जटायु, खण्ड-8 / अमरेन्द्र

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"आव विधाता, आव। आबेॅ तेॅ तोहें हमरोॅ लुग आन्हैं-जान्हैं छोड़ी देनें छैं। ई विद्यापीठ की तोरोॅ दिमागोॅ में धँसी गेलोॅ छौ कि दोस्तिये पार।" शनिचर नें विधाता के नगीच ऐला पर कहलकै आरो आपनोॅ छाती में कस्सी लेलकै। शायत विधातौ नें साल-दू साल रोॅ बादे शनिचर केॅ आपनोॅ सीना सें हेनोॅ लगैनें होतै। कुछु देरोॅ लेली दोनों के मनोॅ सें एक-दूसरा लेली वैर-भाव, शंका सब मिटी गेलोॅ छेलै। दोनों एक होय गेलोॅ छेलै, जेना दू हुऐ के भाव कभी रहले नें रहेॅ।

"बैठ मरद, बैठ।" शनिचर नें फेनू विधाता केॅ आपनोॅ बगलोॅ में हाथ खींचतें बैठाय लेनें छेलै आरो कहना शुरू करनें छेलै, "तेॅ तोरा खबर होइये गेलोॅ होतौ कि हम्में अखौरी काकाहौ केॅ तैयार करी देनें छियौ, जमीन दै लेॅ। ई बात हम्में हफ्ता भरी पहिनें दीपा के घरोॅ पर जाय केॅ कही ऐलोॅ छेलियौ कि वें तोरा खबर करी दौ। तोहें तेॅ आय कल हमर्हौ सें नहिंये मिलै के कसम खाय लेनें छैं। मनोॅ में कुछ समाय गेलोॅ छौ की विधाता?"

"है सब तेॅ तोहें बेकार सोचै छैं। एत्तोॅ बड़ोॅ काम माथा पर लेनें छियै। दिन-रात वही में डुबलोॅ रहै छियौ।" निश्छल मनों सें विधाता कहनें छेलै।

"जों वही में डुबलोॅ रहेॅ छैं तेॅ कोय बात नैं। मजकि आरो कहीं डुबलोॅ रहेॅ छैं आरो हमरा सिनी केॅ भुलाय देनें छैं, तेॅ ई अच्छा नें।" आपनोॅ हथेली पर खैनी रगड़तें चौरासीं खैनी केॅ कुछु जोरोॅ सें दाबतें हुएॅ कहनें छेलै, जेकरा सुनियो केॅ सब्भैं अनसुनी करी देनें छेलै-जेना वै बातोॅ में कोय गंभीर बात नें छिपलोॅ रहेॅ। खाली रामलोचन नें एकबार ज़रूरे कहनें छेलै, "विधाता, ज़रा चौरासियो के बातोॅ पर ध्यान दियैं। अरे, चौकड़ी में बैठी केॅ जवान भेलैं, ओकरौ तेॅ आपनोॅ जवानी के मजा दैं।" रामलोचन के बातोॅ पर कोय बतकही नैं करै छै, कैन्हें कि ऊ जल्दिये आपनोॅ ताव में आवी जाय छै। सब दोस्त ओकरा सें हड़कले रहेॅ छै। मतरकि रामलोचन के व्यंग्य बोल सुनी केॅ शनीचर भड़की गेलै आरो बोललै, "यहेॅ रँ तोरोॅ सिनी के बोली-चाली रहलोॅ तेॅ विधाता के आबेॅ बाते छोड़, हम्मू ऐवोॅ-जैवोॅ बद करवौ। की बोलैं छैं-नापी-तौली केॅ बोललोॅ करें। यही बोली के कारणें हम्मूओ जाय छी। बोलै छैं तोरा सिनी आरो लोगें कहै छै-शनिचरा के प्रभाव छेकै। खाली घसोटी-घसीटी केॅ बी0 ए0 पास करला सें सब कुछ नैं होय जाय छै रामलोचन।"

"देखैं ज़्यादा टनटनाव नें शनिचर। हम्में एखनी ज़रा टा बोललियै तेॅ वेद बाँचेॅ लागलैं आरो जखनी आपने महुआ पीवी केॅ लंकाकाण्ड बाँचै छेलैं, तखनी।"

