जापान की काव्य शैली के प्रवासी रचनाकार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Gadya Kosh से
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जापान से यात्रा पर निकला हाइकु छन्द विश्व भर में व्यापक होकर सब भाषाओं के साहित्य की धरोहर बन गया गया । हिन्दी में आया 5+7+5=17 वर्णों का यह छन्द बहुत लोकप्रिय हुआ। इसी क्रम में ताँका 5+7+5+7+7=31 , जिससे यह छन्द उद्भूत हुआ , उतनी लोकप्रियता अर्जित नहीं कर पाया । इसी तरह चोका (5+7+5+7+5 +7+5+7+7 ----) छन्द जिसके अन्त में 7 वर्ण एक और अतिरिक्त पंक्ति होती है । यह छन्द विषम पंक्तियों में होता है और कितना भी बड़ा (9 पंक्तियों से लेकर 21-31 आदि) का हो सकता है। जापान के ये छन्द जापानी में अक्षर(सिलेबिक टाइम) पर आधारित है तो अंग्रेज़ी मे बलाघात( स्ट्रेस टाइम)पर तथा हिन्दी में वर्ण ( स्वर या स्वरयुक्त व्यंजन) पर आधारित है । भारत से बाहर रहने वाले हिन्दी के कवियों ने भी इस छन्दों की श्रीवृद्धि में अपना योगदान किया । इनमें हाइकु की रचना सर्वाधिक हुई है।

अनुभूति के माध्यम से पूर्णिमा वर्मन ने विश्वभर के हाइकुकारों को जोड़ा,जिनमें प्रमुख हैं-डॉ भावना कुँअर ,शैल अग्रवाल , ,रजनी भार्गव, देवी नागरानी, लावण्याशाह ,मानोशी चटर्जी, मीनाक्षी धन्वन्तरि, प्रत्यक्षा,स्वाति भालोटिया ।, मीरा ठाकुर ,स्वरूपा राय को पूर्णिमा जी ने हाइकु -रचना के लिए प्रेरित किया । पूर्णिमा जी ने स्वयं भी अच्छे हाइकु लिखे हैं। कई वर्षों से अनुभूति में हाइकु छप रहे हैं ;लेकिन हाइकुकारों में डॉ भावना कुँअर ही सर्वाधिक सक्रिय रहीं । डॉ भावना कुँअर ने 2007 में प्रकाशित अपने हाइकु -संग्रह ‘तारों की चूनर’ से हाइकु को एक सार्थक स्वरूप के साथ जीवन और -जगत की विविधता से जोड़ा ।इसमें बाह्य प्रकृति के ही नहीं वरन् अन्त: प्रकृति के भी मार्मिक नवीन उद्भावना से युक्त चित्र हैं। यह संग्रह देशान्तर का ही नही वरन् भारत समेत किसी युवा रचनाकार का विश्वस्तरीय एवं उत्कृष्ट हाइकु -संग्रह सिद्ध हुआ है। डॉ सुधा गुप्ता की उत्कृष्ट हाइकु परम्परा का पोषण करते हुए इन्होंने युवा हाइकुकारों में प्रथम स्थान बनाया है।इन्हें केवल प्रवासी हाइकुकार कहकर सीमित दायरे में बाँधना अनुचित होगा ।देशान्तर के अन्य रचनाकारों में देवी नागरानी फिर भी कुछ सक्रिय रहती है। इनके अतिरिक्त किसी भी रचनाकार ने इस विधा में गतिशीलता नहीं दिखाई । बहुमुखी प्रतिभा की धनी मानोशी चटर्जी शायद समयाभाव के कारण इधर अधिक ध्यान नहीं दे सकी हैं। हाइकु का फुटकर लेखन सीमित विषयों तक और सीमित भावों तक ही सिमटकर रह गया था।

