टॉम काका की कुटिया - 15 / हैरियट वीचर स्टो / हनुमान प्रसाद पोद्दार

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जिस जहाज पर दास-व्‍यवसायी हेली सवार था वह चलते-चलते मिसीसिपी नदी में पहुँच गया। इस जहाज पर रूई के ढेर-के-ढेर लदे हुए थे। इस कारण दूर से यह एक सफेद पहाड़-सा दिखाई देता था। जहाज के डेकों पर बड़ी भीड़ थी। सबसे ऊँचे डेक के एक कोने में एक रूई के गट्ठे पर टॉम बैठा हुआ था।

कुछ तो शेल्‍वी साहब के कहने से और कुछ टॉम का सीधा स्‍वभाव देखकर, हेली का उस पर विश्‍वास हो गया था। पहले वह उसे हर समय अपनी आँखों के सामने रखता था और जंजीर से जकड़े रहता था। पर जब उसने देख लिया कि टॉम अपनी वर्तमान दशा में कोई असंतोष नहीं प्रकट करता तब उसके बंधन खोल दिए और उसे इच्‍छानुसार घूमने का अधिकार दे दिया। दूसरे दासों के साथ यह रियायत नहीं थी। काम न रहने पर टॉम ऊपर डेक के एक रूई के गट्ठे पर जाकर बैठ जाता और एकाग्रचित होकर बाइबिल पढ़ा करता। इस समय भी वह बाइबिल पढ़ रहा था।

नदी के किनारे खेत-ही-खेत दिखाई पड़ रहे थे। उनमें हजारों दास-दासी फूस की झोपड़ी डालकर रहते थे। इनसे थोड़ी ही दूर पर खेत के मालिकों के सुंदर बंगले और आराम-बाग थे। यह हृदय-स्‍पर्शी दृश्‍य देखते-देखते टॉम के हृदय में पिछली बातें जाग उठीं। उसे केंटाकी के मालिक के खेत और उससे सटी हुई अपनी हवादार कुटिया का ध्‍यान आ गया। संगी-साथियों की दावतें उसकी आँखों के सामने नाचने लगीं। उसकी स्‍त्री संध्‍या-समय का भोजन बना रही है। उसके पुत्र हँस-हँसकर खेल रहे हैं। सबसे छोटा लड़का उसकी गोद में बैठा हुआ अपनी तोतली बोली से उसे खुश कर रहा है। टॉम एकाएक चौंक पड़ा, देखा, पेड़-पल्‍लव, खेती-बाड़ी सब एक-एक करके पीछे छूटे जा रहे हैं। जहाज के कल-पुरजों की आवाज फिर सुनाई देने लगी। तब उसे अपनी वर्तमान अवस्‍था का स्‍मरण हुआ और जान पड़ा कि अब वे सुख के दिन सदा के लिए उसे छोड़ गए। उसके हाथ में जो बाइबिल थी, उस पर आँसू टपकने लगे। आँखें पोंछकर टॉम बाइबिल में शांति के उपदेश ढूँढ़ने लगा। उसने बड़ी उम्र में पढ़ना सीखा था, इससे उसे जल्‍दी-जल्‍दी पढ़ने का अभ्‍यास नहीं था। वह एक-एक शब्‍द का अलग-अलग उच्‍चारण करते हुए पढ़ रहा था - "अपने हृदय में... अशांति मत पैदा होने दो। पिता के यहाँ बहुत स्‍थान है। मैं वहाँ... तुम्‍हारे लिए जगह... करने... जा रहा हूँ।"

"इस संसार में तुम्‍हारा जीवन चाहे किसी दशा में क्‍यों न कटे, किंतु परम-पिता की मंगलमय भुजाएँ तुम्‍हारे लिए सदा फैली हुई हैं।" बाइबिल में यह शांतिप्रद और आशाप्रद उपदेश पढ़कर टॉम के हृदय में धीरज आ गया। वह बड़ा पक्‍का विश्‍वासी है। कुटिल दर्शनशास्‍त्र की विषाक्‍त युक्तियाँ और जटिल विज्ञान के तर्क-वितर्क उसके स्‍वभाव-सिद्ध विश्‍वास की जड़ पर कुठार नहीं चला सकते। यह तो वह स्‍वप्‍न में भी नहीं सोचता कि बाइबिल की बात भी झूठी हो सकती है। यही कारण है कि हजार निराशा रहने पर भी उसे आशा है, हजार कष्‍टों के रहते भी उसके हृदय में शांति है। पुस्‍तक इस समय भी उसके सामने खुली रखी है। उसकी प्रत्‍येक पंक्ति में अतीत जीवन की सुख-स्‍मृति जड़ी हुई है। भावी जीवन की सारी आशाएँ उसी पर निर्भर हैं।

