जमीण खात्तर / मुकेश मानस

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


1


रामफल जब मैदान फ़रागत से लौटा तो पूरा का पूरा वाल्मीकि मुहल्ला करीब-करीब जाग चुका था। रात का अंधोरा छँट गया था। सुबह की भोर चारों तरफ अपनी उजास बिखेर रही थी। घर के आंगन में घुसने से पहले वह एकाएक देहरी पर ठिठक कर खड़ा हो गया।

गाँव के मुहाने पर बने हाईस्कूल के बड़े दरवाजे के सामने से एक रास्ता गांव के पिछवाड़े की तरफ सीधा चलता आया है। जहाँ तक गाँव के ऊंची जातियों के लोगों के घर बने हुए थे वहाँ तक रास्ता पक्का है। उस पर खड़ंजा बिछा हुआ है। जहाँ से रास्ता कच्चा है वहाँ से निचली जातियों के लोगों के घर हैं। इस रास्ते के आखिरी छोर पर वाल्मीकियों का मुहल्ला बसा हुआ है जिसे गाँव की ऊंची जातियों के लोग ‘चमरौटा’ कहते हैं।

वाल्मीकियों के मुहल्ले से पहले जाटवों का मुहल्ला है। जाटवों के घर ठीक-ठाक बने हुए हैं और थोड़े साफ-सुथरे भी हैं। जाटव मुहल्ले के कई लोग करनाल, पानीपत, कुरुक्षेत्र, जगाधरी जैसे छोटे शहरों में काम करने जाते रहते हैं। जाटवों की तुलना में वाल्मीकियों का मुहल्ला थोड़ा बड़ा है। मगर वहाँ गंदगी बहुत है। हर तीसरे घर के आगे छोटा-मोटा सूअरबाड़ा बना हुआ है जो इस बात की ताकीद करता है कि यह वाल्मीकि मुहल्ला ही है। वाल्मीकि मुहल्ले से बाहर जाकर मजदूरी करने वाले बहुत कम ही हैं।

रामफल अपनी देहरी पर खड़ा पूरे मुहल्ले का निरीक्षण कर रहा है। तभी उसके सामने के घर से सुज्जन निकला। आँखें मींचते हुए सुज्जन ने अपने घर के बाहर बने सूअरबाड़े का छोटा सा दरवाजा खोला और हुर-हुर करके उसमें से सूअरों को बाहर निकलने के लिए उकसाने लगा। सूअरबाड़े में से एक-एक करके सूअरों की पूरी की पूरी रेवड़ निकली और पूरी गली में पैफल गई। पूरी गली में ‘घुर-घुर’ की आवाजें गूंजने लगीं। अब सूअरों को बाहर निकालकर सुज्जन फिर अपने घर के भीतर घुस गया।

“अच्छा खासा मुस्टंडा है लेकिन कमान खातिर शहर जाण की हिम्मत ना पड़ती। शहर में कुछ ना कुछ काम मिल जयागा पर ……………!! सुसरा सूअरां मां खुश सै...!!! जवान छोरों का योय हाल सै तो...???”

वह सोच में पड़ गया। आखिर ये जवान लड़के इतने पस्तहिम्मती क्यों है? जो मिला, जितना मिला उसी में खुश……………!!!

“राम राम रामफड़ भाई”

सुनकर रामफल मुड़ा। दूसरी तरफ से जीवण चला आ रहा था। बगल में फोल्डिंग कुर्सी को दबाए। जीवण उसके पास आकर रुक गया। कुरते की उफपर की जेब से बीड़ी का बंडल निकला और दो बीड़ियाँ सुलगाईं।

“कित्त जा रे सो। कोई मीटिंग-वीटिंग सै कै?” बीड़ी लेते हुए उसने पूछा।

“हाँ। ग्राम सभा की मीटिंग सै।“ जीवण ने कश लगाते हुए उत्तर दिया।

“सरकार तै कुछ पैसा आया सै नल लगाण खातिर। पर देखो”……………

“म्हारे मुहल्ले में भी एक नल लगना चाहिए।” रामफल ने गुहार लगाई।

“लगणा तो चाहिए पर म्हारे हाथ में के सै? पिछली बार सड़क बनाण खातिर पैसा आया था। जयसिंह ने कही थी कि पक्की सड़क म्हारे मुहल्ले से बणनी शुरू होगी पर के हुआ? सड़क रोड़ों के मुहल्ले से शुरू हुई और यहाँ तक आते-आते पीसा खत्म।”