इसी दिशा में दूसरा एवं क्रान्तिकारी कार्य किया हिन्दी-पंजाबी की सशक्त कवयित्री डॉ हरदीप कौर सन्धु ने। इन्होंने 3 जुलाई 2010 से हिन्दी हाइकु ब्लॉग http://hindihaiku.wordpress.com/ की शुरुआत की । आज यह ब्लॉग 61 देशों के 34753 हाइकु प्रेमियों तक अपनी पहुँच बना चुका है । अब तक इसमें 161 वर्ग की 356 पोस्ट की जा चुकी हैं।डॉ हरदीप ने सौ से भी ज़्यादा लेखकों को इस ब्लॉग से जोड़ा है। आज तक इस ब्लॉग पर 3347 हाइकु प्रकाशित हो चुके हैं ;जो हाइकु की शक्ति और गुणवत्ता दोनों के प्रति आश्वस्त करते है। केवल ‘दीपावली’ के अवसर पर ही विषय सम्बन्धी 119 हाइकु प्रकाशित हुए हैं। वसन्त , होली , माँ , पिता , वर्षा ॠतु , शीत ॠतु ,गर्मी , रक्षा बन्धन,नववर्ष आदि अनेक विषयों पर केन्द्रित हाइकु भी बेजोड़ सिद्ध हुए हैं।भारत से बाहर रहने वाले रचनाकारों में डॉ हरदीप के अलावा डॉ भावना कुँअर,रचना श्रीवास्तव ,मंजु मिश्रा, देवी नागरानी, डॉ अमिता कौण्डल, डॉ अनीता कपूर ,रेखा राजवंशी, स्वाति भालोटिया ,सुप्रीत सन्धु , नीलू गुप्ता ,उर्मि चक्रवर्ती इस ब्लॉग से जुड़े हैं और निरन्तर सर्जनरत हैं । डॉ हरदीप सन्धु ने भारत के भी की कई विशिष्ट रचनाकारों को इस ब्लॉग से जोड़ा और कुछ को लेखन के लिए प्रेरित भी किया। डॉ सुधा गुप्ता , डॉ रमाकान्त श्रीवास्तव , डॉ . गोपाल बाबू शर्मा, डॉ सतीशराज पुष्करणा, उर्मिला अग्रवाल , डॉ रमा द्विवेदी , रेखा रोहतगी , ,राजकुमारी शर्मा ‘राज’ , डॉ मिथिलेश दीक्षित ,राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’ ,डॉ मिथिलेशकुमारी मिश्र, डॉ सरस्वती माथुर आदि कई वरिष्ठ रचनाकार जुड़े तो कुछ कवियों ने इस ब्लॉग की प्रेरणा से भावपूर्ण हाइकु का सर्जन भी किया जिनमें निर्मला कपिला,नवीन चतुर्वेदी , उमेश महादोषी, उमेश मोहन धवन , कमला निखुर्पा , डॉ जेन्नी शबनम ,प्रियंका गुप्ता,डॉ श्यामसुन्दर ‘दीप्ति’, सुदर्शन रत्नाकर ,ॠतु पल्लवी ,सुभाष नीरव , सुरेश यादव ,मुमताज टी एच खान ,डॉ नूतन गैरौला , सीमा स्मृति ,ॠता शेखर ‘मधु’ , ज्योत्स्ना शर्मा ,शशि पुरवार ,सुशीला शिवराण आदि प्रमुख हैं। इन कवियों में से कुछ के महत्त्वपूर्ण उदाहरण दिये जा रहे हैं-‘कचनार’ के आत्मिक स्पर्श की अनुभूति कराते भावना कुँअर के दो हाइकु-

-पहली धूप /कचनार का तन/गुदगुदाए। -सजे आँगन/ कचनार फूलों से / देहरी झूमे। देवी नागरानी -खलिहान का नूतन सौन्दर्य इस प्रकार चित्रित करती हैं-

-खलिहानों में /सूरज की किरनें /करे सिंगार । मानोशी चैटर्जी का अपना अलग अन्दाज़ है , जो बादलों का मानवीकरण करके इस लघु कविता को व्यापक अर्थ और सन्दर्भ प्रदान करती है , भाव और भाषा दोनों ही स्तरों पर ।

-रोए पर्वत /चूम कर मनाने /झुके बादल । ओढ़ कंबल /धरती आसमान /फूट के रोए । शैल अग्रवाल ने शब्दों के रंगों से ‘दूब की मुस्कान’ और ‘अलस धूप’ का चित्र कैनवास पर उतार दिया है या छोटी-सी शब्द-सीपी में सागर समेट दिया है ।

पिंघली बर्फ़ /बूँद बनके गिरी / दूब मुस्काई । अलस धूप /आँगन में लेटी है /रानी बेटी है ।

