जलकुम्भियाँ / वंदना शुक्ला

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“जाण चाईए सबकी या आपणी मर्जी सोच ले “बूढ़े पिताजी ने आखिरकार बहस में हार मानते हुए मुझ तक अपना अंतिम डर सरका दिया जो हालाकि मुझसे सबंधित था पर खाए उन्हें जा रहा था और खाट पर बैठे उंगिलयों को एक दूसरे में उलझाये ज़मीन को देखते रहे|

“ये मेरी ज़िंदगी का सवाल है बाबूजी... मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा मै अच्छी तरह जानता हूँ .मैंने उनकी बात की नामंजूरी पर अपनी मुहर लगा दी और रोटी का आख़िरी गस्सा मुहं में दे दिया

बाबूजी और बुझ गए। कुछ देर चुप्पी के अँधेरे में भटकते रहे फिर बोलने लगे... जाने किससे

“अपणा पेट काटकर पढ़ाया लिखाया इन्हें, सोचा था दो किताबें पढ़ जायेंगे तो थोड़ी दुनियादारी समझेंगे , अपणा और घर का भला बुरा पहचानेंगे पर... .

“एक रोटी और ले ले “बुझी हुई सी माँ ने रोटी कटोरदान में से देते हुए बहुत धीरे लगभग इशारे से कहा

‘नहीं अब नहीं हो गया बस “मैंने थाली के ऊपर हाथ रखकर मना कर दिया।

पिताजी अब भी शून्य में देख रहे थे... बोले

जब हमारे पिताजी यानी तुम्हारे दादाजी ने ब्याह पक्का किया तुम्हारा तब दुनियां आगे कैसी होगी ये सोचने का चलन नहीं था। ये बदलेगी भी ये तो सपने भी नहीं आते थे किसी को। शादी ब्याह भी खेल तमाशा लगता था।

वो ज़मीन पर देखते रहे मानों कुछ यादें बिखरी पडी हैं वहां जो आँखों से बटोर रहे हों

“तुम चौदह के थे और दुल्हन पांच छः बरस की जब हमारे पिता और उसके ताऊ जो मित्र थे ने शादी की रस्म कर दी थी। तब ये फैसला घर के बुजुरगों का होता था हम तो सिर्फ तुम्हारे माता पिता होने के नाते नेग चार कर पाए थे इतना ही हक था हमें। “बाबूजी की आवाज़ में तिरस्कार और लाचारी थी

वो फिर यादों की नदी में उतरने लगे। मैने दूसरा जूता भी पैर में डाला और बंद बाँधने लगा तब बाउजी बता रहे थे -

“उन लोगों ने पांच बीघा ज़मीन देकर रोक भी दिया था तुम्हे। अब रिश्ता पक्का करने वाले तो रहे नहीं पर अब दुल्हिन के घरवाले गोने की जिद्द पकडे बैठे हैं कि लड़की अठारह की हो गई है विदा कराके ले जाओ।

“आप लोग जानों बाउजी, मै अपना निर्णय सुना चुका हूँ “मैंने नरदे पर हाथ धोते हुए कहा। मै शहर में पला बढ़ा और पढ़ा लिखा, अच्छी नौकरी में लगा अब आप लोग चाहते हो कि,किसी गांव खेड़े की बेपढ़ लड़की से शादी करूँ , सिर्फ इसलिए कि उन लोगों ने बचपन में हमारी शादी करके अपनी दोस्ती निभाई थी?

“बेपढ़ नहीं है वो नौंबी कक्षा की परीक्षा दी है उसने सुना है...... होशियार है पढ़ने में... .अभी उमर ही क्या है उसकी... हम यहाँ पढ़ा लेंगे... एक बार देख तो लो... बाबूजी की समझाइश को उहापोह के भंवर में छोड़ मै बाहर निकल आया। वैसे भी घर में ये द्रश्य और बातचीत अब उकताहट की हद तक आम हो गए थे।

मैंने मोटर साईकिल उठाई और लेक की ओर चल दिया। स्वाति बोट क्लब के लॉन में मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। स्वाति हमउम्र थी और हमारी दोस्ती लगभग पांच साल पुरानी थी जब हम कॉलेज में साथ पढते थे, अब हम दौनों इसी शहर में नौकरी करते थे। वो टीचर थी और मै एक सरकारी विभाग में उच्च श्रेणी लिपिक। हमारा मिलना कल फोन पर तय हो चुका था ये भी कि वीकेंड पर बोटिंग करेंगे और समय रहा तो मूवी भी देखेंगे। मैंने दूर से ही देख लिया उसे। वो बार बार घड़ी देख रही थी और परेशान सी इधर से उधर टहल रही थी। पार्किंग में बाईक खड़ी करके मै उसके पास पहुंचा तो उसने पूरा गुस्सा मुझ पर उंडेल दिया

पूरे आधा घंटा लेट हैं आप मिस्टर...... यहाँ का माहौल देखा है?सब लोग मुझे अजीब निगाहों से देख रहे थे

अरे तो क्या हुआ! हो जाता है कभी २ ऐसा भी। ये नहीं पूछोगी कि क्यूँ लेट हुआ?

नो... कोई ज़रूरत नहीं है उसने गुस्से से दूसरी ओर मुहं फेरते हुए कहा

अरे सुनों तो...... मैंने प्यार से स्वाति का हाथ पकड कर वहाँ बिछी एक बेंच पर बिठा लिया ....

वो गुस्से में दूसरी ओर देखने लगी

...... मैंने स्वाति को पूरी घटना विस्तार से बताई

पहले तो वो पूरा वाकया सुनकर अचंभित रह गई फिर बोली “तो फिर छोडो न पेरेंट्स को...जब वो हमारी बात नहीं सुन रहे तो हम क्यूँ सुने? उसकी द्रढता में एक हिकारत या लापरवाही थी।

“नहीं गलती अम्मा बाउजी की नहीं है वो तो बहुत एड्जेस्टिंग हैं “मैंने कहा “ये सब किया धरा तो दादा जी का है जो खुद तो चले गए पीछे ये सुतंगा छोड़ गए हैं। अम्मा बाउजी तो ये भी नहीं जानते कि अब वो लोग कहाँ रह रहे हैं... बस उनके फोन आते रहते हैं।

