जानवर आदमी से ज्यादा वफ़ादार है / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जानवर आदमी से ज्यादा वफ़ादार है
प्रकाशन तिथि : 15 जनवरी 2021

उत्तर प्रदेश के प्रताप गढ़ में गंगा के तट पर एक डॉल्फिन मछली जाल में फंसाकर किनारे लाई गई। उस डॉल्फिन पर लाठियां बरसाई गईं, पत्थर मारे गए। यह हिंसा करने वाले सभी युवा 20 वर्ष की वय के थे। अधमरी डॉल्फिन को गंगा में धकेल दिया गया जहां वह अपने जख्मों से अधिक मनुष्य की क्रूरता के कारण परेशान होकर मर गई। कई शहरों में युवा, कुत्तों को मारते हैं।

पशुओं पर अत्याचार करने वाले सभी युवाओं के चेहरे पर खुशी की चमक होती है। प्रतीश नंदी ने इन घटनाओं का विवरण दिया है। हिंसा करने वालों के चेहरे पर खुशी की चमक अत्यंत त्रासद है और मानवीय व्यवहार में आए इस वहशीपन ने चिंता उत्पन्न की है। इसी तरह 5 महीने की कन्या से दुष्कर्म कितनी वितृष्णा जगाता है। हम सभ्य होते-होते कितने वहशी हो गए हैं। गौर करें कि मरे हुए पशु की चमड़ी से वाद्य यंत्र बनते हैं मानव चमड़ी, दमड़ी के भाव भी नहीं बिकती।

आमिर खान अभिनीत ‘तारे जमीं पर’ में एक संवाद का आशय है कि सोलोमन द्वीप पर किसी वृक्ष को काटना हो तो वहां के आदिवासी उस वृक्ष को अपशब्द कहते हैं। प्रतिदिन वृक्ष को गालियां दी जाती है कोसा जाता है। कुछ ही दिनों में वृक्ष मानवीय व्यवहार पर लज्जित होते हुए गिर पड़ता है।

एक भारतीय वैज्ञानिक ने कहा था कि मनुष्य चलते-फिरते वृक्ष की तरह होता है और वृक्ष स्थिर खड़े मनुष्य की तरह होता है। जावेद अख्तर ने इस आशय की बात कही कि चलती हुई रेल गाड़ी में बैठा मुसाफिर यह देखता है कि वृक्ष भाग रहे हैं और वह स्वयं स्थिर बैठा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी तरह समय स्थिर है और मनुष्य भाग रहा है। फिल्म ‘हरजाई’ के लिए निदा फाजली के गीत की पंक्ति है। ‘यहां हर शै मुसाफिर है और सफर में जिंदगानी है।’

एक अमेरिकन फिल्म में एक युवा महिला और युवा पुरुष डाके डालते हैं, हत्याएं करते हैं। लूटे हुए धन को कहीं भी फेंक देते हैं। वे धन के लिए अपराध नहीं करते वरन अपने जीवन के सन्नाटे में उत्तेजना प्राप्त करने के लिए अपराध करते हैं। अमेरिकन फिल्म का चरबा ‘बंटी और बबली’ के नाम से भारत में बनाया गया था। कंगना रनोट अभिनीत फिल्म ‘सिमरन’ भी इसी तरह के पात्र को लेकर बनाई गई थी। यह फिल्म असफल रही थी। डॉल्फिन अहिंसक और दयावान मछली है। शार्क मछली हिंसक है और इसकी हिंसा से प्रेरित फिल्म ‘जॉज़’ 1975 में बनी है। अधिकांश पशु-पक्षी हिंसा नहीं करते। शेर भी जब मनुष्य का नमक चख लेता है तभी आदमख़ोर हो जाता है। ब्रिटेन की एक रिकॉर्डिंग कंपनी ने पशुओं की आवाज़ों को रिकॉर्ड में वर्षों परिश्रम किया।

इनकी जांच करके उन ध्वनियों को अलग किया गया जो पशु शारीरिक अंतरंगता पाने के लिए निकालता है। उन्हें मेटिंग ध्वनि कहते हैं। एक बार आदमख़ोर शेर ने हाहाकार मचा दिया। कंपनी के मेटिंग साउंड का इस्तेमाल किया गया तो वह शेर अपनी मांद से बाहर आया। उसका शिकार किया गया। प्रेम में मजनू इसी तरह मारा जाता है।

क्या यह महज इत्तेफ़ाक है कि गंगा में बहती डॉल्फिन मारी गई। दुष्कर्म और अपराध निरंतर बढ़ रहे हैं। अपराधियों को गिरफ्तार होने के पहले जमानत मिल जाती है। कईयों की तो एफ.आई.आर भी दर्ज नहीं होती। अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म ‘एन.एच.10’ में घायल पात्र गांव के हर दरवाज़े पर दस्तक देता है। गांव वाले टीवी पर नाटक देखने में मगन हैं। इसमें दीप्ति नवल अभिनीत पात्र नायिका को शरण देती है। दरअसल इसी मदद के बहाने दीप्ति उसे कैद करती है। वह अपराधियों की मां है। रोमांचक क्लाइमैक्स में अनुष्का शर्मा सभी अपराधियों को दंडित करती है। अपराध गणना में देश का एक प्रदेश शिखर पर पहुंच गया है। बहरहाल नीरज के ‘जोकर’ के लिखे गीत की पंक्ति है, ‘जानवर आदमी से ज्यादा वफ़ादार है, आदमी माल जिसका खाता है, प्यार जिससे पाता है उसी के सीने में खंजर मार देता है।