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Gadya Kosh से
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जिस दिन देवनंदन, देवबाला को समझा बुझा कर रमानाथ को खोजने निकले, उसी दिन देवबाला को अपना दिन फिर फिरने का भरोसा हुआ, एक महीने तक वह बहुत अच्छी रही पर सुख उस के भाग में बदा न था, दूसरे महीने उसको थोड़ा-थोड़ा जर आने लगा, तीसरे महीने वह बहुत बढ़ गया,खाना-पीना सब छूट गया, दिन-दिन वह दुबली होने लगी, कुछ दिन तक उठती रही, फिर उठ बैठ भी न सकती, दिन रात खाट पर पड़ी रहने लगी,अपना कोई पास न था, देखभाल दौड़-धूप कौन करे, उसी पड़ोस की बूढ़ी बाम्हनी से जो कुछ बनता, वह करती, उसने लोगों से पूछपाछ कर देवबाला को दो एक औखध भी खिलायी, पर उससे कुछ न हुआ, दिन-दिन उसका रोग बढ़ता ही गया, आज उसकी दसा तनक भी अच्छी नहीं है, बुढ़िया मन मारे उसकी खाट के पास बैठी है, कभी चुपचाप रोती है, कभी देवबाला की आँख बचाकर आँसुओं को पोछ देती है। देवबाला का चार बरस का छोटा बच्चा भी उसी खाट के पास खड़ा है, कभी रोता है, कभी माँ, माँ, कर के खाने को माँगता है, कभी धूल में लोटता है, कभी मुँह के पास जाकर कहता है, माँ! बोलती क्यों नहींहो?

लड़के का रोना सुनकर देवबाला ने आँखें खोलीं, हाथ से लड़के को पास बुलाया, अपने आँचल से उसका धूल झाड़ा, कहा, बेटा क्यों रोते हो! अभी तुमारी माँ जीती है, इतना कहकर देवबाला ने लड़के को गोद में बैठा लिया, पर इतना रोई जिससे बिछावन तक भींग गया।

बुढ़िया ने कहा क्यों रोती हो देवबाला, अभी तुमारा क्या बिगड़ा है, इस बच्चे का मुँह देखो! इसको न रुलाओ, तुमारा मुँह देखकर यह रो-रो उठता है! ढाढ़स करो, इतना निरास क्यों हो!!!

देवबाला की साँसें चल रही थीं, बहुत बोला न जाता था, पर उसने जी थामकर कहा, जीजी? रोने दो, कल मैं रोने न आऊँगी, यह ढाढ़स करने का बेला नहीं है, फिर ढाढ़स कर ही के क्या होगा, जिन आँखों ने आँसू बहाना ही सीखा है, वह जीते कैसे मान सकती हैं। यह बच्चा रोता है! यह नहीं देखा जाता है! लड़के का आँसू पोंछ कर और उसका मुँह चूम कर देवबाला ने कहा यह कभी नहीं देखा जाता है! कलेजा फटता है! मरने के दुख से भी यह दुख भारी जान पड़ता है! पर इस को तो अभी बहुत दिन रोना है, आज मैं इसका धूल झाड़ती हूँ, मुँह चूमती हूँ, इसको रोते देख कर दुखिया बनती हूँ, हाय! कल इस का धूल कौन झाड़ेगा, कौन इस का मुँह चूमेगा, कौन इस को रोते देखकर कलेजा पकड़ेगा, कल यह किस को माँ कहेगा, कौन इस के मुँह को सूखा न देख सकेगी, भूख लगने पर जब यह रोवेगा, प्यास से जब इस का मुँह कुम्हिलावेगा, तब कौन इसको छाती से लगा कर कहेगी, बेटा मत रोओ। मेरे लाल! मत रोओ, देखो यह कलेऊ है, इसको खाओ! यह पानी तुमारे लिए लाई हूँ, इसको पीओ। कल यह बाल खोले मुँह बिचकाये रोता फिरेगा। धूल में भरा, भूखा, प्यासा, गलियों में ठोकरें खाता रहेगा, कभी माँ, माँ कर के कलपेगा, कभी एक टुकड़े रोटी के लिए, एक मूठी अन्न के लिए तरसेगा, सूखे मुँह पछाड़ खा-खा कर धरती पर गिरेगा, उस घड़ी इस की कौन गत होगी, कौन इस की सुरत करेगा, मुझ भिखारिनी से जनमा जान कर लोग इससे घिन करेंगे, पास न फटकने देंगे, उस घड़ी यह चार बरस का लड़का किस का मुँह देख कर जीयेगा, जीजी! लो, तुमारे गोद में मैं इस को देती हूँ! तुम्हीं इस दुखिया बच्चे को सम्हाल सकती हो, तुमारे बिना और कोई मुझ को अपना नहीं जान पड़ता है, तुमने आज तक मुझको सम्हाला है, अब इस बच्चे को सम्हालना, यह बच्चा तुमारा ही है, इतना कहते-कहते देवबाला की आँखें फिर मुँद गयीं, फिर वह अबोले हो गयी, कुछ घड़ी पीछे कहा पानी! बुढ़िया ने थोड़ा पानी पिला दिया।

