जलती हुई शिक्षा / कौशलेन्द्र प्रपन्न

Gadya Kosh से
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आप मरने लगते हैं धीरे धीरे / अगर आप पढ़ते नहीं हैं कोई किताब-पाब्लो नेरूदा की पंक्ति में वह संदेश है जिसे समाज सुन नहीं रहा है या सुनना नहीं चाहता। जिस समाज में किताब और किताब घरों को आग के हवाले किया जाता हो उस समाज की वैचारिक विकास का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। वह समाज और देश कितना दुर्भागा माना जाना चाहिए जहां शिक्षण संस्थान जल रही हों। बल्कि कहा जाए जलाई जा रही हांे। यह जलन दो स्तरों पर है। पहला, भौतिक तौर पर शिक्षण्रा संस्थान स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों को आग लगाई जा रही है। दूसरा, शिक्षण संस्थानों को वैचारिक स्तर पर आग के अवाले किया जा रहा है। पहली आग बुनियादी ढांचे को जला कर राख करती है तो दूसरी आग वैचारिक तौर पर कंगाल और राख के ढेर मंे तब्दील कर देती है। पिछले कुछ महीनों से जम्मू कश्मीर में पहली वाली आग में तमाम स्कूल, कॉलेज जल रहे हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। बड़े कॉलेज से बाहर हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपने घरों से बाहर निकल कर जम्मू में स्कूलों में दाखिला लेकर पढ़ रहे हैं। वहीं कॉलेज में ताले लगे हैं। हाल की घटना और भी कष्ट और चिंता बढ़ाने वाली है कि स्कूल और शिक्षक शिक्षण संस्थान के प्रधानाचार्य के घर में आग लगा दी गई. यदि किसी भी समाज को दुखद अतीत बनाना है तो उस समाज की शैक्षिक स्वास्थ्य को खराब कर दिया जाए.

शिक्षा हमें और हमारे समाज को एक आकार देने का काम करती रही है। लेकिन इस आकार को तय करने वाले और कार्यान्वित करने वाले शिक्षा जैसे मुकम्मल औजार का इस्तमाल समाज में आग लगाने में भी करने में भी करते रहे हैं यह इतिहास में दर्ज है। इससे किसी को कोई एतराज नहीं होनी चाहिए कि नागर समाज ने ही अपने हित साधन के लिए शिक्षा का ग़लत प्रयोग भी किया है। यह अलग विमर्श का मुद्दा है कि शिक्षा को कैसे अपने वैचारिक विस्तार के लिए इस्तमाल किया गया है। कभी पाठ्यक्रमों, पाठ्यपुस्तकों के मार्फत हमने इसे अंजाम दिया तो कभी शिक्षण संस्थानों पर वैचारिक घेरेबंदी करके किया। लेकिन यह काम बड़ी ही साफगोई से की जाती रही है। यदि शिक्षा मंे लगाई गई आग के इतिहास में झांकें तो पाएंगे कि सबसे ज़्यादा चिंगारी राजनीतिज्ञों और राजनीतिक दलों ने ही आग लगाई है। उन आगों के पीछे मकसद तात्कालिक लक्ष्य को हासिल करना था। सत्ता में आने की चाह और ललसा ने शिक्षण संस्थानों और शिक्षा की मूल प्रकृति को थोड़ा गंदला ही किया।

ख़बर है कि विभिन्न राज्यों में समय-समय पर शिक्षा और शिक्षण संस्थानों में आग तो लगाइ ही गई है साथ ही कैसे बच्चों के बस्ते में पूर्वग्रह भरे जाएं इस पर भी सुनियोजित तरीके से काम किए गए हैं। जो आग-बीज पांच दस साल पहले बोए गए थे वे अब बच्चों में वृक्ष का रूप ले चुके हैं। कक्षाओं में बच्चे संप्रदाय, धर्म, जाति एवं भाषा आधारित दोस्ती करने के रास्ते पर चल पड़े हैं। जिस शिद्दत से बच्चों के मन में आग रोपे जा रहे हैं उसका अंजाम आने वाले सालों में दिखाई देगा इसके लिए हम नागर समाज को तैयार रहना चाहिए.

जम्मू कश्मीर में जिस तरह से स्कूलों और कॉलेजों को निशाना बनाया जा रहा है वह भयावह है। इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि हमारे बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा कट गए हैं। स्कूलों-कॉलेजों में ताला लगने का अर्थ है हम अपने बच्चों और युवाओं के हाथों में खेल, मनोरंजन और व्यवस्तता का खतरनाक विकल्प दे रहे हैं। जो स्कूल व कॉलेज नहीं जा पा रहे हैं वे कहाँ व्यस्त हैं यह जानना भी बेहद ज़रूरी है। क्योंकि उन्हें शिक्षा से विलगा कर हम एक बड़ी चुनौती को बुला रहे हैं। स्थानीय सरकार की ओर से भी पुख़्ता इंतजाम की कमी और कार्यवाई की कमी ही मानी जाएगी कि राज्य में तमाम सरकारी स्कूलों को आग का निशाना बनाया जा रहा है। कोई भी राज्य, समाज व देश तालीम को नजरअंदाज कर के चलती है तो वह विकास पूर्ण नहीं कह सकते। बल्कि राज्य के भौतिक विकास के चेहरे पर एक काला धब्बा ही है जहां की शिक्षण संस्थाएं स्वतंत्र रूप से नहीं चल पा रही हैं।

अगर नजर दौड़ाएं तो पिछले तीन सालों में विभिन्न राज्यों में शिक्षण और अकादमिक संस्थानों पर एक किस्म का कब्जे का दौर रहा है। वह कब्जा भौतिक से कहीं ज़्यादा खतरनाक वैचारिक स्तर पर है। विभिन्न सस्थानों पर एक ख़ास वैचारिक प्रतिबद्धता वाले मुखिया को बैठाया गया है ताकि शैक्षिक संस्थानों को इस्तमाल अपने हित साधन मंे किया जा सके. कभी भाषायी स्तर पर तो कहीं पाठ्यक्रम के स्तर पर यह खेल बतौर जारी है। जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज और राज्य के लिए हितकारी नहीं माना जा सकता। हमें इन शैक्षिक संस्थानों को आग से बचाना होगा हमें बच्चों को पूर्वग्रह के पाठों से निजात दिलानी होगी। यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि यदि हमें वैज्ञानिक सोच और तकनीकतौर पर विकसित समाज का निर्माण करना है तो पूर्वग्रहों और आगजनी से शिक्षण संस्थानों, स्कूल को सुरक्षा प्रदान करना होगा।