जैवा दी के ऐबोेॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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आय सपरिये कैॅ ऐली छेलै जैवा दी। हाथौॅं में एक ठो बेतौॅं के बौकड़ी ठक-ठक करनें हमरा समना में हाजिर। डाड़ौॅ सीधा करतें हुअें हुनी बोललै-की मास्टर, हमरौॅ काम होय रेल्हौॅ छै?

"कोंन काम दीदी?"

हमरा प्रश्न पर हुनी बोललै कुछु नै। सुस्तैलैॅ, आसन ग्रहण करलकै, तबैॅ मुस्कुरैलैॅ। ई हालत में नब्बैॅ बरस कैॅ उम्र जीवी रैल्हो दीदी कैॅ खुबसुरती बढ़ी जाय छेलै। हेनौॅ कहै पारे छौॅ कि सुन्दरता में चार चाँद लगी जाय छेलै। वैसे हुनी सुन्दर छेवै करलै। गोरी झनाक, फकफक दूध रं उजरी, लंबी-पातरी स्वस्थ काया, उठलौॅ छूरिया नाक। दाहिना गालौॅ पर कारौॅ एक ठो मस्सा। उजरौॅ सौॅन रं बाल; फैललोैॅ-बिखरलौॅ। हम्में जहिया से होश संभाललैॅ छियै, हमरा याद छै कि हुनका बाल बान्हलौॅ नै देखलैॅ छियै। रंगीन साड़ी पिन्हलैॅ कहयो नै देखलियै। सौसे देह झापलौॅ-ढकलौॅ! माथा पर साड़ी। लाजौॅ सें झुकलौॅ दू बड़ौॅ-बड़ौॅ आँखौॅं के नीचू पड़लौॅ झुर्री में पाँच-पाँच पीढ़ी के इतिहास छिपलौॅ हिलोर मारै छेलै। उजरौॅ साड़ी, उजरौॅ बाँही तक ब्लौज आरो खौड़का में दीदी आसमान से उतरलौॅ फरिस्ता लागै छेलै।

हम्में दीदी कैॅ टकटकी लगाय कैॅ देखी रेल्हौॅ छेलिये। हुनियो जबैॅ-जबेैॅ हमरा ठिंया आबै छेलै बिना हमरा टोकले नै बौलै छेलैै।

हम्मी टोकलियै-" दीदी कुछ्छु बोलै नै छौॅ?

"तहुँ कुछ्छु कहाँ बोलै छौॅ। खाली टुकटुक देखै छौॅ। की देखौॅ छौॅ हमरा ई ढ़हला भीती में?" दया आरो करूणा से भरलौॅ छेलै दीदी के शब्द।

शब्द ने हमरा भीतर तक छुवी लैलकै। हमरा आँखी सें लोर भरभराय कैॅ गिरी गैलै।

तेरह वर्ष के उम्र में ही विधवा होय गेली रहैैॅ जैवा दी। तहिया से लैकैॅ आय ताँय नै जानौं कत्तैॅ दुःख आरो विडम्बना के बीच संघर्ष करतैॅं हुअें दीदी यहाँ तक पहुँचलौॅ रहै। हमरौॅ दादा के बहिन, परदादा के छौमां संतान छैलै जैवा। जया नांव कटतें-छँटतैं जेवा होय गेलौॅ छेलै।

हम्में सोच-विचारौॅं में डुबलौॅ छेलिये (अक्सर दीदी के ऐतैं हमरौॅ विचारौॅं कैॅ पंख लागी जाय छेलै।) दीदीयैं फेरू टोकलकै "तोरा आँखी में लोर कैन्हैॅ आबी गेल्हौॅ मास्टर। सच्चैॅ तैॅ कहलियौं। एक ड़ाड़ौॅ के जिनगी तैॅ ढ़हला भीती सें भी खराब होय छै। ई मांटी कैॅ फेरू से सानी कैॅ भीत खाड़ौॅ होय जैतैॅ मतुर हमरौॅ बद सें बदतर चौपट जिनगी के की सोगारथ होतै। बेरथ बीती गेलै ई जीवन। ड़ड़खेपौॅ खेपतें नब्बैॅ बरस होय गेलै। कुल खानदान के नाम जोगलिहौं। बस अतनै टा।" कहतें-कहतें दीदी के आँख लोराय गैलै। हुनको एक खाशियत छेलै। चाहे ई खाशियत जोंन कारणें से बनलौॅ रहैॅ याकि हुनको स्वभाव कि हुनी आपनौॅ जिनगी के ई प्रसंग जेकरा में दुख ही दुख छेलै, केकरौह बाँटे लैॅ नै चाहै छेलै। यही लेली हुनी बातौॅ कैॅ बदली कैॅ बोललै-"हों, तैॅ की देखें छेलौॅ हमरा में? बड़ी बढ़िया आरो उच्चौॅ धरम-करम, देश-दुनिया के बात बोलै छौॅ तोंय।"

