डैड कनेक्शन / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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दस बजते ही बाबू राम सहाय पीसीओ बंद कराकर पैदल ही घर की ओर चल देते हैं। उनके व्यवसाय का पहला दिन काफी व्यस्तता में बीता है, कमाई भी अच्छी हुई है। फिर भी उनके मन में कोई उत्साह नहीं है, विचित्र-सी उदासी उन पर छाई है। चार कदम चलते ही उनकी कमर और टाँगें दुखने लगती हैं। वे सोच में पड़ जाते हैं, नौकरी से रिटायर होते ही उन्हें क्या हो गया है।

दरवाजा सपना खोलती है। वे अपनी छब्बीस वर्षीय बेटी को देखकर सोचते हैं, क्या पता...इसके भीतर भी उस लड़की जैसा कुछ चल रहा हो?

"पापा, कैसा रहा आज का दिन?" वह पूछती है।

"अ...अच्छा।" वे चैंककर कहते हैं, फिर पूछते हैं, "सरोज और राहुल दिखाई नहीं दे रहे?"

"मम्मी मंदिर गई हैं और भइया कोचिंग" , कहकर वह किचन की ओर बढ़ जाती है, वे सोफे पर पसर जाते हैं। पीसीओ वाली लड़की फिर उनके सामने आ खड़ी होती है...सपना और उस लड़की का चेहरा गड्ड मड्ड होने लगता है। लाख कोशिशों के बावजूद वे अपनी बेटी को उस लड़की से अलग नहीं कर पाते...

बूथ पर आने वाली वह पहली कस्टमर थी। पहली नजर में उन्होंने उसे सीधी-सादी घरेलू लड़की ही समझा था। जब उसने साउड-प्रूफ केबिन से बात करने की इच्छा प्रकट की थी तो वे चैंक पड़े थे। उस समय वहाँ और कोई नहीं था। यह जानते हुए भी कि ऐसा करना ग़लत है, वे खुद को रोक नहीं पाए थे और उसकी बातें सुनने लगे थे...

"हैलो होटल ताज?"

"कनेक्ट मी टू रूम न। 201"

"जस्ट ए मोमेंट, प्लीज!"

"हाय हनी, हाउ आर यू?"

"वू ...वॉट ए सरप्राइज! ...डाार्लिंग, मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था।"

"बटरिंग रहने दो।"

"सच कह रहा हूँ...तुम फौरन आ जाओ."

"समथिंग स्पेशल!"

"यस स्वीटी! आइ हैव स्मगल्ड" अमेरिकन एरोटिका"फार यू, इट्स टू हॉट!"

' तुम्हारा वह जंगली दोस्त तो नहीं है वहाँ? लास्ट टाइम ही हर्ट मी लाइक एनीथिंग। "

"डार्लिंग, चिंता मत करो। यू विल इनजॉय द पार्टी. फोैरन चल पड़ो। घर वालों की तरफ से कोई रूकावट नहीं है न?"

"हू केअर्स! मैंने ऐलान कर दिया है-दहेज और दूल्हे के इंतजार में मुझे बूढ़ी नहीं होना। आइ वांट टू एनजॉय ईच एंड एवरी मोमेंट आॅफ लाइफ!"

उनका हाथ काँपने लगा था, आगे की बात सुने बगैर उन्होंने रिसीवर वापस रख दिया था।

"पापा, चाय।" बेटी की आवाज उन्हें वर्तमान में ले आती है। वे चुपचाप चाय का कप थाम लेते हैं। इस बार वे बेटी की ओर नहीं देखते, मानो उसके चेहरे पर ही बूथ वाली लड़की जैसा कुछ दिख जाएगा। सपना पढ़ाई पूरी कर चुकी है, उसके लिए वर की तलाश वे पिछले चार साल से कर रहे हैं, पर अभी तक निराशा ही हाथ लगी है। जहाँ कोई माँग नहीं होती, लड़के में कमी निकल आती है। लड़का पसंद आता है तो दहेज से मार खा जाते हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि बेटी की परवरिश में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी है, फिर भी जाने क्यों, पीसीओ पर आई लड़की के विचारों को याद कर तरह-तरह की आशंकाएँ उनके भीतर जन्म लेने लगती हैं।