इस जहाज के यात्रियों में एक अर्लिंस-निवासी धनवान सज्‍जन थे। वह वारमंट प्रदेश से अपने घर को लौट रहे थे। उनके साथ पाँच-छ: वर्ष की एक बालिका और एक आत्‍मीया रमणी थी। टॉम इस बालिका को बीच-बीच में इधर-से-उधर फिरते देखता था। वह एक जगह नहीं ठहरती थी, इससे वह मन भरकर उसे नहीं देख सकता था। लेकिन बालिका की सूरत इतनी मनोहारी थी कि उसे जो एक बार देखता, उसका जी बार-बार उसे देखने को करता था। बालिका का शरीर शैशव की सुकुमारता और अनुपम सौंदर्य से चमक रहा था। पर सौंदर्य के सिवा इस बालिका में और भी कुछ विशेषताएँ थीं। सौंदर्य से भी अधिक शोभाप्रद किसी अलौकिक माधुर्य से इस बालिका की मूर्ति चमचमा रही थी, जिससे देखने में वह साक्षात देव-कन्‍या जान पड़ती थी। उसके मुख पर एक अपूर्व एकाग्रता का भाव था। उस पर एक विलक्षण कांति थी, जिसे देखकर प्रभु के उपासक भावुक व्यक्ति का मन स्‍वयं मोहित हो जाता था। जो निरे नीरस और भावहीन हैं, उनके नेत्र भी आकर्षित हो जाते थे। यद्यपि उस आकर्षण का मतलब उनकी समझ में नहीं आता था, तथापि उनके हृदय में उस मुख की छाया प्रतिबिंबित होने लगती थी। इन भावों के होते हुए भी बालिका के मुख पर विशेष गंभीरता या विषाद के चिह्न नहीं दीख पड़ते थे, बल्कि वह चपल और खिलाड़ी जान पड़ती थी। वह देर तक एक जगह नहीं टिकती थी। अलमस्‍त, मन-ही-मन गाती हुई, कभी इधर तो कभी उधर फिर रही थी। पिता और वह आत्‍मीया रमणी बराबर उसकी ताक में लगे थे। जहाँ वह उनके पास पहुँची कि वे उसे पकड़ लेते थे, पर वह फिर अपने को छुड़ाकर भाग जाती थी, लेकिन वे उसे कहते कुछ नहीं थे। वह सदा ही सादे सफेद वस्‍त्र पहने रहती थी और मजा यह कि बराबर नाना स्‍थानों में दौड़-धूप करते रहने पर भी उसके उन स्‍वच्‍छ-सफेद वस्‍त्रों में दाग या धब्‍बा नहीं लगने पाता था।

जहाज के मल्‍लाह और खलासी अपने-अपने कामों में लगे हुए हैं। बालिका एक-एककर हर एक के पास जाकर खड़ी होती है, सरल नेत्रों से उसकी ओर देखती है और सोचती है कि इसे कोई दु:ख तो नहीं है, इसे कोई पीड़ा तो नहीं है। बालिका कभी-कभी भीड़ में घुस जाती है और उसे देखकर कितने ही कोमलता-रहित शुष्‍क अधरों पर स्‍नेहमयी मुस्‍कराहट छा जाती है। यदि कहीं बालिका को जरा भी ठोकर लगी या फिसलने की संभावना हुई, तो तत्काल कितने ही कठोर हाथ उसे पकड़कर उठा लेने के लिए फैल जाते हैं। जब वह सामने से निकलती है तो सब उसके लिए मार्ग छोड़ देते हैं।

