जन्नत या दोजख / एस. मनोज

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डॉक्टर हलीम और हितलाल की दोस्ती दाँत काटी रोटी के समान थी। एक दिन डॉक्टर हलीम को हितलाल ने तनाव में देखा तो पूछा-क्या बात है डॉक्टर! आज इतने तनाव में क्यों हो?

हलीम-क्या बताएँ लाल! रात मैंने एक सपना देखा, जो भारी तनाव पैदा किए हुए है। सपने तो सपने ही होते हैं, ऐसा सोच कर उसे भूल जाना चाहता हूँ, किंतु न उसे भूल पा रहा हूँ और न तनाव ही कम हो रहा है।

हितलाल-सपने में ऐसी कौन-सी बात थी, जो दिल को बेचैन कर रही है?

हलीम-क्या बताऊँ यार!

हितलाल-बताओ यार, दिल पर पड़े बोझ को बांटने से वह घटता है और मैं तो तुम्हारा दोस्त हूँ। अगर मेरे प्रयास से तुम्हारी समस्या घटती है तो अपनी कसम उसे मैं अभी छूमंतर कर दूंगा। बताओ डॉक्टर रात में सपने में क्या देखा?

हलीम-मैंने सपने में देखा कि मैं मर गया हूँ और कब्र में दफना दिया गया हूँ। मैं कब्र में पड़े-पड़े कयामत का इंतजार कर रहा हूँ। तभी वहाँ एक पैगंबर आते हैं और मुझसे कहते हैं, चलो मेरे साथ। अब तुम्हारे कर्मों का लेखा-जोखा होगा और तुम अपने कर्मों के अनुरूप जन्नत या दोजख में भेजे जाओगे। मैं सहज ही कब्र से उठ कर उनके पीछे-पीछे चलने लगा। एक दूसरे स्थान पर दूसरे पैगंबर कर्मों का हिसाब कर रहे थे। मेरे वहाँ पहुंचते ही मेरा फाइल निकाला गया। फाइल पर मोटे अक्षर में लिखा था-हलीम। फिर फाइल पलटा गया तो उसमें लिखा था-जीवन में अच्छे कार्य किए. गरीबों की सेवा की। पांचों वक्त नमाज पढ़े। जकात में गए. किंतु तीन व्यक्तियों की हत्या के आरोपी.

हितलाल ने बीच में टोका-तीन व्यक्तियों की हत्या के आरोपी? पर कैसे?

हलीम-हाँ, यही सवाल मैंने भी पूछा था कि बगल में आराम फरमा रहे अल्लाह प्रगट हो गए और गुस्से में मुझसे पूछे-तुम्हारे क्लीनिक पर तीन रोगियों की मृत्यु तुम्हारे कारण से नहीं हुई थी? मैंने कहा-नहीं। मेरे कारण से नहीं। नमाज पढ़ने जाने का वक्त था। मैं निकल ही रहा था कि तीन सीरियस मरीजों को लेकर एक गाड़ी आई. मैं मरीजों को देखने लगता तो नमाज छूट जाता। इसलिए मैं मरीजों को बिना देखे ही मस्जिद की ओर चला गया और नमाज के बाद जल्दी ही क्लीनिक पर आ गया, किंतु मैं जब तक आया तीनों की मृत्यु हो चुकी थी। अल्लाह और गुस्से में आकर मुझसे पूछे-तुम्हारा नमाज पढ़ना ज़्यादा महत्त्वपूर्ण था या मरीजों की जान बचाना? मैं सहम गया और सहमते हुए बोला-मेरी समझ से नमाज पढ़ना। मेरी बातों को सुनते ही अल्लाह और कठोर हो गए और लगा वे स्वयं मुझे सजा दे देंगे। पर वे कठोर हुए थे, हमारे तुम्हारे जैसा व्यग्र नहीं। पल भर में ही वे बिल्कुल शांत हो गए और मुझसे पूछे-तुम्हें धरती पर काम करने भेजा गया था या धार्मिक भावनाओं का प्रदर्शन करने। मैं डर से चुप ही रहा। उन्होंने फिर कहा-तुम्हें धरती को जन्नत बनाने के लिए भेजा गया था, तुम अपने लिए जन्नत की चिंता में धरती को जन्नत नहीं बना सके और तुम्हारे उन तीन मरीजों के लिए तो धरती दोजख ही साबित हुई. तुम्हारे कारण से यह धरती किसी के लिए दोजख तो गुनाहगार तो तुम्हीं हुए और दूसरों के लिए धरती को दोजख बनाने के जुर्म में तुम्हें भी दोजख में ही भेजा जाएगा। इतना कहते ही उन्होंने उठाकर मुझे तो दोजख में फेंक दिया। मैं धड़ाम से अपनी चारपाई से नीचे गिरा और मेरी आंखें खुल गई. कयामत की रात में हुए अल्लाह का निर्णय मुझे उद्विग्न कर रहा है।