बगल के कमरे से माँ के कराहने की आवाज सुनाई देती है।

"आज दिन भर इसी तरह कराहती रही हैं।" सपना बताती है।

माँ का शरीर बिस्तर पर निश्चल पड़ा है। आँखें बंद हैं। चेहरे पर पीड़ा के भाव घनीभूत हैं। थोड़ी-थोड़ी देर बाद मुँह से आह निकल जाती है। वे सोचते हैं-इन तीन महीनों में माँ के चेहरे की झुर्रियाँ कितनी घनी हो गई हैं। तभी देखते हैं, माँ की आँखें खुली हुई हैं। "बहुत दर्द है क्या?" वे पूछते हैं। लकवे के आघात ने उनकी आवाज भी छीन ली है। पर, दिमाग ठीक काम कर रहा है, जवाब में लंबी 'आह' के साथ उनकी आँखें भर आती हैं। वे बेबसी से उनके बाल सहलाने लगाते हैं। माँ पिछले तीन महीनों से बिस्तर पर हैं। डॉक्टरों ने कह दिया है, "कुछ नहीं हो सकता, अब सेवा कीजिए." माँ की मरहम-पट्टी, मलमूत्र कराना आदि कार्य वे ही करते हैं। इसके पीछे पत्नी-बच्चों के असहयोग वाली बात कहीं नहीं है। एक तो रिटायरमेंट के बाद उनके पास समय की कमी नहीं थी, दूसरे माँ की सेवा में उन्हें बहुत खुशी मिलती है। चींटियों की कतार को पलँग पर चढ़ते देख वे सन्न रह जाते हैं। ध्यान से देखने पर चीटियाँ माँ की पीठ की ओर जाती दिखाई देती हैं।

फुर्ती से करवट दिलाकर देखते है-पीठ के 'बेड सोल' पर चींटियाँ रेंगती नजर आती हैं। वे थर्रा जाते हैं। साफ-सफाई की तमाम कोशिशों के बावजूद माँ को 'बेडसोल' हो गया था। घाव की दो बार नियमित मरहम-पटटी वे करते थे, इधर पी.सी.ओ. के मुहूर्त में व्यस्तता की वजह से माँ की ओर पूरा ध्यान नहीं दे सके थे। वे खुद को अपराधी महसूस करते हैं। सावधानी से जख्म की सफाई करते हैं, फिर बिस्तर बदल देते हैं। चींटियों से निजात मिलते ही माँ शांत हो जाती है, वे चिंता में पड़ जाते हैं, जब उनको दिन भर पीसीओ पर रहना पड़ेगा, माँ की देखभाल पत्नी को ही करनी पड़ेगी। खयालों में वे फिर पीसीओ पहुँच जाते हैं। ...

"नहीं, मैं नहीं आ सकती।"

"तुम्हें तो पता ही है-अपने पिता के आगे ये किसी को कुछ नहीं समझते।"

"मैं तो खुद ही इस नरक से निकलने की सोच रही हूँ।"

"मुझे तो बुढ़ऊ के पास जाते ही उल्टी आती है। मैंने तो साफ कह दिया है, मुझसे कुछ नहीं होने का।"

"इनके भाई बहुत चालाक हैं, सब के सब, तीन महीने से कोई झाँकने तक नहीं आया!"

"नर्स कहाँ रखने देते हैं! मेरा बस चले तो मैं अस्पताल में डलवा दूँ, झंझट कटे!"

"अभी कहाँ मरने वाला है..."

"तुम तो जैसे इन्हें जानती ही नहीं। ये तो मैं ही हूँ, जो चालीस सालों से निबाह रही हूँ।"

उस औरत की बातें सुनकर वे सोच में पड़ गए थे...पति-पत्नी एक ही छत के नीचे रहते चालीस साल बिता देते हैं...बच्चों को जन्म देते हैं, उनकी शादियाँ करते हैं और यह सब बिना प्यार के मशीनी अंदाज में होता चलता है। शायद इस औरत के पति को कभी पता नहीं चलेगा कि उसकी पत्नी जीवन पर्यंत उससे नफरत करती रही। उसी समय सरोज का चेहरा उनकी आँखों के सामने आ गया था...क्या पता वह भी उनके प्रति ऐसे विचार रखती हो? उनका दिल डूबने लगा था।

"प्रसाद," सरोज मंदिर से लौट आई है। वे खोए-खोए से पत्नी की ओर देखते हैं, फिर दोनों हाथ प्रसाद ग्रहण करने की मुद्रा में बढ़ा देते हैं। पत्नी के साथ बिताए गए पैंतीस वर्ष किसी फ़िल्म की तरह फड़फड़ाते हुए उनके सामने से गुजरने लगते हैं। इन दृश्यों में वे उन अप्रिय प्रसंगों को तलाशने लगते हैं, जहाँ उनसे पत्नी के प्रति ज्यादती हुई हो...