टॉम का हृदय स्‍वभाव से ही कोमल था। सुकुमारता पर मोहित होना सहृदय नीग्रो लोगों का एक जातीय गुण है। पहली बार देखते ही टॉम इस बालिका को मन-ही-मन प्‍यार करने लगा। वह इस सुकुमारी बालिका को देवदूत समझने लगा। बालिका कभी-कभी जंजीर से बँधे हुए हेली के दासों के पास खड़ी होकर खिन्‍न-चित्त से उनकी ओर देखती है, उनकी जंजीरों को हाथ में लेकर हिलाती-डुलाती है, अंत में ठंडी साँस लेकर वहाँ से हट जाती है। बालिका की ओर टॉम बड़ी उत्‍सुकता से देखता था और जब वह पास आती तब उससे बातें करना चाहता था, पर ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।

बालक-बालिकाओं को खुश करने में टॉम बहुत ही कुशल था। वह तरह-तरह के बाजे, गुड़ियाँ और खिलौने बनाने में बड़ा उस्‍ताद था। जब वह शेल्‍वी साहब के यहाँ था तब बालक-बालिकाओं के लिए खिलौने बनाने की सामग्री अपनी जेब में रखता था। उनमें से कुछ चीजें अब तक उसकी जेब में पड़ी थीं।

एक दिन वह बालिका उसके पास आकर खड़ी हो गई। मौका देखकर टॉम बातचीत करने की इच्‍छा से एक-एक करके जेब से तरह-तरह की चीजें निकालने लगा। बालिका शर्मीली थी। पहले तो वह कुछ न बोली, पर धीरे-धीरे उसके मन में कौतूहल और प्रसन्‍नता का रंग जम गया। टॉम जब खिलौने बना रहा था, तब वह कुछ दूर बैठी बड़े ध्‍यान से उसके बनाने के ढंग देख रही थी। जब खिलौने बनकर तैयार हो गए तब टॉम एक-एक करके बालिका के हाथ में देने लगा। बालिका संकोच सहित उसके हाथ से खिलौने लेने लगी। धीरे-धीरे बालिका की लज्‍जा दूर हुई और दोनों में परिचितों की भाँति बातें होने लगीं।

टॉम ने पूछा - "तुम्‍हारा क्‍या नाम है?"

बालिका बोली - "मेरा नाम इवान्‍जेलिन सेंटक्‍लेयर है। पर मुझे बाबा तथा सब लोग 'इवा' कहते हैं। तुम्‍हारा क्‍या नाम है?"

टॉम - "मेरा नाम तो टॉम है, किंतु केंटाकी में मुझे लड़के 'टॉम काका' कहते थे।

बालिका - "तो मैं भी तुम्‍हें टॉम काका ही कहा करूँगी। टॉम काका, तुम्‍हारा नाम तो बड़ा प्‍यारा है। अच्‍छा काका, तुम कहाँ जाओगे?"

टॉम - "मुझे मालूम नहीं, कहाँ जाना होगा।"

बालिका - (आश्‍चर्य करके) "ऐं! अपने जाने का ठिकाना भी नहीं जानते?"

टॉम - "दास-व्‍यवसायी मुझे जिसके हाथ बेचेगा, उसी के घर जाऊँगा और मुझे यह क्‍या मालूम कि वह किसके हाथ बेचेगा?"

बालिका - "मेरे पिता तुम्‍हें खरीद सकते हैं। हमारे यहाँ तुम सुख से रहोगे। मैं अभी जाकर पिता से तुम्‍हें खरीद लेने के लिए कहूँगी।"

टॉम - "अच्‍छा, कहना।"