“माई डियर...ये कोर्ट वकील धाराएं सब किसके लिए हैं?किस ज़माने में रह रहे हो तुम लोग? तुम्हारे बचपन में तुम्हारी शादी कर दी गयी जब तुम इस शब्द का अर्थ तक नहीं जानते थे अब तुम पर दबाव डाला जा रहा है साथ रहने का उसके साथ जिसे तुम जानते तक नहीं। तमाशा बनाकर रख दिया संबंधों का तुम्हारे पेरेंट्स ने... रिश्ते कोई मजाक होते हैं क्या?और वैसे भी यदि तुम मुझसे इस मामले में कोई एडवाईज़ लेने के मूड में हो तो ये तुम्हारे घर का मसला है इसे तुम लोगों को ही सुलझाना है स्वाति ने दो टूक फैसला सुना दिया।

“अम्मा बाउजी मेरी जिम्मेदारी हैं उन्हें बहुत चाहता हूँ मै, उन्हें दुखी नहीं देखना चाहता... सच ये भी है कि इमोशनली मै तुम पर भी बहुत डिपेंड हो गया हूँ स्वाति सचमुच तुम्हारे बिना रहने की कल्पना करना मुश्किल है...मै भावुक हो गया

बस बस ये इमोशन विमोषन बहुत घिसी पिटी बातें हो गईं... स्वाति ने स्पष्ट शब्दों में मेरी भावनाओं को किनारे कर दिया। “तुम क्या चाहते हो?उसने पूछा

“सिर्फ तुम... मेरी दुनियां तुमसे ही पूरी होती है... या कहो कि मै तुम्हारे बिना अधूरा हूँ... कल्पना नहीं कर सकता यार तुम्हारे बिना रहने की...

स्वाति मौन खड़ी मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी, जैसे किसी शिकार को जाल में छटपटाता देख शिकारी दूर खड़ा मुस्कुरा रहा हो

वो कुछ देर चुप रही फिर बोली -

“हम कहीं बाहर चलते हैं वहीं शादी कर लेंगे मंदिर में या कोर्ट मैरीज़ ...

पागल हो क्या?मैंने कहा... रिटायर्ड पिता और गाँव में पली बढ़ी सीधी साधी माँ को इस स्थिति में अकेला छोड़कर भाग जाऊं?

“अरे तो फिर चारा क्या है? ये गलती तो तुम्हारे फादर की ही है ना?अब तो पच्चीस छब्बीस बरस के हो गए हो तुम, क्यूँ बढ़ने दी खाज इतनी?शहर में रहते हो किसी अच्छे वकील या किसी रिश्तेदार की मदद से मामला पहले ही सुलझा देना था?

मै निरुत्तर था...

स्वाति बेहद खूबसूरत लगती थी मुझे जितनी थी नहीं शायद उससे कहीं ज्यादा। प्यार बला ही ऐसी है वो मेरी ज़िंदगी का पहला प्यार थी जिसे मैंने अपनी ओर से अंतिम भी मान लिया था। वो बड़े बाप की इकलौती बेटी थी ये दो गुण हर जिद्द और बदतमीजी करने की छूट देते थे उसे। फिर भी ना जाने क्यों मै एक अंधविश्वास की हद तक उसके प्यार की गिरफ्त में था।

अरे हाँ तुम्हे पापा ने बुलाया है मिलना चाहते हैं तुमसे...उसने अचानक बात की दिशा मोड दी

लेकिन अभी तो मै इन पचडों में ही फंसा हूँ कैसे मिल सकता हूँ?

वो तुम्हारे परिवार की प्रोब्लम है। पापा बहुत बिजी रहते हैं मैंने तुमसे बिना पूछे उन्हें कल का टाईम दे दिया है

लेकिन मै कल नहीं आ सकता... मुझे ऑफिस के काम से पलसाना जाना है

“वेरी फनी “उसने व्यंग में कहा... . क्यूँ तुम्हारी बातों में आ जाती हूँ मै यार... एक नंबर के धोखेबाज़ और डरपोक हो तुम समझे? वो ज़ोर से बोली

शब्दों पर थोड़ा ध्यान दो... तुम अच्छी खासी एजुकेटेड लड़की हो और एक बड़े प्रोफ़ेसर की बेटी... ये शब्द!...... .

पढ़ी लिखी और प्रोफ़ेसर की बेटी के मन नहीं होता क्या?शब्द तो मन के ही ज़ज्बात होते हैं और समझाओं मत मुझे प्लीज़,मै अपने पेरेंट्स की नहीं सुनती तुम्हारी क्यूँ सुनूंगी?सारे मूड का कूड़ा कर दिया सच चलो अब कहीं नहीं जाना मुझे और लिसिन... यदि कल नहीं आये ना तुम घर पापा से मिलने तो आई स्वेर मै कभी नहीं बोलूंगी तुमसे और वो अपनी स्कूटी उठा वहां से चली गई। मै देखता रह गया

रात को मैंने स्वाति को फोन किया पर उसने उठाया नहीं। मुझे उसकी बेहद याद आ रही थी। मैंने क्यूँ नाराज़ कर दिया उसे। एक अजीब त्रिशंकु की स्थिति हो गई थी मेरी। क्या करूँ क्या ना करूँ?इन दिनों ऑफिस में भी ज्यादा काम था सुबह से ऑफिस गया शाम तक बेहद थक जाता था फिर भी घर लौटने को मन नहीं होता था। जानता था न कि जाते ही अम्मा शुरू हो जायेंगी “आज फिर उन्होंने फोन किया था... कह रहे थे लड़के से बात करा दो... हमने कहा कि घर में नहीं है तो उनने कहा कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है”

अम्मा की मेरे ज़वाब की आशा को लटकता छोड़ “हूँ ‘“कहकर मै अपने कमरे में आ जाउंगा। अम्मा मेरे पीछे पीछे आ जायेंगी और धीरे से मुहं पर पल्लू दे दरवाजे की देहरी पर खड़े हो मेरे उत्तर की राह देखतीं रहेंगी। मुझे चुप देख वो लौट जायेंगी। अम्मा और मेरे बीच तारतम्य की कोशिश से बाउजी के चेहरे पर जो आशा की एक हल्की सी लकीर खिंच गयी होगी वो अम्मा के वापस लौटते ही बुझ जायेगी बाबूजी अम्मा मौन फिर बैठे रहेंगे उदास चिंतित।

