टेम्स की सरगम / भाग 13 / संतोष श्रीवास्तव

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अब हिंदुस्तान में बचा ही क्या था जिसकी लालच में टॉम रुकता। वह तो रागिनी से भी छुटकारा पा लेता अगर डायना उसके नाम वसीयत न करती लेकिन अब उसके लिए रागिनी को सुरक्षित रखना अनिवार्य हो गया। जॉर्ज और दीना पूरे तौर पर डायना भक्त थे और टॉम की हरकतों पर उनकी कड़ी नजर थी। लिहाजा दस महीने की रागिनी को लेकर टॉम लंदन वापिस लौटा और जार्ज, दीना और उसके दोनों बेटों सहित डायना की कोठी में रहने लगा। रागिनी की तमाम बातों की जानकारी दीना कलकत्ते में मुनमुन को देती रही क्योंकि डायना की यही इच्छा थी और अपनी बीमारी के दौरान उसने दीना और मुनमुन से वचन ले लिया था कि वे दोनो रागिनी की परवरिश के दौरान आपस में संबंध रखेंगी।

टॉम की शराब और औरत की लत छूटी नहीं थीं। लंदन में उसके लिए सेक्स का बाजार था जहाँ वह हर रात औरत खरीदता और डायना ने उसके नाम जितना मासिक रूपया तय किया था उसे लुटाता। धीरे-धीरे उसका शरीर बीमारी की गिरफ्त में जकड़ता चला गया। शराब के कारण उसके गुर्दे खराब हो गए... हालत यह हो गई कि वह पूरे तौर पर बिस्तर पर आ गया। लीवर सिकुड़ गया और उसमें पानी भर गया। महीने भर अस्पताल में रहने के बाद जब वह घर लौटा तो पैर जवाब दे गए। किसी तरह घिसट कर छड़ी और दीवार के सहारे बाथरूम तक जा पाता। जबान लड़खड़ाने लगी थी और पेशाब पर कंट्रोल नहीं रहा था। जॉर्ज ने उसके लिए एक नर्स नियुक्त कर दी थी पर वह टॉम के हिस्से की पीड़ा तो नहीं बाँट सकती थी। वह तिल-तिल मर रहा था, छीज रहा था। सही कहा है कि स्वर्ग नरक सब इंसान के बनाए भ्रम हैं। अपने कर्मों की सजा यहीं भोगनी पड़ती है। जब तक सारी सजा भोग नहीं ली जाती तब तक आदमी मरता भी तो नहीं। टॉम ने हिंदुस्तान में नौ वर्षों के प्रवास के दौरान पैंतालीस औरतों के साथ बिना उनकी मर्जी के संभोग किया था। उनमें से कितनी औरतों ने तो आत्महत्या कर ली थी। तीस निर्दोष लोगों की हत्याएँ टॉम ने अपने अंग्रेज होने के दम पर की थीं और सबसे बड़ा गुनाह था चंडीदास का कत्ल जिसकी वजह से डायना जैसी दयालु, गुणी और भोलीभाली औरत इस दुनिया से असमय चली गई। अब पछतावे के सिवा बचा ही क्या है। काश, वह डायना को प्यार करता... उसके सुख-दुख में जीता मरता तो आज कितनी शान से वह डायना की संपत्ति का उपभोग करता... पर... वक्त तो हाथों से फिसल चुका था। कैसे लौटाए टॉम उस गुजरे वक्त को? वह तड़पकर रह जाता, उसे एक-एक कर हिंदुस्तान के अपने जुल्म-अत्याचार से भरे दिन याद आने लगे और वह सिर के बाल नोचता आहें भरने लगा। दर्द से उसका शरीर फटा जा रहा था। वह तड़प रहा था और नर्स से दवा देने की गुहार कर रहा था पर नर्स ने आज के कोटे की सारी दवा दे दी थी। अचानक उसे ऐसा लगा जैसे उसके सारे शरीर के खून ने एक उछाल मारी है और उसने भलभलाकर मुँह से खून उगला। खून कानों और आँखों के रास्ते भी बह निकला। उस वक्त जॉर्ज और दीना वीकएंड पर रागिनी को टेम्स की लहरों पर लांच से सैर करा रहे थे। कोठी के तमाम नौकर टॉम को अस्पताल ले गए जहाँ जाँच के बाद डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। जितना खून उसने लोगों का बहाया था उस खून का हिसाब अपने शरीर के खून से चुकता कर और अपनी भयानक जानलेवा बीमारी के लंबे दस वर्ष बिस्तर पर गुजार कर टॉम को मौत भी नसीब हुई तो सड़क पर... हाँ, अस्पताल ले जाते हुए ऐंबुलेंस में ही उसने दम तोड़ दिया था।

यह अंत पीड़ा का नहीं था, यह अंत उस गुनहगार का था जो लगातार दस वर्षों तक अपने गुनाहों की जेल में सड़ता रहा था। टॉम के मर जाने पर किसी की आँख में एक बूँद आँसू नहीं था। यही तो उसकी त्रासदी थी। भरे पूरे संसार को आँच दिखा वह खुद को सर्वशक्तिशाली समझ अत्याचार के दुर्ग रचता गया और वही दुर्ग उसके कैदखाने हो गए। यूँ एक युग का अंत हो गया।

दीना बताती थी कि रागिनी की मुनमुन बुआ जो कलकत्ते में हैं उसको कितना चाहती हैं। मुनमुन के चेहरे-मोहरे, रखरखाव से रागिनी इतनी परिचित हो चुकी थी कि अगर वह सामने आ जाती और कोई नहीं भी बताता तो भी वह जान जाती कि ये उसकी मुनमुन बुआ हैं। लंदन में बसे भारतीयों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जब वह किसी बंगाली लड़की को गाते सुनती तो उसे मुनमुन बुआ ऐसी याद आने लगती जैसे बरसों साथ रहकर अभी-अभी बिछुड़ी हों उससे और जिनका बिछुड़ना एक शून्य बनकर उसकी जिंदगी में समा गया है।