"क्या बात है परेशान लग रहे हैं," वह चिंतित हो उठती है, दुकान की कोई बात है क्या? "

"ऐसा कुछ नहीं ...थकान है, बस!" पत्नी को अपने लिए चिंतित देख उन्हें अच्छा लगता है। वे सहज होने की कोशिश में पूछ लेते हैं, "राहुल अभी तक कोंचिग से क्यों नहीं लौटा?"

"दस बजे से पहले कभी नहीं लौटता। मेहनत तो बहुत कर रहा है..."

"मुझे तो उसकी चिंता लग गई है।" उन्हें पीसीओ पर हुई डोनेशन वाली बातचीत याद आती है...वह आदमी अपने बेटे के इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए एक लाख देने को तैयार था, जबकि दूसरी ओर से डिमाड डेढ़ लाख की हो रही थी। शायद वह एक लाख से अधिक देने की स्थिति में नहीं था, क्योंकि फोन रखते ही वह रुआँसा हो गया था।

"क्या सोच रहे हैं?"

"यदि राहुल कंपटीशन में नहीं आया तो कया करेंगे? लाखों रुपए डोनेशन देकर एडमीशन दिलाने की हमारी औकात तो है नहीं।" इंजीनियरिंग में एडमीशन के लिए दिन-रात एक कर रहे राहुल का भोला-भाला चेहरा उनकी आँखों के आगे घूम जाता है। वे सीने में विचित्र-सी सुलगन महसूस करते हैं।

थोड़ी देर तक कमरे में सन्नाटा छाया रहता है।

"चिंता क्यों करते हैं? सब ठीक हो जाएगा।" पत्नी दिलासा देती है।


कहीं दूर टेलीफोन की घंटी बज रही है...ट्रिन...ट्रिन...ट्रिन-ट्रिन ...इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं...कृपया थोड़ी देर बाद डायल करें...प्लीज डायल आफ्टर सम टाइम..."हैलो पापा, आप जल्दी ही कुछ कीजिए नहीं तो ये लोग मुझे जला देंगे।" ...किसी ने रिसीवर टीवी के आगे रखा हुआ है, "एक चुम्मा तू मुझको उधार दे दे, बदले में दिल्ली-पंजाब ले ले।" ...ट्रिन-ट्रिन... 'हैलो' 'करवा' लूँगा, साहब, 'हो' जाएगा साब! 'पहुँचवा' दूँगा साहब...जी! ...जी? जी...साहब, जयहिंद साहब! "...कृपया डायल किया नंबर जांच लें...प्लीज चेक द नंबर यू हैव डायल्ड..." हैलो, बंसी! कल हम मुंबई पहुंच रहे हैं, 'पार्टनर' चाहिए पिछली बार जैसा ...स्कूली! "...आॅल लाइंस आॅफ दिस रूट आर बिजी...प्लीज डायल आफ्टर सम टाइम ..." हैलो, पार्टीलाइन? ...यस, आइ वांट टू शेयर माइ सेक्सुअल फैंटेसीज विद हर! "...ट्रिन-ट्रिन..." हैलो, बुढऊ ने नाक में दम कर रखा है, मरता भी नहीं जो जान छूटे! ' ट्रिन-ट्रिन...ट्रिन-ट्रिन...ट्रिन-ट्रिन... "अमेरिकन एराटिका इट्स टू हॉट!" ...दिस नंबर इज चेंज्ड...प्लीज डायल वन नाइन सेवन।य...यह नंबर बदल गया है..."मैं ही हूँ जो चालीस सालों से इनके साथ निबाह रही हूँ" ...ट्रिन-ट्रिन...सपना कहती है, "दहेज और दूल्हे के इंतजार में मुझे बूढ़ी नहीं होना!" स्मैक का धुआँ उगलते हुए राहुल दहाड़ता है, "क्या किया है आपने मेरे लिए!" "सरोज, हमारे बच्चे!" वे सिसकने लगते हैं। ..."कसाई!" पत्नी का कठोर स्वर...फिर रिसीवर पटकने की आवाज सुनाई देती है। ..."हैलो...हैलो!" वे घबराकर दोहराते हैं। दूसरी ओर मौत-सी खामोशी छाई है। झल्लाकर फोन डिसकनेक्ट करते हैं...डायल टोन नहीं लौटती ..."हैलो, ...हैलो! ...हैलो?" वे बोैखलाकर चिल्लाने लगते हैं।

पत्नी झिंझोड़कर उठाती है, "क्या हुआ है आपको?" वे हकबकाए से पत्नी को ताकते रहते हैं। उनकी समझ में नहीं आता कि वे पीसीओ से घर कैसे पहुँचा।

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