"अरे छोड़ें रामलोचन, एक तेॅ तोहें रामलोचन, ओकरोॅ बाद रावनोॅ हेनोॅ गुस्साहा होय गेलैं।" विधाता माहौल केॅ शांत करै के ख्यालोॅ सें कहलकै।

"नें-नें, रामलोचन केॅ अभी बोलै दैं विधाता। अबकी दुर्गापूजा के नाटकोॅ में हेकरा पाट रावने के मिलै वाला छै। एखनिये सें रिहलसल करतै, तबेॅ नी——।" आपनोॅ तलहत्थी सें मूड़ी टेकनें पट्ट लेटलोॅ ढीवा नें कहलकै आरो सब्भे एक्के साथ हाँसी पड़लै।

विधाता कहनें छेलै, "है होलै नी प्रेमोॅ के बात।"

"अच्छा, छोड़ ई सब बात केॅ। तोहें आवै के कारण बताव। हम्में समझै छियै-तोहें यहेॅ कहै लेॅ ऐलोॅ होवैं कि विद्यापीठ के काम हरगौरी बाबू वाला जमीनोॅ पर जत्तेॅ जल्दी हुएॅ, शुरू करवाय देलोॅ जाय। यहेॅ नी? ... ...तेॅ एकरा में की छै...एखनी तेॅ बारिस शुरूवे भेलोॅ छै। खेती-बारी शुरू होय में आरो दस-बीस रोज देर होय केॅ मानिये केॅ चलैं...खेती-बारी शुरू होय गेला के बाद तेॅ मोॅर-मजूर मिलनाहौ एकदम्मे कठिन। हों एखनी गामोॅ के मजूर केॅ यै कामोॅ में भिड़ाय देलोॅ जैतै तेॅ हम्में समझै छियै कि खेती-बारी शुरू होतें-होतें तोरोॅ छप्पर-छौनी आरो दीवाल वाला काम नहिंयो होतौ तेॅ रोपनी के बाद दस-बारह दिनोॅ के भीतरे होन्है-होना छै। कमरूद्दीन, रवि आरनी के की विचार छौ। वसन्तका आरो कमरूद्दीन तेॅ खैर...तोरोॅ जे इच्छा-वही हुनकोॅ इच्छा।"

"देख शनिचर, जहाँ ताँय कमरूद्दीन, गंगा आरो वसन्त का के बात छै, वै सिनी सें ई सम्बन्धोॅ में कोय बात नें होलोॅ छै। मजकि रवि के आबेॅ यहेॅ इच्छा छै कि विद्यापीठ चानने पट्टी में बनेॅ, यै लेली ऊ चार दिन पहनें भागलपुर चल्लोॅ गेलोॅ छै। वहाँ जिलाधिकारी सें जमीन पर विद्यापीठ खोलै सम्बंधी बात-विचार करतै। बात तेॅ हम्मू करेॅ सकै छेलियै, मतरकि जिलाधिकारी के पी0 ए0 रवि के दूर के सम्बन्धी छेकै, से काम आरो आसानी सें होय जाय के आशा छै।"

"के रवि? ...रवि चक्रवर्ती? की रवि सिन्हा?"

"रवि चक्रवर्ती।"

"तेॅ तोरोॅ वास्तें रविये खास आरो कमरूद्दीन, गंगा, खुशी आरनी कोय नें। ओकरो सिनी के विचार तेॅ लेतियैं, आखिर वै सिनी भी की चाहै छै।"

"है बात केकरौ सें नैं छुपलोॅ छै कि रवि, गंगा, कमरूद्दीन आरनी में कोय भेद नें छै। कोय एकें बोली देलकै, सबके बात छेकै। यै लेली वै सिनी सें आभी कोय बात नें करनें छियै। काम होय जैतै तेॅ बताय देवै।"

