जीवन के नेट पर स्थिर शटल कॉक / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जीवन के नेट पर स्थिर शटल कॉक
प्रकाशन तिथि : 13 नवम्बर 2014


प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन के कलाकार खिलाड़ी इस मायने में थे कि उनके खेल में काव्य और नृत्य शामिल था। उस दौर में टेनिस, बैडमिंटन इत्यादि खेलों में हिंसक शक्ति के बदले चातुर्य होता था। अब तो बूम-बूम टेनिस है जिसमें 150 मील प्रति घंटे की रफ्तार से सर्विस की जाती है और खेल में एसेस निर्णायक होते हैं, रैली नहीं होती। प्रकाश के ड्रॉप शॉट में शटल कॉक नेट पर कुछ क्षण स्थिर रहकर प्रतिद्वंद्वी के कोर्ट में गिरती और वे ये ड्रॉप कोर्ट के किसी भी कोने से कर सकते थे। उनके फुट वर्क में नृत्य की चपलता थी। उनकी सुपुत्री दीपिका पादुकोण भी उनके ड्रॉप की तरह जीवन के नेट पर स्थिर हो गई है और दूसरे कोर्ट में रणवीर सिंह आस लगाए बैठे हैं कि उनकी ओर गिरे। उसके मनपसंद खिलाड़ी ने कटरीना कैफ के साथ घोंसला बना लिया है। अभिनय में कलाकार की क्रिया सामने वाले अभिनेता की प्रतिक्रिया पर निर्भर करती है। अभिनय एकल सेल नहीं है। दिलीपकुमार को मनोजकुमार के साथ यही परेशानी थी कि प्रतिक्रिया के बदले वह चेहरा हाथ से छुपा लेते थे। वह अदा उनका कवच था, कमतरी छुपाने का मामला था।

आज के कलाकारों में दीपिका पादुकोण किसी भी फिल्म में केवल नाच-गाने और रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए नहीं वरन् अपनी बॉक्स आफिस शक्ति के साथ नायक के समकक्ष खड़ी है। "चेन्नई एक्सप्रेस' में शाहरुख खान की मौजूदगी में वह बाजी मार ले गई। इसी तरह अयान मुखर्जी की "ये जवानी है दीवानी' में वह नायक रणबीर कपूर के साथ खड़ी थी और उसकी छाया नहीं थी। उसकी यह सफलता हमें नूतन, नरगिस, मीना कुमारी के दौर में नायिका के महल की याद दिलाती है। अब आज वैसे निर्देशक ही नहीं हैं जैसे उन लोगों का मिले थे। कटरीना की सफल फिल्में उतनी ही हैं जितनी दीपिका की परंतु वह अपनी सफल फिल्मों की रीढ़ की हड्डी नहीं थीं जैसी दीपिका रही है।

अभिनय क्षेत्र में आते ही दीपिका की अंतरंगता रणबीर कपूर से हुई। रणबीर की "सांवरिया' और दीपिका की "ओम शांति ओम' एक ही दिन प्रदर्शित हुई जिस कारण भंसाली और फराह में ठन गई परंतु उन दोनों की अंतरंगता में फर्क नहीं आया। प्रतिभा की दृष्टि से वे दोनों एक दूजे के लिए बने लगते हैं परंतु दिल बॉक्स आफिस देखता है और ही प्रतिभा। उसका रसायन की विचित्र है परंतु साधारणीकरण यह है कि दिल पहले अच्छाई की ओर आकर्षित होता है और ये गुण आधारित आकर्षण प्रेम में बदल जाता है। रणबीर कपूर और कटरीना की पहली साथ की गई फिल्म प्रकाश झा की "राजनीति' थी और रिश्ते की भी अपनी राजनीति होती है। उनकी दूसरी फिल्म राजकुमार संतोषी की "अजब प्रेम की गजब कहानी' थी, जिसके आखिरी हिस्से में बकरी के पीछे नायक चर्च के भीतर जाता हे जहां प्रेम का दिव्य प्रकाश उसके इंतजार में है। अब यह कैसे कहें कि कटरीना के पास कौन सी बकरी थी जो दीपिका के पास नहीं थी। ऐसा ही अजूबा रणबीर के पिता ऋषिकपूर के साथ भी हुआ जब राजकपूर ने स्क्रीन टेस्ट लेने के बाद नीतू सिंह को इसलिए नहीं लिया कि वह अब तक अनदेखी लड़की को लेना चाहते थे। अत: ऋषिकपूर ने डिम्पल कापड़िया के साथ बॉबी की और उसकी ओर आकर्षित भी हुए परंतु नीतू के गुणों ने उन्हें उस मोह से छु़ड़ा लिया। प्रेम की शतंरज पर ऊंट टेढ़ा चलता है, घोड़ा ढाई घर चलता है परंतु सीधा मात्र एक घर चल सकने वाला प्यादा ही दूसरी ओर पहुंचकर बादशाह बन जाता है। इस आशय का दोहा जावेद अख्तर टाटा स्काई पर अपने कार्यक्रम दोहे मोहे सोहे में कर चुके हैं। दरअसल अच्छाई ही जीवन में एकमात्र मार्ग है, उसका कोई विकल्प ही नहीं है परंतु जाने सीधी राह क्यों लोगों को पसंद नहीं आती। शैलेंद्र की पंक्तियां है, सीधी राह पर चलना, देख के उलझन, बच के निकलना।

बहरहाल, आज के दौर में कुल लोग प्रकाश पादुकोण को दीपिका के कारण जानते हैं, परंतु हमारी पीढ़ी वाले दीपिका को प्रकाश का क्लासिक ड्रॉप मानते हैं जो जीवन के नेट पर लंबे समय से स्थिर खड़ी है। गतिमान होते हुए स्थिरता का निर्वाह कठिन है। रणवीर सिंह कोर्ट के उस ओर इस आशा में खड़े हैं कि कभी-कभी बिल्ली के भाग्य से वह छींका टूटता है जिस पर दूध मक्खन रखा जाता है।