जिंदगी के कई वसंत इसी तरह अहसासों में गुजर गए। अब वह बाकायदा केंब्रिज की विद्यार्थी थी जहाँ उसका साँचे में ढला बदन और तीखे नाक-नक्श चर्चा का विषय थे। बहुत सारी अंग्रेज और हिंदुस्तानी लड़कियों सहित कई लड़के उसके दोस्त थे जो विभिन्न देशों से आए थे। वे खुद ही कमाकर अपने रहने खाने और पढ़ने का इंतजाम करते थे। कुछ पार्टटाइम नौकरी करते, कुछ टयूशंस और कुछ रेस्तराओं में काम... पार्टटाइम नौकरी करने वालों में सैमुअल था जो अमेरिकन था और जिसे सब सैम कहकर बुलाते थे। सैम से रागिनी की मुलाकात एक क्लास का लैक्चर समाप्त होने के बाद कॉलेज के डायनिंग हॉल में हुई थी। नाश्ते की मेज पर सैम ठीक उसकी बगल में आ बैठा था। दोनो ओर काले गाउन में विद्यार्थियों की लंबी पंक्ति बैठी थी। डाइनिंग हॉल में चम्मच, प्लेट और छुरी काँटों का शोर था। हॉल के कोने वाली मेज पर लैक्चरर्स और प्रोफेसर्स बैठे थे जिनकी धीमी-धीमी गुफ्तगूँ रागिनी के थके दिमाग पर एक नशीला-सा शोर बनकर छा रही थी। ऊँची-ऊँची खिड़कियों के पार बगीचे में लगे लंबे-लंबे पेड़ पहरेदार की तरह माहौल को सुरक्षित रखे थे।

“आप केंब्रिज की स्टुडेंट है मिस... “ अचानक सैम ने उससे पूछा था और वह उसके इस बेतुके सवाल पर मुस्कुराकर रह गई थी।

“माफ करिए, कुछ गलत कहा मैंने?” सैम झेंप मिटाते हुए बोला।

“जी नहीं, आप सही हैं। मैं रागिनी रोज... इसी कॉलेज की स्टुडेंट हूँ और अभी-अभी प्रोफेसर की उसी क्लास को अटैंड करके यहाँ आई हूँ जिसे आपने भी अटैंड किया था।” दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े। कोने की मेज पर से चंद प्रोफेसर्स ने उन्हें चौंक कर घूरा।

“चलिए बाहर चलते हैं।”

बाहर हलकी-हलकी बूँदाबाँदी हो रही थी। रागिनी के गाल पर लंबे छतनारे पेड़ों की पत्तियों से कुछ बूँदे चू पड़ीं। सैम ने जेब से रूमाल निकाल कर उसकी और बढ़ाया-”थैंक्स”... रूमाल में बूँदे जज्ब हो गईं। फिट्ज-विलियम लाइब्रेरी से रागिनी को कुछ किताबें लेनी थीं... “मैं चलूँ?”

“फिर कब मिलेंगे?” सैम ने आतुरता से पूछा।

“चाहे जब।”

“क्यों न अभी... कुछ वक्त और... ताकि मैं बता सकूँ कि मैं पेरिस से... “रागिनी ने सैम की आँखों में विशेष आमंत्रण परख रजामंदी में सिर हिलाया और दोनों हाथ पुलोवर में ठूँस लिए। बूँदें थम चुकी थीं। विद्यार्थियों की टोलियाँ आ जा रही थीं। दोनों लॉन में चहलकदमी करने लगे।

“पेरिस सपनो का शहर है। खूबसूरत और समृद्ध... दिलफेंक नौजवानों का अड्डा... मैं वहीं से आया हूँ... पढ़ने और अपनी मंजिल पाने।”

“बहुत मशक्कत उठा रहा हूँ मंजिल के लिए। लेकिन वह दिन दूर नहीं जब मैं अपनी विज्ञापन फिल्में बनाऊँगा, डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाऊँगा... आह, सच।”

“आमीन” रागिनी ने उसके लिए दुआ की। पार्किंग प्लेस से उसकी गाड़ी आहिस्ता-आहिस्ता उसकी ओर बढ़ रही थी। रागिनी ने सैम से विदा ली और लाइब्रेरी की ओर भागी। शैले, कीट्स और एलियट की किताबें अपने नाम इशू कराके वह पंद्रह मिनट में लौट आई। सैम जैसे का तैसा खड़ा मिला, उसी जगह जहाँ वह उसे छोड़ गई थी-”अरे, आप गए नहीं?”

“आपको गुडनाइट जो नहीं कहा था।”

“ओह... हाउ स्वीट... आप बहुत अच्छे हैं।”

ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोला।

“कहाँ जाएँगे आप? आइए, ड्रॉप कर देंगे।”

“थैंक्स... मैं पैदल ही जाऊँगा वरना वह उदास हो जाएगा।”

“कौन?”

“है कोई... जीजस लेन पर रोज शाम को खड़ा हो न जाने किस वाद्य यंत्र पर गमगीन धुनें बजाता है। उसके वाद्य-यंत्र रोज बदलते हैं... लेकिन हर वाद्ययंत्र से वही रूला डालने वाली धुन। मैं थोड़ा समय उसके साथ गुजारता हूँ। फिर अपने छोटे से किराए के कमरे में जाकर सब्जियाँ उबालकर पावरोटी के साथ खाता हूँ... मैं जानता हूँ, शीघ्र ही मुझे इस सबसे छुटकारा मिल जाएगा जब मैं अपना प्रोजेक्ट पूरा कर लूँगा।”

उस शाम सैमुअल के बारे में बस इतना ही जान पाई रागिनी। फिर हफ्ते भर उससे मुलाकात नहीं हुई। रागिनी लाइब्रेरी से लाई किताबें पढ़ने में मशगूल थी। अक्सर रात को दीना मुनमुन को फोन करती तब रागिनी भी उनकी आवाज सुनने को बेताब हो उठती। फोन पर वे पूछतीं-”मेरी रागिनी कौन-सी किताब पढ़ रही है?”

