधरी ने आपनोॅ तरहत्थी धरती पर फेरतें-फेरतें कहवोॅ शुरू करलकै, "श्रीज्ञान विद्यापीठ के कल्पना विधाता के ज़रूर छेकै, यै में कोय शक नैं, मतरकि ई कल्पना के पुरला सें जे लाभ होतै, ऊ गाँववाला के होतै, यहू में केकर्हौ शक नें करना चाहियोॅ। यज्ञ करै के बात कोय एक आदमी सोचै छै भला? जखनी कुंडोॅ में दस पंडित के हाथ पड़ै छै आरोॅ गाँव जुटी केॅ मेला बनाय दै छै, ऊ यज्ञ सबके होय जाय छै-सब पुण्य के भागी। पहिलोॅ दाफी यज्ञ के बारे में सोचै वाला तबेॅ कहाँ रही जाय छै। इस्कूल, अस्पताल, धर्मशाला आरनी खोलवोॅ यज्ञ सें कोनो कम नें होय छै। एकरा खोलै वाला आपनोॅ लाभ एक्के पैसा देखी के करै छै, बाकी पन्द्रह पैसा के लाभ दुसरे केॅ मिलै छै। तहियो यज्ञ हुएॅ कि दशहरा, इस्कूल हुवेॅ कि धर्मशाला-यै में गाँव के एक प्रमुख आदमी, सौ-हजार आदमी के रूच के प्रतिनिधि होय छै, प्रतीक होय छै। ऊ एक आदमी के हों-नें करवोॅ सौ-हजार आदमी के हौं-नें करवोॅ छेकै, हम्में यहेॅ मानै छियै ...आबेॅ जबेॅ बेटे दाखिल शनिचर या प्रफुल्ल के मनोॅ में ढेर सिनी शंका छै, तबेॅ एत्तेॅ बड़ोॅ यज्ञ पूरा करै के संकल्प उठैवोॅ आभी ठीक नें होतै। हमरोॅ तेॅ यहेॅ विचार होतै कि यै लेली एगो आरो मिटिंग बोलैलोॅ जाय, जै मेें शनिचर आरनियो मौजूद रहेॅॅ। आभी वै सब के गैर मौजूदगी में कुछ फैसला करी लेवोॅ, नहियो विवाद केॅ विवाद बनाय लेवोॅ होतै।"

बसन्त मंडल के सुझाव वेदवाक्य बनी गेलोॅ छेलै, से केकरहौ कुछ आबेॅ बोलना की छेलै। हौं मिटिंग उठी जाय के पहिनें विधाता एतना टा कहतें-कहतें ही उठलै, "काका जे रास्ता पकड़ी केॅ तोहें यात्रा के अंत चाही रहलोॅ छौ, हमरा नैं लागै छै कि वैं रास्ता के कानो कांही अन्तो छै। हेनोॅ कहीं नें हुवै कि हमरा सिनी आपनोॅ मंजिल पावै के किंछा लेलेॅ यात्राहे करतें रही जाँव।" सचमुचे, विधाता रोॅ बाद जे-जे एकेक करी केॅ उठी रहलोॅ छेलै-सबके मुँहोॅ पर अजीब निराशा आरो भय के भाव घुमी रहलोॅ छेलै।