“खागे होंगे।”

“जयसिंह पर इत्ता भरोसा था। था तो रोड़ पर लगे था अपना आदमी। पर सरपंच बनते ही बिल्कुल रोड़ बण गया।” जीवण थोड़ा उदास हो गया।

“म्हारे हाथ में कुछ ना है। जाके हाथ में जोर, वोई जबर हो जा सै। फिर ऊंची जात वाला तो ऊंची जात वाले के बारे में ही सोचैगा।”

“ठीक कै से भाई। कितनी फ़जीहत हुई थी पिछले चुनाव में इसी जयसिंह खातिर। हजारा तो आके धमकी भी दे गया था कि अगर जयसिंह को जिताया तो म्हारे से बुरा ना होग्गा।”

“उसी को जितावें थे हर बार। इस बार सोचा इस जयसिंह को भी देख-भाण लें। पर नतीजा के निकणा, ढाक के तीन पात।” रामफड़ की बीड़ी बुझ गई। मुँह कसैला हो गया।

“हमसे हर कोई धोखा ही करे है और हम भी कुछ ना कर सकें।” उसने गले को खंखारा।

“ठीक सै तब मैं चलूँ।” जीवण ने कुर्सी उठाई और चल पड़ा।

“इस बार कोसिस जरूर करणा। एक हेडपंप म्हारे मुहल्ले में भी आणा चाहिए।” उसने फिर जीवण को जोश दिलाने की कोशिश की।

“ठीक सै।” पर जीवण ने मरी हुई आवाज में उत्तर दिया।

जमाना कहाँ का कहाँ आ गया। सरकार हमणें भी ग्राम सभा का सदस्य बना री सै। पर ये लोग चलने ना देते। जीवण को अपने से दूर बिठावें हैं। दादा गंगाधर ने उसे सही सलाह दी थी कि अपणी कुरसी ले जा और उस पर बैठ। पर इससे के होवे है जद रोड़ जीवण को बराबर का ना मानें। जीवण को जाते हुए देखकर रामफल सोचता रह गया।


2

रामफल घर के भीतर दाखिल हुआ। आंगन के एक कोने में टूटी मटकी में पानी भरा रखा था। उसने मैदान फरागत के लोटे को वहाँ रखा। बगल में पड़ी राख हाथों पर मली और हाथ धोए। कंधो पर पड़े अंगोछे से उसने हाथ पोंछे। फिर आंगन में पड़ी खाट पर जाकर बैठ गया। एकाएक उसे तेज प्यास लगने लगी। वह घर की दिवार पर बनी पड़ैली में रखे मटके की तरफ बढ़ा। उसने घड़े की बगल में रखे गिलास को उठाया और घड़े को उचकाया। घड़ा खाली था। उसे थोड़ी झुंझलाहट होने लगी।

तभी उसकी घरवाली सिर पर मटका उठाये आंगन में दाखिल हुई। उसने अपनी झुंझलाहट पर काबू किया और घरवाली के सिर से मटका उतरवाया। घरवाली ने पड़ैली में रखे मटके में ताजा पानी डाला। फिर पानी से भरा गिलास लाकर उसे थमा दिया। रामफल गटागट पानी पी गया। मगर उसकी प्यास बुझी नहीं थी। वह खुद ही पानी लेने उठा।

“ला मन्ने दे।” यह कहकर घरवाली ने उसके हाथ से गिलास ले लिया। गिलास भरकर फिर उसे थमा दिया। घरवाली तब चूल्हे को जलाने में जुट गई। चूल्हे में से धुंआ उठने लगा। रामफल अपनी घरवाली के बारे में सोचने लगा।

“इब्बे उमर ही के सै पर अभी से बुढ़िया दिखने लगी।” यह सोचते हुए उसे खुद पर भी तरस आने लगा। अभी पैंतीस का भी न हुआ था मगर शरीर जवाब देने लगा था। उसने बीड़ी सुलगा ली। अभी एक कश मारा ही था कि उसके घर के बाहर आकर एक ट्रैक्टर रुका। फिर एक भारी सी आवाज उसके कानों में पड़ी।

”ओ रामफड़।”