मुझे शाम की बस से पलसाना जाना था। चलो ऑफिसियल टूर के अगले दो चार दिनों में तो इन सब झमेलों से मुक्ति मिलेगी?मैंने सोचा। पलसाना जाने के दो रास्ते थे एक नागरा होते हुए और दूसरा कोलसिया से लेकिन मुझे तो नागरा वाले रूट से ही जाना था ये मै तय कर चूका था पहले ही। मैंने दो पेंट दो कमीज़ बैग में डालीं ऑफिशियल कुछ ज़रूरी कागजात लिए और बैग कंधे पर लटकाकर बस स्टेंड की दिशा में चल दिया जो घर से कुछ दूरी पर ही था। बस आने में कुछ समय था। मैंने वहां से स्वाति को फोन लगाया घंटी जाती रही कोई रिस्पोंस नहीं। बस आ गई थी हरियाणा परिवहन की, वहीं पीछे की सीट की खिड़की पर बैठ गया। कोलसिया किम्वदंतियों और घटनाओं से भरा पूरा गांव था। वैसे भी छोटे मोटे जंगल से घिरा था वो, सो भौगोलिक रूप से भी थोड़ा रहस्यमयी सा लगता था, छिपने –भागने की सुविधाओं से परिपूर्ण। माफिया .ठेकेदार,भाई टाइप लोगों,रईसों-नेताओं के गुंडों की पसंदीदा शरण स्थली जहाँ चुनावों के समय सबसे ज्यादा चहल पहल रहती थी। चुनाव प्रचार में भाड़े के लोगों को लालच देकर बस या ट्रक में भरकर ले जाना, उन्हें मुफ्त शराब बांटना,बूथ केप्चरिंग,फेक बोट,अपराधी को छिपाना-भगाना आदि। कहा यहाँ तक जाता था कि इस गांव के कुछ बाशिंदों का यही प्रमुख पेशा है। हलाकि गांव संपन्न था पक्के मकान,ट्रेक्टर, अनाज मंडी, दुकाने,बाज़ार छोटे मोटे स्कूल आदि सुविधाएँ थीं। चुनावों अथवा आसपास के इलाकों के किन्ही सनसनीखेज प्रकरणों के दौरान इस गांव तक पहुँचने वाले कच्चे रास्ते रात दिन जीपों बाइकों जैसे वाहनों से आबाद रहते। सड़कों पर गाहे ब गाहे नीली बत्ती वाली गाडियां भी दौडती दिख जातीं,अन्यथा सन्नाटे पसरे रहते। आम लोग जब तक बहुत ज़रूरी ना हो इस मार्ग से जाना नहीं चाहते थे और रात में तो बिलकुल भी नहीं। मै संतुष्ट था क्यूँ कि मैंने तो नागरा बाई पास से जाने वाली बस का टिकिट लिया था। बस धीरे धीरे स्पीड पकड़ रही थी और अब मै सभी यात्रियों की तरह हिचकौले खाती बस में बैठा था नींद की खुमारी चढती जा रही थी। बस की बत्तियाँ भी बंद कर दी गई थीं। रात और जाड़ा बढ़ रहा था खिड़कियों पर शीशे चढ़ा दिये गए थे। अचानक बस एक हलके से झटके के साथ रुक गई। कंडक्टर कह रहा था “नागरा जाने वाले लोग यहीं पुलिया पर उतर जाओ भाया, बस कोलसिया से होती हुई पलसाना जायेगी... आगे पेड़ के ठूंठ सड़क पर टूटे पड़े हैं इसलिए वहां की सड़क बंद हो गई है।

मारे डर के मेरी घिघ्घी बंध गई। स्वाति सही तो कहती है कि मै बहुत डरपोक हूँ। उस रास्ते की सुनी सुनाई कई घटनाएँ उलट पुलट कर आ आकर डराने लगीं। अब तो इतनी दूर निकल आये थे कि वापिस जाने का भी नहीं सोचा जा सकता था| बस कुछ सवारियों को उतार फिर चल दी।

जंगल शुरू हो गया था। झींगुरों और सियारों की मिली जुली आवाजें उस काले सन्नाटे को और गाढा बना रही थीं। घनघोर अंधेरों के बीच में कहीं जुगनू की कमज़ोर सी रोशनी दिपदिपाती और वही दम तोड़ देती। सड़क के आसपास उकताए से खड़े बिजली के खम्भों पर ट्यूबलाईट की मरियल रोशनी में बस के आगे से एकाध जंगली चूहा दौडता दिख जाता। सांस साधकर चुपचाप बैठे रहने के अलावा कोई चारा नहीं था, लेकिन मै क्यूँ डर रहा हूँ?मै अकेला तो नहीं बस में !और ये ड्राईवर कंडक्टर तो इसी रूट पर चलते हैं? मैंने सुना है कि ये लोग भी हथियार रखकर चलते हैं बस में तमाम इंतजामों से लैस। वैसे लोग कहते हैं कि इन आतताइयों के भी पक्के उसूल होते हैं जैसे ये छेड़खानी लूट पाट चोरी चकारी जैसे टुच्चे काम नहीं करते हाँ किसी से दुश्मनी हो और किसी को “उठाने” की सुपारी वुपारी ले रखी हो या फिरौती का मामला हो तभी बस रोकते हैं... कभी कभी शक में भी रोक लेते हैं और फिर हल्की सी तलाशी के बाद जाने देते हैं। हजारों दहलाने वाली घटनाएं सुनीं हैं लेकिन आज तक किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार की घटना नहीं सुनी|भय और विवशता के बीच भी उन दुराचारियों की इस ‘सिद्धांतवादिता’ को सलाम करने का मन हुआ, फिर अविलम्ब ही इस “दोगले मन “को फटकारा मैंने।

वैसे इस बस में तो सब लोग सीधे साधे और शरीफ ही लग रहे हैं -मैंने एक निगाह बस के यात्रियों पर फेर ली। खुद को राहत देने के लिए ये ज़रूरी लगा मुझे। अचानक स्वाति की याद आई...काश वो भी होती साथ में, खूब गप्पें करते हुए यात्रा करते कितना मज़ा आता। उसे नींद आती तो वो मेरे कंधे पर सिर टिकाकर सो जाती। मै उसके गालों को हौले से थपथपाता निन्दियाये यात्रियों और अँधेरे का फायदा उठा शायद उसे चूम भी लेता... अचानक उसकी खिलखिलाहट रजनीगन्धा के सफ़ेद फूलों सी मेरे इर्द गिर्द बिखर गयी मै मुस्कुराने लगा। मैंने उसे फिर फोन लगाया... घंटी जाती रही... हारकर फोन को जैकेट की जेब में रख लिया शौल सिर तक ओढ़ ली| मारे ठण्ड के पैर सीट पर सिकोडकर बैठ गया। अँधेरे गाढ़े होने के साथ ही मेरी धडकनों की तेज होती रफ़्तार मै खुद सुन पा रहा था हलाकि ऐसा होना मै कतई नहीं चाहता था ।