रागिनी को आश्चर्य होता-”अरे बुआ, आपको कैसे पता कि मैं किताब पढ़ रही हूँ? बुआ, मैं कीट्स को पढ़ रही हूँ... लिखा है... एंड नो बर्ड्स सिंग... एक भी चिड़िया नहीं चहचहाई। कितनी चोट करती है यह पंक्ति।”

“रागिनी, चिड़िया की चहक प्रकृति की वह खुशी है जो अनजाने ही हमारे इर्द-गिर्द छाई रहती है... यह बात दीगर है कि हम उसे समझ नहीं पाते।”

“मैं समझी नहीं बुआ।”

“अरे पगली, चिड़ियों का चहचहाना प्रकृति की मुखर खुशी का एक हिस्सा ही तो है।”

कितने अच्छे से समझा लेती हैं बुआ... न जाने कब देख पाएगी वह बुआ को। दीना गंभीरता से समय के हिस्सों का विभाजन करती... इतने साल में कॉलेज की पढ़ाई... इतने साल में यूनिवर्सिटी की... झुँझला पड़ती रागिनी-”क्या बूढ़ी होकर जाऊँगी इंडिया? अभी क्यों नहीं?”

अब दीना क्या बताए कि अभी रागिनी का हिंदुस्तान जाना ठीक नहीं... अभी उसका मन सिर्फ पढ़ाई में लगना चाहिए। उसका हिंदुस्तान जाना केवल मुनमुन के घर का सफर नहीं बल्कि एक ऐसा सफर न बन जाए जो डायना और चंडीदास के प्रेम प्रसंगों और टॉम की अमानुषिकता के कारण उसे रास्तों से भटका दे।

सोच में बेचैन दीना की आँखें कमरे में जलती अंगीठी पर टिकी थीं। नफासतपसंद दीना का कमरा अल्ट्रा मॉडर्न आर्टिस्टिक ढंग से सजा था। ... जार्ज बूढ़ा दिखने लगा था... दीना के बाल भी शानदार ढंग से सफेद थे... एक भी काला बाल नहीं था उनमें। उनके दोनों बेटे अमेरिका में सैटिल थे। पढ़ाई कम, बिजनेस ज्यादा। जॉर्ज साल में एक चक्कर अमेरिका का लगा लेता। दीना कभी नहीं गई अमेरिका। वह रागिनी के साथ परछाई-सी बनी रहती थी। उसे लगता उसकी एक चूक डायना से किए वादे को झूठा न साबित कर दे। बाहर बाग में प्रिमरोज की लताएँ हवा में हौले-हौले साँस ले रही थीं। दूर चिमनियों में चाँद अटका था।

रागिनी को भी अपनी ममा के समान किताबें पढ़ने की खब्त सवार थी। अंग्रेज लेखकों की एक लंबी फेहरिस्त है उसके पास जिन्हें वह पढ़ डालना चाहती है। अंग्रेज ही क्यों... अन्य विदेशी लेखकों को भी। ढेरों किताबें हैं डायना की लाइब्रेरी में - शेक्सपीयर, बेकन, पुश्किन, रूसो, टॉल्सटॉय, दॉस्तोवस्की, लैम्ब, लॉक, हॉब्स, सोल्जेनित्सिन, डार्विन, स्विफ्ट, डिफो, चैटविंड, ब्रूस, चेखव और उसके प्यारे हिंदुस्तानी लेखक कालिदास, बाण, टैगोर, शरतचंद्र, बंकिम, सुनील गंगोपाध्याय, चंडीदास, महाश्वेता देवी, महादेवी वर्मा, देवकीनंदन खत्री, प्रेमचंद, नजरूल, इकबाल... ओ माई गॉड, दिमाग चकरा जाता है। क्या इतनी किताबें पढ़ने के लिए एक जन्म काफी है? इन दिनों वह कृष्ण को पढ़ रही है। वह जितना ही उनसे संबंधित पुस्तकें, ग्रंथ, काव्य पढ़ती है, उतना ही उलझती जाती है। कौन-सा रूप स्वीकारे कृष्ण का... वे तो हर रूप में मोहते हैं।

दीना की कोशिश रहती कि वह रागिनी से टॉम का जिक्र न करे इसीलिए डायना की हर छोटी-से-छोटी बात वह रागिनी के कोमल मन में उतार देना चाहती थी। एक गायक के तौर पर चंडीदास से भी खूब परिचित करा दिया था उसने रागिनी को। रागिनी के कमरे में फायर प्लेस के ऊपर दो तस्वीरें रखी थी। एक डायना की, दूसरी चंडीदास की। दोनों तस्वीरों के बीच में टैगोर की छोटी-सी चॉकलेटी रंग की मूर्ति थी जिसे शांतिनिकेतन के छात्रों ने खुद बनाया था और जिसे बोलपुर के बाजार से डायना ने खरीदा था। सामने की दीवार पर टॉम की बहुत बड़ी तस्वीर टँगी थी। टॉम की नीली आँखों में रागिनी को कभी कोई भाव नजर नहीं आया जबकि चंडीदास की बड़ी-बड़ी आँखें स्नेहिल नजर आती थीं। न जाने क्यों रागिनी ने चौंककर सोचा कि सैम की आँखें भी तो डैड की आँखों से कितनी मिलती-जुलती लगती हैं।

