जटायु के कटे पंख, खण्ड-4 / मृदुला शुक्ला

Gadya Kosh से
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अपनी नवजात बेटी और दोनों बेटों के साथ नीरू मायके से लौट आई थी। आते ही सुवास को खोजा तो वह स्कूल गया था। सुवास जब स्कूल से वापस लौटा तो घर से बाहर ही आकाश विकास दिख गया। घर में चहल-पहल थी। आकाश को दादा समझा रहे थे, "तीन महीने से तुमलोग का स्कूल बंद रहा, पढ़ाई में जमकर मेहनत करना होगा।" विकास ने बीच में ही टपक कर कहा-"टैक्स भर दीजिए तो आपकी बात भी सुन लूंगा।"

"अरे नाना के घर से बड़ा लालची होकर लौटा है।" अपनी कमीज की जेब से लेमनचूस के ठोंगे को पकड़ाते हुए श्रीवास्तव जी ने कहा।

सुवास अंदर आया तो नानी 'छोटी' की मालिस कर रही थी। वह वहीं बैठकर उत्सुकतावश देखने लगा। नानी ने कहा, "यह तेरी बहन है, तुझे ढंूढ रही थी।"

सुवास ने आश्चर्य से कहा, "नानी यह कितनी छोटी है।" उसके नन्हें हाथों को पकड़कर कहा-मैं तुम्हारा भैया हूँ। " नानी मुस्कुरा दी।

उस नन्हीं-सी परी को देख सुवास मामी के प्रति अपना गुस्सा भूल गया। वह कमरे में जाकर बोला, "मामी आप 'छोटी' को लाने के लिए इतने दिन रुक गई थीं। अच्छा किया, अब मैं आपसे गुस्सा नहीं हूँ। नीरु ने सुवास को खींचकर छाती से सटा लिया।"

तीन दिन से म्यूनसपल्टी की हड़ताल चल रही थी। पूरे शहर में पानी, बिजली के लिए त्राहिमाम था। खंजरपुर का वह मोहल्ला भी पानी की किल्लत से जूझ रहा था। टैंकर में भरकर पानी आया तो सारे लोग बाल्टी और बर्तन लेकर दौड़ पड़े। दाई की बेटी कुसुमी दौड़ती हुई आई, "भैया भैया पानी आया है, जल्दी चलिए."

अतुल उस समय सुवास की कापी में ड्राइंग बना रहा था। वह उठा तो सुवास भी पीछे-पीछे दौड़ता हुआ गली तक पहुँच गया।

अतुल को देख पड़ोस के शेखर ने चिढ़ाया, "अरे क्रिकेटर साहब, कप्तानी छोड़ आप भी यहाँ आ गए." तब तक पानी के टेंकर के पास महाभारत मच गया। लोग एक दूसरे बरतनों को ठेलने लगे। मजबूत कद काठी के लोगों की चल जाती थी, लेकिन कुसमी तो इस कला में पारंगत थी। बात बनाती, लोगों के बरतन खिसकाती आगे तक बढ़ गई. अपने दोनों बरतन भरने के बाद अतुल को आवाज देना चाहा। तभी पीछे से एक नया लड़का पानी भरने आगे बढ़ा। मोहल्ले में नया था, शरणार्थी बंगाली था। उसकी बाल्टी उससे खीचकर गिरधर ने पीछे ठेल दिया।

"साला रिफ्यूजी पानी भरने आगे बढ़ गया।"

अठारह बीस वर्ष का वह लड़का लड़खड़ा गया और बाल्टी के झटके से खींचने से उसके ओठों में खरोंच आ गई. अतुल ने जल्दी से उसे संभाला।

"अरे गिरधर भैया, क्या कर रहे हो, तीसरी लाइन में ही तो रहता है, पानी लेने दो ना।"

"सब साले पाकिस्तान से आकर यहाँ बसे हैं, रिफ्यूजी है रिफ्यूजी, घर भी चाहिए और अब पानी भी।"

गिरधर के बारे में अतुल जानता था कि वह बहुत उजड्ड है, उसके सामने या अपने-अपने स्वार्थ के सामने किसी ने कुछ नहीं कहा। अतुल ने जमीन पर बैठे, आँसू पोछते लड़के को उठाया, उसकी बाल्टी उसके हाथ में देकर कहा, "भाई चिंता मत करो। बहुत पानी है, तुम पीछे पानी ले लेना।"

