डॉ.अर्पिता अग्रवाल: लोकमन तक की यात्रा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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लोकमन तक की यात्रा हैं लोककथाएँ

आदमी ने एक दूसरे से जुड़ने की जब बात सोची होगी, तब कहानी उसका माध्यम बनी होगी। आदमी ने जब किसी को संकट से उबारने के लिए हिम्मत बढ़ाने की बात कही होगी, तब कहानी उसकी सहायिका बनकर साथ खड़ी होगी। अलाव पर गर्माहट लेते वक़्त चुपचाप बैठना कठिन था; तो उस समय किसी बुज़ुर्ग ने कहानी सुनाकर सबकी दिन भर की थकान उतारी होगी। जब जीवन में कुछ करने का संकल्प लिया होगा, तब किसी संघर्षशील व्यक्ति की कथा सामने आई होगी।

नाना-नानी और दादा-दादी ने छोटे बच्चों को गढ़कर कहानी सुनाई होगी। कहानी कहने की रोचकता ही जन-जन तक पहुँचने का कारण बनी होगी। ये अलिखित मौखिक कहानियाँ समाज में विस्तार पाती गई. लोक रंजन की यह कला सागर और नदियों को तैर कर, तपते रेगिस्तानों को पार करके लोककथा के रूप में देशकाल से परे अपना विस्तार पाती गई. जिसने कोई कहानी शुरू की थी, वह पीछे छूट गया। उस अनजाने व्यक्ति के रूप में रह गया सिर्फ़ लोक। जीवनमूल्य इनका विषय थे, तो कहीं-कहीं शुद्ध मनोरंजन ही उद्देश्य था। बिना मुद्रित हुए ये लोककथाएँ यात्रा करते–करते लोकमन तक पहुँचती गई. उसी लोकमन ने इनको जिन्दा रखा। समाज को शिक्षित करने के इस सूत्र को विष्णु शर्मा ने भी अपनाया। पंचतन्त्र की कहानियों का सर्जन इस दिशा में एक अभूतपूर्व प्रयास था।

मुझे आज भी याद है हमारे दूर के रिश्ते के एक मौसा जी जब बरसात में खेती-बाड़ी का काम सम्पन्न हो जाता था तो हमारे चाचा जी के यहाँ आते थे। पहले दिन से ही उनकी घेरेबन्दी शुरू हो जाती थी-कहानी सुनाने के लिए. उन अनपढ़ मौसा जी के पास कहानियों का ख़ज़ाना था। कहानियों के पात्र परियाँ, दानव, राजा आदि हुआ करते थे। साथ ही कहानी कहने की ऐसी कला भी उनके पास थी कि हम बचपन की सबसे बड़ी सम्पत्ति निद्रा देवी को त्यागकर उनकी कहानी सुनने के लिए अपनी चौपाल में इकट्ठा हो जाते थे। मन ही मन मनाते थे कि मौसा जी अधिक से अधिक दिन हम लोगों के यहाँ ठहरें। बाकी समय में मेरे ताऊ जी यह काम सँभाले रखते थे। बकरी, शेर और घास को नदी पार ले जाने की ताऊ जी की गणित की रोचक कहानीनुमा समस्या कथा आज भी याद है। पता नहीं क्यों हम इन कथावाचकों को अपने मन के बहुत पास पाते थे।

