ज़माना खराब है / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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पुत्तन बाबू सुबह-सुबह सब्जी का थैला लेकर सब्जीमंडी जा पहुंचे। आज फिर सीधे उसी सब्जी की दुकान पर पहुंचे जहाँ से नियमित रूप से लेते थे। आलू की ढेरी से आलू उठाने के लिए जब सब्जी वाली कूंजडिन अपने बड़े गले वाले कुर्ते का ख्याल किये बिना आगे की तरफ झुकी तो पुत्तन बाबू का मंतव्य पूर्ण हो गया। उस गरीब के उभारों को गहराई तक देख कर जीवन की सांझ में भी उनकी इन्द्रियों को अज़ब तृप्ति महसूस हुई। लगा कि दिन सफल हो गया।

सब्जी लेकर घर वापस आये तो उनकी बेटी कहीं बाहर जाने के लिए स्कूटी निकाल रही थी।

जिम्मेवार पिता की तरह पुत्तन बाबू नसीहत देने से नहीं चूके- 'बेटी सर्दी का मौसम है, शाम को अँधेरा जल्दी हो जाता है। समय से घर आ जाना। आजकल ज़माना बहुत ख़राब है।'