सैम को रुपियों की सख्त जरूरत थी। पिछले छह महीने से हर शाम साथ गुजारते, कॉलेज की क्लासेज में साथ लैक्चर सुनते, कैंटीन या कॉलेज के डाइनिंग हॉल में संग-संग कॉफी की चुस्कियाँ भरते वे एक-दूसरे के काफी करीब आ गए थे। सैम की जेब अक्सर खाली रहती, पर वह जूतों, कपड़ों ओर अपनी खास अदाओं से रईस नजर आता था। सैम समझ चुका था कि रागिनी करोड़पति घराने की इकलौती वारिस है और जो अब अनाथ है और जिसके पास साँचे में ढला मोहक जिस्म है जो यदि कैमरे के सामने आ जाए तो विज्ञापन की दुनिया में तहलका मचा दे। सैम को इंतजार है वक्त का।

“तुम बी.बी.सी. में कैजुअल अनाउन्सर क्यों नहीं हो जाते? पढ़ाई के साथ-साथ तुम्हारा खर्चा भी निकलता जाएगा।”

“वो मेरा सपना नहीं है रोज। वहाँ साधारण प्रतिभावाले ढेरों हैं। मैं उस भीड़ में खोना नहीं चाहता... चाहे जब वी.आई.पीज के इंटरव्यू लो, रिपोर्टिंग करो... यह तो कोई भी कर सकता है। मुझे तो फिल्मों के लिए काम करना है। मैं स्क्रिप्ट राइटिंग भी नहीं करूँगा। बस, कैमरा हाथ मैं लूँगा और डायरेक्शन करूँगा” सैम की आँखें सपनों से ओतप्रोत थीं।

“और मैं ऑब्जर्वर या मैसेंजर में न्यूज पढूँगी। डायरेक्टर सैम की फिल्मों की, विज्ञापनों के स्टिल सीक्वेंस देखूँगी।”

“डेफीनेटली, ऐसा ही होगा और जल्द होगा।”

बावजूद अलग-अलग विचारों के दोनों में प्रेम के अंकुर फूटने लगे। अक्सर कॉलेज से दोनों टेम्स के किनारे चले जाते और थोड़ी चहलकदमी के बाद लांच में जा बैठते। जिंदगी बड़ी हसीन शै है अगर ढंग से जी जाए, तो वरना रिगदते-रंगहीन दिन और रिगदती रंगहीन रातें। सैम को ऐसे दिन और रातों से सख्त एलर्जी है। लांच सफेद और नीले रंग से पुती थी... लहरों पर चलती यूँ लग रही थी जैसे एक बहुत बड़ा ग्लेशियर हो। शाम का धुँधलका छाने लगा। लांच के पीछे टूटते पानी के सफेद झागदार रास्ते में चाँद ने डुबकी ली और लहरों पर बह चला। दोनों उठकर लांच की रेलिंग से आकर टिक गए। गुटरगूँ करते कबूतर की तरह वे बहते चाँद संग खुद भी बहे जा रहे थे... भावनाओं के उस बहाव में जो अभी दोनों के अंदर धार बन फूटी थी। अचानक सैम ने रागिनी की कमर में बाहें डालकर उसके होंठों का दीर्घ चुंबन लिया। रागिनी लड़खड़ा गई। यह सब अप्रत्याशित था। उसने सैम के चेहरे पर सवालिया नजरें गड़ा दीं... सैम दृढ़ था।

“मैं तुम्हें प्यार करता हूँ रोज, असीमित, अछोर... “

“सैम मैं अपने मन को भाँप नहीं पाई अभी तक।” रागिनी की आवाज धीमी थी।

“नहीं, तुम भी मुझे प्यार करने लगी हो। मुझे पता है। तुम जानो न जानो पर मैं जानता हूँ। और ऐसा होना तो तय था मेरी रोज।”

“तय? ओह गॉड। यह कैसे जाना तुमने?”

“जाना भी, महसूस भी किया और अब ऐलान भी।” उसने रागिनी का एक हाथ अपने हाथ में पकड़कर ऊँचा उठाया और आसमान की ओर देखकर चिल्लाया-”ऐलाने मुहब्बत।”

लांच की सीटों पर बैठे मुसाफिर चौंक पड़े। किनारा आ गया था। दीना बदहवास-सी रागिनी को टेम्स के किनारे फुटपाथ पर ढूँढ रही थी। यह पहली मर्तबा था जब इतनी देर होने के बावजूद रागिनी घर नहीं लौटी थी।

“आंटी...”

“ओह... रागिनी तुम यहाँ? यहाँ कैसे?” और अपने सवाल के जवाब में सैम को उसके बाजू में खड़ा देख चौंकी-”आप?”

“आंटी... “रागिनी ने शांत धीमे स्वर में सैम का परिचय दीना से कराया... दीना जबरदस्ती मुस्कुराई और रागिनी का हाथ पकड़ बोली-”चलो... चलो... जॉर्ज घर पर टेंशन में बैठे हैं।”

“तो पहले उन्हें फोन कर देते हैं।” सैम का आग्रह था।

“हाँ, यह ठीक रहेगा।”

“रुको, मैं ड्राईवर को फोन करके आने को कहती हूँ।”

“अरे नहीं, आंटी, हम सब कार से किसी रेस्तराँ में चलकर कॉफी पिएँगे और वहीं काउंटर से फोन भी कर देंगे।” दीना को कुछ सूझा नहीं। बढ़ती ठंड गर्म कॉफी को आमंत्रण दे रही थी। कार की पिछली सीट पर दीना और रागिनी बैठे, आगे सैम... ऐसी ही कीमती शानदार कार को खरीदने का स्वप्न पाले है सैम। उसका मन हुआ वह कार ड्राइव करे... तय है कि जब वह अपनी कार ड्राइव करेगा तो सब कुछ उसकी रफ्तार मे अस्पष्ट हो जाएगा।

रेस्तराँ में आधे घंटे कॉफी के प्याले के साथ गुजार कर जब रागिनी दीना के साथ घर लौटी तो उसके बंद होठों से एक गुनगुनाहट उभरी जिसे दीना ने साफ सुना।