“आऊं सूं।”

ट्रैक्टर पर जगदीश रोड़ था। पिछले सरपंच हजारा का बेटा। उमर रामफल के बराबर ही थी। रामफल ने उसे राम-राम ठोकी।

जगदीश रोड़ की आंखें लाल थीं। उसने होठों में सिगरेट दबा रखी थी। सिगरेट का कसैलापन उसके चेहरे पर छलक रहा था। सिगरेट का धुँआ उसकी आँखों में तैर रहा था।

“जल्दी आणा सै।”

”आऊं सूं।”

“ठीक सै तब। मैं खेतां मां जा रा सूं। अपणे आदमियों को लेकर जल्दी आइयो। काम खतम करणा सै आज।” जगदीश ने सिगरेट रामफल की तरफ फैंक दी। ट्रैक्टर को धड़धड़ातेत हुए आगे बढ़ गया।

एक पुराना सपना रामफल की आँखों में तैर गया। वह भी कब से एक ट्रैक्टर का मालिक होने का सपना देखता आ रहा है। ट्रैक्टर खेत के लिए चाहिए पर खेत कहाँ था उसके पास??

नहीं, खेत नहीं है उसके पास, ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह अब भी आठ बीघे खेत का मालिक है। मालिक तो है पर कहने भर को ही। उसके पास खेत का पट्टा है। उसमें लिखा है कि रामफल वल्द धनसिंह आठ बीघे उपजाउफ जमीन का मालिक है। मगर पट्टा महज़ एक कागज था। उसका एक कागज से ज्यादा कोई मोल नहीं था।

कुछ साल पहले चकबंदी में रामफल को आठ बीघे जमीन का पट्टा मिला था। उसे ही क्यों, गांव के लगभग सारे वाल्मीकियों को भूदान की जमीन मिली थी। उसे बस पट्टा मिला था। उसकी जमीन पर जगदीश रोड़ का कब्जा था। वह अपनी ही जमीन पर मजूरी करता था। मुहल्ले के सारे वाल्मीकियों का यही हाल था। किसान सभा की मार्फ़त रामफल और दूसरे वाल्मीकियों ने अपनी जमीन पर कब्जा पाने की कोशिश की थी। कोर्ट-कचहरी हुई। जिला कलेक्टर गाँव में कब्जा दिलाने आया भी था। मगर एक दिन पहले ही गाँव के रोड़ों ने वाल्मीकियों को धका दिया था। कलेक्टर के आश्वासनों के बावजूद कोई भी वाल्मीकि अपनी जान की डर से कब्जा लेने नहीं पहुँचा था।

जमीनें उन्हीं के नाम थीं मगर जमीनों पर कब्जा उनका नहीं था। कभी कभी वाल्मीकि लोग अपनी चौपाल पर अपनी करनी पर पछताते भी थे। मगर इससे इससे क्या हो सकता था। रोड़ों ने मिलकर उस कलक्टर का ट्रांसफर भी करवा दिया था। फिर कोई दूसरा कलक्टर हिम्मत ना दिखा सका था।

रामफल किसान सभा का मेंबर था। किसान सभा ने उसे काफी समझा-बुझाकर उसका केस जिला कोर्ट में दाखिल करवाया था। किसान सभा का जिला अध्यक्ष नरसिंह रोड़ था। मगर था एकदम किसानों का हितैषी। उसका कहना मानकर ही रामफल तैयार हुआ था।

“देखो रामफल। जमीन ऐसे नहीं मिलेगी। संघर्ष करना पड़ेगा। किसी न किसी को तो हिम्मत करनी ही पड़ेगी। जान का खतरा है। अगर एक को जमीन मिल गई तो फिर बाकियों को भी मिल जायेगी। तुम्हारी हिम्मत से बाकी वाल्मीकि साथी भी उठ खड़े होंगे। फिर इन सुसरे रोड़ों की ना चलेगी।”

“आप तो अपने ही जात-बिरादर वालों को गाली दे रे सो।” रामफल ने बड़ी मासूमियत से नरसिंह को कहा था। उसके भोलेपन पर नरसिंह हंसा पड़ा था।

“काहे के जात-बिरादर। ये लोग म्हारे किसान भाइयों के दुश्मन सैं। म्हारे भी दुश्मन सैं।”