रात के साथ जाड़ा भी बढ़ रहा था। मै गुड़मुड़ी सा बना बस की बंद खिड़की के धुंधले कांच से बाहर देखने लगा। बस के बाहर प्रकृति के खेल चल रहे थे। घने जंगलों के अंधेरों के बीच कहीं चांदनी का एकाध टुकड़ा तितली की तरह उड़ता हुआ रफ़्तार से चलती हुई बस की खिड़कियों को छूता और गुज़र जाता। बाहर कोहरे के बादल उस टेडी मेढ़ी सड़क पर बिंदास टहलकदमी कर रहे थे। चांदनी रात में घने पेड़ों ने पत्तियों के साये को मानो अपनी छाँव में ही बिछा लिया था। बस हिचकौले खाती धीरे धीरे बढ़ रही थी, कंडक्टर भी “महिला सीट”पर सिकुड़ा सा बैठा ऊँघ रहा था। यात्रियों को निश्चिन्तता से सोता देखने और तमाम कोशिश के बावजूद नींद मेरी आँखों से गायब थी। मै जानता था कि मेरी ये ढीठ नींद यहाँ से करीब दो तीन कोस दूर उस “दिशा पत्थर”पर सहमी सी बैठी होगी जो कोलसिया क्षेत्र समाप्त होने की सूचना लेकर खड़ा होगा। बस के पुर्जों व इंजन के सिवा अन्य आवाजें शांत थीं।

आगे कोई कच्ची सड़क थी जहाँ कुछ लोग खड़े थे बस की प्रतीक्षा में। कम्बल ओढ़ रखा था उन्होंने|बस हिचकोले खाती हुई रुक गई। कंडक्टर हडबड़ाकर उठकर खडा हो गया। उसने बाहर झांका और बस का दरवाजा खोल दिया

“कोलसिया पुलिया पर उतरने वाले लोग खड़े हो जाओ भाया यहाँ बस ज्यादा देर ना रुकेगी” उसने यात्रियों को चेताया। शायद वो नींद में भूल गया था कि बस नागरा से होकर जाने वाली थी इसलिए इसमें कोलसिया के यात्री नहीं बैठे हैं।

बस में अब भी कोई हलचल नहीं थी ज्यादातर लोग नींद में थे। किसी को नहीं उतरना था उस पुलिया पर। मैंने कंधे तक खिसक आई शौल को फिर माथे तक ओढ लिया मुझे सर्दी लग रही थी।

“आओ भाई जी “कंडक्टर ने जम्हाई लेते हुए कहा और बस के दरवाजे के एक साइड में खडा हो गया। तीन चार हट्टे कट्टे लगभग छः फिटे लोग जो कम्बल ओढ़े पुलिया पर खड़े थे बस में घुसे उन में से दो आदमियों के कंधे पर बंदूकें थीं और एक जो कुछ ज्यादा उम्रदार और रोबीला लग रहा था और शायद मुखिया था उनका उसके हाथ में एक लट्ठ था। सिर पर पगड़ी व चेहरे पर कपडे बंधे हुए थे सिर्फ ऑंखें दिखाई दे रही थीं उनकी

“ अजीत सिंग कुण् है भाया... चुपचाप म्हारे संग गड्डी से उतर आओ

बस में सन्नाटा तन गया था... .

वो लोग मेरा नाम ले रहे थे। मेरी धडकन जो अभी तक बढ़ी हुई थी जैसे अपने हौसले खो रही थी और बंद होने को थी। मै और सिकुड गया

ठीक है... ओ भाया डीराईवर इंजन बंद कर दे मोटर का... हम तलाशी लेंगे

कहने की देर थी कि बस का घड़घड़ाणा रुक गया

मेरे पास ऑफिस के कागज़ात थे जिनमे मेरा नाम पता मय फोटो के रखा हुआ था। मैंने डरते हुए उन कन्धों की ओर देखा जिन पर गुस्सैल बंदूकें टंगी हुई थीं और जो कुछ हाथ की दूरी पर ही थे। कंडक्टर की घिघ्घी बंधी हुई थी। वो फटी फटी आँखों से सारे द्रश्य देख रहा था

“भाया थारे सब सवारियां से हाथ जोड़कर बिनती करा हाँ जो अजीत सिंह हो अनके सागे उतर जाएँ... बस ने तडके पौंचणा सैय पलसाना... .

“अबे चुप भूतनी के तलाशी लेण दे हमने। परे हट “उसमें से एक आदमी ने कंडक्टर को लगभग धकेलते हुए कहा...... सब खड़े हो जाओ रे फुर्ती करो बे...... उन्होंने कहा। सवारियां धीरे धीरे खड़ी होने लगीं। सबके चेहरों पर मौत की छाया दिख रही थी

“मै हूँ अजीत सिंह... मैंने उठकर कहा। मरता क्या ना करता... मेरे पैर और आवाज़ कांप रहे थे। अन्य सवारियों ने राहत की साँस ली। कुछ पल वो तीनों मेरी ओर घूरकर देखते रहे

हम्बे... कढ आ बाहर ने भाया “कहकर वो तीनों संतुष्ट भाव से बस के नीचे उतर गए, जैसे ये कोई बहुत सामान्य सी घटना हो... .

अब अपना सामान ले चुपचाप उतर आने के अलावा कोई चारा नहीं था मेरे पास। अपहरण का नाम सुना तो खूब था पर देखा आज ही था इत्तफाकन अपहरण मेरा ही हो रहा था। बस में बैठे यात्री डरे हुए मेरी ओर ऐसे देख रहे थे जैसे बलि के लिए किसी बकरे को ले जाया जा रहा हो। बस के नीचे उतर कर अपहरण कर्ताओं ने मुझे उस जीप में बैठने को कहा जो जंगल के किनारे अँधेरे में खड़ी हुई थी। मै जाती हुई बस की धुंधलाई सी बत्तियों और धूल के बीच में खडा था। अपना बैग मैं कंधे पर टांग जीप की बेक सीट पर बैठ गया। उनमे से एक आदमी जीप ड्राइव करने लगा और दो जिनके कंधे पर बंदूकें टंगी हुई थी मेरे आसपास बैठ गए। मै बीच में बुरी तरह डरा और सिकुड़ा हुआ सा बैठा था। जीप में गहन चुप्पी के बावजूद सन्नाटों का शोर भयाक्रांत कर रहा था तभी ना जाने क्या हुआ मुझे लगा कि उनमे से एक ने मेरे चेहरे पर जोर से कोई कपड़ा भींच दिया है इतना कि मेरी साँस रुकने लगी है मुझे खांसी आ रही थी गला रुंध रहा था बस इतना याद है|

जब मुझे होश आया तो मै एक अंधेरी सी कोठरी में एक खाट पर लेटा था। मेरा सिर बुरी तरह भन्ना रहा था कुछ वक़्त लगा मुझे याद करने में बस की घटना लेकिन अब भी मै नहीं जानता था कि मुझे यहाँ क्यूँ लाया गया है, पूरी बस में मेरा नाम ही क्यूँ लिया गया मै ना तो इनमे से किसी को जानता हूँ और ना मेरी किसी से दुश्मनी ही है। एक सरकारी दफ्तर का छोटा मोटा कर्मचारी हूँ किसी धन्ना सेठ की औलाद भी नहीं हूँ, मेरे पिता तो बैंक के गार्ड की छोटी सी नौकरी से रिटायर हुए हैं। ज़रूर कोई भ्रम हो गया है इन लोगों को... .पर पूछूं भी तो किससे?

