जैकी श्रॉफ और सुपुत्र टाइगर श्रॉफ / जयप्रकाश चौकसे

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जैकी श्रॉफ और सुपुत्र टाइगर श्रॉफ
प्रकाशन तिथि : 14 मई 2014


टेलीविजन के एक कार्यक्रम में युवा उभरते फिल्म कलाकार टाइगर श्रॉफ ने कहा कि उनके पिता जैकी श्रॉफ पैदाइशी सितारे हैं और उनकी छाया की तरह संघर्ष करके सितारा बनना चाहता है। टाइगर मात्र अपने पिता के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त कर रहे थे परंतु नेक नीयत के बावजूद उन्होंने त्रुटिपूर्ण मिथ्या बात कह दी क्योंकि जैकी श्रॉफ तो श्रेष्ठी वर्ग के वालकेश्वर क्षेत्र के निकट बसे झोपड़ पट्टी में जन्मे थे और तीन बत्ती नामक तिराहे पर एक खिलंदड़ लापरवाह अर्ध शिक्षित शोहदेनुमा युवा माने जाते थे। वे दादा जैकी थे। सारा व्यवहार एक रफ-टफ मोटरसाइकिल सवार उद्दंड युवा का था। वे भीतर से भोले और सरल थे परंतु दादागिरी का मुखौटा लगाए यथार्थ की समस्याओं को धुएं में उड़ाते रहते थे। इलाके की लड़कियां उनकी और आकर्षित थीं।

सदियों से भलमनसाहत का जीवन जीने वाले परिवार की लड़कियों को उनकी तरह सीधी सरल राह पर चलने वाले लड़के पसंद नहीं थे, गोयाकि अपने ही पुरुष स्वरूप को पसंद करना स्वयं के डुप्लीकेट से प्यार करते हुए एक सपाट जीवन कैसे व्यतीत किया जा सकता है, अत: ये लड़कियां जीवन की आंकी-बांकी गलियों में सतत विद्रोही की मुद्रा में भटकने वाले लड़कों के जीवन की उत्तेजना को पसंद करती थीं। उन दिनों तीन बत्ती चौराहे पर किसी को यह आशा नहीं थी कि जैकी दादा सफल सितारे बनेंगे।

उन दिनों सुभाष घई अपने पूंजी निवेशक गुलशन राय के लिए बहुसितारा 'विधाता' बना रहे थे जिसमें दिलीप कुमार, संजीव कुमार और शम्मी कपूर की मजबूत ढाल के नीचे सितारा पुत्र संजय दत्त को युवा नायक लिया गया था और उसकी उद्दंडता तथा प्रतिभा हीनता से त्रस्त सुभाष घई ने निर्णय लिया कि वे अपनी स्वयं की फिल्म 'हीरो' में कोई सितारा पुत्र नहीं लेंगे और आम आदमियों के बीच से नया कलाकार चुनेंगे। उन्होंने देव आनंद की 'स्वामी दादा' में गैर महत्वपूर्ण दादा की भूमिका करने वाले जैकी श्रॉफ को चुना और मनोज कुमार के भाई राजीव को नायक लेकर बनाई असफल 'पेंटर बाबू' की गुमनाम होती मीनाक्षी शेषाद्री को नायिका लेकर 'हीरो' बनाई। उद्योग के विशेषज्ञों को फिल्म से कोई आशा नहीं थी परंतु सुभाष घई के निर्देशन और लक्ष्मी-प्यारे तथा आनंद-बक्षी द्वारा रचित माधुर्य ने जैकी और मीनाक्षी को रातों रात सितारा बना दिया। वालकेश्वर के तीन बत्ती का शोहदा सितारा बन गया।

अत: जैकी श्रॉफ अपने जन्म की सामाजिक सतह से उभरकर सितारा बने और उनका पुत्र टाइगर श्रॉफ सितारा पुत्र होने के कारण उद्योग का एक हिस्सा था और उसके लिए अपनी प्रतिभा दिखाने के सारे दरवाजे खुले, जबकि पिता ने चारों ओर से सामाजिक व्यवस्था की मजबूत दीवार में अपने लिए एक खिड़की खुद बनाई थी। बहरहाल जैकी श्रॉफ को अपनी पृष्ठभूमि के कारण दौलत को संभालना नहीं आता था और उनकी पत्नी आयशा भी कैश के प्रति लापरवाह थी तथा अपनी झक पर सवार भारी घाटे की फिल्म 'बूम' बना बैठी। यह तो जैकी श्रॉफ का भाग्य था कि अपने अच्छे दिनों में उन्होंने किसी नेक मित्र की सलाह पर कुछ धन से 'स्टार चैनल' के शेयर खरीदे थे जिन्हें बेचकर उन्होंने अपना घर बचाया तथा आर्थिक सुरक्षा प्राप्त की। आज सुभाष घई की उसी 'हीरो' का नया संस्करण सलमान खान बना रहे हैं परंतु न जाने क्यों उन्होंने टाइगर की जगह पंचोली के सुपुत्र को नायक लिया है जो जिया की तथाकथित आत्महत्या के प्रकरण में संदेह के दायरे में हैं।

बहरहाल टाइगर श्रॉफ का व्यक्तित्व अपने रफ-टफ पिता जैकी दादा से भिन्न है। वह संभवत: जैकी श्रॉफ के निर्मल मासूम अवचेतन की तरह दिखता है। उसने अपने पिता के हृदय को अपने चेहरे के रूप में पाया और वह एक कुशल चपल डांसर है, जबकि जैकी दादा के 'दो बाएं पैर' हैं अर्थात नाचना उन्हें नहीं आता परंतु फिल्म के लिए किसी तरह मैनेज करते रहे जैसे धर्मेंद्र ने किया था। टाइगर तो माइकल जैकसन की तरह नृत्य करता है। वह चिकना चुपड़ा चॉकलेटी है, जबकि उसके पिता खुरदरे रहे हैं। साजिद नाडियाडवाला ने उसे लेकर 'हीरोपंथी' बनाई है, आजकल भाषा ऐसे ही तोड़ी जाती है कि 'हीरो गिरी' को 'हीरोपंथी' कहा जाता है। पागलपन को पागलपंथी भी कहा जाता है। बहरहाल जैकी श्रॉफ की नेकी उसके पुत्र का पथ प्रशस्त करेगी। पिता-पुत्र का रिश्ता तीर कमान की तरह है, दोनों के बीच सही तनाव के कारण पुत्र का तीर पिता की कमान से निकल कर निशाने पर लगता है।