"आबेॅ तोरा सिनी के जे मरजी. हम्में तेॅ ई समझलियै कि कमरूद्दीने हरगौरी बाबू के जमीन हासिल करै में कहीं हमर्है नें भांगटोॅ मानतें रहेॅ, यै लेली अखौरी बाबू के सामना गिड़गिड़ावौ लेॅ पड़लै। वै में भी तोरोॅ आशा, किंछा के बात छै, नें तेॅ शनिचर केकरो आगू घिघनै लेॅ नें जाय छै...जों रविया आकि तोर्हो हेने विचार छेलौ तेॅ पहनें कही देतियैं।"

"देख शनिचर, पहिलेॅ सें हेनोॅ कोय बात नें छेलै। जमीन पावै में भांगटोॅ देखियै केॅ ऊ जग्घौॅ निश्चित करलोॅ गेलै। आरो आबेॅ तेॅ हेनोॅ लागै छै कि यही फैसला आखरी बनी केॅ रही जैतै...शनिचर, जों विद्यापीठ खुलना छै तेॅ चानने पट्टी में खुलतै, हमरो यहेॅ इच्छा बनी गेलोॅ छै।"

"देखों रे, तोहें विद्यापीठ मशानी में बैठावें कि जंगलोॅ में, हमरा ज़रूरे वैं में मास्टर राखी लिएं।" एकोसी होय केॅ आबेॅ ताँय लेटलोॅ एकबारगिये उठी केॅ बैठतें हुएॅ धीरेन्द्रें कहलकै।

"कैन्हें? आबेॅ पुरोहिताय में मोॅन नें लागै छौ? की आरती में आबेॅ पैसा नें आवेॅ लागलोॅ छौ की?" विधाता हँसतें होलोॅ कहनें छेलै।

"पैसा तेॅ आविये जाय छै। मतरकि आबेॅ है पुरोहिताय में गौरव नैं रही गेलौ। पूजा-पाठ करैलकौ, पंडित बुलैलकोॅ तेॅ जेना पंडिते पर कृपा करी रहलोॅ रहेॅ...फेनू की बतैय्यो पिछलका महिना के बात। चेतू काका के यहाँ पूजा छेलै-सतनारायण प्रभु के. हमरा बोलैलकै तेॅ बोलैवे करलकै, मतरकि आबेॅ की कहियो विधाता-ओकरोॅ बेटा विशेषर काँही सें ऐलै। गोड़ देखी केॅ समझी गेलियै कि ऊ नशा में छै। हमरा पूजा पर बैठलोॅ देखलकै तेॅ लागलै बक्केॅ," पंडित को कौन घर में बुलाया। हम्मू पंडित है। कौन बोला है कि खाली पंडिते ब्रह्मा जी के मूँ से जनमा है, हम्मू जनमा है। "...तखिनकोॅ दृश्य की कहियौ विधाता। सीधा-सादा चेतू काका, कभियो ओकरा ऐंगना सें खींची केॅ बाहर करै लेॅ चाहै, कभियो हमरोॅ गोड़ पकड़ी केॅ कहै-" पंडी जी विशेषर के बातोॅ के कभियो बुरा नें मानियोॅ। जे-जे मंडली सें सीखी केॅ आवै छै, बोलै छै। पीला के बाद तेॅ एकदम्में मतछिमतोॅ होय जाय छै। "आरू फेनू चेतू विशेषर के गोड़ पकड़ी समझावै," बेटा, तोरोॅ तेॅ जन्म होने होलोॅ छौ, जेना सबके होय छै। होश में आवेॅ बेटा, नाम हिनिस्ताप नैं करावों-आबेॅ की बतैय्यो विधाता, हम्में जानै छियै कि चेतू काका जे टा बोली रहलोॅ छेलै, ऊ सब्भे कुछ साफ मनोॅ सें, मतरकि तखनी हमरोॅ हाल केन्होॅ होय गेलोॅ होतै, ऊ सब बातोॅ सें हमरा आपनोॅ पुरखा के बनैलोॅ सोच पर की रँ गुस्सा ऐलोॅ होतै, आबेॅ तोरा सिनी सोचेॅ पारँै। आरो तखनिये हम्में सोची लेलेॅ छेलियै भाय, है रँ पुरहैतगिरी नें करना छै। ...देख विधाता, तोहें विद्यापीठ खोलवैं तेॅ तोहें वै में प्रिंसिपल रहें-न-रहें, हमरा मास्टर वै में ज़रूरे राखी लियैं। " कहतें-कहतें धीरेन्द्र लागलै जेना रूआंसा होय जैतै।