विद्यार्थी जीवन के वे सुनहले साल थे जब सारी कायनात मुट्ठी में नजर आती थी। रागिनी के पुराने मध्यवर्गी दोस्तों में कुछ नए उच्चवर्गीय दोस्त भी आ जुड़े थे जो दिन में सपने देखते थे, शामें उनकी हंगामे भरी होती थी। शाहरा वकालत पढ़ रही थी। उसे बरसों पुराना न जाने कौन-सा केस जीतना था और उसकी इस घोषणा पर सब ठहाका मार कर हँस देते थे। सबा हंगेरियन भाषा सीख रही थी। डोरा संगीत... मिला जुला... अफ्रीकी भी, अंग्रेजी भी और हिंदुस्तानी भी। वह जब अपने इस मिले-जुले संगीत का खिचड़ा परोसती तो सैम और जोजेफ संग-संग थिरक उठते थे। जोजेफ इंजीनियरिंग कर रहा था। शाहरा सलैका के पिता अमीर व्यापारी थे। सबा और शाहरा चैलसी में शानदार अपार्टमेंट में रहती थीं। जहाँ इतनी खूबसूरत इमारतें हैं कि इमारतों के मुख्य द्वार से ही बिछा लाल रंग का कारपेट इमारत की भव्यता का ऐलान करता है। खंभों से चिपके रखे चीनी मिट्टी के गमलों में चौड़े पत्तों वाला मनीप्लांट, रबर प्लांट और क्रिसमस ट्री सारे माहौल को खुशनुमा लुक देते हैं। वर्दी से लैस वॉचमैन मानो आदेश की प्रतीक्षा में ही खड़े रहते हैं।

डोरा अपने को कला जगत से जुड़ा इसलिए भी महसूसती थी क्योंकि वह रहती ही थी सेंट जॉन्सवुड इलाके में जो कलाकारों, अभिनेताओं और बुद्धिजीवियों का गढ़ माना जाता था। पूरे इलाके में फैली सड़कें छायादार दरख्तों से घिरी थीं। यूँ तो आभिजात्य वर्ग के रहवासियों-सा सन्नाटा रहता वहाँ, पर घरों के अंदर अलहदा अलहदा कल्चर पल रही थी। शाम होते ही यह कल्चर शोर बन कर या तो नुक्कड़ के इटैलियन रेस्तरां में आ धमकती या बगीचों, पब और कॉफी हाउसों में समा जाती। जहाँ होते हर मौजूदा विषयों पर तर्क-वितर्क, खोज। सारी दुनिया की घटनाओं पर बहस मुबाहिसा होता। अगर नहीं था तो, प्रेम, सौहार्द, समझ। एक बिगडैल कल्चर युवा पीढ़ी में पनप रही थी।

रागिनी के भारत प्रेम पर सब दंग थे और इस बात पर भी कि वह रिसर्च करना चाहती है भारतीय आध्यात्म के महानायक और संपूर्ण कलाओं से पूर्ण कृष्ण पर... । लेकिन समीर उसकी इस चाहत को पूरा सपोर्ट देता। समीर खान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के एक निहायत छोटे से गाँव से यहाँ इंजीनियर बनने आया था। बेहद भोला मासूम और दयालु स्वभाव का।

“सचमुच कृष्ण महानायक हैं। तभी तो उन्हें चाहने वालों को न अपने वतन की सीमाएँ रोकती हैं, न मजहब। रसखान मुस्लिम थे। उनका नाम था सैयद इबराहिम। रसखान की उपाधि उन्हें अकबर ने दी थी। क्या गजब का कृष्ण के बाल्यकाल का वर्णन है उनकी कविताओं में... ।”

काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सौं ले गयो माखन रोटी।

वा छबि को रसखान बिलोकिती बारिधी काम कलानिधि कोटि।

“समीर... “ रागिनी अवाक थी। सभी जहाँ के तहाँ जम से गए थे। बस सैम ही था जो माहौल से बेअसर सिगरेट के छल्ले उड़ा रहा था।

“रागिनी... रसखान ही क्यों... निगार सहबाई भी कृष्ण पर मोहित थीं।”

“पाकिस्तानी शायरा निगार सहबाई न... “

“हाँ लिखती हैं -

'रास्ता न रोको नटखट श्याम, सौ सौ बार करूँ परनाम

आँचल न खैंचो गोकुल के वासी, हो जाऊँगी बदनाम'

क्यों वृंदावन के नटखट श्याम और बदनामी के डर से झिझकती गोपी ही याद आई शायरा को? लैला मजनूँ क्यों नहीं?”

“एई समीर... हो क्या गया है यार तुम्हें। दिन रात किताबें पढ़ते हो तुम, झेलना पड़ता है हमें।” जोजेफ उकता रहा था।

“झेलो भी और तारीफ भी करो... क्या यार, थोड़ा आज की दुनिया में लौटो डियर।” सैम ने जूतों तले सिगरेट रगड़ी।

रागिनी तैश में उठी-”मैं चलती हूँ। समीर तुम आना चाहो तो आओ मेरे साथ... आओगे तो अच्छा लगेगा मुझे।”

“कहाँ?” समीर पतलून झाड़ते हुए उठ खड़ा हुआ।

“किसी रेस्तराँ में चलते हैं जहाँ कॉफी पीते हुए हम कृष्ण चर्चा करेंगे।”

रागिनी तेजी से कार की ओर बढ़ी, समीर संग हो लिया। सैम चिल्लाता रह गया-”अरे रोज, रुको तो... ।”

“क्या हुआ रोज को?”