अतना कही कैॅ दीदी हमरा तरफें झुकी गेलै। हम्में भी खुद थोडौॅ झुकी कैॅ दीदी केआँखों में आँख डालतें हुअें कहलियै-"तोरा परपोतां अपना दीदी माय के आँखौॅ में सौसे हिन्दुस्तान देखै छै। भारत माता कैॅ रूप निहारै छिहौं तोरा में। तोरेह नांकी तैॅ हालत होय गेलौॅ छै भारत माय के भी। आजादी के तिरसठ साल बाद भी हमरा ई देशौॅ कैॅ लूट, आतंक, भ्रष्टाचार छोड़ी कैॅ आरो की मिललौॅ छै? जे जहाँ छै वाहीं लूट-खसोट में भिड़लौॅ छै। पंचायत सें लै कैॅ संसद तक सभ्भैॅ भारत माय कैॅ लूटिये तैॅ रेल्हौॅ छै। देशौॅ कैॅ लूटी कैॅ करोड़ों-अरबौॅं विदेशी बैंकौॅं में वहीं धरनें छै जेकरा हाथौॅ में देशौॅ के बागडोर छै। करोड़पति आरौॅ अपराधी सें भरलौॅ छै देश के सबसें बड़ौॅ पंचायत। देश सेवा कैॅ नाम पर जाय छै आरो सिर्फ़ लूटी कैॅ जेना-तेनां पैसा बटोरै छै। ऐश करै छै। गरीब-गरीबैॅ रहलै। मोटका मोटाय रेल्हौॅ छै। भारत गाँमौॅ के देश आरो गाँव आय तांय गंदगी सें भरलौॅ। गाँवौॅं के चारो तरफ गू के ढेर। नाक नै देलौॅ जाय छै। मच्छरौॅ सें कटाबै लेली मजबूर मजूर-किसान रोग आरो कुपोषण सें अकाल मौत मरै छै। ... पैसा आरो लाठी-गोली कैॅ बल पर चुनाव जीती कैॅ जाय वाला ई नेता सीनी कार, हवाई जहाजौॅ से सरंगौॅं में उड़ै छै। छुछ्छे भाषण पिलाय छै। तोरेह नांकी फाटलौॅ-भांगलौॅ जिनगी जियै छै भारत माय। क्षत-विक्षत, रोग-बीमारी से जर्जर भारत माय के माथा पर उजरौॅ-हिमालय के बरफौॅ नांकी तोरौॅ ई उजरो पकलौॅ बाल ... आपनौॅ निरीह शोषित जीवन के कहानी बयां करै छै।"

दीदी के हर हाल सें हम्में वाकिफ छेलियै। हम्में आरो की-की बोलतियै। दीदीये जाय लेली खाड़ी होय गेलौॅ छेलै। दीदी बोललै-"तोरा बीचौॅ में बोलबौॅ छोड़ी कैॅ जाय कैॅ तैॅ मौॅन नै करै छौं मास्टर। तोंय अत्तैॅ सच बोलै छौॅ कि रोइयाँ-रोइयाँ भुटकी जाय छै। कवि आरो लेखक तैॅ समाज आरो देशौॅ कैॅ आत्मा होय छै। अच्छा यै पर बादौॅ में बात होतै, पैन्हैॅ ई बतावौॅ कि तोंय जे कहलैॅ छेलौॅ कि दीदी हम्में तोरा पर लिखभौं। एक बहुत बड़ौॅ किताब, आभी तांय लिखलैॅ छौॅ की नै। सालौॅ सें दू साल होय गेलै।"