मानोशी चैटर्जी और शैल अग्रवाल की हाइकु-जगत से अनुपस्थिति के कारण बहुत -सा अच्छा काव्य आने से रह गया है ।डॉ हरदीप सन्धु ,रचना श्रीवास्तव ,मंजु मिश्रा ,अमिता कौण्डल और डॉ अनीता कपूर के हाइकु अलग तेवर लिये होते हैं- हाइकु को ‘हिन्दी हाइकु’ के माध्यम से विस्तार देने वाली डॉ सन्धु का प्रेम का यह स्वरूप अत्यन्त आत्मीय और मर्मस्पर्शी बन गया है- - तुम क्या गए /ले गए हँसी मेरी/अपने साथ । -फूलों के अंग /खुशबू ज्यों रहती/तू मेरे संग । (डॉ हरदीप सन्धु) प्रेम के साथ वात्सल्य की गहनता इन दो हाइकु को उत्कृष्ट बनाते हैं-

झील में चाँद /मेरी बाहों में तुम /दोनों लजाएँ । आँगन झूला/झूलती थी बिटिया /माँ करे याद । (रचना श्रीवास्तव) प्रकृति के दो रूप -मनोरम और चिन्तित करने वाले इन हाइकु का प्राण हैं-

तारे बटोरें /अँधियारी में खोलें /बाँधी गठरी । तरु-तन से/ खींच ली चुनरिया /सिसकी धरा । (मंजु मिश्रा)

वातावरण की भीषणता और और प्रेम की प्रगाढ़ता के ये दो हाइकु लघुता में विराट स्वरूप समेटे हैं-

जलता सूर्य /भभकती दिशाएँ/बैचैन पंछी । (अमिता कौण्डल) तू जैसे बाँध /मैं मचलती नदी /उर्मि-गर्जन । (डॉ अनीता कपूर)

ताँका के क्षेत्र में रचनाकर्म बहुत कम हुआ है । त्रिवेणी http://trivenni.blogspot.com/ ब्लॉग पर इसकी शुरुआत डॉ सुधा गुप्ता जी से हुई थी , जिसे देशान्तर के रचनाकारों ने समृद्ध किया । इन रचनाकारों में स्वयं डॉ हरदीप कौर सन्धु , डॉ भावना कुँअर , सुप्रीत सन्धु (आस्ट्रेलिया), रचना श्रीवास्तव ,मंजु मिश्रा, डॉ अमिता कौण्डल, डॉ अनीता कपूर , नीलू गुप्ता (यू एस ए) प्रमुख हैं। ताँका की शक्ति का अहसास कराने के लिए क्रमश:डॉ हरदीप सन्धु, डॉ भावना कुँअर , रचना श्रीवस्तव ,मंजु मिश्रा , , डॉ अनीता कपूर और डॉ अमिता कौण्डल का एक एक उदाहरण पर्याप्त होगा-

1-वो रूठा ऐसे /मैं ही रही मनाती/वो नहीं माना /सपनों में बताऊँ /उसे मन की बातें । 2-आँसू गठरी/खुलकर बिखरी/हर कोशिश/मैं समेटती जाऊँ/पर बाँध न पाऊँ 3- सहती रही /बाँझ होने का ताना/धरा -सुन्दरी /हुई ईश्वर -कृपा /तो अंकुरित हुई । 4- ये भी सच है /रिश्ते जब आदत/बन जाते हैं /बहुत सताते हैं/जी भर रुलाते हैं । 5- अरी ज़िन्दगी/किसके लिए काते/मोह का धागा/कच्ची डोर के रिश्ते/बचाऊँ भी मैं कैसे? 7- प्रेम की भाषा /मैं समझ न पाई/जब भी बोली/चोट दिल पे खाई /मुझे रास न आई । चोका के सर्जन में विश्वस्तर पर बहुत कम रचनाकार हैं ।इस छन्द के लिए भी डॉ सुधा गुप्ता जी ही प्रेरक रही हैं । भारत के अलावा देशान्तर के इन रचनाकारों में स्वयं डॉ हरदीप कौर सन्धु , डॉ भावना कुँअर (आस्ट्रेलिया), रचना श्रीवास्तव , डॉ अमिता कौण्डल, डॉ अनीता कपूर का ही सर्जन सामने आया है ।

