जिन खोजा तिन पाइयाँ / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित
सुशोभित
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कृष्णमूर्ति कहते थे, खोजना मत, नहीं तो पा लोगे। और क्या पाओगे? वही, जो खोजना चाहते थे।
जिन खोजा तिन पाइयाँ- जिसने खोजा उसने पाया। लेकिन क्या?
अव्वल तो उसने खोजने को पाया। उसने यह पाया कि खोजा जा सकता है। फिर उसने पाने को पाया। उसने यह पाया कि पाया जा सकता है। और इन दोनों के मेल से उसने जो पाया, वह कुछ वैसा था, जो उसने अपने खोजने और पाने की सिफ़त से रच दिया था!
तब, इसका ठीक उल्टा भी उतना ही सच है। "जो भूला सो बिसराइयाँ।" यानी जिसे नहीं खोजा, वह खो गया। बिसरा गया। ओझल हो गया।
खोजना एक मायने में सिरजना भी है।
भूलना एक मायने में मिटाना भी है।
मणि कौल ने अपनी किताब 'अभेद आकाश' में औपनिषदिक-चेतना के इस रूपकात्मक विचार का उल्लेख किया है कि "इंद्रियाँ चीज़ों को सिर्फ़ ग्रहण ही नहीं करतीं, उनमें ऐसा आलोक भी होता है जो बाहर निकलकर वस्तु का रूप धारण कर लेता है!" यानी ऐसा नहीं कि एक वस्तुरूप है जिसे मैं देखता हूं, मेरा देखना भी एक वस्तुरूप की रचना करता है।
रबींद्रनाथ ने जब आइंस्टाइन से कहा था कि "सत्य वही है, जो मनुष्य की चेतना में प्रतिबिम्बित होता है और उसके सिवा कोई और सच नहीं" तो आइंस्टाइन अचरज में पड़ गए थे। उन्हें वस्तुगत सत्य की एक अधिक आश्वस्त कर देने वाली व्याख्या चाहिए थी! हमारी जिस चेतना के प्रकाश में यह सारा संसार, अपने तमाम इतिहास और भूगोल, अपनी तमाम स्मृतियों और निरंतरताओं के साथ उपस्थित रहता है, अगर वह चेतना बुझ जाए तो क्या यह संसार भी बुझ जाएगा?
इस परिप्रेक्ष्य में, चलिए Tlön देश की एक कथा सुनते हैं।
Tlön में दो लोग एक पेंसिल को खोज रहे थे। पहले व्यक्ति को पेंसिल मिल जाती है, लेकिन वह उसके बारे में दूसरे को कुछ नहीं बताता। नतीजतन, दूसरा व्यक्ति एक दूसरी पेंसिल खोज निकालता है : सचमुच की पेंसिल!
खोई हुई चीज़ें खोजे जाने पर अपनी प्रतिलिपियाँ भी तैयार कर सकती हैं। Tlön में इन प्रतिलिपियों को hrönir कहा जाता है। एक बार Tlön के केंद्रीय कारागृह के वार्डन ने क़ैदियों से कहा कि प्राचीन नदियों की तलहटी में कुछ क़ब्रें हैं और यदि वे गहरे पानी पैठ वहां खुदाई करें तो उन्हें ख़ासी दिलचस्प चीज़ें मिल सकती हैं। क़ैदियों को उन चीज़ों की तस्वीरें भी दिखाई गईं, जो उन्हें खुदाई में मिल सकती थीं। पहले प्रयास में एक हफ़्ते चली खुदाई के बाद केवल एक ज़ंग लगा पहिया ही बरामद हुआ। इसके बाद तीन और कोशिशें भी नाकाम रहीं। लेकिन पांचवीं कोशिश में क़ैदी नदी की तलहटी से सोने का एक नक़ाब, एक पुरानी तलवार, मिट्टी के कुछ बर्तन और एक सम्राट की आवक्ष प्रतिमा के अवशेष खोज निकालने में क़ामयाब रहे। प्रतिमा की छाती पर कुछ उत्कीर्ण भी था, लेकिन उस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका।
इसका उलटा भी सही है : भुला दिए जाने पर चीज़ें गुम भी होने लगती हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है वह दरवाज़ा, जो केवल तभी तक नज़र आता रहा था, जब तक एक भिखारी उस पर आकर भीख माँगता रहा। भिखारी की मौत के बाद वह दरवाज़ा भी सभी की नज़रों से ओझल हो गया। कभी-कभी तो चंद परिंदे या कोई एक घोड़ा भी किसी प्राचीन नाट्यशाला के अवशेषों को बचाने में क़ामयाब रहे हैं!
यह Tlön-प्रसंग हूबहू इन्हीं शब्दों में 'अ फ़र्स्ट एनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ Tlön' के 11वें खंड में वर्णित है। यह खंड हर्बर्त एशे की मौत के बाद उनके पास से बरामद हुआ था। अलबत्ता 'द नैशविल अमेरिकन' के एक खोजकर्ता द्वारा वर्ष 1944 में मेम्फ़ीस लाइब्रेरी से बरामद किए गए 'अ फ़र्स्ट एनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ Tlön' के सभी 40 खंडों के 11वें खंड में hrönir का कोई उल्लेख नहीं था।
कौन जाने, सालों के विस्मरण के चलते hrönir के ब्योरे उस किताब से ही मिट गए हों!
और विस्तार से जानने के लिए ख़ोर्ख़े लुइस बोर्ख़ेस के फ़िक्शंस पढ़ें।
लेकिन माजरा ये है कि हम पाँच इंद्रियों से दुनिया को बूझते हैं। फिर यौनेंद्रियाँ हैं जो कैशोर्य में जगती हैं और यौवन में हमारे समग्र अवबोध को ग्रस लेती हैं। छठी इंद्री को अतींद्रिय कहा गया है। वह जो अशरीरी चीज़ों को देख सकती हो। स्वप्न और भ्रम और सामूहिक अवचेतन छठी इंद्री के विषय हैं।
साँप के कान नहीं होते, वह त्वचा से सुनता है। अगर हमारे कान नहीं होते तो हमारे लिए दुनिया कैसी होती? और अगर हमारे पास पाँच के बजाय सात इंद्रियाँ होतीं, तब हम इस दुनिया को किस तरह से देख पाते? अगर हम तीन आयाम के बाद चौथे और पाँचवें और छठे आयामों में भी गति कर पाते तो सृष्टि कैसी दिखलाई देती।
तीन बातें हैं :
एक वह संसार है, जिसे हम जानते हैं।
एक वह संसार है, जिसे हम जितना खोजते हैं, उतना जानते हैं और जितना भूलते हैं, उतना वह विलुप्त होता जाता है।
और एक वह संसार है, जिसे हम जान सकते थे, अगर हममें कुछ और जान सकने की सामर्थ्य होती।
'जिन खोजा तिन पाइयाँ।' मसि-कागद कभी नहीं छूने वाले दास कबीर की इस एक बात को जाने कितने ही पहलुओं से देखा और बूझा जा सकता है!