मैंने खाट से उठना चाहा। कमरे की एकमात्र उस छोटी खिड़की जो खुली थी के पास खड़े होकर देखना चाहा कि कोई दिखे तो पूछूं कि ये कौन सी जगह है और मुझे यहाँ किस मकसद से लाया गया है। आज मुझे पलसाना में रिपोर्ट भी करना था लेकिन मुझे उठने में अब भी चक्कर आ रहे थे।

तभी बाहर खटखटाहट हुई

दरवाजा खुला और एक आदमी जिसकी तलवार कट मूंछें उसके कानों को छू रही थीं और उसने धोती कुर्ता और पगड़ी पहनी हुई थी कांच के गिलास में लाल रंग का शरबत लेकर कमरे के भीतर घुसा

“ले या पी...”उसने आदेश दिया

मेरा गला वैसे भी प्यास से तड़क रहा था मैंने वो शरबत पी लिया। शरबत पीते ही मुझ पर जबरदस्त नशा छा गया। उसके बाद स्थिति ऐसी हो गई कि मुझे दिख रहा था सब होते हुए लेकिन मै कुछ कर नहीं पा रहा था मेरे अपने शरीर पर ही मेरा नियंत्रण नहीं था। कुछ देर बाद जब नशा थोडा कम हुआ तो मै आठ दस लोगों जिनमे कुछ बन्दूक धारी भी थे से घिरा एक छोटे से मंडप में बैठा था मेरी बगल में एक सिकुड़ी सी दुबली पतली लड़की घूँघट काढ के बैठी हुई थी। मेरी हथेली के ऊपर उसकी हथेली रखी हुई थी और पंडित मंत्रोच्चार कर रहा था। माज़रा समझ मेरे होश उड़ गए... .मेरा ब्याह हो चुका था उस लड़की के साथ। मुझे और लड़की को फिर उसी कमरे में ले जाकर बंद कर दिया गया

“मै रो रहा था... सचमुच रो रहा था... मैंने अपनी जेब टटोली मेरा मोबाइल गायब था। मै और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। लड़की मेरी ओर डरी डरी सी देख रही थी

लड़की भी रोने लगी... “ना रोओं जी थे... .घनाई बुरा लग रहा है जी म्हाने। म्हारे भाई थारे सागे आईयाँ बर्ताव कर रहे छे... थे म्हणे माफी दे दो जी ‘ वो गिडगिडा रही थी

मै थका हुआ था सो खाट पर लेट गया और मैंने दीवार की ओर करवट ले ली। मेरा सर अब भी भन्ना रहा था

रात गहरा गई थी मेरे हाथ पैरों में भयानक दर्द हो रहा था।

“तुम जाओ मेरे सामने से मुझे अकेला रहने दो... मैंने उसकी ओर बिना देखे चीखकर कहा।

लड़की कांप सी गयी और ज़मीन पर उकडूं अपने घुटनों के ऊपर सिर टिकाकर बैठ गई।

कुछ देर मै ऑंखें बंद किये पड़ा रहा। मैंने फिर करवट बदली। मै बैठ गया और पास में रखे कांच के गिलास से पानी पीने लगा। लड़की डरकर खिड़की की बगल में खड़ी हो मेरी ओर देख रही थी। उसका काजल बहकर गालों तक आ गया था। बाल बिखर गए थे और उसकी आँखों में करुना और भय था। वो बार बार अपना गिरता हुआ पल्लू संभाल रही थी। पानी पीकर मै फिर लेट गया और मैंने अपनी कुहनी से माथा ढँक लिया।

“सर दाब दूँ जी थारा?उसने धीरे से कहा

“चुप रहो... ये सब तुम्हारे कारन हुआ है...”मै चीखा। कोई जबरदस्ती है क्या? बेहोशी में ब्याह करके कमरे में बंद करके कोई शादी हो जाती है क्या?मैंने मुड़कर उसकी ओर देखते हुए कहा। उसने सलमे सितारों से भरी लाल रंग की साढ़ी पहन रखी थी जो अँधेरे में चम् चम् कर रही थी। गाढी मांग और हाथ मेहदी और चूडियों से सजे हुए। उसकी आँखों में भी डर भरा हुआ था|कमरे में बहुत कम रोशनी थी उसका चेहरा अस्पष्ट था।

हाँ जी सई कहो हो थे... पर थे कोनी जनों म्हारे भाई और बाप चाचा ने... .हत्यारे हैं जी सब... आपकी फिकर है मुझे सच कहूँ हूँ जी “कहती कहती वो रुआंसी हो गई। वो अपराध बोध से गढी जा रही थी

मुझे नींद कब आ गई पता ही नहीं चला। सुबह आँख खुली तो देखा लड़की ज़मीन पर सो रही थी। उसका पल्लू सरक गया था माथे से। उसकी साड़ी घुटनों तक चढ गई थी। चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे और उसके गोरे और भरे हुए गालों पर सूखे हुए आंसुओं की लकीर थी वो बेहद मासूम लग रही थी।

“कैसी विवशता है”..मुझे फिर रोना आने लगा। मैंने खाट से खड़े होकर बाहर का दरवाजा खोलना चाहा लेकिन वो बाहर से बंद था

आज मुझे पलसाना पहुंचना था...मोबाईल भी इन जालिमों ने निकाल लिया है जेब से कि किसी को फोन ना कर सकूँ... मीटिंग के कागजात मेरे पास हैं... अब क्या करूँ?

