ज़ख्म / भाग- 5 / जितेंद्र विसारिया

Gadya Kosh से
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गढ़ी जैसे-जैसे समीप आ रही थी कुँवर की सारी धीर गंभीरता पीछे छूट चली थी। रात्रि के गहन होते अँधेरे में गढ़ी की बुर्ज से छूटते तोप के गोले, तलवार की टंकार, सिरोहियो की खटखटाहट, बंदूक, कड़ाबीन, पथरकलाँ, कांता-बल्लम, बर्छी-भाले और नेजों की मार से उत्पन्न भयंकर चीख पुकार और स्त्रियों के आर्तनाद की प्रतिध्वनि ने, शांति और प्रेम के दर्शन के बीच घृणा ओर प्रतिशोध का वीभत्स दृश्यभाव ला खड़ा किया था। घोड़ा अबाध गति से हींस-करील मकोय बैर-कठबेर, काँस, दाब और सरपत आदि के झाड़ झाखड़ पार करता, गढ़ी के समीप पूर्व में बने चंडी मंदिर के पास से गुजरा; तो कुँवर को स्मरण हो आया कि मंदिर के गर्भग्रह के परिक्रमा कक्ष में बहुत सारी बारूद और दो तोड़दार बंदूक उसका सौतेला बागी मामा जबरसिंह उन्हें सुपुर्द करने के लिए कल रख गया है। यह खबर उसे आज ही डाँग में जाते समय बोधन पुजारी ने दी थी।

कुँवर ने तत्काल घोड़े की वाग थामी, तो बौखलाया घोड़ा हिनहिनाता हुआ वहीं खड़ा हो गया था। कुँवर ने अपने उतरने से पहले रामबख्स को उतारा - 'रामबख्स गढ़ी में भीतर पहुँचवे कौं कोऊ और गैल नहीं है...? हमें गढ़ी के मुख्य द्वार से ही मुगलन से मोर्चा लेने पड़ेगो... तुम देवी की मूर्ति के पीछे को पथरा हटाइके वामें धरी बंदूक और बारूद की पुटरिया उठाइ ले आओ? और हाँ, तुम अपने लिए मंदिर में बलि के लिए धरो देवी को खाड़ों हू उठाइ ले अइयो...। हम जाइ रहे हैं...?'

- 'नहींऽऽऽ कुँवर जूऽ, तुम अकेले नहीं जेहो हमहूँ चल रहे हैं...?' कहते हुए वह आगे की ओर दौड़ता हुआ एकदम ठिठक सा गया था, जिसे कुँवर ने पलभर में ही ताड़ लिया कि रामबख्स ने मंदिर का गर्भगृह तो क्या उसकी कभी देहरी तक नहीं देखी है, वह अँधेरे में बंदूक और बारूद कहाँ ढूँढ़ेगा...। कुँवर जोरावर जैसे ही ततारोष में घोड़े से कूदे तो पाँव रकाब में उलझने से ओंधे मुँह धरती पर गिरते-गिरते बचे, फिर भी लइयाँ-पइयाँ रामबख्स को लेकर मंदिर के सभा मंडप से होते हुए गर्भगृह की ओर भागे।

सभा मंडप से मंडप में पहुँचते-पहुँचते मंदिर के भीतर का एक विचित्र दृश्य देखकर वे दंग रह गए। मंदिर का मुख्य पुजारी बोधन भट्टाचार्य देवी के सम्मुख आरती का थाल लिए मूर्ति से गढ़ी की रक्षा की गुहार बड़े ही आर्त स्वर में लगा रहा था - 'है भवानी जू! हमारी रच्छा करौ; रच्छा करौ माते; तेरा भरोसा ही मेरा बल है, वे मुगल बड़े बलंकारी है - मा-ताऽ!'

तुलनीय :- भवानी तेरो भरोसो बल मेरो। बारे मुगल के हाथी घोड़ा, तेरे सिंह अकेलो भवानी तेरो भरोसो बल मेरो...। बारे मुगल के तोप-रहकुला तो पे खड़ग अकेलो भवानी तेरो भरोसो बल मेरो...। - चंबल में प्रचलित एक मध्यकालीन देवी - भेंट

...वर्ण विशेष के लिए ज्ञान-ध्यान, देव-धर्म और पूजा पाठ अधिकृत करने वाले धर्मध्वजों का वह वंशज, एकाएक कुँवर जोरावर और रामबख्स की पदचाप सुनकर नेवैद्यमय आरती का थाल मूर्ति के आगे फेंककर; किन्हीं मूर्तिभंजक मुगल सैनिकों का अनुमान करके गर्भगृह के अँधेरे कक्ष में जा छुपा था। ...कुँवर भी रामबख्स की बाँह पकड़े सीधे परिक्रमा पथ से होते मूर्ति के पीछे चले गए थे। अपनी रखी हुई वस्तु के नियत स्थान पर पहुँचते ही कुँवर के पाँव की ठोकर, अँधेरे में वहीं नीचे सिमटे-सिकुड़े बैठे पुजारी में लगी, तो भयभीत पुजारी बड़े ही आर्त और करुण स्वर में कुँवर के चरण पकड़ कर उनसे दया की भीख माँगने लगा था।

कुँवर ने क्रोध घृणा और द्वेष मिश्रित भाव से पुजारी को कंधे से पकड़कर उठाना चाहा, तो उसके गले मे पड़ी तुलसी और रूद्राक्ष की मालाएँ हाथ में आने से टूटकर वहीं बिखर गई थीं। जैसे-तैसे कुँवर पुजारी को खींचकर गर्भगृह में देवी के सामने टिमटिमाती अखंड ज्योति के प्रकाश में लाए, तो कुँवर को देखकर पुजारी का चेहरा फक पड़ गया। बोधन के कुछ कहने से पूर्व ही कुँवर जोरावर ने उसकी चेतना पर जैसे घन चला दिया हो...।'

- 'पुजारी जूऽऽऽ! वरन-विशेष के लिए सींखचों और जलियों की स्वर्णश्रंखला में वद्ध जे देवी-देवता; भोग-रूप में दीन-दुखियों का श्रमफल खा-खाकर अब अचल हो गए हैं, इनसे कैसे हू चमत्कार की आश लगाइवो व्यर्थ है? ...एक जाति सुरक्षा का बोझ कहाँ तक ढोए। चलोऽऽ, हम मिलकर इन आक्रमणकारियन से गढ़ी की रक्षा करें...।'

तब तक तक कुँवर के बताए स्थान का अंदाज लगाकर रामबख्स, बारूद और बंदूक उठा लाया था। उसने पुजारी के उन्नत-ललाट पर छलक आए पसीने और काँपते हाथों की अनदेखी करते हुए; एक हाथ आगे बढ़ाकर अपनी बर्छी बोधन के हाथों में गहा दी थी और स्वयं उसने बलि के निमित्त रखा देवी का खड़ग, एक बंदूक, आधी बारूद और कुछ सीसा की गोलियाँ अपनी कमर से बाँधकर पुजारी को साथ लिए, कुँवर के साथ तीर की भाँति मंदिर से निकलकर बाहर आ गया था। मंदिर के द्वार पर कुँवर का घोड़ा देखकर कुछ ठिठके ज्वाली, हुसैनी इत्यादि भी उसके संग मिलकर हल्ला बोलते गढ़ी के ऊपर जा चढ़े थे। अपने देश-धर्म की लाज बचाने?