रामफल ने पूरी कोशिश की थी कि इस बात की किसी को खबर ना हो। मगर जाने कैसे पूरे गाँव में ये खबर फैल गई थी। मुहल्ले के बड़े-बूढ़ों ने उसे काफी समझाया था कि गाँव के रोड़ों से झगड़ा मोल लेने में कोई भलाई नहीं है। एक-दो रोड़ों ने भी आकर उसे समझाया था। मगर रामफल अपनी ज़िद पर अड़ा था। रामफल सोचता था अगर खेत मिल गया तो उसकी गरीबी दूर हो जाएगी। फिर वह कर्ज लेकर ट्रैक्टर खरीदेगा। किसान सभा के अध्यक्ष ने उससे वायदा किया था कि वह अपनी गारंटी पर उसे ट्रैक्टर के लिए बैंक से कर्ज दिलवा देंगे।

“रोट्टी खा लो।” रामफल की घरवाली ने उसका ध्यान तोड़ा।

“के सोच रहे हो?”

“कुछ ना।” रामफल से कोई जवाब नहीं बन पड़ा। वह गुमसुम सा उठा।

“जीतू कित सै?” उसने अपनी घरवाली से अपने बेटे के बारे में पूछा।

“सो रा सै।”

रामफल सीधा कमरे में घुस गया। कमरे के भीतर बिछी खाट पर उसका बेटा अभी सो रहा था। उसे अपने बेटे पर प्यार आ गया।

“जीतू, ओऽऽऽ जीतू, उठ बेठा। स्कूल का बखत हो गया।”

“सोण दो। टैम सै इब्बे।” उसकी औरत ने उसे समझाने के लहजे में कहा। पर वह नहीं माना। उसने प्यार से जीतू को झकझोरा। उसका बेटा कसमसाया।

“बेटा जल्दी उठ। स्कूल की घंटी बजने वाली सैं।” अच्छा।” कहकर जीतू उठ गया।

3

जीतू बगल में बस्ता दबाए स्कूल की तरफ चला जा रहा था। उसकी उमर के और दो-तीन बच्चे उसके पीछे-पीछे चले आ रहे थे। मंदिर देखकर जीतू ठिठकर कर खड़ा हो गया। मंदिर का पुजारी सुबह की आरती कर रहा था। उसने एक हाथ में दीया बत्ती पकड़ रखी थी और दूसरे में एक छोटी सी घंटी। वह आरती गाते हुए दीये को ठाकुर जी की मूर्ति के आगे गोलाकार वृत्त में घुमा रहा था और घंटी बजा रहा था। पुजारी के बगल में खड़ा उसका लड़का तवानुमा घंटे पर लकड़ी के डंडे से जोर-जोर से वार करते हुए उसे बजा रहा था। ठन ऽऽऽऽऽऽ ठन ऽऽऽऽऽ टिन ऽऽऽऽ टिन ऽऽऽऽऽऽ...। घंटे और घंटी के साथ पुजारी के गले की आवाज एक मिले-जुले संगीत की प्रतीति करा रहे थे। जीतू को यह सब अच्छा लगा। इसलिए वह रुककर सुनने लगा। उसने वहीं खड़े-खड़े आंखें मूंद लीं और मन ही मन आरती दुहराने लगा। उसके पीछे आ रहे बच्चे भी उससे थोड़ा अलग हटकर खड़े हो गए।

आरती खत्म होने पर पुजारी मंदिर के बाहर खड़े बच्चों को प्रसाद बांटने लगा। जीतू को मीठे बतासे की मिठास का तीव्र अहसास हुआ। जीतू प्रसाद बांटते पुजारी की ओर श्रद्धामयी नजरों से ताकता खड़ा रहा। पुजारी ने उसे हिकारत भरी नजर से देखा और लगभग डांटने के अंदाज में उसे बोला – “क्यूं रे? क्यूं खड़ा सै।”

जीतू ने अपने दोनों छोटी-छोटी हथेलियाँ जोड़कर आगे कर दीं। पुजारी उसका मतलब समझ गया।

“परसाद चइये।”

जीतू ने आंखों ही आंखों में उसे ‘हाँ’ कहा।

पुजारी ने आंखें लाल-पीला करते हुए कहा – “चल भाग अड़े तै। परसाद चइये। चूड़ों को भी परसाद चाईये। चल भाग, नहीं तो दूंगा एक...!!!