भागमभाग के आज के जीवन में सब मशीन बन गए हैं। संयुक्त परिवारों की बिदाई से अलग-थलग पड़े माता-पिता रोटी-रोज़ी या नौकरी में ही खप जाते हैं। एकल परिवारों में न दादा-दादी हैं और न नाना-नानी। लोक का यह विघटन लोककथाओं के लिए भी ख़तरा बन गया है। आने वाले समय में लोकगीतों की तरह लोककथाएँ भी हमारे समाज से बिदा हो जाएँगी। इनके बिदा होने का अर्थ है-हमारे सामाजिक सम्बन्ध भी क्षीण होते जाएँगे। डॉ।अर्पिता अग्रवाल को लोक विघटन की चिन्ता रही होगी। यही कारण है कि आपने लोककथाओं का संग्रह तैयार करने का बहुत सार्थक प्रयास किया। इनकी कुछ लोक कथाओं का यहाँ उल्लेख करना ज़रूरी है। 'सात भाई एक बहन' कहानी की रोचकता बेजोड़ है, साथ ही पारिवारिक सम्बन्धों को मज़बूत बनाने के लिए अपने सात भाइयों के लिए किए गए उपायों और सूझबूझ का रोचक चित्रण है। वह स्वयं बुराई का केन्द्र बन कर संकट का सामना करके अपने भाइयों की रक्षा करती है। ऐसी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता होती है कि समाज इसे सहज भाव से हृदयंगम कर लेता है। बेटियों का सामाजिक महत्त्व किसी भी रूप में बेटों से कम नहीं। 'बगुला–पत्नी' छोटी–सी कहानी है। किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञता इसका मुख्य स्वर है। आज का इंसान जहाँ छल-प्रपंच में डूबा हुआ है, वहाँ एक पक्षी भी अपने ऊपर उपकार करने वाला का हित-चिन्तन करता है। 'राजा के मन्त्री और किसान' का कथ्य बहुत साधारण है, लेकिन सन्देश बहुत विशिष्ट। इस कथा से सिद्ध होता है कि बुद्धिमत्ता किसी की धरोहर नहीं। एक साधारण किसान राजा के मन्त्रियों से भी अधिक सुयोग्य और बुद्धिमान सिद्ध हो सकता है। " बकरी और उसके बच्चे'बच्चों को सजगता की सीख देती है।' एक प्रेम कथा का अन्त' युगों–युगों से चली आ रही उन लोगों की संकीर्णता और छल को उद्घाटित करती है, जिन्हें कभी सच्चा प्रेम फूटी आँखों नहीं सुहाता है।

शादी–ब्याह में आजकल कितना खाना बरबाद होता है, इसका कोई हिसाब नहीं है। बफ़े सिस्टम ने यह बरबादी और बढ़ा दी है। किसान जिस अन्न को अपने खून–पसीने से सींचकर उगाता है, कुछ लोग उसका महत्त्व नहीं समझ पाते हैं। 'अन्न का तिरस्कार' कहानी में राजा द्वारा किया गया तिरस्कार उसकी बरबादी का कारण बनता है। लोककथा होते हुए भी यह शिक्षा आज की अनिवार्यता है। हमें हर हालत में अन्न की बरबादी रोकना है। बुज़ुर्गों की उपेक्षा से समाज कमज़ोर बनता है। उसकी विश्वसनीयता घटती है। 'सारे बाराती युवा थे' लोककथा में ज़मींदार ने अपनी बेटी कि शादी के लिए शर्त रखी कि सभी बाराती युवा होने चाहिए. कोई भी बुज़ुर्ग शादी में नहीं आना चाहिए. सहमति होने पर शादी पक्की हो गई. बारात में मना करने पर भी एक बुजुर्ग छुपकर चला ही आया। ज़मींदार ने आखिरकार अपनी तरकीब से पता लगा ही लिया कि बारात में एक बुज़ुर्ग भी आया है। वस्तुत; ज़मीदार यही जानना चाहता था कि युवा अपने बुज़ुर्गों का सम्मान करते हैं या नहीं।

'कुछ दे दो' कहानी की सारी रोचकता 'कुछ' शब्द में छिपी हुई है। पानी पिलाने वाले एक व्यक्ति को ज़मीदार ने जब कुछ देना चाहा तो उसने कहा-'कुछ दे दो' जमीदार ने उस व्यक्ति से दूध मँगवाया, जिसमें मक्खी गिर गई थी। उस व्यक्ति ने मक्खी देखकर कहा कि 'इसमे कुछ' पड़ा है। ज़मीदार ने दूध से निकालकर मक्खी उसको दे दी। 'चमेली राजकुमारी' की कहानी बेहद रोचक होने के साथ-साथ यह सन्देश भी लिये हुए है कि अच्छे व्यक्ति के गुण प्रयास करने पर भी नहीं छुपाए जा सकते। पर्यावरण का संरक्षण आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। 'फलों का पेड़ बनने की कला' भले ही लोककथा हो, लेकिन यह कथा पूरी सभ्यता की जीवनरेखा है। बिना तामझाम के लघुकथा पेड़ों के महत्त्व को दर्शाती है।

मैं आशा करता हूँ अर्पिता जी का यह संग्रह सराहा जाएगा।

(07 जून, 2016)