जीवन की सांप सीढ़ी का भ्रम / जयप्रकाश चौकसे

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जीवन की सांप सीढ़ी का भ्रम
प्रकाशन तिथि : 13 अप्रैल 2013


मधुबाला के जन्म का नाम मुमताज था और बाल भूमिकाएं उन्होंने इसी नाम से की थीं। नायिका बनते समय उनका नाम मधुबाला रखा गया। उनकी अकाल मृत्यु १९६९ में हुई, परंतु वे बीमार अनेक वर्ष रहीं। उसी दरमियान जूनियर कलाकारों की भीड़ में ७५ रुपए प्रतिदिन पाने वाली एक और मुमताज पर लोगों की निगाह पड़ी, जब रश प्रिंट में किसी का ध्यान गया। इसके बाद उन्हें संवाद बोलने वाली मामूली भूमिकाएं मिलीं और बोनी कपूर के पिता सुरिंदर कपूर ने मुमताज को दारा सिंह के साथ नायिका के रूप में प्रस्तुत किया 'टार्जन गोज टू डेल्ही' में, परंतु इसके पूर्व शम्मी कपूर ने भी उससे प्रभावित होकर कई जगह काम दिलाया। दारा सिंह से दिलीप कुमार (राम और श्याम) तक का सफर तय करने वाली मुमताज राजेश खन्ना के दौर में शिखर सितारा हो गईं। उनकी पुत्री का विवाह फिरोज खान के सुपुत्र फरदीन से हुआ है। एक-एक सीढ़ी चढ़कर शिखर तक की यात्रा करने वाली मुमताज का जीवन प्रेरक है।

किस्सा-ए-मुमताज इसलिए बयां किया जा रहा है कि सहायक डांस डायरेक्टर डेजी शाह सलमान की निर्माणाधीन फिल्म 'मेंटल' की नायिका हैं, जिन्होंने डांस मास्टर गणेश आचार्य के साथ ग्रुप डांसर के रूप में काम किया था। गणेश ने 'अग्निपथ' में 'पव्वा चढ़ा के आई' आयटम में कैटरीना की रिहर्सल का दायित्व डेजी शाह को ही दिया था और कभी कैटरीना कैफ के पथ प्रदर्शक रहे सलमान खान अब डेजी शाह के गाइड हो चुके हैं। आज यह कहना तो कठिन है कि डेजी शाह मुमताज की तरह शिखर पर पहुंचेंगी, परंतु उनका प्रारंभ एक सुपर सितारे के साथ हो रहा है।

अशोक मेहता स्टूडियो में लाइट मैन थे, फिर सहायक कैमरामैन बने और सिनेमेटोग्राफी के क्षेत्र में शिखर तक पहुंचे। उन्होंने अनेक भव्य बजट फिल्मों का छायांकन किया। बाबूराम इशारा स्टूडियो की कैंटीन में बर्तन धोते थे और रात में वहीं सो जाते थे। बिमल रॉय के अंतरंग मित्र और हास्य कलाकार असित सेन उन्हें अपने घर ले आए और घोर संघर्ष के बाद इशारा 'चेतना' बनाने में सफल हुए। इसी कम बजट की फिल्म से स्टूडियो में सैट लगाने के बदले आलीशान बंगलों में शूटिंग की परंपरा शुरू हुई। बाबूराम इशारा ने दर्जनों फिल्में बनाईं और अन्य निर्माताओं के लिए पटकथाएं भी लिखीं।

गुलजार भी संघर्ष करते हुए बिमल रॉय के सहायक बने और शैलेंद्र के बीमार होने के कारण उन्हें 'बंदिनी' में गीत लिखने का अवसर मिला और विगत आधी सदी से वे फिल्म विधा के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हैं। केदार शर्मा न्यू थिएटर्स कलकत्ता में पाश्र्व परदे के पेंटर थे। एक दिन बरसात में बस स्टॉप पर खड़े थे कि कंपनी के मालिक वीएन सरकार ने उन्हें अपनी कार में लिफ्ट दी। उन्होंने प्रार्थना की कि उनके हाथ कूची नहीं, कलम पकडऩे के लिए बने हैं। उन्हें पीसी बरुआ की 'देवदास' में संवाद लिखने का काम मिला। बाद में वे शिखर फिल्मकार हुए।

शाहरुख खान ने भी 'फौजी' नामक सीरियल से शुरुआत की थी। फिल्म उद्योग में अनेक प्रकरण हैं, जब व्यक्ति सबसे नीचे से प्रारंभ करके शिखर तक पहुंचा। अन्य क्षेत्रों में भी इस तरह के उदाहरण मौजूद हैं। जिंदगी में एक मोड़ ऐसा आता है, जब अवसर मिलता है। प्रतिभा और परिश्रम से शिखर तक पहुंचा जा सकता है। धीरुभाई अंबानी ने भी ऐसी ही यात्रा की, जिसका अंदाजा हम मणिरत्नम की फिल्म 'गुरु' से लगा सकते हैं। शिखर से प्रारंभ करके नीचे तक जाने के भी कई उदाहरण हैं, जैसे राजेंद्र कुमार के पुत्र कुमार गौरव के साथ हुआ। जिंदगी सांप-सीढ़ी का खेल है, सीढिय़ां चढ़कर ऊपर जाते हैं और सांप द्वारा डसे जाकर शून्य पर पहुंच जाते हैं। सांप डिजायर तथा डाउनफॉल दोनों का प्रतीक है। दयनीय तो वे हैं, जो अंधेरे में रस्सी को सांप समझकर पकड़ते हैं और भय से बेहोश हो जाते हैं।

इस प्रकरण में यह भी याद रखें कि कांस अंतरराष्ट्रीय समारोह में सारे जूरी सो गए थे, परंतु एक जाग रहा था और उसके कहने पर सत्यजीत रॉय की 'पथेर पांचाली' का दूसरा शो रखा गया और सारे जूरी सहमत हुए कि यह एक विलक्षण फिल्म है।

विचारणीय यह है कि क्या जिंदगी में इत्तफाक से एक अवसर मिलना ही निर्णायक है? यह पूरा सच नहीं है, क्योंकि प्रतिभा और परिश्रम इत्तफाक आधारित नहीं हैं। इंसान पहाड़ों की छाती चीरकर रास्ता बना लेता है। यह अनेक बार हुआ है कि यक-ब-यक मिले अवसर, इत्तफाक या भाग्य को गरिमापूर्ण करने वाली कहानियां गढ़ी गई हैं और इस सोच का उद्गम इस बात से है कि संसार विष्णु का स्वप्न ै और हम सब उसके पात्र हैं, परंतु इन कहानियों से परोक्ष रूप से इंसान की मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति की अवहेलना हो जाती है। प्रतिभा का अनादर होता है। यह सारी कहानियां भी गढ़ी गई हैं, उस षड्यंत्र के तहत कि अन्याय आधारित व्यवस्था चलती रहे। यह भी विचारणीय है कि इसमें धर्म के श्लोक का इस्तेमाल भी होता है, जबकि अंधकार और अन्याय होने पर अवतार के उदय के साथ ही यह भी कहा गया है कि अवतार के आने के बाद भी काम मनुष्य ही करेगा। कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने शस्त्र नहीं चलाए, केवल मार्गदर्शन किया है। आधे-अधूरे सूत्रवाक्य, मनगढ़ंत कहानियों और ग्रंथों की अशुद्ध व्याख्याओं के कोलाज से एक भ्रामक चित्र बनाकर उसे सामूहिक अवचेतन में चस्पा कर दिया गया।