इन बातों के जरा ही देर बाद जहाज लकड़ी लाने के लिए रुक गया। कुलियों के काम में सहायता करने के लिए टॉम किनारे पर जा रहा था। इसी समय इवा अपने पिता से बातें करते-करते अकस्‍मात् जहाज से नदी में गिर पड़ी। उसका पिता उसके पीछे कूदने ही वाला था कि पीछे से एक आदमी ने उसे पकड़ लिया। इधर टॉम ने इसके पहले ही पानी में कूदकर इवा को पकड़ लिया था। इवा धारा में कुछ दूर बह गई थी, पर टॉम अच्‍छा तैराक था। वह उसे पकड़कर तैरकर जहाज पर चढ़ आया। इवा बेहोश हो गई थी। उसके पिता उसे कमरे में ले जाकर होश में लाने के लिए नाना प्रकार के उपाय करने लगे। इधर भिन्‍न-भिन्‍न कमरों से स्त्रियों का दल सेंटेक्‍लेयर के कमरे में पहुँचकर बनावटी सहानुभूति प्रकट करने लगा। इस सहानुभूति से होना तो क्‍या था, उल्‍टा इवा को होश में लाने के कार्य में कुछ देर के लिए व्‍याघात पहुँचा। वास्‍तव में इस संसार में बहुतेरे रोगियों को रोग-शैया पर इन सब परोपकारियों के ही कारण असामयिक मृत्‍यु का शिकार बनना पड़ता है।

इवा बहुत शीघ्र होश में आ गई, पर उसके शरीर में कमजोरी कई दिनों तक बनी रही। चलते-चलते जहाज अर्लिंस पहुँचा। यात्रियों ने अपना सामान बाँधना आरंभ किया। टॉम ने नीचे के गोदाम से देखा कि इवान्‍जेलिन का हाथ पकड़े हुए सेंटक्‍लेयर साहब हेली के पास खड़े बातें कर रहे हैं और जब-तब हेली की बातें सुनकर हँस पड़ते हैं। कुछ पल के बाद सेंटक्‍लेयर ने कहा - "अजी, समझ लिया कि तुम्‍हारा यह काला गुलाम बड़ा धर्मात्‍मा है। देश भर का सारा ईसाई धर्म इसी काले चमड़े में भरा है। अब यह बोलो कि इस मरक्‍को चमड़े में भरे हुए ईसाई धर्म के क्‍या दाम लोगे? ज्‍यादा-से-ज्‍यादा मुझे कितना ठगना चाहते हो?"

हेली - "साहब, आपसे हम मजाक नहीं करते। तेरह सौ से एक कौड़ी कम नहीं लेंगे। आप के सर की कसम खाकर कहते हैं, हमें इन तेरह सौ में कोई बड़ा नफा नहीं है, लेकिन..."

सेंटक्लेयर - "लेकिन जान पड़ता है, आप तेरह सौ में बेचकर मुझपर बड़ी मेहरबानी कर रहे हैं।"

हेली - "यह बालिका इस गुलाम को खरीदने के लिए आग्रह कर रही है, इसी से तेरह सौ में दे देते हैं।"

सेंटक्लेयर - (हँसते हुए) "जी हाँ, तो यह कहिए न कि मुझपर नहीं, आप इस लड़की पर मेहरबानी कर रहे हैं। खैर, तो अब यह बताइए कि टॉम के ठीक दाम क्‍या लीजिएगा?"

हेली - "साहब, जरा एक बार माल की तो परख कीजिए। कैसा हट्टा-कट्टा-चौड़ा मजबूत आदमी है! क्‍या बड़ी खोपड़ी है! जान पड़ता है, अक्ल से भरी हुई है। आपकी सौगंध, चीज आला दर्जे की है। ऐसे गुलामों के बड़े दाम होते हैं। अपने मालिक का सारा काम यह बड़ी ईमानदारी से करता था। बड़े काम का आदमी है। एक बार इसके पहले मालिक का सर्टिफिकेट देख लीजिए, फिर कहिएगा। यह बड़ा धर्मात्‍मा है। इसे केंटाकी भर के गुलाम अपना पादरी मानते थे।"

सेंटक्लेयर - (हँसते हुए) "खूब तब तो! हम इसे अपने घर का पादरी बना लेंगे। लेकिन हमारे यहाँ धर्म का आडंबर बहुत थोड़ा है। इससे शायद पादरी साहब के लिए काम न मिले।"

हेली - "आप तो सभी बातें मजाक में उड़ा देते हैं। हम आपसे क्‍या कहें?"

सेंटक्लेयर - "यह कैसे? हमने आपकी कौन-सी बात मजाक में उड़ाई है? आप ही ने तो अभी फरमाया कि यह आदमी पादरी का काम करने की योग्‍यता रखता है। हाँ, जरा दिखलाइएगा तो इसके पास किस विश्‍वविद्यालय या किस लर्डबिशप का सर्टिफिकेट है?"