जीतू उसकी दहाड़ सुनकर लगभग रूआंसा हो गया।

“परसाद चइये। सुसरे अपनी जात भी ना देखते। आ जावें हैं... परसाद चइये।” पुजारी मंदिर के भीतर चला गया। अभी यही पुजारी कितना भला दिख रहा था। एक पल में ही क्रूर बन गया। जीतू खड़ा का खड़ा रह गया।

तभी कंधो पर अंगोछा डाले रामफल उधर से गुजरा। जीतू को वहाँ देखकर पहले उसे आश्चर्य हुआ, फिर उसे उस पर गुस्सा आया। फिर एकाएक उसे अपने बेटे पर प्यार हो आया।

“क्यूं रे, क्यूं खड़ा सै? सकूल ना जाणा सै के?”

अपने बाप को सामने देखकर जीतू को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने अपने बस्ते को पकड़ा और तेजी से रामफल के आगे-आगे दौड़ गया। रामफल आगे और कुछ न कुछ सका। वह अपने बेटे को जाते हुए देखता रहा। अब तक पुजारी प्रसाद भीतर रखकर बाहर आ चुका था। वह रामफल को ताकने लगा। रामफल ने हिकारत भरी नजर से पुजारी को देखा और गले में इकट्ठा हो चले थूक को सटक कर आगे बढ़ा गया। पीछे से पुजारी उसे मन ही मन हजार गालियाँ देता रहा।

4

दुपहरी चढ़ आई थी। रामफल पसीने से तर-बतर था। लाई काटते-काटते हुए वह बुरी तरह से थक चुका था। वह मन ही मन हिसाब लगा रहा था कि अगर वह लाई उसकी अपनी होती तो उसके पास कितना पैसा आता। वह पूरी मेहनत से अपने खेत में बिना-थके काम करता। गेहूँ शहर जाकर बेचता और खूब सारे रुपये लेकर घर आता। फिर उसके घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती - ना कपड़े लत्ते की, ना खीण-पीण की। तभी उसे एक तेज दर्द का अहसास हुआ। पैनी दरांती से उसने अपनी हथेली में जख्म कर लिया था। उसने दरांती रख दी और थोड़ी सी मिट्टी अपनी हथेली पर लगा ली। जख्म से खून का बहना रुक गया। मगर उसके भीतर गुस्सा खदबदाने लगा। उसे अपने ऊपर गुस्सा आया। फिर अपनी समूची कौम पर उसे गुस्सा आने लगा। वह मन ही मन खुद को, फिर अपनी कौम को और फिर रोड़ों को गालियाँ बकने लगा।

उसे एक दु:ख भीतर ही भीतर बहुत साल रहा था। जिस जमीन का वह मालिक था उसी पर उसे मजदूरी करनी पड़ रही थी और मजदूरी भी सही कहाँ मिलती थी। शहर जाकर काम करने पर उसे पचास-साठ रुपये रोज के मिल जाते हैं। यहाँ बीस-पच्चीस भी रोज के नहीं मिलते हैं। वह सोचता जा रहा था। जितना सोचता था उतना ही उसे खुद पर गुस्सा आता जाता था। तभी उसे सामने से जगदीश रोड़ आता दिखाई दिया।

“साला, कमीना, बेईमान, चोर साला।” रामफल ने मन ही मन उसे खूब गालियाँ दीं।

जगदीश उससे उमर में काफी छोटा है। मगर एकदम उज्जड। दूसरों की जमींन पर कब्जा करके इतराता है साला बेईमान। न अपने से बड़ों की उमर का ख्याल करता है और न इज्जत। ऐसे पेश आता है जैसे हम इसके गुलाम हों। रामफल सोचे चला जा रहा है।जगदीश जब एकदम पास आ गया तब रामफल ने खुद को संयत किया।

“के बात सै? हाथ क्यूं रोक के बैठा सै?” कहते हुए जगदीश ने जेब से बीड़ी का बंडल निकाला और एक बीड़ी सुलगाकर जल्दी-जल्दी कश मारने लगा। रामफल ने उसकी ओर न देखने का अभिनय करते हुए अपने हाथ में गेहूं की बालियाँ दबाई और उन्हें दरांती से काटने लगा।

“रामफड़।”

हाँ।” रामफल ने सुना-अनसुना दिखाने की कोशिश की।

“सुना सै तेरे मुहल्ले के लोग शहर जा रे सैं मंजूरी खात्तर।”

“हाँ। ठीक सुणा सै।” रामफल ने उससे संवाद करने के लिए खुद को तैयार किया।

“तू उन्हें समझाता कोन्या। शहर जांग्गे तो ये लाई कौण करेगा?”

