ज़रुरत अपनी-अपनी / शोभना 'श्याम'

Gadya Kosh से
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वे पांचों पार्क में खेल रहे थे जब वह बारह तेरह वर्षीय लड़का कुछ मोर पंख लेकर वहाँ पहुँचा। उसे देखते ही पांचों उसकी और भागे।

"भैया, ये पंख कहाँ से लाये, कित्ते अच्छे है न?"

"भैया! एक मुझे दे दो मैं अपने रूम में सजाऊँगी।"

"भैया एक मुझे, पता है मुझे क्राफ्ट के असाइनमेंट में मोर बनाना है, मोर के पंख बनाने की जगह इसे चिपका दूँगी, कित्ता अच्छा लगेगा न।"

" अनिल भैया, मुझे स्कूल में कृष्ण बनना है, एक मुझे दोगे?

"भैया जी! एक पंख मुझे दे दोगे?"

"क्यों? तुझे क्यों चाहिए?"-चारों ने एक साथ सड़क पार की झुग्गी से आये उस मैले कपड़ों वाले बच्चे से पूछा।

"अपनी खोली में रखूँगा, अम्मा कहती है मोरपंखी से छिपकली नी आती।"