जब जागो तभी सवेरा / अनीता चमोली 'अनु'

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अमन मेधवी छात्रा था। स्कूल में हर काम में वो आगे रहता। अमन खेलकूद में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता। शिक्षकों की भी वो सेवा करता। अमन सहपाठियों में भी लोकप्रिय था। अमन हर किसी की मदद के लिए तैयार रहता। वह रोज़ाना स्कूल आता। अपना काम समय से करता। प्रश्नों को हल कराने में अपने सहपाठियों को भी सहयोग करता।

राघव अमन का दोस्त था। राघव अमन का दोस्त था। दोनों साथ-साथ स्कूल आते। कक्षा में दोनों की सीट भी अगल-बगल में थी। राघव चंचल था। स्वभाव से चिड़चिड़ा था। उसे जल्दी गुस्सा आ जाता था। राघव मन ही मन अमन से ईर्ष्या भी करता था।

राघव अमन की नकल करता, मगर फिर भी उसके जैसा बन नहीं पाता। कक्षा में ही नहीं स्कूल में भी सभी राघव से अधिक अमन से बात करना ज्यादा पसंद करते थे। राघव की एक बुरी आदत थी। वह अक्सर सहपाठियों के बैग से उनकी कॉपी-किताब, पैन-पेंसिल आदि निकाल लेता। ऐसी हरकत से उसके सभी दोस्त परेशान थे। अक्सर कक्षा में छात्रों के पैन गुम हो जाते। सभी राघव से पूछते। राघव चिढ़कर एक ही बात कहता-”मुझे क्या चोर समझ रखा है।” एक दिन की बात है। अंजना रो रही थी। सबने पूछा तो उसने बताया कि उसका पैन खो गया है। पैन कीमती था। राघव बोला-”सबके बैग देखो।” अंजना सभी के बैग चेक करने लगी। अंजना का पैन अमन के बैग से मिल गया। अंजना बोली-”अमन। तो तुम हो कक्षा के पैन चोर!”

राघव बोला-”सब मुझ शक करते थे। मुझे भी क्या पता था कि मेरा दोस्त ही चोर है। आज से मैं अमन से बात भी नहीं करूंगा।” कक्षा में खामोशी छा गई। अमन की आँखों से आँसू निकल पड़े। उसका गला भर आया। अमन को कुछ सूझ ही नहीं रहा था। वो समझ ही नहीं पाया कि आखिर हुआ क्या है। कक्षा में सहपाठी अमन को शक की नजर से देखने लगे थे। कई सहपाठी अमन से दूर रहने लगे। अमन इस घटना को भूल जाना चाहता था। उसने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया। दिन गुजरते गए।

एक दिन की बात है। स्कूल में सभी बच्चे मैदान में खेल रहे थे। राघव दौड़ रहा था। राघव मैदान के विशालकाय पेड़ पर चढ़ गया। अमन दूर बैठकर किताब पढ़ रहा था। अचानक राघव पेड़ से नीचे गिर पड़ा। राघव दर्द से कराह उठा। सभी बच्चे खेल में मस्त थे। राघव से उठा भी नहीं जा रहा था। अमन की नजर राघव पर पड़ी। अमन दौड़कर राघव के नजदीक जा पहुंचा। अमन ने अपने आप से कहा-”राघव मुझसे बात नहीं करता है। मगर इस समय राघव को मदद की जरूरत है।” उसने एक पल की भी देरी नहीं की। वो दौड़कर सड़क पर गया। उसने एक कार को हाथ देकर रोक लिया। अमन बोला-”अंकल। अंदर मेरा भाई पेड़ से गिर कर घायल हो गया है। आप मेरी मदद करेंगे? उसे अस्पताल तक पहुंचा देंगे न।”

कार वाला भला आदमी था। दोनों ने राघव को तुरंत अस्पताल में भर्ती करा दिया। अमन दौड़कर राघव के घर जा पहुंचा। जब तक राघव की मम्मी अस्पताल पहुंची। राघव के दाँये हाथ पर पलास्टर चढ़ चुका था। सिर पर भी चोट आई थी। डॉक्टर ने राघव को खतरे से बाहर बताया। स्कूल के कई छात्रा, प्रिंसिपल और अधिकांश शिक्षक भी अस्पताल पहुंच चुके थे। अमन दरवाजे पर ही खड़ा था। प्रिंसिपल राघव से बोले-”बेटे कार वाले अंकल ने सब कुछ बता दिया है। तुम्हें अमन को थैंक्स कहना चाहिए। वो देखो। अमन कितनी दूर खड़ा है।”

राघव की आँखों में आँसू आ गए। उसका गला भर आया। राघव भर्राती हुई आवाज में बोला-”सर। ज़रूरत पड़ने पर सच्चा दोस्त ही काम आता है। अंजना का पैन मैंने ही अमन के बैग में रख दिया था। मैं अपने छोटे कामों से और छोटा हो गया। अमन अपने बड़े कामों से और बड़ा हो गया। सर। मैं सबके सामने अपने प्रिय दोस्त अमन से हाथ जोड़कर मापफी मांगता हूँ। आप सभी से वादा भी करता हूँ कि मैं भी अमन की तरह अच्छा बनने की कोशिश करूंगा।”

अमन दौड़कर आया। उसने राघव का बाँया हाथ अपने हाथ में ले लिया। अंजना भी चुप न रह सकी। बोली-”आज ही जोशी मैडम ने पढ़ाया था। ‘जब जागो तभी सवेरा।’ राघव तुमने अपनी गलती स्वीकार कर ली है। यही बहुत है। हमें दोस्त बनाने चाहिए। अच्छे दोस्त सभी को नहीं मिलते।” सभी राघव की जल्दी ठीक होने की कामना कर रहे थे।