हमरा आपनौॅ कहलौॅ बात याद होलै। मतुर करतिहै की, कोय नै कोय काम में फँसी जाय छेलियै आरो दीदी भी अजीब छेलै। याद दिलाबै आरो चल्ली जाय छेलैॅ आरो हम्में कोय दोसरा लेखन कार्य में भिड़ी जाय छेलियै। भूली जइयैॅ तैॅ फेरू हुनका ऐलैैॅ पर याद आवै। हम्में आपनौॅ गलती कैॅ झांपै कैॅ कोशिश में कहलियै-"आबै छौॅ आरो जाय लेली मार करैैॅ लागै छौॅ। कहना या सुनाना तैॅ तोरेह छौं। आय बैठौॅ तैॅ आय्यैॅ शुरू।"

दीदी दुविधा में पड़लैैॅ। सँझा के समय छेलै। मंदिरौॅ में हुनका छोड़ी कैॅ भगवान भोलेनाथ कैॅ साँझ के देतियै? शिवजी के पूजा-आरती बिना दीदी कैॅ चैन कहाँ। अब तांय एक्कौॅ दिन नागा नै होलौॅ छेलै। दीदी हाँसते हुअैॅ कहलकै-"तोंय हमरौॅ परीक्षा लैैॅ रेल्हौॅ छौॅ की मास्टर? हमरौॅ जिनगी के पैल्हौॅ काम भगवान कैॅ भक्ति छेकै। तोंय हमरा जाँचौॅ नै? पापौॅ के भागी तोरोह होय लैॅ पड़थौं। हम्में साँझ दै कैॅ आवै छिहौं। आय रातभर तोरेह ठिंया बैठी कैॅ पूरा आपनौॅ पुराण सुनाना छै।"

"रातकौॅ खाना बनवाय देभौं दीदी?" हम्में जानै छेलियै हुनी नै खैतैॅ, तहियो कहलियै। " मांस-मछरी खाय वाला यहाँ हम्में कहियौॅ खाय छियै। होनौॅ कैॅ खाय तैॅ छियौं तोरे। ' अतना कहि कैॅ दीदी धतर-पतर जेनां ऐली छेलै वहैॅ रं लाठी बजाड़नें जाबैॅ लागलै। साँझकौॅ छैलौॅ हल्का अन्हारौॅ में दीदी के गोड़ौॅ में पिन्हलौॅ पुरानौॅ-खियैलौॅ हवाई चप्पलौॅ रौॅ चटचट-फटफट आवाज देर तांय गूँजते रहलै।

हमरा याद एैलैॅ। आय एतवार छेलै। हुनकौॅ उपासौॅ रौॅ दिन। ओनां कैॅ सप्ताह भर हुनकौॅ उपासैॅ रहै छेलै। कोनौॅ न कोनौॅ व्रत हुनका पोथी-पतरा में रहतैं छेलै। होनौैॅ हुनका रोज भगवानौॅ कैॅ पूजा करतैं बारह सें दू बजियैॅ जाय छेलै। हुनका रात कैॅ सूझै नै छेलै। यै लेली हम्मैॅ जानै छेलियै कि हुनी साँझ-आरती करतै आरो धड़फड़ करनें चल्ली ऐतै। ई जानी कैॅ हम्मूं उठलियै आरौॅ साँझकौॅ कार्य से फरांकत फुरसत हुअैॅ लागलियै।

साँझ रौॅ समय। चैतौॅ के महिना। हौलैॅ-हौलैॅ, मीट्ठौॅ-मीट्ठौॅ चैतारौॅ हवा बही रेल्हौॅ छेलै। नजदीकैॅ आमौॅ के बगीचा में कोयल रहि-रहि कुहकी रेल्हौॅ छेलै। कांही दूरौॅ सें रातरानी के सुगंध हवा साथें आबै छेलै आरो मन-प्राणौॅ कैॅ बौराय दैॅ। हम्में खुल्ला आसमानौॅ में ऐंगना के बीचौॅ में चौकी पर बिछौना लगाय कैॅ लालटेन जलैलियै आरो दीदी के प्रतीक्षा में बैठी गैलियै।

दीदी लगभग एक घंटा के बाद ऐलै। हम्में हाँसी कैॅ कहलियै-" बड़ी देर करी देल्हौॅ दीदी। अन्हारौॅ में केनां ऐलौैॅ। गिरी पड़तिहौॅ तैॅ खिस्सा धरलैॅ रही जैतिहौं। मरैैॅ कैॅ मौॅन छौं की?