“म्हां के समझाऊंगा। म्हारी कौण सुनेगा?”

“क्यूं तू मुखिया ना सै उनका।” रामफल थोड़ा झेंप गया।

“मैं कित का मुखिया? मुखिया तो आप सो।”

“वाल्मीकियों का मुखिया तो तू ही सै। उन्हें समझा। यहाँ कमी पड़ जागी लोगां की। होर, फेर के कमी से अड़ै।”

“कमी तो जो है सो आप जाणो हो। मजूरी कम सै अड़े। पूरा ना पड़ता।”

“पूरा ना पड़ता। के पूरा ना पड़ता। तुम्हारा पेट कदे भरे सैं। मैं सब जानूं सूं। किसान सभा वालों ने दिमाग खराब कर दिया है तुम्हारा। समझा दे लोगां नै। वाल्मीकियों को इसी गांव में रहना है। समझा दे सबको। म्हारे मुहल्ले की एक राय सै। बाहर ना जायें नहीं तो अच्छा नहीं होगा। दिमाग फिर गै सैं सब चूहड़ों के। ठीक करणा हम जाणें सै।”

जगदीश की बात सुनकर रामफल को भी ताव आ गया। पर उसने खुद को संभाल लिया।

“देखो जगदीश जी। यूं ताव तो दिखाओ मत ना। लोग तुम्हारे गुलाम ना सैं। जित ज्यादा मजूरी मिलेगी, लोग जायेंगै। आप रोक नहीं सकते। उनकी मजूरी बढ़ा दो फिर शहर क्यूंकर जावेंगे।”

“मजूरी ना बढ़ें एक पैसा भी। इसी पर काम करना होगा। ना करोगे तो हम करवा लेंगे।” जगदीश रोड़ गुस्से में पांव पटकता हुआ चला गया।


5

शाम के वक्त रामफल थका-मांदा घर लौटा। उसका बेटा चारपाई पर लेटा हुआ था। उसका माथा ठनका। घरवाली चूल्हा जलाए बैठी थी। उसने पानी लेकर मुंह धोया। अंगोछे से मुंह पूछते हुए उसने घरवाली से पूछा – “इन्नै के हो गया। शाम के बखत पाटी पर पड़ा सै।”

“बुखार में पड़ा सै।” उसकी घरवाली ने लम्बी सांस खींची।

फ्सुबह तो ठीक था।” वह चूल्हे के पास बने चौके पर जाकर बैठ गया।

“दोपहर को सकूल से लौटा तो काफी बुझा-बुझा था। आते ही पाटी पर लेट गया। मैणें पूछा तो रूआंसा हो आया। कुछ ना बोला। मणे माथा छुआ तो गरम था। स्कूल में दो-तीन मास्टर बहुत खराब सैं। बच्चन कूं शहतूत की संटी से मारें हैं। कह रहा था बड़ी खराब-खराब गाली देवे सैं। आज इसे भी खूब मारा। पूरे आधा घंटा मुरगा बणाया। मुंह लाल था इसका। सकूल के मास्टर ना सैं कसाई सैं। भला ऐसे भी कोई मारे है बच्चन कूं।” रामफल की पत्नी उदास हो आई। रामफल का गुस्सा फिर उफान मारने लगा। तभी पतीली के ढक्कन को खौलती भाप ने नीचे गिरा दिया।

“ऊंची जात के सैं मास्टर सारे। यो ना चाते चूहड़े-चमारों के बच्चें पढ़ें। इसी खात्तिर इतनी पिटाई करे हैं।”

रामफल जैसे खुद को समझा रहा था मगर उसका गुस्सा कम नहीं हो रहा था। तभी उसे बाहर के दरवाजे पर किसी के खंखारने की आवाज आई। फिर उसे एक पुकार सुनाई पड़ी –“चाचा सै के?”