“उसके कृष्ण का मजाक जो उड़ाया है जोजेफ और सैम ने” वह बुरा मान गई।

सब तितर-बितर हो गए। बस, सैम बैठा रहा। उसने दूसरी सिगरेट सुलगा ली थी।

“मैं तुम्हें हिंदू समझती थी। तुम्हारा नाम कन्फ्यूजन पैदा करता है। हिंदी में समीर हवा को कहते है।” रागिनी ने कॉफी की घूँट भरते हुए कहा।

“लेकिन इस्लाम में काबे के पानी भरे रास्ते को समीरा कहते हैं। मेरा नाम समीरा खान है, लोग मुझे समीर कहते हैं। तुम्हारे दो नाम क्यों हैं... ब्रिटेन और इंडिया के।”

यह प्रश्न तो रागिनी को भी कुरेदता है। रागिनी हिंदुस्तानी नाम है और रोज विलायती। दीना ने बताया था।

“मैडम डायना गायिका थीं न, इसलिए तुम्हारा नाम रागिनी रखा उन्होंने और टॉम सर ने रोज।”

“तुम्हारा नाम खुद एक गीत की पंक्ति है।” समीर ने रागिनी के चेहरे की ओर बहुत स्नेह से देखा। जिंदगी में पहली बार रागिनी शरमा गई। बहुत अनछुए एहसास से गुजरी वह।

“तुमने रिसर्च के लिए कृष्ण को ही क्यों चुना?”

रागिनी की आँखें चमकने लगीं-”कृष्ण एक अद्भुत व्यक्तित्व है। मेरी ममा कृष्ण दीवानी थी। कृष्ण का हर पल होठों पर विराजमान करने के लिए ममा ने संगीत सीखा। कृष्ण के भजन सीखे। कृष्ण पर लिखा गया तमाम साहित्य पढ़ा। मैंने ममा को कभी नहीं देखा लेकिन वे हर रात मुझसे यही आग्रह करती हैं कि मैं कृष्ण पर रिसर्च करूँ। मैं भारत जाऊँ। भारत में मंत्रों की अपार शक्ति है। वहाँ जन्म से लेकर मृत्यु तक वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, हर रीति-रिवाज का पालन करते हुए। मैं जब वैदिक मंत्रों को पढ़ने की कोशिश करती हूँ तो मेरा मन अंदर तक अनुभूतियों की हलचल से भर जाता है।”

समीर अवाक था-”तुम तो अंग्रेज हो रागिनी?”

“पर मेरा जन्म तो भारत में हुआ। मेरी ममा की मृत्यु भी भारत में हुई। मुझे जिन्होंने अपनी ममता, स्नेह, देकर पाला वो दीना आंटी और जॉर्ज अंकल भी हिंदुस्तानी हैं। मेरी बुआ मुनमुन भी हिंदुस्तानी है। हिंदुस्तान मेरे लिए किसी तीर्थ से कम नहीं।”

समीर गंभीर हो गया-”मैं भी हिंदुस्तान में पैदा हुआ क्योंकि तब मेरा गाँव हिंदुस्तान में था।”

अचानक उसकी आवाज बुझ-सी गई। यह एक बहुत पीड़ादायक बात थी उसके लिए... उसके अपने तर्क थे जिसमें भारत विभाजन गलत था। रागिनी ने भी ठंडी साँस भरी।

“समीर... राजनीतिक बुद्धि नहीं है मुझमें... शायद इसीलिए समझ नहीं पा रही हूँ। कौन से कारण हैं जो भारत विभाजन हुआ? और जमीन बंटी तो लोग भी क्यों बंटे। क्यों उन्हें साम्प्रदायिकता की आग में झोंका गया। इतनी तबाही, इतनी मौतें?” थोड़ी देर दोनों खामोश रहे। खामोशी से कॉफी खत्म की।

कुर्सी से उठते हुए दोनों ने देखा बाहर अंधेरा घिरने लगा था। सड़क पर शाम के घुमक्कड़ों का सैलाब था। जिनके बीच से रागिनी की कार ने समीर को ब्यूटी पार्लर के सामने उतारा-”तुम यहाँ क्यों उतर रहे हो समीर?”

रागिनी का इशारा समझ समीर ठहाका लगाकर हँसा। पार्किंग प्लेस न होने के कारण कार रेंग रही थी। खिड़की को पकड़े समीर कदम दर कदम चलता हुआ बोला-”वो जो बाईं ओर सड़क से नीचे की ओर उतरती सीढ़ियाँ हैं न, उसी गली में मेरा कमरा है। गली के नुक्कड़ के ढाबेनुमा रेस्तराँ में नॉनवेज बहुत स्वादिष्ट मिलता है। हमारे कश्मीर जैसा भेड़ का गोश्त।” कार ने रफ्तार पकड़ ली थी। समीर पीछे छूट गया था।

सैमुअल पढ़ाई को तिलांजलि दे रुपयों के जुगाड़ में जुट गया था। एक प्राइवेट कंपनी से भारी ब्याज दरों पर उसने लोन लिया और विशाल ओक वृक्षों से घिरी बहुमंजिली इमारत में बीसवीं मंजिल पर अपना ऑफिस खोल लिया था। उसे कुछ नए विज्ञापनों के अनुबंध भी मिल गए थे जिन्हें नए से नए रूप में फिल्माने मैं उसने जी-जान लगा दी थी अपनी। इन विज्ञापन फिल्मों के कैसेट्स दिखाने, प्लाईवुड की बेहतरीन कारीगरी से सुसज्जित अपना ऑफिस दिखाने को बेताब सैम मौका तलाश रहा था कि कब वह रागिनी को यहाँ लाए।