इसी समय इवान्‍जेलिन ने चुपके से अपने पिता के कान में कहा - "बाबा, इसे खरीद लो। ये थोड़े-से रुपए तुम्‍हारे लिए कुछ नहीं हैं। इस आदमी को खरीदने की मेरी बड़ी इच्‍छा है।"

इस पर सेंटक्‍लेयर ने इवा की ठोड़ी पकड़कर हँसते हुए पूछा - "क्‍यों इवा, इसका क्‍या करोगी? क्‍या इसे घोड़ा बनाकर खेलेगी?"

इवा - "बाबा, मैं इसे सुख से रखूँगी। इसका दु:ख दूर करने के लिए इसे खरीदना चाहती हूँ।"

सेंटक्लेयर - "वाह, यह नई बात सुनी। इसे सुखी करने के लिए तू खरीदना चाहती है!"

इतने में हेली ने शेल्‍वी साहब के दिए हुए टॉम के सर्टि‍फिकेट को निकालकर सेंटक्लेयर के हाथ में दिया। सेंटक्‍लेयर ने अक्षर देखकर कहा - "लिखावट तो भले आदमी की-सी है।" फिर सर्टिफिकेट में 'धर्म' शब्‍द देखकर हँसते हुए कहा - "अरे भाई, इस धर्म के मारे तो देश का सत्‍यानाश हो जाएगा। अब इस देश की खैर नहीं जान पड़ती। क्रिश्चियन-धर्मावलंबी भाईयों के धर्म-व्‍यवहार से तो नाकों दम आ ही रहा था, अब ये गुलाम भी धार्मिक बनने चले तो कहिए कुशल कहाँ! हमारे देश में धार्मिक पादरी, व्यवस्थापिका-सभा के धार्मिक मानवीय सदस्‍य, धार्मिक शासन-कर्ता, धार्मिक वकील और धार्मिक विचारपति, नित्‍यप्रति धर्म का ढोंग रच कर देश भर के लोगों को चकमा दे रहे हैं। नित नई जालसाजी और फरेब के फंदे देखने में आते हैं। पर ये गुलाम भी अब धार्मिक बनने चले हैं, यह बड़ी कठिनाई है। लगता है, अब धार्मिक बनकर काम करना मुश्किल हो जाएगा। आजकल तो गोरे इन गुलामों के लिए धर्म का काम करते हैं। इससे काम की कमी नहीं, परंतु अब जब ये गुलाम भी धार्मिक होने लगे तो देश में ऐसा कोई आदमी ही नहीं रह जाएगा, जिस पर धर्म की मूठ चलाई जा सके। खैर, बोलिए इस धर्म की आप क्‍या कीमत चाहते हैं? क्‍या धर्म का भाव आजकल कुछ बढ़ गया है? किसी समाचार-पत्र में तो नहीं देखा। हाँ, तो कहिए जनाब, इसके लिए क्‍या भेंट चढ़ानी पड़ेगी?"

हेली - "असल में आप इसे खरीदना नहीं चाहते, यों ही मजाक कर रहे हैं। हम आपकी इस बात को मानते हैं कि इस दुनिया में कितने ही आदमी धर्म का जामा पहनकर लोगों पर हाथ साफ करते हैं, लेकिन सच्‍चे आदमी भी दुनिया से निर्बीज नहीं हुए हैं। जो सच्‍चा धार्मिक है, वह दुनिया को कभी धोखा नहीं देता। आप इस सर्टिफिकेट पर गौर क्‍यों नहीं करते? टॉम के पहले मालिक ने इसकी कितनी बड़ाई की है, देखिए!"