रामफल ने आगंतुक की आवाज पहचानी और बोला – “आ जा। खचेरा भीतर नै आ जा।” खचेरा भीतर आ गया। रामफल ने बाखर में खाट बिछाई।

“कद आया।”

“सीधा आ रा सूं।” खचेरा खाट पर बैठते हुए बोला।

खचेरा करनाल में एक बाजा पार्टी में काम करता है। बाजा बजाता है। बाजे में फूंक मार-मार के उसके गाल भीतर की तरफ पिचक गए हैं। “और सुणां।” “आज सुबह नरसिंह जी आए थे म्हारे कमरे पै। बोले रामफल को कै दे कि अगले दिन किसान सभा के दफ्तर में आ जागा। आप वाले पिटीशन पर दो दिन बाद सुणवाई होनी सै। सब कागज पत्तर ले के जाणा पड़ेगा शहर। कचहरी में पेश होणा पड़ेगा जिब ही कोई कारवाही होगा। हो सकता है इस पेशी के बाद कलक्टर गाँव आए।”

“भाई यो तो अच्छी खबर सै।” रामफल को लगा उसके गुस्से का कुछ तो नतीजा निकला। ठीकक सै तब ऐसा कर औरों को भी यो खबर दे दे। धरमसिंह के घर जाकर भी बता आ यो बात। मैं खाणा खाके चौपाल पे आऊं सूं।”

रामफल की पत्नी कुछ बुदबुदाई।

“हाँ बेटा। रोट्टी खा के जा।” रामफल ने खचेरा की तरफ प्यार से देखा।

“ना चाचा रोट्टी फिर कदे खा लूंगा। मां बाट देख री होगी।” खचेरा यह कहकर चलने लगा। रामफल उसे बाहर तक छोड़ने आया।


6 खाणा-पीणा करके रामफल चौपाल पर जा पहुँचा। चौपाल पर कई लोग जमा थे।

“तो इब के करना सै रामफड़ काका।” जग्गी ने कहा।

“करना के है। अब तो कोरट मां फैसला होगा।”

सब रामफल का मुँह ताकने लगे।

“वो तो ठीक सै। जमीन म्हारी सै। सब जाणें हैं। पर कोरट जाने से गांव में रार ना बढ़ेगी।” बूढ़े महतार ने समझाने के लहजे में कहा।

“बढ़ती तो है बढ़े। रार के डर से के हम अपना हक छोड़ दें।”

“यो तो ठीक सै पर कोर्ट कचहरी का फैसला यो राड़ ना मानते।” जगन्नाथ सिंह बूढ़े हो चले हैं। मगर उमर अभी कम है। झुरियाँ दिखने लगी हैं चेहरे पर। “पर चाचा जमीन तो म्हारी सै। पिछली बार कलक्टर आया था। पर हम गवाही देंण खातिर घरां से नां निकले।” सोहन का जवान खून है। उसकी आवाज में दम है।

“पिछली बार तू कित्त छुप गया था।” दद्दा गंगाधर के तर्क पर हंसी का फव्वारा छूट गया।

“पिछली बार मन्ने खबर कोन्ना थी।”

“सारी दुनिया जाणे थी। तन्ने खबर कोन्या थी।” हंसी और तेज हो गई। रामफल का गुस्सा फिर उछाल मारने लगा।

“यो हँसण की बात ना है। यो आखिरी मौका सै। सो छूटा तो फिर ना मिलती जमीन। ईब जाण के डर से चुप न रहना है।”

“चाचा ठीक कैरा से।” अब की बार खचेरा बोला। शहर जाकर खचेरा भले ही बाजा बजाता है पर काफी समझदार हो गया है।

“किसान सभा के नरसिंह जी कै रे थे। इबके गड़बड़ ना हुई तो जमीन मिल जाग्गी। रामफल काका को मिलेगी तो सबने मिल जागी।”

“पर जान का खतरा सै। रोड़ बड़े बदमाश सै।” जगन्नाथ सिंह फिर समझाने के लहजे में बोले।

“अब जो हो। मनै ठाण ली है। एक बार गलती की, सो सजा भुगत रे सैं। अब की बेर जान के डर से चुप ना रहेंगे।” रामफल को जोश आ गया। किसी न किसी को तो बढ़णा ही पड़ेगा।”

