जीरो : मनोरंजन संसद में प्रश्न-काल! / जयप्रकाश चौकसे

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जीरो : मनोरंजन संसद में प्रश्न-काल!
प्रकाशन तिथि : 22 दिसम्बर 2018


आनंद एल. राय ने हमेशा सफल सार्थक मनोरंजन गढ़ा है परंतु उनकी शाहरुख खान, अनुष्का शर्मा, कटरीना कैफ और जीशान खान अभिनीत 'जीरो' समझ में ही नहीं आती। यह संभव है कि उम्रदराज और बीमार रहने के कारण विचार शैली निरस्त हो चुकी है परंतु साथ में अपनी युवा पोती और पत्नी को भी ले गया था। उनका हाल भी मेरी तरह ही है। बेहतर होता कि टिकट के साथ फिल्म को समझने की कोई गुटका गाइड भी दे दी जाती। फिल्म का बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिका के अंतरिक्ष शोध संस्थान पर दिया गया है।

अंतरिक्ष विज्ञान थोड़ा बहुत समझा जा सकता है, देवकीनंदन खत्री की 'चंद्रकांता संतति' और जेम्स जॉयस की 'यूलिसिस' भी कुछ हद तक समझी जा सकती है परंतु इस फिल्म को लालबुझक्कड़ भी नहीं समझ पाता। ऐसा लगता है कि फिल्म आस्वाद का कोई क्रेश कोर्स करना होगा। अमेरिकन फिल्म 'मैट्रिक्स' अत्यंत दुरुह थी परंतु इतना तो समझ में आ गया था कि विज्ञान की तीव्र गति के विकास के कारण यह संभव होगा कि कंप्यूटर मनुष्य को अपनी ऊर्जा देने वाली बैटरी की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। क्रिस्टोफर नोलन की 'प्रेस्टीज' भी कुछ हद तक समझ में आती है।

बंगाल के उपन्यासकार शंकर के उपन्यास 'चौरंगी' में एक पांच सितारा होटल के मनोरंजन कक्ष में एक नृत्य होता है, जिसमें एक नृत्य करने वाली लंबी महिला की जांघों पर उसका बौना साथी खड़ा हो जाता है। कभी उसके सिर पर बैठता है, कभी कहीं और कई तरह से प्रेम निवेदन करता है। परंतु अपने जीवन में वे एक ही मां के द्वारा जन्म दिए गए सगे भाई-बहन हैं और बहन यह काम इसलिए करती है कि बौने भाई का यह आत्मविश्वास बना रहे कि वह स्वयं भी धन कमाता है। मानवीय करुणा और रिश्ते की यह किताब पढ़ने पर भावना का संचार होता है परंतु 'जीरो' दर्शक को भावना शून्य ही रखती है। आनंद एल. राय की 'तनु वेड्स मनु' में उनके गीतकार राजशेखर का एक गीत इस तरह है 'खाकर अफीम रंगरेज पूछे यह रंग का कारोबार क्या है, कौन से पानी में तूने कौन-सा रंग मिलाया…' यह फिल्म अफीम के नशे की याद ताजा करती है और मस्तिष्क विचार शून्य हो जाता है। आनंद एल राय ने पहली बार बड़ा मेहनताना लेने वाले नामी कलाकारों के साथ यह फिल्म बनाई है। क्या सितारों को साथ लेने से मनुष्य पथभ्रष्ट हो जाता है? फिल्म के साथ कंगना रनौत की 'मणिकर्णिका' का ट्रेलर दिखाया गया, जो बहुत प्रभावोत्पादक है। यह बात इसलिए भी लिखी जा रही है कि आनंद राय ने कंगना अभिनीत दो सफल फिल्में बनाई हैं।

बौने पात्र को नृत्य करने का इतना अधिक जुनून है कि डांस का एक निमंत्रण मिलते ही वह अपने विवाह मंडप से भाग जाता है और नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेता है। उसे एक ऐसी कन्या से प्रेम हुआ था, जिसका सारा शरीर हमेशा हिलता रहता है। वह कन्या अंतरिक्ष विज्ञान में पारंगत है और क्लाइमैक्स में नायक को बंदर के बदले मंगलयान पर भेज देती है। वह 15 वर्ष पश्चात सकुशल लौट भी आता है। इस फिल्म में इस कन्या का पात्र अनुष्का शर्मा ने अभिनीत किया है और उसका अभिनय प्रभावित करता है। अन्य कलाकार यह जान ही नहीं पाते कि वे क्या कर रहे हैं।

हमारी संसद की कार्यवाही थोड़ा प्रयास करने पर समझ में आ जाती है। कुछ अबूझ प्रश्न भी होते हैं और धुंध पैदा करने वाले उत्तर भी दिए जाते हैं। संसद परिसर के कैंटीन में अत्यंत सस्ता भोजन सांसदों को उपलब्ध रहता है। इस फिल्म के सिनेमाघर में भी खाने-पीने की सुविधा है परंतु लाख बार कहने के बाद भी ठंडे पॉपकॉर्न दिए जाते हैं, जिन्हें चबाने पर रबर खाने जैसा लगता है। पॉपकॉर्न और फिल्म में प्रस्तुत मनोरंजन एक जैसे ठंडे और बेस्वाद लगे। फिल्म देखने के बाद घर आने पर कपड़ों में कुछ पॉपकॉर्न उलझकर आ गया था। इस अनुभव का यही विशुद्ध मुनाफा प्राप्त हुआ। सिनेमा टिकट पर जजिया कर जीएसटी अभी जारी है। मनोरंजन छूट के क्षेत्र में नहीं आता। संसद और राज्यसभा की कार्यवाही भी अत्यंत मनोरंजक और रोचक है।

संसद के शून्यकाल में वे प्रश्न पूछे जा सकते हैं, जिनकी अग्रिम सूचना नहीं दी गई है। 'जीरो' फिल्म भी प्रश्नकाल की तरह है परंतु इसमें छाया कुहासा कहीं अधिक गहरा है। फिल्म का गीत-संगीत भी कोई राहत नहीं देता।