जन्म-पूर्व की परिस्थितियाँ / बलराम अग्रवाल

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भ्रष्ट हो चुकी राजनीतिक परिस्थितियों से त्रस्त लोगों का जिब्रान के जन्म से सैकड़ों वर्ष पहले सीरिया और लेबनान छोड़कर भागने का सिलसिला शुरू हो चुका था। उनमें से कुछ मिस्र में जा बसे, कुछ अमेरिका में तो कुछ यूरोप में। वे, जो न तो भाग-निकलने का सौभाग्य पा सके और न देश-निकाले की सज़ा का, उन्हें सुल्तान के खिलाफ विद्रोह करने के दण्ड-स्वरूप शहर के मुख्य चौराहे पर फाँसी पर लटका दिया गया ताकि बाकी बलवाई उन्हें देखकर सबक ले सकें। जिब्रान के जन्म से लगभग 350 वर्ष पहले, सन 1537 के शुरू में तुर्की ने सीरिया पर विजय पा ली थी। लेबनान की पहाड़ियाँ तुर्क-सेना के लिए अगम थीं। इसलिए उन्होंने लेबनान के पहाड़ी इलाकों को छोड़कर बन्दरगाहों और मैदानी इलाकों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। पहाड़ी इलाकों और उनके जिद्दी बाशिन्दों को इस शर्त के साथ कि वे वहाँ रहने के एवज़ में सुल्तान के खजाने में कर का भुगतान करते रहेंगे, तुर्कों ने स्वयं द्वारा नियुक्त एक पर्यवेक्षक की निगरानी में उन्हें स्वयं उनके शासकों के अधीन छोड़ दिया था।

जिब्रान के जन्म से लगभग सौ साल पहले, सन 1789 में हुई फ्रांस-क्रांति का परिणाम यह रहा कि फ्रांस से कैथोलिक पादरियों का सफाया हो गया। इनमें से बहुत-से पादरियों को लेबनान में शरण मिल गई।

तुर्की का शुमार किसी समय दुनिया के महाशक्तिशाली देशों में किया जाता था। पूरा अरब, उत्तरी अफ्रीका और यूरोप का बड़ा हिस्सा इसके अधीन था। कानून के अनुसार सुल्तान सारे साम्राज्य का मालिक था। साम्राज्य के समस्त खनिज स्रोतों पर उस अकेले का आधिपत्य होता था। वह अपनी मर्जी से जिसे, जब, जितनी चाहे जागीरें बख्श कर उपकृत कर सकता था। इस छूट ने साम्राज्य को जागीरदारी प्रथा की ओर धकेल दिया। सुल्तान वादे तो खूब करता था, लेकिन जनता की आर्थिक मदद बिल्कुल नहीं करता था। उसके मुँहलगे दलाल राज्यभर से खूबसूरत लड़कियों को उठा-उठाकर महल में सप्लाई करने के धन्धे में लगे रहते थे। जो लड़की सुल्तान को पसन्द न आती, वह वज़ीर या उससे छोटे ओहदे वालों का निवाला बनती। वह अगर उनको भी नापसन्द होती या किसी को भी खुश करने में असफल रहती तो हाथ-पाँव बाँधकर गहरे समुद्र में दफन कर दी जाती थी।

साम्राज्य के लिए कर वसूलने वाले लोग राज्य-कर्मचारी नहीं होते थे। इस काम को ठेकेदार सम्पन्न करते थे। प्रति व्यक्ति आय का दस प्रतिशत कर देना होता था लेकिन ताकत के बल पर ठेकेदार इससे कहीं ज्यादा कर वसूल करते थे। खेत में खड़ी फसल का मूल्य उसके वास्तविक बाज़ार-मूल्य से कहीं अधिक आँक कर उस पर कर निर्धारित किया जाता था; कोई किसान अगर आकलन से पहले फसल काट लेता तो उस पर फसल चोरी का मुकदमा चलता था। कर अदा न करने के दण्डस्वरूप ठेकेदार लोगों के घरों से अक्सर आम जरूरत की चीजें उठा ले जाते थे। अपने नागरिकों को लेशमात्र भी सुविधा दिए बिना तुर्की उन दिनों दुनिया का सर्वाधिक कर वसूलने वाला देश था।

इस सबने जिब्रान की जिन्दगी को कितना प्रभावित किया?