दीदी बैठतें हुअें कहलकै "कहाँ मरै छियै हम्में मास्टर। हमरा से छोटौॅ-छोटौॅ, हमरा आगु रौॅ जनमलौॅ सीनी मरलै। हम्में अक्खज धरलैॅ छियै। मरी जाँव तैॅ तरी जाँव। रोगौॅ-बियाधी नै छुवैॅ छै। अच्छा एक बात बतावौैॅ तैॅ, तोंय वेदशास्तर, रामायण, महाभारत सभ्भैॅ पढै़ैॅ छौॅ। काहूँ तैॅ ज़रूरे लिखलौॅ मिललौॅ होतों कि मोसमात होला पर जनानी रो देहैॅ छूती जाय छै। ओकरा भूतें-प्रेतें, अंधड़-वतास कोय नै छुवै छै। यहाँ तक की जम्मौॅ नै। जेकरा काल कहै छौॅ वहूँ छूतै डरौॅ सें किनारा होय जाय छै।" दीदी रौॅ बोली में हुनको बितैलौॅ विधवा जीवन के उमिर भर के दुख समैलौॅ छेलै। समाज के एक ऐन्हौॅ नंगा सच जै पर आदमी गर्व करै छै। खानदान-इज्जत के नामौॅ पर जनानी जीवन कैॅ नरक बनाय देलौॅ जाय छै। सच्चैॅ हम्में सिहरी गेलियै। हमरौैॅ देहौॅ के रोइयाँ-रोइयाँ खाड़ौॅ होय गेलै। दीदीये फेरू बोललै तैॅ हमरौॅ ध्यान टूटलै।

"तोंय हमरा कुछछु पूछला पर बोलै छौॅ कम, चुप कैन्हैॅ लगाय दै छौॅ? देश-दुनिया जहाँ भी घूमलियै यहैॅ सुनलियै। मनौॅ में बात उठतैं रहै छै। तोरौॅ जवाबौॅ सें, तोरा समझैला पर हमरौॅ भरम दूर होय जाय छै। शंका मिटी जाय छै। यही लेली बोललिहौं।"

दीदी के यै प्रश्नौॅ रौॅ उत्तर संभव नै छेलै। की जवाब देतियै हम्में? हम्में यै बातौॅ कैॅ टारना ही बढ़िया समझलियै-"दीदी! यै पर लंबा बात होय जैतै। ऐकरा पर कहियौॅ बात होतै। आय जोन कामौॅ लैॅ ऐलौॅ छौॅ, यही पर बात हुअैॅ तैॅ अच्छा।" " तोंय जे कहौॅ।

आरो दीदी शुरू करलकै आपनौॅ जिनगी के कहानी। गाँवौॅ के, समाजौॅ के, दादा-परदादा के आरो पाँचमौॅ पीढ़ी में हम्में सौसे परिवार, हमरौॅ बेटा, बेटी आरो कनियाय सब काम छोड़ी कैॅ किस्सा सुनै लैॅ बैठी गेलिये। दीदी बोली कैॅ हाँसलै-" सोचौॅ न तोरौॅ बाल-बच्चा तैॅ छठमौॅ पीढ़ी होलै। ऐकरेह हमरौॅ पूण्य फल मानौॅ। ऐकरा सीनी कैॅ देखी कैॅ हम्में सब दुखों के भूली जाय छियै। भगवंती नै तबैॅ हम्में की। अतना बड़ौॅं बाग-बगीचा हमरे तैॅ छेकै। फुलबारी रौॅ ई सब सुन्नर फूल देखी कैॅ ही तैॅ जीवी रेल्हौॅ छियै।

हों तैॅ सुनौॅ, हमरौॅ बाप सोनमनी रौत बड़ी अकवाली पुरूष छेलै। है सब संपत हुनकैॅ अरजलौॅ छेकै। बड्डी बुधियारौॅ छेलै हुनी। हुनी तखनी हमरौॅ जन्मटिपन बनबैलै छेलै। वर्ष 1902, दिन बुधवार बारह बजे, फागुन महिना हमरौॅ जनम। दादा बिहारी रौत यै गाँमों में घरजमैया बसलौॅ छेलै। परदादा केवल रौत पृथीचक चौतरा गामौॅ में बसै छेलै। फिरंगी राज। सब जमीन नीलाम होय गेलै। किसानें जमीनौॅ के मालगुजारी चुकाबैॅ नै पारै छेलै। ...