यहाँ पर डॉ हरदीप सन्धु और डॉ भावना कुँअर के प्रेम की गहनता को आकार देते चोका की कुछ पंक्तियाँ देना समीचीन होगा- 1- हम दोनों तो /नदी के किनारे दो /जीवन भर/एक-संग तो चले /मिल न सके थी फिर भी मगर/उम्मीद एक /गिरे जो समन्दर /कभी ये नदी/मिटें दोनों किनारे/ (डॉ हरदीप सन्धु)

2-बिछोह -घड़ी/सँजोती जाऊँ आँसू/मन भीतर /भरी मन -गागर/प्रतीक्षारत निहारती हूँ पथ/सँभालूँ कैसे/उमड़ता सागर।/मिलन -घड़ी/रोके न रुक पाए। ( डॉ भावना कुँअर)

कहना नहीं होगा कि आज के दिन ताँका और चोका के रचनाकार भारत से बाहर ज़्यादा हैं और इस छन्दों को सही दिशा दे रहे हैं । डॉ हरदीप का इन पंक्तियों के रचनाकर के साथ प्रकाशित संग्रह ’मिले किनारे’ ‘में डॉ हरदीप के 101 ताँका और 11 चोका इन छन्दों की गुणवत्ता और प्रभाव को रेखांकित करने में सक्षम हैं। डॉ हरदीप का ब्लॉग ‘त्रिवेणी’ इस दिशा में एक और महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है । हाइगा ( चित्रमय हाइकु) , ताँका और चोका का प्रकाशन इस ब्लॉग पर निरन्तर हो रहा है ।इसी दिशा में डॉ भावना द्वारा सम्पादित एवं शीघ्र प्रकाश्य ताँका -संग्रह ( भाव-कलश) एक उपलब्धि के रूप में सामने आएगा । हाइकु जैसे लघु छन्द का काव्यानुवाद अपने में दुसाध्य और महत्त्वपूर्ण कार्य है । रचना श्रीवास्तव ने अवधी में 19 कवियों के 320 हाइकु का भावपूर्ण और छन्दानुशासन का निर्वाह करते सहज और सफल काव्यानुवाद - कार्य सम्पन्न किया है ; जो मूल रचना का ही आभास कराता है ।इस सफल अनुवाद की कुछ बानगी देखी जा सकती है-

1-हमरा गाँव /न उहाँ बाटे नदी / नइखे नाव (डॉ सतीशराज पुष्करणा) 2-लौउटे कहाँ /परदेसी मनवा / घरवा नाही (डॉ जेन्नी शबनम) 3-बोगनबिला /के मरोरिस गार/कउन मिला ( डॉ सुधा गुप्ता) 4- मन कै दिया /हिम्मत कै के जिया /जरितै रहा -पूर्णिमा वर्मन 5-चांदनी -जाम /सुराही भय चाँद /सुना गनवा - अनीता कपूर 6-झीन कै तारा / दिल का उजियारा /मोर दुलारा -डॉ अमिता कौण्डल 7-कठिन रस्ता/मनवा है उदास /जियेक ते है/-मंजु मिश्रा 8-जे बान्धे बाटे/रिस्तौं कै मधुरता /ऊ है बन्धन- भावना कुँअर 9- न कौनो आस/बुढ़ापे कै साथ/बस पियार -रचना श्रीवास्तव 10- मिलै बुंदिया /तोहरे पियर कै /अचरा भरी- डॉ हरदीप सन्धु

हाइकु , ताँका और चोका को नई दिशा देने में देशान्तर के इन कवियों का योगदान रेखांकित करने योग्य है। इस क्षेत्र में देश -देशान्तर की पत्र-पत्रिकाओं के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता ।हिन्दी गौरव (सिडनी), हिन्दी टाइम्स (कनाडा), गर्भनाल , उदन्ती , अविराम (सभी नेट व मुद्रित पत्र-पत्रिकाएँ), अप्रतिम, वीणा, लोक गंगा,सद्भावना दर्पण ,परिन्दे . हिन्दी चेतना , सादर इण्डिया आदि पत्रिकाएँ प्रमुख हैं।अविराम ने देश-विदेश के रचनाकारों को विशेषांक के माध्यम से एक मंच पर लाने का प्रयास किया है ।

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