जिब्रान के जन्म से 14 वर्ष पहले साम्राज्ञी यूजीनी और उसके सम्राट पति नेपोलियन तृतीय के जहाज ने पोर्ट सईद नामक बन्दरगाह पर लंगर डाला। ऐन उस वक्त जब सम्राट, नवाब और उच्चाधिकारी नाच-गाने का आनन्द ले रहे थे; कारवाँ में शामिल भारत, अरब, सीरिया, लेबनान, तुर्की, यहाँ तक कि मिस्र मूल के भी लोगों के सफाए का बिगुल बज उठा। लाखों लोग जो घोड़े और ऊँट खरीदने-बेचने का कारोबार करते थे, सराय चलाते थे, सामूहिक यात्राओं का इंतजाम करते थे, जो पूरब और यूरोप के बीच व्यापार की कड़ी थे, बरबाद हो गए। ‘इस घर को आग लग गई घर के चिराग़ से’ जैसा माहौल था। अरबी मुहावरे का प्रयोग करें तो यों समझ लीजिए कि ‘कमर पर लदे भूसे ने ही ऊँट की कमर तोड़कर रख दी थी’। कहा जाता है कि अरब संसार आज तक भी उस विपदा के बाद सँभल नहीं सका है। कितने ही सीरियाई और लेबनानी अफ्रीका की शरण में चले गए। कितनों ही ने बेरूत में जहाज को किनारे लगा दिया। आस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, न्यूयॉर्क या बोस्टन — कितने ही लोग अनिच्छापूर्वक वहाँ बस गए जहाँ उनका जहाज जा खड़ा हुआ।

भूगोल और इतिहास के बारे में जिब्रान का ज्ञान अपने शहर या स्कूली किताबों तक सीमित नहीं था। मध्य-पूर्व के स्थानों, घटनाओं, रिवाज़ों और इतिहास के उनके वर्णन को पढ़ने से पता चलता है कि इन स्थानों की उन्होंने यात्रा की थी। बारह वर्ष की उम्र में वे अमेरिका आ गए थे। दो वर्ष तक बोस्टन में पढ़ने के बाद अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए वे लेबनान वापस चले गए। गर्मी की छुट्टियों में पिता ने उन्हें पूरा लेबनान, सीरिया और फिलिस्तीन घुमाया। चार साल तक अरबी पढ़ने के बाद उच्चशिक्षा के लिए वे ग्रीस, रोम, स्पेन और पेरिस गए। दो साल पेरिस में पढ़ाई करके वे बोस्टन लौट गए। जिब्रान जहाँ-जहाँ घूमे उनमें नजारथ, बैथ्लेहम, येरूशलम, ताहिरा, त्रिपोली, बालबेक, दमिश्क, अलिप्पो और पाल्मिरा प्रमुख हैं। दुनिया के नक्शे पर इन स्थानों की हैसियत कुछेक बिन्दुओं से अधिक नहीं है, लेकिन ये वे स्थान हैं जिन्होंने जिब्रान के विचारों को, लेखन को और दार्शनिकता को उच्च आयाम प्रदान किए। बालबेक गोरों का दुनियाभर में सबसे बड़ा धार्मिक केन्द्र है। दमिश्क को दुनिया का सबसे पुराना बसा नगर माना जाता है। इस्लाम के स्वर्णकाल की वह राजधानी था जबकि यूरोप अभी ‘डार्क एज़’(अनभिज्ञता) में ही था। दमिश्क की गलियों और मस्जिदों में घूमते हुए जिब्रान ने अरब के महान लोगों के चित्रों को वहाँ से नदारद पाया। इसका कारण इस्लाम में ‘चित्र’ प्रदर्शन का प्रतिबन्धित होना था। सोलह साल का होते-होते जिब्रान ने अरब दार्शनिकों और कवियों का गहरा अध्ययन कर लिया था। ताहिरा और सूडान जिबान के जन्मस्थान के आसपास ही थे। ग्रीस की सभ्यता यहीं से पनपी।