जनता के हाथ में सत्ता सौंपना / अब क्या हो? / सहजानन्द सरस्वती

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कहा जाने लगा है कि कांग्रेस का काम है अब किसानों तथा मजदूरों के हाथ में सत्ता सौंपना। मगर प्रश्न यह है कि वह सत्ता 15 अगस्त को ही क्यों न सौंपी गई? और अगर उसमें कोई दिक्कत थी, तो कौन सी? अगर श्री शंकरेराव देव के कथनानुसार अब आगे चलकर कांग्रेस का लक्ष्य होगा मजदूरों एवं किसानों के हाथ में वही सत्ता सौंपना, तो अब तक क्या दिक्कत थी उसके सौंपने में? आज तो कांग्रेस के सभी चुने-चुनाए, महारथी की गर्वनर के पद से ले करकेंद्र एवं प्रांतों के मंत्रियों की गद्दियों पर आसीन हैं। फिर भी किसान-मजदूरों के हाथ में सत्ता क्यों न आई? क्या वे किसानों के प्रतिनिधि या उनके अपने आदमी नहीं हैं? यदि हाँ, तो जब तक वे रहेंगे और उनकी प्रभुता कांग्रेस पर रहेगी, तब तक किसनों को आशा कैसे हो सकती है कि सत्ता उन्हें मिलेगी? यदि वे लीडर अब तक ऐसा होने न दे सके, तो आगे कैसे होने देंगे? तो क्या वे अब कांग्रेस से हट जाएँगे? यह तो असंभव है। वह तो दूसरों को ही हट जाने को कहते हैं। नहीं-नहीं, जो लोग किसान-मजदूर राज्य की बातें करते हैं,उन्हें कांग्रेस से गर्दनियाँ देने की नोटिस भी वह दे चुके हैं। यदि श्री शंकरेराव को दर्द है कि 15 अगस्त को किसानों के हाथ में सत्ता नहीं सौंपी गई, तो क्या उन्होंने इसका प्रतिवाद किया था? उन्होंने क्यों नहीं साफ-साफ कहा कि भारी अनर्थ हो रहा है कि किसान-मजदूर शासन-सत्ता से वंचित किए जा रहे हैं? उन्हें तो साफ कहना था कि सर्वत्र किसानों और मजदूरों को ही सत्ता सौंपी जाए और लीडर लोग उनका काम संभालने में चौकीदारी तथा सहायता का काम करें और अगर श्रीदेव ने या उनके साथी इन चोटी के लीडरों ने ऐसा नहीं किया, तो आगे उनसे क्या आशा की जा सकती है? लेकिन यदि ये लीडर सचमुच किसान-मजदूरों के ही आदमी हैं और उन्हीं के लिए मरे जाते हैं, तो फिर और बाकी क्या रहा, जिसके लिए कांग्रेस को जारी रखने में जमीन और आसमान को एक किया जा रहा है? लक्ष्य सिध्द हो जाने पर उसकी जरूरत क्या रही?

कहा जाएगा कि किसान और मजदूर सत्ता के योग्य नहीं हैं, उसके लिए अभी तैयार न थे तब सत्ता उन्हें सौंपी जाती कैसे? लेकिन उन्हें तैयार न होने देने के अपराधी भी हैं कौन? ये राष्ट्रीय नेता या दूसरे लोग? दूसरे लोग तो बराबर चिल्लाते थे कि श्रमजीवियों को राजनीतिक चेतना दी जाए, वे तैयार किए जाएँ। लेकिन ऐसा सुन कर ये नेता ही छाती पीटते थे कि ऐसा होने पर सब चौपट होगा! फिर वही नेता आज लोगों को कैसे तैयार करेंगे और क्या यह तैयारी बात-की-बात में ही हो जाएगी? उसके लिए तो युग लगेंगे। तब तक क्या शोषकगण हाथ-पर-हाथ धारे बैठे रहेंगे? क्या वे अपनी तैयारी न करेंगे और बाजी मार न ले जाएँगे? अगर वे रोके जाएँगे तो किस तरह, यह बात बताने के लिए क्या ये लीडर तैयार हैं? जिनने अब तक कांग्रेस कमेटियों, असेंबलियों ओर बोर्डों में शोषकों एवं उनके पिट्ठुओं को जाने से न रोकाप्रत्युत जान-बूझ करे भेजा, वही आज उन्हें रोकेंगे, यह विश्वास कौन करेगा? और जब आज तक किसान-मजदूरों को तैयार न किया गया तो आगे किया जाएगा, यह कौन मानेगा? तैयार करने का प्रोग्राम भी क्या है? वर्ग-चेतना से तो आप लोग भागते हैं। दूसरा रास्ता हुई नहीं। उसमें तो धोखा ही धोखा है। फलत: उनके हाथ में सत्ता सौंपने की बात प्रवंचना मात्र है, क्षमा हो।