जिंदगी भर / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

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(अनुवाद :सुकेश साहनी)

पूर्णिमा का चाँद जैसे ही अपनी खूबसूरती के साथ उस शहर पर उगा, सभी कुत्ते उसकी ओर देखकर भौंकने लगे।

केवल एक कुत्ता नहीं भौंका और गंभीर आवाज़ में दूसरे कुत्तों से बोला, "चाँद की नींद नहीं टूटेगी और न ही तुम भौंक कर उसे द्दरती पर ला सकोगे।"

इस पर सभी कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया और वहाँ विचित्र-सी चुप्पी छा गई लेकिन वह अकेला कुत्ता रात भर उन्हें मौन रहने की हिदायतें देता हुआ भौंकता ही रहा।