डर आधारित मनोरंजन फ़िल्में / जयप्रकाश चौकसे

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डर आधारित मनोरंजन फिल्में

प्रकाशन तिथि : 09 फरवरी 2011

विक्रम भट्ट अपनी फिल्मों 'राज' और '1920' के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने थ्रीडी टेक्नोलॉजी के विकसित उपकरणों की सहायता से 'हॉन्टेड' नामक हॉरर फिल्म बनाई है, जिसमें मिथुन चक्रवर्ती के सुपुत्र मिमोह नायक हैं। दरअसल इस तरह की फिल्मों का मुख्य आकर्षण टेक्नोलॉजी ही होता है। ज्ञातव्य है कि केरला के एक फिल्मकार ने 'छोटा चेतन' नामक पहली थ्रीडी फिल्म बनाई थी और उसने इतना व्यवसाय किया कि दर्जनों फिल्में थ्री डी में बनने लगीं और हॉलीवुड के गोदामों में रखे सारे उपकरण बिक गए। परंतु 'छोटा चेतन' के बाद प्रदर्शित एक भी थ्रीडी फिल्म सफल नहीं रही। 'टाइटैनिक' की ऐतिहासिक सफलता के बाद फिल्मकार जेम्स कैमरॉन की पहल से हॉलीवुड में थ्री डी के तकनीक के सुधार का काम तीव्र गति से हुआ और उनकी 'अवतार' की सफलता ने इस तकनीक को स्थापित कर दिया। भारत में चेन्नई स्थित प्रसाद लेबोरेटरीज ने विकसित कैमरे का आयात किया और विक्रम भट्ट ने विकसित उपकरणों का उपयोग किया है।

हिंदुस्तानी सिनेमा वीडियो चोरी से त्रस्त रहा है और थ्री डी में बनाई गई फिल्मों का वीडियो चोरी नहीं हो सकता। 'छोटा चेतन' के दौर में प्रयुक्त चश्मों से कई लोगों को आंख की बीमारियां हो गई थीं। आज के नवविकसित चश्मे पहनने में सुविधाजनक हैं। सिनेमा के प्रारंभिक दौर से ही डरावनी फिल्में बनती रही हैं और हॉलीवुड की 'द केबिनेट ऑफ डॉ. कैलीगरी' को बने नब्बे से अधिक वर्ष हो चुके हैं। भारत में रामसे बंधुओं ने इस क्षेत्र में लंबे समय तक काम किया और एमए अंसारी ने भी अपनी संस्था बुंदेलखंड फिल्म्स के लिए इस तरह की कुछ फिल्में बनाईं।

आज के दौर में विक्रम भट्ट को इस तरह की फिल्में बनाने में महारत हासिल है। अपनी '1920' में उन्होंने विदेश में किसी भव्य बंगले में शूटिंग की थी और उसको ही नायक की तरह प्रस्तुत किया था। हॉलीवुड की हॉरर फिल्मों में क्रिश्चिएनिटी का प्रचार होता है, क्योंकि दुरात्माओं को क्रॉस से डर लगता है और चर्च के पवित्र जल से भी वे नष्ट हो जाती हैं। विक्रम भट्ट ने इसी तर्ज पर '1920' नामक फिल्म में हनुमान चालीसा का अत्यंत प्रभावी इस्तेमाल किया था। भारत ने हॉरर श्रेणी की फिल्मों में कुछ अपना योगदान इस तरह से दिया है कि हॉरर फिल्मों में कर्णप्रिय संगीत सफलता के लिए आवश्यक बना दिया गया है। हेमंत कुमार की 'बीस साल बाद' में एक ऐसा ही गीत था जो सिनेमाघर से बाहर निकलने के बाद भी दर्शक के मन में गूंजता था। दरअसल इसका प्रारंभ तो संगीतकार खेमचंद प्रकाश 'महल' में कर चुके थे। लताजी का गाया 'आएगा आने वाला...' आज भी लोकप्रिय है। हॉलीवुड की हर कथा में इसी तरह मौलिक भारतीय 'तड़का' लगाया जाता है।

यह समाजशास्त्रियों के लिए अध्ययन का विषय हो सकता है कि दर्शक डरने के लिए टिकट क्यों खरीदता है? हॉरर फिल्मों में दर्शकों की जितनी चीखें निकलती हैं, उतना व्यवसाय फिल्म करती है। शायद चीखने और डरने से भी मनोभावों का विरेचन होता है।