जीत / डॉ. रंजना जायसवाल

Gadya Kosh से
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ऋतु की नजर बार-बार घड़ी की तरफ जा रही थी, आज अभय के स्कूल में वाद-विवाद प्रतियोगिता थी। हिन्दी दिवस के अवसर पर हर बार विद्यालय में कोई न कोई प्रतियोगिता होती ही रहती थी। ऋतु की हिन्दी बचपन से बहुत अच्छी थी, उसे कभी-कभी बहुत हँसी भी आती थी, हिन्दी भाषा भाषी देश में हिन्दी दिवस मनाने की भी जरूरत पड़ती है पर जिस देश में बुद्धिमत्ता का पैमाना भाषा से नापा जाता है उस देश में तो ये होना ही था। अभय एक हफ्ते से उसके पीछे पड़ा था।

"माँ! आपकी हिन्दी तो बहुत अच्छी है, मेरी तैयारी करवा दो न...ऐसा धांसू लिखकर देना कि सब देखते रह जाये।"

ऋतु ने तिरछी नजर से अभय को देखा,

"ये कौन-सी भाषा है?"

"इतना तो चलता है माँ... अब आप फिर से शुरू मत हो जाना।"

ऋतु जब भी उसकी इस फिल्मी बम्बईयाँ भाषा को सुनती तो कट कर रह जाती, वह भी क्या करें आजकल के बच्चे ऐसे ही तो बोलते हैं। अभय जोर-शोर से तैयारी में लगा हुआ था, वह गुसलखाने के शीशे के सामने खड़े होकर जोर-जोर से प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा था। ऋतु भी तो बचपन में ऐसी ही थी। आखिर इंतज़ार की घड़ियाँ खत्म हुई और 14 सितम्बर आ ही गया, ऋतु ने अभय के माथे पर तिलक लगाया और दही चीनी खिलाया। अभय की जब भी कोई परीक्षा होती तो वह दही चीनी खिलाना नहीं भूलती थी। उसकी माँ भी तो बचपन में ऐसा ही किया करती थी। अभय पैर छूने के लिए झुका तो ऋतु ने प्यार से अभय के सर पर हाथ फेर दिया।

"माँ! वो बोलो न...जो रामायण सीरियल में बोलते हैं... क्या था ...हाँ... विजयी भव।"

ऋतु उसकी मासूमियत पर मुस्कुरा कर रह गई। घर का काम निपटाते-निपटाते समय का पता ही नहीं चला। अब तक सब प्रतियोगिता खत्म भी हो गई हो गई होगी, सम्भवतः परिणाम भी घोषित हो गए होंगे। ऋतु विचारों के अथाह सागर में डूब उतरा रही थी। तभी फोन की घण्टी बजी, कोई अनजान नम्बर था।

"हेलो...मिसेज सिंह?"

"जी! बोल रही हूँ।"

ऋतु आवाज को पहचानने की कोशिश कर रही थी पर...

"वी आर प्लीजड टू इनफॉर्म यू दैट योर सन अभय सिंह गाट फर्स्ट प्राइज इन हिन्दी डिबेट कंपटीशन... कांग्रेचुलेशन..."

तभी अभय की आवाज कानों में गूंजी,

"माँ! थैंक यू सो मच...आपकी वजह से मैं जीत गया, सबने कितनी तारीफ की मेरी...मुझे सबसे पहले ये खुशखबरी आपको देनी थी, इसलिए हिन्दी वाली मैम से रिक्वेस्ट की आपसे बात करा दे...लव यू माँ।"

"खट्ट..."

फोन कट चुका था, ऋतु बड़ी देर तक फोन हाथ में लिए सोचती रही कि क्या सचमुच आज हिन्दी जीत गई थी?