“ए लड़की उठ...मैंने जोर से लड़की से कहा

वो हडबडाकर उठ गई।

बुला अपने बाप भाई कौन है उन्हें... मुझे बाथरूम जाना है

वो खिड़की खोलकर खड़ी हो गई और वहीं से उसने आवाज़ दी

ओ रबीन्दर भाया... आणे फेरने जाणा है...... ठाणे बुलावें हैं... एक दो बार आवाज़ देने के बाद दरवाजा खुल गया। जब तक मै उस आदमी के साथ जो मेरे साथ पहरेदार बनकर गया था फ्रेश होकर वापस आया लड़की के दौनों चाचा पिता और भाई वहां खाट पर बैठे थे

“थारा ब्याह हो चूका है अब थे दोनों पति पत्नी हो... फोटो भी काड ली हैं हमने। उनमें से एक ने कहा उसकी आवाज़ रोबीली और धमकी भरी थी। आज हम मुरिया की बिदा करा रहे हैं... और ये ले अपना मोबाईल और या नया मोबाईल भी दे रहे हैं थाने... .इसमें सिम डाल लियो उन लोगों ने कहा पर मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया और मुहं फेरे दूसरी तरफ देखता रहा।

“ले या थारे धणी को दे दियो”... आदमी ने जो शायद उसका बाप था लड़की को मोबाईल देते हुए कहा। लड़की ने सहमते हुए मोबाईल ले लिया।

सब कुछ इतना अजीब और जल्दी जल्दी घट रहा था कि समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है|वो लोग हमें जीप में बिठाकर बस अड्डे तक ले गए। जाने के पहले कुछ औरतें जीप तक आईं लड़की को विदा करने। घूँघट में से उनकी सिसकियों की आवाजें सुनाई दे रही थीं वो बहुत धीरे धीरे कुछ बोल रही थीं लड़की के कान में

बस बस हो गया... चाल भाई बैठ मुरिया फुर्ती कर... थे भी बैठो कुंवर सा... उन्होंने मुझसे कहा और लड़की की बगल में बैठा दिया। लड़की सिकुड़ी गठरी बनी बैठी थी। वही तीन लोग जो मुझे बस में से उतारकर लाये थे उसी जीप में बैठाकर बस अड्डे तक ले गए बंदूकें अब भी उनके कंधे पर लटकी हुई थीं। बस अड्डे पर बस खड़ी हुई थी| ड्राइवर और कंडक्टर ने उनमे से एक के पैर छुए।

जियादे रात हो जावे तो इनाने ठेठ तक पोंन्चा दियो रे...

हुकुम हजूर कहकर बस वाले ने बड़े आदर से हमें आगे की सीट पर बैठा दिया

“चाल चाल अब सवारियां का बाट मना तक “

उस अधेड़ लंबे चौड़े व बड़ी मूंछों वाले आदमी ने मरियल बस ड्राइवर को आदेश दिया, जिसकी पगड़ी से लेकर जूतियों तक रोब झर झर झड रहा था और बस घरघराती हुई चल दी।

लड़की का नाम मुरिया था।

अब मै और मुरिया बस में अगल बगल बैठे थे। मैंने नफरत से उसकी ओर से मुहं फेर रखा था और वो एक गाय की तरह बैठी थी चुपचाप। तभी फोन की घंटी बजी स्वाति का फोन था

“सोरी डार्लिंग मै बिजी थी तुम्हारा फोन पिक नहीं कर पाई “|मैंने कहा

वो बहुत खुश दिख रही थी “...सुनो पापा राजी हो गए हैं हमारी शादी करने को। आई हेव कन्वेंस्ड हिम... ही वांट्स टू मीट यू... . कब कह दूँ?तुम कब लौटोगे पलसाना से

मैंने जान बूझकर मोबाईल का स्पीकर ऑन कर दिया था ताकि मुरिया सब सुन ले।

लौट ही रहा हूँ डार्लिंग बस में हूँ

गुड... .कब मिलोगे पापा से... वो बेहद उत्साहित थी

परसों शाम को, फिर हम दौनों इस खुशी को सेलीब्रेट करेंगे फिल्म देखने चलेंगे मैंने कहा और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये फोन बंद कर दिया। लड़की बुत बनी बैठी थी और खिड़की के बाहर देख रही थी।

इसके घरवालों ने अपने मन की पूरी कर ली और अम्मा बाबूजी अपने भय से बरी हो गए... अब संभालो अपनी बहू को... .तरसा दूंगा इसे...... ना अक्ल ठिकाने लगा दी तो देख लेना... अब देखता हूँ इसके भाई बाप क्या करते हैं?क़ानून नामकी कोई चीज़ भी तो होती है.मै सोच रहा था... सोच तो वो भी कुछ रही होगी? शायद मन ही मन अपनी जीत का जश्न मना रही होगी... .मै और जल भुन गया

बस जब नवलगढ़ पहुँची तब शाम हो रही थी| घर में अम्मा बाबूजी परेशान थे ना फोन लग रहा था और कल यहाँ पहुंचना था तो पहुंचा भी नहीं। गया अकेला था ऑफिस के काम से और आया हूँ एक लड़की के साथ जो उनकी बहू है?उन्हें सब कुछ एक पहेली सा लग रहा था। वो आश्चर्य से कभी मुझे और कभी मुरिया को देख रहे थे। मुरिया ने घूँघट ओढ़ रखा था और अम्मा बाबूजी के पैर पड़े। बाबूजी को माजरा कुछ कुछ समझ में आ रहा था| हलाकि वो चकित और थोडा डरे हुए थे लेकिन बाद में एक निश्चिन्तता का भाव उनके चेहरे पर आ गया जो काफी दिनों से गायब था। मुझे आंतरिक खुशी हुई उन्हें संतृप्त देखकर पर मै कल की घटना से बहुत चिढा हुआ और नाराज़ था।

“अम्मा इसकी शक्ल ना दिखे मुझे कह दिया है मैंने तुमसे... और ये भी जान ले कि मै उसके दबंग बाहुबली घरवालों से डरा कतई नहीं हूँ” मैंने इतने ज़ोर से कहा कि लड़की सुन ले

कल वकील से मिलूंगा मैंने बाउजी से कहा। और अपने कमरे में चला गया

मेरे कमरे की खिड़की आंगन में खुलती थी जहाँ धूप में अम्मा ज़मीन पर दरी बिछाकर गेहूं बीनने या बुनाई सिलाई जैसे काम करके और बाबूजी खटिया पर बैठे अखबार या कोई किताब वगेरह पढकर अपनी दोपहर काटा करते थे इन जाड़ों के दिनों में। मै जब खिड़की खोल लेता तो धूप का एक टुकड़ा खिड़की में से होता हुआ मेरे कमरे तक भी सरक आता और ज्यादा जाड़े में कभी कभी मै उस धूप के टुकड़े के भीतर अपनी कुर्सी डालकर कुछ पढता लिखता या शेव बनाने जैसे काम करता रहता।

उस लड़की यानी मुरिया को इस घर में आये तीसरा दिन था। आंगन भर में सुबह की धूप फैलने लगी थी। अम्मा एक पीढे पर बैठी थीं, बाबूजी रोज की तरह खटिया पर और लड़की चटाई पर बैठी मटर छील रही थी उसका माथा हमेशा की तरह पल्लू से ढंका हुआ था। ये पारिवारिक द्रश्य मेरी ज़िंदगी के कुछ बहुत असोचे विशिष्ट और मौलिक द्रश्यों में से एक था। अम्मा बाउजी उस लड़की से बतिया रहे थे

“के नाम है री छोरी थारा?अम्मा पूछ रही थीं......