“देख ले बेटा। जो भी करणा सोच समझ के करणा।” बूढ़े महतार सिंह को एकाएक रामफल की हिम्मत पर प्यार आ गया। उनकी आंखें भर आइ±। तभी खचेरा की नजर चौपाल की छोटी दीवार पर बैठे बनिये के लड़के रामनाथ पर गई।

“तू के कर रा सै अड़े।”

“कुछ ना काका मैं तो बैठा सूं।” बनिये का लड़का चोरी पकड़े जाने पर थोड़ा डर गया।

“चल भाग अड़ै तै। तेरा काम ना सै कोई अड़े।” जग्गी दहाड़ा। बनिए का लड़का भीत से उतरा और भाग गया।

“अब यो जाके सब बता देगा रोड़ां नै।”

“बता देगा तो बता दे। कोई गलत काम ना कर से अड़ैं।”

अगले दिन रामफल दो लोगों को साथ लेकर करनाल गया। किसान सभा वाले उसे किसी वकील के पास ले गए। सब कागज पत्तर पूरे हो गए। उस दिन वह वहीं रहा। दिन भर करनाल में घूमा और रात को किसान सभा के दफ्तर में ही सो गया। उस दिन रामफल ने सुख की भरपूर नींद ली। अगले दिन जिला कोर्ट में पेशी हुई। फैसला रामफल के हक में हुआ। उसके साथ गए दोनों जने वहीं करनाल में ही रुक गए। पर रामफल दूसरे दिन सुबह गांव को चल पड़ा। उसके गांव पहुंचने से पहले गांव भर में हड़कंप मच गया था। जगदीश रोड़ अपने ट्रैक्टर को पूरे गांव में दौड़ा रहा था। दो-तीन बार रामफल के घर के आगे ट्रैक्टर रोक कर रामफल की घरवाली से रामफल के बारे में पूछ चुका था।


7

रामफल हाईस्कूल के साथ बने झोड़ से गांव की तरफ चला जा रहा था। दोपहर का एक डेढ़ बजा था। बहुत तेज धूप पड़ रही थी। गांव में घुसते ही रामफल ने चैन की सांस ली। उसने पसीने से तर-बतर मुंह और माथे को अंगोछे से पौंछा। उसका दिल तेज-तेज धड़क रहा था। वह अपने मुहल्ले की तरफ तेज कदमों से बढ़ा जा रहा था। अपने मुहल्ले से वह अभी पचास-साठ कदम दूर ही था कि उसको सामने से जगदीश रोड़ अपने ट्रैक्टर पर बड़ी तेजी से आता दिखाई दिया। रामफल की धड़कनें और बढ़ गईं।

ट्रैक्टर को अपनी तरफ आता देख रामफल एकतरफ हो गया। मगर उसे देखकर जगदीश रोड़ ने ट्रैक्टर की गति और बढ़ा दी। एक पल तो रामफल को हैरानी हुई मगर जल्दी ही उसने खुद को संभाल लिया। उसने आव देखा ना ताव और तेजी से पीछे की तरफ मुड़ा और भागने लगा। जगदीश रोड़ ने ट्रैक्टर उसके पीछे दौड़ा दिया। रामफल का शरीर जवाब दे गया। उसकी सांस फूलने लगी। फिर भी हिम्मत करके वह बगल के छोटे से खाली मैदान में कूद पड़ा। इससे पहले कि वह संभल पाता जगदीश मोड़ ने ट्रैक्टर उसके उफपर चढ़ा दिया। उसकी दोनों टांगे ट्रैक्टर के पिछले पहिए के नीचे आ गईं। वह दर्द के मारे तड़पने लगा।

तब तक वहाँ काफी लोग जमा हो गए थे। वाल्मीकि मुहल्ले के लोग भी भागे चले आ रहे थे। तब तक जगदीश रोड़ ने ट्रैक्टर मोड़ा और तड़प रहे रामफल पर चढ़ा दिया और सीधे ट्रैक्टर को भगाकर ले गया। रामफल जमीन पर पड़ा था। उसका मुंह खून से सना था और टांगे टूट चुकी थीं। जब तक कोई उसके पास पहुंचता वह मर चुका था। शाम को जब उसके मुहल्ले के लोगों ने उसकी लाश उठाई तो उसकी बंद मुट्ठियों में भरी मिट्टी नीचे गिरने लगी। २००२