जीवन में सादगी, साइकिल की वापसी / जयप्रकाश चौकसे

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जीवन में सादगी, साइकिल की वापसी
प्रकाशन तिथि : 04 जून 2020


सड़कों पर साइकिल का पुनरागमन हो रहा है। आग खाती और धुआं उगलती कारों से बचा जा रहा है। पर्यावरण को लाभ मिल रहा है। सूखती हुई नदियों में नाव नहीं चलाई जा सकती। व्यवस्था जानती नहीं कि उसकी नाव में ही तूफान छिपा है। औद्योगिक क्रांति ने बाइसिकल कारखानों को जन्म दिया। भारत में पंजाब के मुंजाल परिवार ने ‘हीरो साइकिल’ का कारखाना प्रारंभ किया। इस क्षेत्र में अंग्रेजों की दासता से हमें मुंजाल परिवार ने मुक्त कराया। चक्र के आविष्कार के बाद विभिन्न प्रकार की गाड़ियों का बनना संभव हुआ। एक जमाने में माना जाता था कि भारत में साइकिलों का सबसे ज्यादा उपयोग पूना और इंदौर में किया गया। यह आश्चर्यजनक है कि जिन नगरों में शिक्षा संस्थान स्थापित हुए, उन नगरों में साइकिल का उपयोग अधिक किया गया। पूना को तो पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था। इंदौर के होल्कर राज घराने ने शिक्षा संस्थान स्थापित किए। नगर विकास में शिक्षा संस्थान और अस्पताल सहायक सिद्ध होते हैं। इंदौर का महाराजा तुकोजीराव अस्पताल और होल्कर कॉलेज चुंबक की तरह लोगों को आकर्षित करते रहे। बाद में एमवाय अस्पताल ढीली व्यवस्था का शिकार हो गया।

इतालवी फिल्मकार विटोरियो डी सिका की फिल्म ‘बाइसिकल थीव्स’ सन् 1948 में प्रदर्शित हुई जो विश्व सिनेमा की धरोहर मानी जाती है। दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात महंगाई घर-घर दस्तक दे रही थी। महंगाई के आणविक विस्फोट ने सभी को अपने विकिरण का शिकार बनाया। व्यवस्था विज्ञापन द्वारा सोने का मृग रच रही थी। शहर की दीवारों पर पोस्टर लगाने का काम उस व्यक्ति को दिया जा रहा था, जिसके पास बाइसिकल हो। फिल्मकार बेरोजगारी के समय भी मानवीय करुणा को रेखांकित करता है। नायक की पत्नी घर की चादरें, परदे इत्यादि बेचकर पति को साइकिल खरीदने में मदद करती है। एक दिन साइकिल चोरी हो जाती है। नायक चोर का पीछा करता है, भीड़ उसे पीट देती है। कुछ दिन पश्चात चोर पकड़ा जाता है, परंतु नायक देखता है कि चोर के बच्चे भी परेशान हैं। अत: अपने बेटे के कहने पर नायक अपनी रपट वापस ले लेता है। गरीब भी गरीब का दर्द न समझे तो अनर्थ हो जाएगा।

तत्कालीन बंबई में आयोजित साइकिल दौड़ प्रतियोगिता में शोभा खोटे ने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया। ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी नूतन, राज कपूर अभिनीत फिल्म ‘अनाड़ी’ में शोभा खोटे को अभिनय का अवसर दिया। साइकिल सवार छात्राओं से नायक की साइकिल टकरा जाती है और एक प्रेम कहानी का प्रारंभ होता है। शंकर-जयकिशन और हसरत-शैलेंद्र की टीम ने सार्थक माधुर्य रचा और गीत ‘जीना इसी का नाम...’ मोबाइल की लोकप्रिय कॉलरट्यून बन गया है। मंसूर हुसैन की फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ भी साइकिल दौड़ पर केंद्रित फिल्म है, जो सफल सिद्ध हुई।

मनोज कुमार की फिल्म ‘शोर’ का नायक भी कई दिनों तक साइकिल चलाकर इनाम की राशि से अपने बीमार बच्चे का ऑपरेशन कराना चाहता है। इसी फिल्म के लिए संतोष आनंद ने अमर गीत लिखा था- ‘एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी-मेरी कहानी है।’ ज्ञातव्य है कि दशकों पूर्व फ्रांस में साइकिल चलाना इतना प्रचलित था कि सार्वजनिक स्थानों पर कारों से अधिक स्थान साइकिल पार्किंग के लिए रखा जाता था। भारत में साइकिल प्रयोग के प्रारंभिक दौर में चेन उतर जाने पर सवार दुकान पर जाता था। हमने मशीन का उपयोग प्रारंभ किया, परंतु मशीन की कार्यप्रणाली को हमेशा जादू मानते रहे। तर्कहीनता में आकंठ लीन मायथोलॉजी को ज्ञान समझने वाले अवाम ने गणतंत्र व्यवस्था को भी इसी तरह लिया कि चेन चढ़ाने के लिए भी मैकेनिक की जरूरत पड़ने लगी है।

साइकिल प्रेमियों ने अपने मित्र मंडल बना लिए हैं। इस तरह साइकिल अब सहयोग और अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई है। साइकिल प्रेमी लंबी दूरी तय करने के लिए निकलते हैं तो उनकी पत्नियां कारों में सवार उनके खाने-पीने का सामान लिए चलती हैं। ‘बाइसिकल थीव्ज’ में पत्नी की सहायता से ही साइकिल खरीदी जाती है। पत्नियां आज भी कुमुक की भूमिकाओं का निर्वाह कर रही हैं। अक्षय कुमार और भूमि अभिनीत फिल्म ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ भी साइकिल से प्रारंभ होती है। पहले महिला साइकिल में बीच का रॉड नहीं होता था, जो साड़ी पहनने वाली के लिए सुविधाजनक था, परंतु अब सलवार-कमीज के प्रयोग के कारण साइकिलों में लिंग भेद नहीं रहा।