"तेॅ एकरा में व्याकुल होय के की बात छै धीरो। तोरोॅ मास्टरी वै विद्यापीठ में एखनिये सें निश्चित। की विधाता?" शनिचर नें हक दिखैतें कहनें छेलै।

"मरदे, तोंहें बोली देलैं, आबेॅ वैं में दुसरोॅ बात कहाँ रहलै।"

"अच्छा यही बातोॅ पर मंगवैय्यौ? लेवैं? मरदे आबेॅ तेॅ तोहें ठिक्के संत-महात्मा बनी गेलोॅ छैं। बोल मंगवैय्यौ? हमरो मोॅन छै।" शनिचर नें फेनू एकदम आपनोॅ होतें कहनें छेलै। मजकि विधातां साफ इनकार करी देनें छेलै, "शनिचर जेकरा सें परहेज करी लेलियै, करी लेलियै-वैसें आबेॅ मोहे की? मोह वास्तें तेॅ ढेरे सामना में पड़लोॅ छै। आदमी, समाज, जल, जंगल, जानवर सें जों हमरोॅ मोह होय जाय नी तेॅ...दुनियाँ के बात छोड़-ई गाँव आकि टोलाहै केॅ अच्छा बनाना शुरू करी दियै नी, तेॅ एक दिन ई दुनियाहौ आपने-आप स्वर्ग बनी जाय। दिक्कत तेॅ ई छै शनिचर कि लोगें आपना केॅ, आपनोॅ टोलोॅ-गाँव छोड़ी केॅ देश-दुनियाँ सुधारै पर भिड़लोॅ होलोॅ छै। जेकरोॅ घोॅर अन्हार रहेॅॅ, ओकरोॅ दुनियो केॅ रौशन करवोॅ बस ढोंग छेकै-ढोंग।"

"छोड़ भाय, नैं लेवैं तेॅ आबेॅ माथोॅ माँटी नें करें। आरो सब सुनाव।"

"शनिच्चर, हम्में एगो खास कामोॅ सें तोरोॅ पास ऐलोॅ छियौ।"

"बोल...अच्छा चल, खेतोॅ दिश सें घूमी आवै छियै। ढेर दिन होय्यो गेलै तोरोॅ साथें घुमलोॅ।" शनिचर विधाता केॅ लेलेॅ एक ओर सीधियाय गेलै-धीरेन्द्र, प्रफुल्ल, चौरासी आरनी केॅ वांही छोड़तें हुएॅ।

"बस यहेॅ बात शनिच्चर के अच्छा नें लागै छै। कुछु देर पैहिनें विधाता के एन्टी छेलै आरो एखनी देखवे करलैं। हमरा सिनी केॅ हेनोॅ छोड़ी गेलै, जेना हमर्है सिनी एन्टी रहौं।" ढीबा, जे अब तांय चुप्पे छेलै, आँख-मूँ नचैतें हुएॅ कहलकै, "देख ढीबा, आपनौॅ शनिच्चर छेकै नेता। आरो नेता के चाल-चलन स्थिर होतै तेॅ चलतै? अरे नेता तेॅ बदरकटुवोॅ रौद होय छै। छायाहौ में देह जराय वाला।" धीरेन्द्रें आहिस्ता सें फुसकलेॅ छेलै।

" की बोललैं धीरो-शनिच्चर माने बदरकटुवोॅ रौद...अरे मरदे, अनिरुधे हेनोॅ, यहू की हमरासिनी केॅ कुछ बुझै छै। पर करियै की। लत्तर वाला गाछ, नै केकरोॅ संग, तेॅ झरबेरिये-बबूले संग। खाड़ोॅ तेॅ होन्है छै...ही...ही...ही। ...हे...हे...हे...हे...हे। हो...हो...हो...हो...हो। एक्के साथें सब्भे ठठाय पड़लै।