सेंटक्‍लेयर- "यदि आप निश्‍चयपूर्वक मुझसे यह कह सकें कि धार्मिक आदमी को खरीदने से परलोक में भी मैं उसके धर्म का मालिक हो सकूँगा, उसके धर्म का फल भोग सकूँगा, तो मैं धर्म के नाम पर तुम्‍हें कुछ अधिक रुपए दे सकता हूँ।"

हेली - "वाह साहब, भला ऐसा भी कहीं हुआ है? परलोक में एक के धर्म का मालिक दूसरा कैसे हो सकता है? जीते-जी यह आपका गुलाम है, इसलिए आपका माल है, लेकिन परलोक में इसका धर्म आपका माल कैसे होने लगा? हम तो ऐसा ही समझते हैं। आपको अधिक पूछताछ करनी हो तो पादरियों से सलाह कीजिए।"

सेंटक्लेयर - मिस्‍टर हेली, तब देखिए, जब इसका धर्म इसी के साथ रहेगा, मेरा उससे कोई संबंध न होगा, तब उस धर्म के लिए अधिक दाम माँगना अनुचित है।"

इतना कहकर सेंटक्‍लेयर ने हँसते हुए हेली के हाथ में नोटों की गड्डियाँ पकड़ा दीं। कहा - "लीजिए, गिन लीजिए।"

हेली ने नोट गिनकर प्रसन्‍नापूर्वक जेब के हवाले किए और बिक्री का दस्‍तावेज लिखकर सेंटक्‍लेयर को दे दिया। सेंटक्‍लेयर इवा को साथ लेकर टॉम के पास आया और मुस्‍कराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा - "आज से मैं तुम्‍हारा मालिक हुआ। कहो, अपने नए मालिक को कैसा समझते हो?"

टॉम ने घूमकर ज्यों ही सेंटक्‍लेयर की ओर देखा, उसकी आँखों से आनंद के आँसू टपकने लगे। वास्‍तव में जो कोई सेंटक्‍लेयर के सदा हँसमुख, प्रसन्‍न, स्‍नेहमय चेहरे की ओर देखता था, उसका हृदय आनंद से भर जाता था। टॉम ने कुछ देर बाद सेंटक्‍लेयर के प्रश्‍न के उत्तर में कहा - "श्रीमान्, परमात्‍मा से आपके कल्‍याण के निमित्त प्रार्थना करता हूँ। वह आपको सुखी रखे।"

सेंटक्‍लेयर ने टॉम से पूछा - "तुम्‍हारा नाम टॉम है न! तुम गाड़ी हाँकना जानते हो?"

टॉम ने कहा - "मैं अपने पुराने मालिक शेल्‍वी साहब के यहाँ बराबर गाड़ी चलाता था।"

यह सुनकर सेंटक्‍लेयर ने कहा - "तो ठीक है, तुम्‍हें गाड़ी हाँकने का काम दिया जाएगा। लेकिन देखना, बिना जरूरत सप्‍ताह में एक बार से ज्‍यादा शराब मत पीना। रोज शराब पीकर गाड़ी हाँकोगे तो किसी-न-किसी दिन जान से हाथ धोना पड़ेगा।"

पहले तो टॉम को यह बात सुनकर बड़ा अचंभा हुआ, फिर उसने दु:ख भरे शब्‍दों में बड़ी नम्रता से कहा - "जी, मैं शराब नहीं पीता"

सेंटक्‍लेयर ने टॉम के ये कातर वचन सुनकर कहा - "हाँ,... मैंने सुना है कि तुम शराब नहीं पीते। यह बहुत अच्‍छा है। पर तुम्‍हारे दु:खित होने की कोई बात नहीं है। मैंने तो यों ही कह दिया था। तुम्‍हारी बातचीत से मालूम होता है कि तुम सब काम अच्‍छी तरह निभा लोगे।"

टॉम ने कहा - "जी, कोई भी काम हो, उसे मैं जी से करने की चेष्‍टा करता हूँ।"

इसी बीच इवान्‍जेलिन ने टॉम का हाथ पकड़कर कहा - "टॉम काका, तुम्‍हें कोई डर नहीं। हमारे यहाँ तुम बड़े आनंद से रहोगे। बाबा कभी किसी को कष्‍ट नहीं देते। बाबा से कोई बात करने आता है तो वे हँसते ही रहते हैं।"

सेंटक्‍लेयर ने प्‍यार से इवा के सिर पर हाथ फेरकर कहा - "इस प्रशंसा के लिए मैं तेरा कृतज्ञ हूँ।"