जीवन में ही मृत्यु के द्वारा! / ओशो

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प्रवचनमाला

प्रभु को पाना है, तो मरना सीखो। क्या देखते नहीं कि बीज जब मरता है, तो वृक्ष बन जाता है!

एक बाउल फकीर से कोई मिलने गया था। वह गीत गाने में मग्न था। उसकी आंखें इस जगत को देखती हुई मालूम नहीं होती थीं और न ही प्रतीत होता था कि उसकी आत्मा ही यहां उपस्थित है। वह कहीं और ही था- किसी और लोक में, और किसी और रूप में।

फिर, जब उसका गीत थमा और उसकी चेतना वापस लौटती हुई मालूम हुई, तो आगंतुक ने पूछा, आपका क्या विश्वास है कि मोक्ष कैसे पाया जा सकता है? वह सुमधुर वाणी का फकीर बोला, केवल मृत्यु के द्वारा।

कल किसी से यह कहता था। वे पूछने लगे, मृत्यु के द्वारा? मैंने कहा, हां, जीवन में ही मृत्यु के द्वारा। जो शेष सबके प्रति मर जाता है, केवल वही प्रभु के प्रति जागता और जीवित होता है।

जीवन में ही मरना सीख लेने से बड़ी और कोई कला नहीं है। उस कला को ही मैं योग कहता हूं। जो ऐसे जीता है कि जैसे मृत है, वह जीवन में जो भी सारभूत है, उसे अवश्य ही जान लेता है।

(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)