टीस / एक्वेरियम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो कुम्हार था। मिट्टी के घड़े बनाना और बेचना ही उसका पेशा था। सुन्दर कलाकारी करना और घड़ों को सुन्दर आकार देना और फिर उन्हें बेच देना उसका पुश्तैनी काम था। जब-जब भी वह अपने इस घड़े बनाने के काम से उकता जाता पास के खेत पर चला जाता और बागवानी करने लगता। उसके भाइयों ने वक्त की नब्ज पहचान कर अपने-अपने हिस्सों की जमीन ऊंचे दामों पर बेच दी थी। लेकिन उसने अपने लिए थोड़ी-सी जमीन बचा कर रखी थी। उसकी पत्नी हमेशा उसे इस जमीन के लिए ताना देती थी कि इसे बेचकर वह पक्का घर बनवा ले लेकिन कुम्हार उस जमीन को बेचना नहीं चाहता था। वह जमीन का टुकड़ा उसे प्राणों से भी ज़्यादा प्यारा था उसने उस जमीन पर बड़ी मेहनत से सुन्दर फूल वाले पौधे लगाये थे। जब भी मिट्टी के घड़े बनाकर उसका मन उचट जाता वह खेत में अपने सुन्दर-सुन्दर पौधों को देखने चला आता।

वह हर बरस बड़ी तन्मयता से बीज बोता और फूलों के खिलने का इंतजार करता। इंतजार उसे बेहद पसंद था। अक्सर बरसात बहुत इंतजार के बाद आती, तब कहीं जाकर उसकी फूलों की क्यारियाँ महकतीं। वह जब अपने खेत को फूलों से भरा हुआ देखता तो खुशी से पागल हो जाता। उसे फूलों को तोडऩा सख्त नापसंद था, वह उन्हें बस प्रेम से छूता और उनकी सुगंध से मदहोश होता। उसे फूलों का मुरझाना भी पसंद नहीं था, ठीक इसी तरह लोगों का बिछडऩा भी उसे बिलकुल नहीं भाता था। वह उन्हें बिछड़ते हुए नहीं देख सकता था इसलिए अपनी ज़िन्दगी में वह अपने प्रिय लोगों से चाह कर भी कभी नहीं मिला।

मौसम के बदलने के साथ जब उसके खेत के फूल मुरझाने लगते तो वह गहरे दु: ख में डूब जाता। वह उन फूलों के मुरझाने के पहले ही भाग आता और फिर कई दिनों तक झोपड़ी से बाहर नहीं निकलता। खुद को घड़े बनाने में व्यस्त कर देता। ये सिलसिला कई बरसों तक चलता रहा। एक दिन वह फूलों के खिलने-मुरझाने और लोगों के मिलने-बिछडऩे के खेल से भी उकता गया और उसने तय किया इस बरस हंसी, मुस्कान, प्रेम और खुशी के बीज नहीं बोयेगा। उसे मुरझाने वाले पौधों से अब नफरत हो चली थी।

इस बरस उसने 'टीस' के बीज बोये। उसने कई तरह की टीसें बोईं। अपने चारों तरफ उसने कंटीली टीस उगाई. यादों, वादों, कसमों, इच्छाओं के बीजों को काली भुरभुरी मिट्टी में गहरे दबा दिया और बादलों का इंतजार करने लगा।

रुत फिर बदली, आसमान में बादल मंडराए लेकिन उसके खेत पर इस बरस कोई बादल नहीं आया (उसकी खुशी पर हमेशा शापों का साया मंडराता था) न जाने बादलों का उससे क्या बैर था, इस बरस एक भी बादल उसके खेत में नहीं बरसा। उसके बीज यूं ही धरती के भीतर दु: ख से मरने लगे।

हारकर उसने अपने आसुंओं से उन टीसों को सींचना शुरू कर दिया, जल्दी ही उन बीजों से कोमल अंकुर फूटे और जल्दी ही वे कंटीली झाडिय़ों में तब्दील होने लगे। उन्हें संवारते हुए उसके हाथ रोज छलनी होते, उनसे लहू बहता, हाथों के साथ-साथ उसकी आत्मा भी छलनी होती जाती। वह अब रोज एक नयी टीस बोता उसे पालता-पोसता और उन टीसों के बीच सो जाता।

अब वह फूलों की खेती नहीं करता, सुगंधों का व्यापार नहीं करता। अब वह सिर्फ़ अवसाद की जमीन पर कांटों का कारोबार करता है। वह खुश था बहुत कि कांटे कभी मुरझाते नहीं। उनके रंग फीके नहीं पड़ते, उनकी सुगंध नहीं उड़ती, वे हमेशा उसका साथ निभाते उगते हुए भी और चुभते हुए भी। उसकी टीस टूटकर तलवों में चुभती और सालों सुरक्षित रहती।

देखो-देखो आज फिर उसने एक वादा तोड़ा एक प्रेम की कोंपल नोंच डाली और ठीक उसी जगह एक टीस बो दी। अब फिर वह इंतजार में बैठा है टीस के फलने के, फूलने के। वह इस इंतजार से उकता कर फिर घड़े बनाने लगता उसके बनाये हर घड़े पर उसकी टीस उभरती, उसके मन के खेत में (मन समझते हैं न आप?) अनगिनत टीसें फलने-फूलने लगी हैं और न जाने कैसे उन टीसों के प्रतिबिम्ब उसके बनाये घड़ों पर उभर आये हैं।