सुशीला की माँ तब बोलने लगी, "बेटा पहले अपने घर तो पानी की व्यवस्था कर लो, फिर दरियादिली दिखाना।"

इस बीच अतुल लाइन से बाहर गया था। कुसमी ने जब दो डोल उठा लिए तब चिल्लाई, "अतुल भैया मुखियागिरी खतम हो गई हो तो अपनी वाली बाल्टी आगे बढ़ा दो। तुमसे तो कुछ होगा नहीं।"

अतुल थोड़ा झेंपते हुए उस लड़के से बोलने लगा, "चलो तुम्हारा भी इंतजाम हो जाएगा। मैं बाल्टी दे देता हूँ उसे।"

लेकिन जब कुसमी पानी लेकर बाहर आई तब तक टैंकर खाली हो गया था। इसे देख कुसमी ने चमकते हुए कहा, "नहीं नहीं बड़ी मेहनत और लड़-झगड़ के पानी भरा है, कहीं कल पानी नहीं आया तो? हम नहीं देंगे पानी, मायजी घर में बिगड़ेगी।"

अतुल की कुछ चली नहीं, वह नजरें बचाकर एक हाथ में बाल्टी और एक हाथ से सुवास को पकड़े हुए भीड़ से बाहर निकल आया। सुवास पीछे मुड़-मुड़कर उस लड़के को देखता जा रहा था, जो खाली बाल्टी हाथ में लिए आँखों से आँसू पोछ रहा था। उसे इतने बड़े लड़के का बिना कुछ बोले हट जाना और रोना दोनों ही अटपटा लग रहा था।

श्रीवास्तव जी गेट के बाहर ही बतिया रहे थे, "इससे अच्छा अंगरेजों का जमाना था। गांधीजी ने एक मंत्रा दे दिया-सत्याग्रह। यह हड़ताल की धमकी। बताइये सुकुलजी अनिवार्य सेवाओं पर भी हड़ताल की इजाजत कैसे मिल सकती है।"

"हमारे यहाँ कोर्ट में तो हड़ताल बोलना भी गुनाह है। तभी तो कुछ कामकाज भी होता है, अनुशासन भी है।" सुकुलजी ने कहा। तभी शुक्लाजी का बेटा आ गया, "बाबूजी एक ही बाल्टी पानी मिला, अब शाम को टैंकर आयेगा।"

"ये तो ठीक है, लेकिन ज़रा माँ को समझा कि पानी हिसाब से खर्च करे।" शुक्ल जी अपनी मुस्कुराहट छिपाने लगे। घर में तीन बाल्टी पानी आ जाने से श्रीवास्तवजी की चिंता थोड़ी दूर हो गई थी। लेकिन एक सुवास था जो गली में मचे पानी के दंगल और धकियाते जाते बंगाली लड़के को भूल नहीं पा रहा था। बालमन में अनेक सवाल थे। शाम में सभी बच्चे खेल रहे थे तो उसने आकाश से पूछा-"भैया रिफ्यूजी क्या होता है?"

आकाश उससे पाँच साल बड़ा था, थोड़ा सोचते हुए बोला, "गाली होती है शायद।"

सुवास ने फिर कहा, "लेकिन वे उसे गाली तो दे रहे थे। कह रहे थे साला, फिर रिफ्यूजी क्यों कहा।"

आकाश भी असमंजस में था, "छोड़ ना तुझे क्या, हाँ लेकिन कहता तू सही है, सभी को तो ये गाली नहीं देते हैं।" बगल का सोनू बोल पड़ा, "अगर गाली होती तो वह कोेहड़ा बेचने वाला क्यों कहता कि हमलोग तो रिफ्यूजी है मायजी, थोड़ा मदद करो।"