दीना और जॉर्ज ने रागिनी रोज की बाईसवीं सालगिरह पर “डायना विला” को दुल्हन-सा सजाया था और रागिनी की तमाम मित्र मंडली को बुलाया था... सभी की पढ़ाई लगभग पूरी होने वाली थी और सभी भविष्य के सपनों को गढ़ने में जुटे थे। कुछ लड़कियाँ शादीशुदा होने वाली थीं जिनके लिए विवाहित जिंदगी एक सुनहला संसार थी। ये भोली-भाली मासूम लड़कियाँ यह नही जानती थीं कि चाँद, तारे, फूलों, खुशबू और प्यार की कल्पना से सजा उनका यह जादुई संसार मात्र एक भुलावा था... रणभूमि में शहीद हुए सैनिक का नाम शहीद स्तंभ पर तो लिखा होता है, इतिहास की किताबों में तो लिखा होता है, उसके नाम की मशाल तो जलती है पर विवाह की वेदी पर तिल-तिल मरती इन लड़कियों के त्याग, बलिदान का कभी कोई मूल्य नहीं आँका जाएगा।

शाहरा को एक इटैलियन लड़के से इश्क हो गया था वह उसके हाथ में हाथ डाले पार्टी में थिरक रही थी। डोरा उदास थी। उसका बस चलता तो वह कोई उदासी भरा गीत छेड़ देती पर सबा ने सख्त मनाही कर दी थी कि “कम से कम आज के दिन तो किसी को मत बताना कि जिस संगीत संध्या की तुम पिछले दो महीनों से तैयारी कर रही हो वह स्पांसर्स के आपसी झगड़ों के कारण कैंसिल हो गई है।” सबा अधिक से अधिक समय डोरा के साथ ही थी। रागिनी का हुस्न फूटा पड़ रहा था। उसने सफेद मिंक गाउन पहना था। जिसमें हीरे ही हीरे जड़े थे। सिर पर सफेद हैट, कुहनियों तक सफेद दस्ताने, गले में हीरे का नैकलेस, ऊँची एड़ी की नाजुक-सी सफेद सैंडिलों में जड़ा एक एक नायाब हीरा... कुछ यूँ हुआ कि रागिनी जब केक पर जलती मोमबत्तियाँ बुझाने को झुकी तो मोमबत्तियों की लौ उसके जगमगाते हीरों को सौ गुना जगमगाने लगीं और तभी एक बड़े से लाल गुलाब के बुके के साथ सैमुअल ने प्रवेश किया। वह पलक झपकाना भूल गया। चाँदनी-सी शुभ्र जगमग... उसकी प्रेमिका दिव्य परी-सी उसके सामने खड़ी थी। वह जहाँ का तहाँ ठिठक गया और उसके मन में ख्याल आया कि वह जो मॉडल की तलाश में भटक रहा है... वह रोज से बेहतर और कौन हो सकती है।

पार्टी देर रात तक चलती रही। संगीत, ठहाके, मौज मस्ती... धमाल मची रही डायना विला में। उस रात सैम ने मौका पाकर अपनी रोज से वादा ले लिया कि वह शानिवार को उसे लेने आएगा और अपना ऑफिस दिखाने ले जाएगा। रोज भी तो देखे कि उसने कितनी मेहनत की है अपना लक्ष्य हासिल करने में। वह जी जान से लगा है। उसकी कोई दिनचर्या नहीं रह गई है। सिर्फ लगन है और बस लगन। उसके सपनों का समंदर जब अँगड़ाई भरता है तो लहरें उसके संकल्प की चट्टानों से टकराती हैं। उसे देखना है कि लहरों में टकराने की ताकत ज्यादा है या चट्टानों में बर्दाश्त करने की।

सड़कों के किनारे हेमंत की बयार में पेड़ों से टूटे लाल रंग के पत्तों के ढेर से अटे थे। लाल रंग अनुराग का रंग भी है और विध्वंस का भी। विध्वंस का सोच रागिनी का दिल कबूतरी-सा धड़क उठा। उसने बाजू में बैठे सैम का हाथ जोरों से पकड़ लिया। यह शानिवार का दिन था और वादे के मुताबिक सैम उसे अपने ऑफिस ले जा रहा था।

लिफ्ट से बाहर आकर दरवाजा खुलते ही नए प्लाईवुड की गंध नथुनों में समा गई। सैम ने कमरे की खिड़कियाँ खोलकर रागिनी को कुर्सी पर बैठाया और थर्मस में रखा पानी गिलास में उड़ेलने लगा-”ये है इस नाचीज की कर्मभूमि। पहले कॉफी पीते हैं फिर मैं तुम्हें अपना प्रोजेक्ट दिखाऊँगा।”

कॉफी अच्छी बनी थी। साथ में बिस्किट थे जिन्हें कुतरते हुए सैम ने टीवी ऑन किया और अपनी बनाई विज्ञापन फिल्म का कैसेट लगा दिया। एक ठंडे पेय की फिल्म थी जिसमें बहुत ही साधरण-सी दिखने वाली मॉडल के दरिया किनारे स्विमिंग कॉस्टयूम में खींचें कुछ शॉट्स थे। रागिनी ने फिल्म की तारीफ की तो सैम हँस दिया।

“नहीं डियर... झूठी तारीफ नहीं... इस तरह तो तुम मेरे अंदर के कलाकार को मार दोगी... कमियाँ गिनाओ मेरी जान... कमियाँ... वही तो माँजेगा मुझे। क्या तुम्हें पता है मैं गिटार भी अच्छा बजा लेता हूँ।”

उसने गिटार उठाकर उस पर प्यारी-सी धुन छेड़ दी। रागिनी खोई-सी दूसरी ही दुनिया में विचरती रही। अक्सर ऐसा होता है। जब भी वह संगीत सुनती है उसके सामने ममा की दुनिया खुलने लगती है। चंडीदास की दुनिया खुलने लगती है। फिर रागिनी, रागिनी नही रह जाती... ममा और चंडीदास में लीन हो स्वयं को मिटा देती है वह।

“क्या हुआ... क्या सोचने लगी?” सैम ने उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया न देख पूछा। रागिनी ने खुद को सँभाला। “मैं तुम्हारे बजाए गिटार की धुन में डूबी जा रही थी।” सैम ने रागिनी को चूम लिया।

