जाने वालों ज़रा मुड़ के देखो इधर / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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मैं जहाँ रहती हूँ वहाँ से इक लम्बी सड़क जाती है| मेरे कमरे की खिड़की उस सड़क पर ही खुलती है| सड़क के दोनों और बहुत खूबसूरत मकान बने है| उन मकानों की मालकिने भी खूबसूरत हैं| जो अपने साफ-सुथरे घरों की गंदगी उस सड़क पर शान से फेंक देती हैं| शाम को एक सफाई वाला आता है और सारी गंदगी बड़ी तन्मयता से साफ करता है! इसमें नया कुछ भी नहीं है|

उस सफाई वाले को मैं बहुत सालों से जानती हूँ! अपने पैरों से लाचार वो व्यक्ति सभी की नफरत का पात्र है, लोग उसे अपशब्द कहते हैं! उसकी लाचारी पर हँसते हैं, बच्चे उसे परेशान करते हैं, लेकिन कोई उससे बात नहीं करता| वो अक्सर मेरी खिड़की के पास आकर अपनी बड़ी सी झाड़ू टिका कर आवाज देता है- दीदी पानी मिलेगा? मैं अपने सारे काम छोड़ कर उसके पास जा खड़ी होती हूँ और फिर हम घंटों बातें करते हैं! उस व्यक्ति के पास कोई डिग्री नहीं पर ज्ञान बहुत है, दुनिया की समझ है उसे, उमर में वो मुझसे बड़े है लेकिन मुझे दीदी कहते है| हम बहुत देर तक बातें करते है धर्म पर, राजनीति पर जीवन पर और जोर-जोर से हँसते भी हैं | उस समय सभी आसपास की महिलाएँ मुझे घूर-घूर के देखती हैं और पुरुष मुझे संदेह की नज़रों से| मुझे देखने वाले लोग कब आखिरी बार हँसे होंगे खुद उन्हें याद नहीं ।

सब कहते है की वो नीच जाति का व्यक्ति (वो लोग उसे इक गाली से बुलाते है), गन्दा आदमी , जो गंवार है लंगड़ा है! उससे तुम क्या बातें करती हो? मैंने कहा मुझे उस गंदे आदमी की आखों में उजली चमक दिखती है! उसके बूढ़े चहरे पर मेरे लिए इक पवित्र मुस्कान आती है| वो अनमोल है उसका ह्रदय इतना विशाल है जिसके सामने आपके हवेलीनुमा मकान छोटे पड़ जाए|

,क्या देह से अधूरे इन्सान , इन्सान नहीं होते? कोई व्यक्ति क्या सिर्फ इसलिए नफरत का पात्र बन जाए क्योंकि वह विकलांग है या हमारे जैसा नहीं है| वो ऐसा काम करे जो हम नहीं कर सकते क्यों? क्या देह से अधूरे लोगों का अपना स्वाभिमान नहीं होता? उनके सपने नहीं होते?

उनमें कुशलता नहीं होती? उनमें प्रेम नहीं होता?

देह से अधूरे है तो क्या आत्मा तो पूरी है न, मुस्कुराहटों में मिलावट तो नहीं है ना? ऐसे में यह सवाल अक्सर मन में उठता है कि विकलांग कौन? जिसकी देह अधूरी है वो या जिसे ईश्वर ने देह तो सुन्दर दे दी लेकिन मन नहीं दिया ह्रदय में किसी के लिए प्रेम, भाव और संवेदना नहीं दी| जिनके पास किसी को देने के लिए मुस्कान ना हो वो विकलांग है|

मुझे उस बूढ़े झाड़ू वाले से मिलकर अपने होने का बोध होता है| जो किसी दूसरे को अपने स्नेह से आत्मीयता से सम्पूर्ण कर दे वो खुद अधूरा कैसे हुआ ? अधूरे है तो वो लोग जो इन्हें इन्सान भी नहीं समझते! ऐसे अधूरे लोगों को ना परिवार में स्नेह मिलता है ना समाज में सम्मान|

अधूरे है वो लोग जिनकी सोच छोटी रह गयी| देह को सुन्दर बनाने में जीवन बिता दिया ! लेकिन अपनी मानसिक विकलांगता से कभी आजाद नहीं हो सके|

अधूरा वो झाड़ू वाला नहीं, अधूरे हैं वो लोग जो खुद कभी अपने छोटेपन से अधूरेपन से ओछेपन बाहर नहीं निकल सके| जो बड़े -बड़े मकानों और बड़ी गाड़ियों में बैठ कर खुद को पूर्ण समझ लेते है और कभी कोई विकलांग व्यक्ति दिख जाये तो उस पर दया करके खुद को परोपकारी साबित करते हैं| या हिकारत भरी नजरोंसे देख कर मुंह फेर लेते हैं|

याद रखिये , इन्हें हमारी दया नहीं सिर्फ सच्चा प्यार चाहिए| सम्मान चाहिए हमारा साथ चाहिए| प्रेम देने या लेने के बीच देह का क्या काम? क्या भावनाएं देह की मोहताज है ? एक गीत की पंक्तियाँ है:

“जानेवालों जरा मुड़ के देखो मुझे,

एक इन्सान हूँ मैं तुम्हारी तरह,

जिसने सबको रचा अपने ही रुप से,

उसकी पहचान हूँ मैं तुम्हारी तरह|”