“मोरनी नाम तो इस्कूल का छे जी, पर घर में तो मुरिया कहे हैं...लड़की ने ऑंखें नीचे किये ही ज़वाब दिया

स्कूल जाती थी गांव में? बाउजी ने अगला प्रश्न किया

नहीं .दसवीं के बाद स्कूल कोनी है जी गांव में... शहर में जाना पड़े है । बापू जी ने आठवीं के बाद स्कूल छुडवा दिया था नवी पराइवेट किया है जी... उसने मटर छीलते हुए कहा... .|उसकी आवाज़ धीमी थी

मैंने चिढकर खिड़की बंद कर दी... . .आवाजें आनी भी बंद हो गईं। या शायद वो लोग चुप हो गए थे।

मुरिया अम्मा के पास ही सोती थी और जब मै सुबह सोकर उठता तो वो दौड दौडकर काम कर रही होती। उस दिन अम्मा मुझे खाना मेरे कमरे में ही देने आईं। ठेठ देसी खाना स्वादिष्ट और शऊर से परोसा गया। अम्मा जब मेरे खाना खा चुकने के बाद जूठी थाली मेरे कमरे में लेने आईं,तो उन्होने बताया कि रात में सोने से पहले उसने पैर दाबे। अम्मा ने मना किया तो बोली “माँ बोल्ली से सास ससुरा की सेवा करिये कोई सिकायत कोन्नी मिले...... . |ये कहकर अम्मा मुहं पर पल्लू रख हँसने लगीं। मैंने अम्मा से कहा ‘उसकी बात मुझसे नहीं की जायेगी इस घर में समझीं तुम?अम्मा घबरा गईं और अपने काम में लग गईं। लेकिन मैंने ये महसूस किया कि अम्मा बाबूजी को मैंने ना जाने कितने वर्षों बाद इतना खुश और संतुष्ट देखा था। “इसका मतलब अम्मा बाउजी भी इस षड्यंत्र में शामिल थे?मेरे दिमाग में अब एक नया कीड़ा पैदा हो गया था।

सिर मे थोड़ी भन्नाहट थी सो आज भी ऑफिस के सिवा कहीं आ जा नहीं पाया। मै शराब नहीं पीता पर उस दिन का नशा मेरे सिर में अभी तक बिंधा हुआ था। मुरिया को इस घर में आये पांच दिन हो चुके थे मैंने अभी इस घटना का ज़िक्र किसी से नहीं किया था ना अम्मा बाउजी ने। एक दो अच्छे वकीलों के पते ज़रूर लिए थे दोस्तों से मैंने। मेरी तमाम योजनाओं से मुरिया अनभिग्य थी, बस माथे तक घूँघट ओढ़े रहती और काम काज ऐसे तल्लीनता से करती रहती मानों वो यहाँ काम करने ही आई हो और बरसों से रह रही हो। अम्मा के पास सोने में उसे कोई आपत्ति नहीं थी। वो इतनी थक जाती काम से कि रात में अम्मा की बगल की खाट पर लेटते ही सो जाती और सुबह तडके ही सबके उठने से पहले काम में लग जाती। घर के उस बड़े और पक्के आंगन में पहले जहाँ बीही और नीम के झाड की सूखी पत्तियां आंगन भर में उडती रहतीं अनुपयोगी सामान और कूड़े के ढेर कोनो में टिके रहते, वो हिस्से अब बिलकुल साफ़ दिखाई देने लगे घर एक अलग सा चमकता हुआ दिखता। मुझे वो साफ़ सुथरा आंगन, चमकता हुआ घर जैसे मुहं चिढाते... मेरी हंसी उड़ाते। मै मौक़ा ढूँढता अपना रोष उंडेलने का ज़रा कहीं मुझे वो दिख जाती मै अम्मा पर चिल्लाता .

.”अम्मा कहा था ना तुमसे जब मै घर में आया करूँ इसकी सूरत नहीं दिखनी चाहिए मुझे?अम्मा सहम जातीं

“जा बींदणी..भीतर ने जा..”कहकर वो उदास हो अपना काम करने लगतीं। मुरिया खुद भी मुझसे बेहद डरी और दूर रहती थी मुझे देखते ही वो या तो कमरे या रसोई में घुस जाती या घूँघट को और पूरे चहरे तक खींच लेती।

अब मै घर में कम ही रहता जितना भी रहता ज्यादातर अपने कमरे में। अम्मा मुझे वहीं खाना दे जातीं मुरिया चंचल थी उस की आवाज़ घर भर में बिछी सी रहती। उसकी हंसी की खनक खिड़की से होते मेरे कमरे तक आती पीछे पीछे अम्मा बाउजी की हंसी भी गूंज जाती अक्सर। मै टी वी का वोल्यूम बढ़ा देता। हंसी आवाजें चुहल बातें सब ढँक जातीं। मै सोचता, आखिर कोई लड़की अनजान लोगों के बीच आकर और जिसका पति उससे इतनी नफरत करता हो कैसे इतनी खुश रह सकती है मुझे आश्चर्य होता। किस मिट्टी की बनी होती हैं ये गांव की लडकियां?