फिर भी सुवास की समझ में नहीं आया। उसे गिरधारी ने उस तरह ठेल दिया और वह लड़ा भी नहीं। किससे पूछे सुवास। पहले नीरू से पूछा करता था। जब से नानी ने बताया कि वह मामी है माँ नहीं। तब से माँ बोलकर भी सारी बात नहीं कर पाता। इधर छोटी डॉली के कारण तो वह भी बहुत व्यस्त रहती थी। खाना, पीना, पढ़ाई, टिफिन और तबीयत का ध्यान तो पहले जैसा ही रखती है मामी, लेकिन बातों के लिए समय नहीं दे पाती।

दूसरे दिन पानी दूसरी गली में बंटने चला गया। पानी की दिक्कत हो गई थी। अहाते में एक चापाकल था, जो बड़ा भारी था। उसी से कुसमी और उसकी माँ ने खींचकर पानी ड्रम में भर दिया।

नेहा नहाने गई तो पानी बाहर से ले जाना था। उसने एक छोटी बाल्टी सुवास के हाथ में देकर कहा, "जाओ तो सुवास अपनी छोटी मामी के लिए पानी लाकर इस बाल्टी को भर दो।"

नन्हा सुवास उत्साह मेें बाहर से बाथरूम तक पानी ला-लाकर बड़ी बाल्टी में पानी भरने लगा। लेकिन आधा पानी छपक कर उसकी कमीज को भिगा रहा था। फिर चार पाँच बार में हॉफने भी लगा। दोरस मौसम था इसलिए थोड़ा काँप भी रहा था। तभी डॉली को सुलाकर नीरू कमरे से आंगन में आई तो सुवास को देखा। वह झट से दौड़ पड़ी, "क्या कर रहा है। अभी पंद्रह दिन नहीं हुए, बुखार छूटे। खाली शैतानी सूझती है। उसके हाथ से पानी का बरतन छीनकर फेंक दिया। उसे कमरे में लाकर कपड़ा बदलने लगी। सुवास ने धीरे से कहा-" छोटी मामी ने कहा था माँ, लेकिन पानी बहुत हिलता था इसी से कमीज भीग गई. "

सहमे हुए सुवास को देखकर नीरु की आँखें भीग गई. सुवास की नानी मंदिर से पूजा कर घर आई तो यह सुनकर उन्हें भी बुरा लगा, लेकिन बहुत-सी बातें सोचकर चुप रह गई. लेकिन नीरु चुप नहीं रह पाई. उसने रात में अपने पति से कहा-बताइये आप ही अभी तक आकाश, विकास को कभी हमने पानी भरने नहीं कहा और यह इत्ता-सा छोटा बिना माँ का बच्चा-इससे नेहा पानी भरवा रही थी, ऐसे ही आए दिन बीमार रहता है"

नीरू ने आँचल से आँखें पोछीं। पति ने धीरे से समझाया, "वह भी उसकी मामी है, सुनेगी तो बुरा लगेगा, बात को जाने दो।"

लेकिन नीरु नहीं मानी, उसने शेखर को भी अगले दिन कहा, "शेखरजी नेहा अभी समझती नहीं है, उसे समझा देंगे। सुवास पराई अमानत है, छोटा भी बहुत है, उससे ऐसे काम न करवाएँ, कहीं बाल्टी लिये दिए गिर जाता, कुछ हो जाता तो आसानी से अपयश मिल जाता।" शेखर ने भाभी को कहा कि "नहीं आगे से यह नहीं करेगी, उसे भी अफसोस है।"

लेकिन पति से डाँट खाकर नेहा ने सुवास से भी मुँह फुला लिया। रो-रोकर आँखें सुजा ली-क्या मैं माँ नहीं हूँ? क्या सिर्फ़ उनका ही हक है। ठीक है आज से मैं कुछ नहीं बोलूंगी।

बेचारे सुवास की जान सांसत में पड़ गई. वह कुछ भी पूछने जाता, नेहा जवाब ही नहीं देती। वह उसे खुश करने की कोशिश करता तो कहती, "जाओ अपनी माँ के कमरे में, हम हैं हीं कौन?"

सुवास ऐसी बातों के समझने के लिए बहुत छोटा था। कभी-कभी उसे लगता कि जैसे उस दिन पानी बाँटने के समय उस नए मामा को पानी नहीं दिया गया उसे अलग कर दिया गया, उसी तरह छोटी मामी उसे अलग कर रही है। जैसे वह इस घर का हो ही नहीं।