अब रोज ही सैम को रागिनी का इंतजार रहता। वह खुद ही बिला नागा “डायना विला' जाने लगा। परीक्षाएँ खत्म हो चुकी थीं और सभी को रिजल्ट का इंतजार था। रागिनी की मित्र मंडली तितर-बितर हो चुकी थी, एक खुशनुमा फेयरवेल पार्टी के बाद। कॉलेज का विदाई समारोह सबको रुला गया। कॉलेज परिसर का हर कोना मानो आवाज देकर कह रहा था - “जाओ मेरे विद्यार्थियों, जिंदगी के समर में प्राणपण से कूदो। इस लड़ाई से कभी पीछे नहीं हटना क्योंकि यह तुम्हारी अपनी लड़ाई है।” फेयरवेल के बाद रागिनी की कार में सभी आ बैठे। सभी एक-दूसरे से फोन और पत्र से संपर्क रखने के वादे कर रहे थे। पतों और फोन नंबरों को आदान प्रदान कर रहे थे। भरे गले से एक-दूसरे को दिलासा दे रहे थे कि हम मिलते रहेंगे।

सबा को छोड़कर सभी टयूब स्टेशन पर उतर गए। सबा को पूरी शाम रागिनी के साथ गुजारनी थी और सैम उकता रहा था कि उसकी एक कीमती शाम इस तरह जाया हो रही है। वह बार-बार रागिनी की ओर देख आँखों ही आँखों में इशारे करता पर हर बार रागिनी को सबा के साथ बातों में तल्लीन पाता।

“रागिनी, आज लांगड्राइव पर चलो न, आज मैं हवा के साथ उड़ना चाहती हूँ। तितलियों के संग नाचना चाहती हूँ, भौरों के संग गाना चाहती हूँ... क्या पता कल क्या हो?”

“सबा, कल बहुत कुछ होगा... देखो, यह तुम्हारा आज गुजरा वक्त ही रद्दी की टोकरी में फिंक जाएगा और आने वाली सुबह... जैसे बासी अखबार... “

“नहीं रागिनी... यह आज अनुभवों की नींव मजबूत करेगा... सुनहला अतीत बन हमारी जिंदगी की किताब में दर्ज हो जाएगा।”

दोनों साखियो के आज और कल के फलसफे में सैम धँसा जा रहा था। उबरने का उपाय न था। कार सुनसान लंबी सड़क पर दरख्तों के साए में दौड़ने लगी। बहुत देर बाद रागिनी ने एक जगह कार रुकवायी। वह अंग्रेज लेखक एलियट की कब्र थी। जंगली घास पथरीली हिस्सों में भी उग आई थी। घास के झुरमुट को छेड़ो तो मच्छर भिनभिनाने लगते थे। कब्र पर लिखा था - “इन माई एंड इज माई बिगनिंग... मेरा अंतर ही मेरी शुरुआत है, यही तो गीता की भी फिलॉसफी है कि आत्मा कभी नहीं मरती, वह केवल नया शरीर धारण करती है जैसे नदी में नहाकर मनुष्य भीगे पुराने कपड़े उतारकर नए धारण करता है। तीनों कुछ देर मौन खड़े रहे। कब्र पर आगे लिखा था - प्लीज, प्रे फॉर मी... “ यह लालसा क्यों? मृत्यु के बाद नश्वर जग से आखिर नाता ही क्या रह जाता है? न जगत से, न सगे-संबंधियों से। फिर कोई प्रार्थना करे न करे, क्या फर्क पड़ता है?

भारी मन से वे आकर कार में बैठ गए। “हाऊ सैड सबा... ऐसी ड्राइविंग चाहती थीं तुम?” सैम ने रूखेपन से कहा।

“यह भी तो जिंदगी का एक हिस्सा है, हमें नहीं भूलना चाहिए कि एक दिन हमारा भी अंत होना तय है।”

“हुंह... जिंदगी तो जी लो पहले।” सैम ने आहिस्ते से कहा पर रागिनी ने सुन लिया। उसे सैम का इस तरह बोलना अच्छा नहीं लगा। हर वक्त जिंदगी जीने के बहाने खोजना ही तो जिंदगी नहीं है पर यह बात वह क्यों समझेगा।

दोस्त विदा हो चुके थे। रागिनी के पास वक्त ही वक्त था जिसे वह लाइब्रेरी से लाई किताबों को पढ़ने में जाया करती। ममा का कृष्ण साहित्य संग्रह वह गौर से पढ़ रही थी। सारे काव्य, सारे ग्रंथ पढ़ डालने की उद्दाम लालसा संस्कृत न आने की वजह से अटक जाती थी। दीना ने उसके लिए एक भारतीय टयूटर का प्रबंध कर दिया था और जब भारतीय टयूटर उमाशंकर ने बताया कि उसने छह साल तक जर्मनी में यूनिवर्सिटी में संस्कृत पढ़ाई है वह भी जर्मन विद्यार्थियों को तो रागिनी चकित रह गई। यह तो तय है कि भारतीय भाषाओं को विश्व मंच पर लाने का अधिकतर श्रेय जर्मनी को ही जाता है। वहाँ जर्मन प्रोफेसर हिंदी और संस्कृत पढ़ाते हैं और वहाँ की लाइब्रेरी में सारे भारतीय ग्रंथ मौजूद हैं। ग्रंथ तो लंदन में भी मौजूद हैं। लंदन में भारतीय अधिक हैं बल्कि यह शहर तो एक तरह से भारत के बंबई जैसा ही नजर आता है। रागिनी की कृष्ण में अटूट रुचि देखकर उमाशंकर ने बताया-”रागिनी यहाँ पर कई वेदांत भक्त फेमिलीज हैं जो लॉर्ड कृष्ण की भक्त हैं। वे मानती हैं कि कृष्ण तो हमारे नजदीक हमेशा से ही है। बस, उन्हें देखने के लिए एक तीसरी आँख भर चाहिए।”