ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया / ओशो / पृष्ठ 2

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भूमिका

भगवान महावीर की देशनाओं में पंच महाव्रत केंन्दीय स्थान रखते हैं। 2500 वर्ष से इनकी सम्यक समझ के साथ किया होगा, जीया होगा, क्योंकि निश्चित ही उनके मुनियों ने समझा होगा, जीया होगा, क्योंकि उस समय शास्ता स्वयं उनके बीच उपस्थित थे। लेकिन समय के अंतराल में इन महाव्रतों पर बहुत धूल इकट्ठी होती गयीऔर ये महासूत्र धूमिल होते गये। आज ये महासूत्र धूमिल होते गये। आज ये महासूत्र मात्र एक औपचारिक बन कर रह गये है, जिन्हें बिना समझे आज के साधक जैन मुनि निभा रहे हैं।

ये पंच महाव्रत हैं-अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, अकाम तथा अप्रवाद। ये जीवन में महाक्रातिं के सूत्र हैं। प्रस्तुत पुस्तक में ओशो ने इन महासूत्रों पर पाँच अमृत प्रवचन दिये हैं तथा आठ प्रश्नोंत्तर हैं। अपने प्रथम प्रवचन के अंत में ओशो कहते हैः चार दिन तक एक-एक की खोज आपके साथ करना चाहूँगा और पाँचवें दिन, अंतिम दिन, इन चारों सूत्रों में कैसे उतरा जा सकता है, उसकी बात कहूंगा। अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, अकाम, ये चार परिणाम हैं और पांचवा सूत्र-अप्रमाद, अवेयरनेस-इन चारों तक पहुँचने का मार्ग है।

जैन साधकों ने अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और अकाम पर आचरण की भांति तो बहुत ध्यान दिया, लेकिन इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सूत्र अप्रमाद-अंतस-रूपांतरण के सूत्र- पर उतना ध्यान नहीं दिया। इसलिए ये प्रथम चार सूत्र केवल ऊपरी औपचारिक व्रत मात्र बन कर रह गये, महाव्रत नहीं बन पाए और साधक जीवन-रूपांतरण से वंचित रह गये। भगवान महावीर के 2500 वर्ष बाद आज ओशो ने इन्हें पुनरुज्जीवित करने की करुणा की है और इन पर जमी धूल को हटाया है। उनके इन प्रवचचनों को पढ़कर न केवल जैन साधक लाभान्वित होंगे, बल्कि वे सभी साधक भी लाभान्वित होंगो, जो किन्हीं संप्रदायों की संकीर्ण दीवारों में बंधे नहीं हैं। यह कहना अधिक संगत होगा कि इन प्रवचनों को पढ़कर कोई भी व्यक्ति संप्रदाय या धर्म-विशेष नहीं रह पाएगा, क्योंकि ये सूत्र तो परम मुक्ति हैं।

सभी बुद्धों-कृष्ण, बुद्घ, महावीर, नानक, गोरख, कबीर तथा ओशो- के सूत्र उनकी देशनाएं संपूर्ण मनुष्यता के लिए हैं। इसलिए जैन यह दावा नहीं कर सकते कि महावीर केवल उनके हैं। महावीर सभी के लिए हैं। ओशो सभी के लिए हैं। ओशो को देशना सार्वभौम है, सार्वकालिक है। इन देशनाओं का रसादन करने और जीवन-रूपांतरण की दिशा में गतिमान होने के लिए सभी को निमंत्रण है। रहे होंगे कभी ये पंच महाव्रत केवल जैनियों के लिए। लेकिन अब, इन पर ओशो के अमृत प्रवचनों के बाद, ये सभी के हो गये है। जैना और मुनि तो उन्हें पढ़ ही रहे हैं। वे लोग भी जिन्हें न तो कभी जैन धर्म से कोई सरोकार था और न भगवान महावीर से परिचय था, वे भी इन्हें बहुत भाव से पढ़ रहे हैं, क्योंकि वे ओशो के प्रत्येक प्रवचन को पढ़ते हैं और वे ओशों को प्रेम करते हैं।

ओशो के माध्यम से आज पच्चीस सौ वर्ष बाद महावीर पुनः जीवंत हो गये हैं, समसामयिक हो गए है, यद्यपि यह भी सत्य है कि दुनिया आज भी महावीर की समसामयिक नहीं हो पायी है। महावीर अहिंसा सिखाते हैं और आज चारों ओर हिंसा ही हिंसा है- भारत में भी ! संपूर्ण विश्व में तो महावीर पहुंच ही नहीं पाये, भारत जहाँ से पैदा हुए, वह भी महावीर को नहीं समझा है, और जीना तो बहहुत दूर की बात है। भारत और यह समूचा विश्व महावीर को नहीं समझा है, न उनका समसामायिक हुआ है, तो ओशो ने अपने समय से और भी आगे हैं, उनका समसामायिक कब होगा ? भारत ने इस दिशा में कोई रुचि नहीं दिखाई, लेकिन फिर भी महावीर के मार्ग पर आ गई दुरूहता को अलग करके सभी के लिए महावीर को बोधगम्य बनाया जाता है। और ओशो स्वयं अति सरल हैं, सहज हैं, सर्वसुलभ हैं, हम उन तक सुगमता से पहुँच सकते हैं। सभी को उनका निमंत्रण है। सिर्फ निमंत्रण स्वीकार करने भर की बात है। पंच महाव्रत के माध्यम से ओशो हमें पुकार रहे हैं, बुला रहे हैं,-बुद्धत्व की दुनिया में, जिनत्व की दुनिया में। ओशो के प्रज्ञा-प्रकाश में महावीर की देशानाएं आज के युग के लिए निश्चित ही बहुत उपयोगी हो गयी हैं। एक अन्य प्रवचन में ओशो ने स्पष्ट रूप से दो विकल्प बताए हैं: महावीर या महाविनाश।

स्वामी चैतन्य कीर्ति संपादकः ओशो टाइम्स इंटरनेशनल