ना जाने क्यूँ अब मुझे अपना घर ही अपना नहीं लगता था। सीधे साधे अम्मा बाउजी उस लड़की के जादू में फंस रहे हैं मुझे लग रहा था। जिन लोगों ने उनके बेटे यानी मेरे साथ इतना बुरा बर्ताव किया सब कुछ जानते हुए भी अम्मा बाउजी उन आतंकियों की लड़की पर बलिहारी हुए जाते हैं,जबकि उन्हें कोर्ट कचहरी के मामले में मेरी मदद करनी चाहिए थी और मैंने फैसला कर लिया कि अब मै इस घर में नहीं रहूँगा। मेरे भीतर एक अजीब सी बदले की भावना आ गई थी ना सिर्फ लड़की और उसके घरवालों बल्कि अम्मा बाबूजी के प्रति भी। और मैंने किसी को बताये बिना ऑफिस के बगल में एक भाड़े के कमरे की बात पक्की कर ली। अगले हफ्ते तक मालिक मकान उसकी सफाई वगेरह करवा देगा... और मै उसमे शिफ्ट कर लूंगा।

वो छुट्टी का दिन था। कल वकील का अपोइंटमेंट भी था। मै अपने कमरे में पेपर्स तैयार कर रहा था। आज घर में शांति थी उसकी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। माँ और वो कहीं बाहर गए होंगे मै सोच रहा था, सोचना न चाहते हुए भी सोच रहा था। जिससे मै दुनियां में सबसे ज्यादा चिढ़ता था नफरत करता था जिसकी खिड़की से आती आवाजें मै बर्दाश्त नहीं कर पाता था और ज़ोर से खिड़की बंद कर देता था आज उसकी खामोशी मुझे बैचेन कर रही थी?क्या मुझे उस खिलखिलाहट और चबड चबड सुनने की आदत हो रही थी?मै कोफ़्त से भर गया

कुछ देर में उस चुप्पी का रहस्य अम्मा ने खोल ही दिया जब अम्मा मुझे खाना देने आईं कमरे में|

“आज देर कर दी अम्मा खाना लाने में?मैंने अम्मा के हाथ से थाली लेते हुए कहा

आज हमने ही बनाई है रसोई.. अम्मा ने कहा

क्यूँ वो तुम्हारी चेली कहाँ गई?मैंने व्यंग किया

उसे बुखार है कल से पडी है बेसुध... अम्मा बताते हुए उदास थीं।

जब वो मेरी जूठी थाली लेने आईं तो उन्होंने कहा “जाकर देख आ ना कमरे में कोई दवा अवा देना हो तो

ये सब चोचले मुझसे नहीं होते तुम्हारी बहू है तीमारदारी तुम करो...... मैं गुस्से में बौखला गया माँ चली गईं

फोन की घंटी बज रही थी स्वाति का फोन था

“अज्जू, कल शाम को आ जाना ज़रूर। देखो बहुत दिनों से टाल रहे हो...यू नो... पापा ने घर में कंस्ट्रेक्शन वर्क भी शुरू करा दिया है। हम दौनों के रूम में वो वूडन फ्लोर लगवा रहे हैं

लेकिन हम दौनों तो यहाँ रहेंगे ना मेरे घर?मैंने कहा

वो कुछ देर चुप रही फिर बोली

“आर यू आउट ऑफ योर माइंड?मै इकलौती बेटी हूँ अपने पेरेंट्स की मुझसे अलग रहना तो वो और मै सोच ही नहीं सकते... और शहर तो एक ही हैं ना आते जाते रहेंगे तुम्हारे यहाँ भी !खैर आ जाना ज़रूर... बाय... और फोन कट गया।

अम्मा फिर आईं

“.अज्जू, मुरिया बुखार से तप रही है रे कोई दवा पडी हो घर में तो दे दे

“तो तपने दो ना?ज्यादा से ज्यादा क्या होगा मर जायेगी?”मै चीखा

हमने ज़िंदगी का ठेका ले रखा है क्या उसका?मुझे फ़ालतू के कामों के लिए टाईम नहीं है। लो पैसे और ले जाओ दवाखाने... मैंने अपना बटुआ खोला लेकिन तब तक अम्मा जा चुकी थीं।

... .मै फिर अपने काम में लग गया। अम्मा चली गईं थीं। लेकिन अम्मा को बुरा लगेगा जानता हूँ कहेंगी कुछ नहीं। सोचा एक बार देख आता हूँ कम से कम अम्मा को तो राहत मिलेगी?

बाउजी बहुत उदास से बरामदे में बैठे थे। जब मै उसके कमरे में गया वो बुखार से लगभग अर्ध बेहोशी में थी। अम्मा उसके माथे पर पानी की पट्टियाँ रख रही थीं। मुरिया के होठों पर पपड़ी जमी हुई थी व कुछ बुदबुदा रही थी। मैंने गौर से देखा उसकी बंद आँखों के कोर पानी से भीगे हुए थे और बीच बीच में वो हिल्कियां ले रही थी उसके सिर पर पल्लू नहीं था पूरा चेहरा आज पहली बार देखा था मैंने... मासूमियत सयानी खूबसूरती से कहीं ज्यादा वफादार और सुन्दर होती है मैंने तभी जाना और ये भी कि सौंदर्य दुनिया की किसी भी नफरत से ज्यादा दयालु होता है।

मैंने क्रोसीन अलमारी में से निकाली अम्मा जो मेरे पीछे खड़ी देख रही थीं सब, दौडकर पानी का गिलास ले आईं

“मुरिया... मैंने उसके माथे पर हाथ रखा... उसका स्पर्श सपनों की तरह मुलायम था।

उसने धीरे से ऑंखें झपकीं बिलकुल बच्चों की तरह... और मेरे हाथ के ऊपर हाथ रख दिया|अपने हाथ पर उसके स्पर्श का गीलापन मै महसूस कर रहा था।

“ वापस गांव ना भेजना जी उस नरक में अब ना जाणा...थे दूसरा ब्याह कर लो चाहे... .थारी दासी बण के... आख़िरी के शब्द गले में रुंध गए थे। आंसुओं की पतली सी धार पलकों की हदों को पार कर कनपटी को भिगो रही थी... वो गिडगिडा रही थी... एक अजीब सा खौफ था उसकी आँखों में...|मै सोच रहा था कि ये लड़की वाकई डरी हुई है या आजकल की लड़कियों के सपने बदल गए हैं?

“ले दवा खा ले मैंने उसे सहारा देकर उठाया उसने बच्चों की तरह मेरे हाथ से गोली खाई और मेरी हथेली पर सिर रखकर लेट गई। मैंने अपना हाथ उसके सिर के नीचे से हटाना चाहा तो उसने मेरी कलाई पकड ली उसके हाथ का कंपन मै अपने दिल पर महसूस कर रहा था। उसकी ऑंखें बंद थीं और मेरी हथेली आंसुओं की गर्म बूंदों से भीग रही थी।...... .उसकी गुनगुनी साँसें मेरी देह में यात्राएं कर रही थीं

अम्मा किवाड़ बंद कर जा चुकी थीं