जलते बुझते लोग / अमृता प्रीतम / पृष्ठ 1

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दो शब्द

उठती जवानी की रंग़ों में जाने क्या-क्या सुलगने लगता है, और जाने खुदा, एक तकदीर ज़ेहन में किस तरह खेलने लगती है-इसी का अनुमान कुछ उत्तर पाया है-इन तीनों लघु उपन्यासों में- जलावतन-तन के थोड़े-से बरसों में, मन की अन्तर-सतह में उतर जाने की वह कहानी है, जो जलते बुझते अक्षरों में लिपटी हुई है-

जेबकतरे-यह एक उदास नस्ल की वह कहानी है जिसमें किरदारों के पैर जिन्दा हैं, पर पैरों के लिए रास्ते मर गए हैं- कच्ची सड़क-उठती जवानी में किस तरह एक कम्पन किसी के अहसास में उतर जाता है कि पैरों तले से विश्वास की ज़मीन खो जाती है-यही बहक गए बरसों के धागे इस कहानी में लिपटते भी हैं, मन-बदन को सालते भी हैं, और हाथ की पकड़ में आते भी हैं-

ये तीनों लघु उपन्यास उन किरदारों को लिए हुए हैं, जो उठती जवानी में चिन्तन की यात्रा पर चल दिए हैं और इन तीनों का इकट्ठा प्रकाशन-समय काल का एक अध्ययन होगा। -अमृता प्रीतम