अब की बार उसकी आँखें फिर खुलीं, उसने चारों ओर देखा, कहा, जीजी! एक बात और जी में रही जाती है, क्या अब उनको न देख सकूँगी, इस घड़ी जो उन को एक बार देख पाती, तो सब दिन का दुख भूल जाती, मरने का दुख भी भूल जाती, देवनंदन के गये आज तीन महीने पूरे हो गये, जाती बेले उन्होंने कहा था, मैं उनको तीन महीने के भीतर ही लेकर पहुँचूँगा, क्या आज वह आवेंगे, जीजी! जिस दिन देवनंदन उनको खोजने निकले, उस दिन मुझ को बहुत भरोसा हुआ था, मुझ को कई दिन ऐसा जान पड़ा, वह आये हैं, मैं उनके पास बैठी हूँ, रो रही हूँ, कहती हूँ, मैंने क्या किया, जो तुम मुझ को भूल गये थे, तुमारा कैसा कलेजा है, जो चार-चार बस तुमने मेरी सुरत नहीं की, तुम बड़े निठुर हो, जो तुमारे ऊपर अपना प्रान तक निछावर करना चाहती है, तुमारा ही मुँह देखकर जो सब कुछ भूल जाती है, क्या उस से भी तुम को रूठना चाहिए। वह इन बातों को सुनते हैं, अपने हाथों मेरा आँसू पोंछते हैं,कहते हैं, क्या मैं तुम को भूल सकता हूँ, पर भाग ने जो चाहा सो किया, जाने दो अब इन बातों को कह कर मुझको न लजवाओ, पर हाय! जीजी! यह सब मेरा सपना था, वह तो आज भी नहीं आये, जी की जी ही में रही जाती है, जो मैंने कुछ पुन्न किया हो, जो मेरी पहले जनम की कोई भली कमाई हो, तो मैं यही चाहती हूँ उनको एक बार और देखूँ, इस मरते बेले और एक बार उन को देखकर अपनी आँखें ठण्डी करूँ। जीजी! क्या भगवान मेरी यह पुकार सुनेंगे?

जिस घड़ी देवबाला बुढ़िया से इन बातों को कह रही थी, उसी बेले बाहर किसी के पाँव की आहट सुन पड़ी, थोड़ी बेर में देवनंदन ने घर के भीतर पाँव रखा, देखा, देवबाला की साँसें चल रही हैं, आँखें टँग गयी हैं, और बात उसके मुँह से बहुत ही रुक-रुक कर निकल रही है। देवनंदन बाहर ही से देवबाला की दसा सुनते आये थे, घर में आकर उस की यह दसा देख कर उनका कलेजा फट गया। बहुत सम्हालने पर भी जो न सम्हला, पर उन्होंने कलेजा थाम कर कहा, देवबाला! रमानाथ आये हैं, क्या कहती हो?

देवबाला ने प्यार के आँसू बहा कर कहा, भैया! अब इस जनम में भेंट न होगी, मैं चली, पर मरने के दुख से भी बढ़ कर जो दुख था, उसको तुमने दूर किया, मैं इस का कहाँ तक निहोरा करूँ, मुझ को भूल न जाना, मैं अब इस घड़ी यही चाहती हूँ, उन को यहाँ आने दो।

देवनंदन बड़े दुख के साथ घर में से बाहर हो गये, बुढ़िया भी वहाँ से उठकर दूसरी ठौर चली गयी, थोड़ी बेर में धीरे-धीरे सिर नीचा किये रमानाथ ने उस घर में पाँव रखा, रमानाथ का सिर लाज से ऊपर न होता था, आँख से आँसू भी गिर रहा था। देवबाला ने उस को आते देखा, कुछ घड़ी के लिए सब दुख भूल गयी, इस घड़ी उस की आँखों में आँसू न था, वह बोली, “क्या कहूँ, भाग में यही लिखा था, साढ़े चार बरस पीछे प्यारे से भेंट होगी तो उस घड़ी जब प्रान बाहर निकलते होंगे, तब भी मैं अपने को बड़भागिनी समझती हूँ, जो मरते मुझ को तुमारे पाँवों की धूल मिल गयी। इतना कह कर देवबाला ने रमानाथ को पास बैठाला पाँवों की धूल लेकर आँखों से मला, माथे पर चढ़ाया, पीछे कहा, मैंने जान बूझ कर कभी कोई चूक नहीं की है, जो भूल कर मुझसे कोई चूक हुई हो, तो मैं चाहती हँ तुम उसको छिमा करो, जो कुछ भी तुमारे जी में मैल होगी, तो मैं भगवान को मुँह कैसे दिखाऊँगी, रमानाथ ने कहा, प्यारी! तुम से, और चूक! यह कैसे हो सकता है, पर जो कोई चूक हुई हो, मैंने उसको छिमा किया, भगवान तुमारा भला करे। अब की बार देवबाला फिर रोई, बोली, कैसा अच्छा होता, जो यह बात कुछ दिन पहले तुमारे जी में आती! भाग ने जो चाहा किया, अब मैं चली, इस बच्चे को तुम्हें सौंपे जाती हूँ, देखो यह रो रहा है, इस को चुप कराओ, और असीस दो, मैं जनम-जनम तुमारे चरनों की दासी होकर जनमूँ पर ऐसा दुख किसी जनम में न पाऊँ,जैसा इस जनम में मिला है।” रमानाथ न रोते-रोते देखा, इतना कहते-कहते देवबाला की आँखें अचानक मुँद गयीं, और देखते-ही-देखते प्रान उसके दुखिया देह से बाहर हो गया।