जेल अनुभवों पर आधारित फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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जेल अनुभवों पर आधारित फिल्में
प्रकाशन तिथि : 16 जून 2018

राजकुमार हिरानी की फिल्म 'संजू' के एक दृश्य में जेल के भीतर के शौचालय की गंदगी दिखाई गई है। यह मुद्‌दत से साफ नहीं किया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि जेलों का बार-बार निरीक्षण किया जाता है और इस तरह की गंदगी नहीं होती। इन लोगों ने इस बात को नज़रअंदाज किया है कि फिल्म में दो दशक पूर्व का जेलखाना दिखाया गया है। अत: मुमकिन है कि उस दौर में ऐसा होता हो। हर देश का जेल का प्रबंधन वैसा ही होता है जैसा प्रबंधन देश के अन्य क्षेत्र में हो रहा होता है। जेल कोई ऐसा द्वीप नहीं है, जिससे लहरें टकराती नहीं हों। ज्ञातव्य है कि संजय दत्त द्वारा उनके भोगे हुए यथार्थ के आधार पर ही राजकुमार हिरानी ने यह फिल्म बनाई है।

अमेरिका की जेलों पर हॉलीवुड में अनेक फिल्में बनाई गई हैं। एक पुरानी फिल्म 'द शॉशान्क रिडेम्प्शन' में बैंक लूटने के आरोप में बैंक का ही अधिकारी लेबी सजा काट रहा है। वहां उसकी मित्रता एक अश्वेत अमेरिकन से होती है, जिसे चालीस वर्ष की सजा सुनाई गई है। इस कैदी ने इतने वर्ष जेल में बिताएं हैं कि वह वहां की कार्यप्रणाली बखूबी जानता है। वह कैदी की फरमाइश की हर चीज जेल में उपलब्ध करा देता है। संकेत स्पष्ट है कि वहां भी भ्रष्टाचार होता है और कैदी के रिश्तेदार बाहर पैसा दें तो जेल के भीतर कैदी को सुविधा की वस्तुएं प्राप्त होती हैं। बैंक घपले में सजा काट रहा व्यक्ति उस पुराने अनुभवी अश्वेत कैदी से एक छोटी-सी छैनी मंगवाता है। वह इस छैनी की मदद से अपने कक्ष में धीरे-धीरे सेंध मारता है और दीवार को ढंकने के लिए अपनी मनपसंद महिला सितारे का पोस्टर लगा देता है। कभी वह एलिजाबेथ टेलर का पोस्टर तो कभी मर्लिन मुनरो का तो कभी रेक्वेल वेल्स का पोस्टर मंगाता है। दरअसल, पोस्टर उस जगह को ढंक देता है, जहां छोटी छैनी से वह सुरंग बनाने का काम कर रहा है। वह बैंक अपराधी अपने अश्वेत अमेरिकन मित्र से कहता है कि जेल से रिहाई के बाद वह उसे एक विशेष स्थान पर मिले। उस स्थान का पूरा ब्योरा वह उसे देता है। अश्वेत अमेरिकन को आश्चर्य होता है कि उसने उस कैदी की थोड़ी-सी मदद क्या कर दी, वह उसे सब्जबाग दिखा रहा है मानों उसे सचमुच उम्मीद है कि वह जेल से रिहा होगा या भागने में सफल होगा। एक रात नियमानुसार कैदियों की गिनती होती है। सभी मौजूद हैं परंतु अगली सुबह पता चलता है कि बैंक लूटने वाला कैदी जेल से भाग गया है। जेल में हड़कम्प मच जाता है। उच्च अधिकारी कक्ष का मुआयना करते हैं। अधिकारी रेक्वेल वेल्स का पोस्टर हटा देता है तो सब देखते हैं कि वह सुरंग का एक सिरा है गोयाकि 19 वर्ष तक वह कैदी रात में धीरे-धीरे सुरंग बनाता रहा और निकाली गई मिट्‌टी को अपनी जेब में भरता रहा। प्रतिदिन उसे बाहर काम करने को कहा जाता था और उस समय वह खोदी हुए मिट्‌टी नीचे गिरा देता है। इस तरह उसने वर्षों की मेहनत से सुरंग बनाई और जेल से भागने में सफल हुआ।

कुछ समय पश्चात अश्वेत अमेरिकन की सजा पूरी होती है और वह दिए गए पते पर पहुंचता है, जहां बैंक लूटने वाला आरोपी मौजूद है। उसने एक याट खरीदी है और वह समुद्र यात्रा पर जाने की तैयारी कर रहा है। यहां दोनों मित्र मिलते हैं और वह उसे बताता है कि बैंक लूटने की योजना उसी की थी और वह जानता था कि एक दिन पकड़ा जाएगा, जेल भेजा जाएगा। उसने बैंक से लूटा हुआ धन एक जगह छुपा दिया है।

बहरहाल, जेलों पर बनाई गई फिल्मों में इसे अत्यंत महत्वपूर्ण फिल्म माना जाता है। जेल में जिस गंदगी की बात उठाई गई है, उससे बदतर हाल जेलों का है तथा सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार से मुक्त कुछ भी नहीं है। भारतीय जेलों में भी उन कैदियों को सबकुछ उपलब्ध है, जिनके रिश्तेदार रिश्वत दे सकते हैं। राजनीतिक क्षेत्र से सजायाफ्ता मुजरिमों को भी सभी सहूलियतें उपलब्ध हैं। अत: 'संजू' फिल्म में दिखाई गई गंदगी कोई कल्पना नहीं है। जेलों का निरीक्षण अधिकारियों के अतिरिक्त कुछ संस्थाएं भी करती हैं, जिनका काम है मनुष्य की मदद करना, भले ही वह अपराधी ही क्यों न हो।

ज्ञातव्य है कि सर्वकालिक महान कथा लेखक ओ हेनरी का असली नाम विलियम सिडनी पोर्टर था। जेल में उनके दयावान अधिकारी का नाम ओ हेनरी था और जेल से छूटने के बाद उन्होंने जेलर का नाम अपनाकर कथाएं लिखीं। उनकी कथा 'गिफ्ट ऑफ मैगी' महान कथा मानी जाती है।