डोॅर / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Gadya Kosh से
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"इखनी तोरा मालकिन सेॅ फुर्सत मिललोॅ छौ, बैठी केॅ इनको गोड़ तेॅ नहिये नी जांतै छौ कि एत्ते रात केॅ लौटे छौ।" देवकी केॅ सचमुचे अपनोॅ पति मंगली पर गुस्सा आवी गेलोॅ छेलै।

"अरे, ई बात नै छै, देवकी।"

"तबेॅ' आरो बात की छै। मालकिन केॅ लोरी तेॅ नहिये नी सुनाबै छौ कि नींद ऐला के बाद हमरोॅ पास लौटोॅ। सोचै भी छौ कि तोरोॅ इन्तजारी मेॅ हमरा रोजे रोज आधोॅ रात तांय भुखले रहै लेॅ लागै छै।"

"अच्छा छोड़ोॅ, कल से सांझ पड़तै-पड़तै कोठी सेॅ लौटी ऐवै। आबेॅ गुस्साबै के कोय ज़रूरत नै छै। चलोॅ चौका तैयार करोॅ। हम्मू कम नै भुखैलोॅ छी।" मंगलीं पेटोॅ पर हाथ फेरतेॅ कहलकै।

"मालकिने साथ कैन्हेंनी खैलेॅ आबेॅ छोॅ।" अबकी देवकीं झुठ मुस्सी गोस्सा दिखैतेॅ कहलेॅ छेलै, आरो भनसा दिश बढ़ी गेलोॅ छेलै। जबेॅ मंगली खाय लेॅ आसनी पर बैठलै तेॅ ओकरोॅ पहिले कौर उठैतेॅ देवकी पूछी देलकै, "आखिर एत्तेॅ देर तोरा सेॅ की-की काम करवैतेॅ रहै छौं, हम्मेॅ तेॅ आय तक नै समझेॅ पारलियौं।"

"आबेॅ तोरा की बतैय्यों, जों कहभौं, तेॅ तोहैं विश्वासे नै करवौ। कोठी में जे टा हम्मेॅ काम करै छियै, सब मिलाय केॅ बस डेढ़, दू घण्टा के काम छेकै।" तेॅ बाकी बेरा मेॅ की करै छौं? " देवकी अचरज सेॅ पूछलकै।

"कुछुओ नै। बस मालकिन के कमरा सेॅ हटी के ऐंगन के ओसरा पर बैठलोॅ रहै छियै।"

"जबेॅ वहाँ कोय कामे नै रहै छै तेॅ तोरा यहाँ नै आबेॅ दै छौं? नै आवेॅ दै छौं तेॅ नहिये, तोंही वहाँ सेॅ टरकी गेलोॅ करोॅ।"

"जों हेनोॅ हुएॅ पारतियै, तेॅ आवी नै जैतियौं।"

"तेॅ की बाहर आवी-आवी तोरा देखी जाय छौं?"

"वहू नै होय छै।"

"तबेॅ?" देवकी के आँखी में आचरज फैली गेलोॅ छेलै।

"मालकिन दस-दसे मिण्टोॅ में कोठरी सेॅ आवाज देतेॅ रहै छै।"

"की कहै छौं?"

"की कहतै, कुछुओ नै। खाली हमरोॅ नाम लै छै, आरो फेनू कहै छै, ठीक छै। बहुत होलोॅ तेॅ पूछी लेलकौ, दुआर के पाठक-उठक भिड़कैलोॅ तेॅ छै।"

"तेॅ, तोहें भिड़काय के बदला बन्दे कैन्हेंनी करी लेॅ छौ।" देवकी ठोरोॅ-ठोरोॅ मेॅ हँसतेॅ कहलकै।

देवकी के बात सुनी केॅ मंगलीं ओकरा गड़लोॅ आँखी सेॅ देखलकै कि कहीं ऊ मंगली पर शंका तेॅ नै करी रहलोॅ छै। मजकि वहाँ हेनोॅ कोय बात नै छेलै। तेॅ इतमिनान होतेॅ वहूँ कहलकै, "मालकिन जोन दिन किबाड़ बन्द करै लेॅ कहतै, ऊ दिन हम्मेॅ किबाड़ तोड़ी-ताड़ी, लेलेॅ-देलेॅ ही तोरोॅ पास आवी जैबौं।"

मंगली के ई बात सुनी देवकी के चेहरा एकदम खिली उठलै। मुरझैलोॅ धानोॅ में मेघ बरसी पड़लोॅ रहै। पूछलकै, "एक बात पूछै छियौं, कहीं हेनोॅ तेॅ नै कि मालिक सेॅ मालकिन केॅ पटरी नै खाय छै?"

"हेनोॅ बात केना हुएॅ पारेॅ। मालिक जोॅन दिन शहर सेॅ आबै छै घरोॅ में दिवालिये बुझोॅ। मालकिनो ऊ दिन हेनोॅ सजेॅ सँवरै छै, जेना गनय गौनयैती कनियांय रहेॅ।"

"तेॅ मालिक कोठी में एक्के-दू दिन वास्तेॅ कैन्हे रहै छै। जबेॅ ऐवे करै छै तेॅ..."

"तहू जनानी के जनानिये रही गेली। अरे शहर में मालिक के एत्तेॅ कारोबार छै नौकरोॅ भरोसा पर छोड़ी ऐतै?"

"तेॅ, मालकिने केॅ लै केॅ शहर कैन्हेंनी चल्लोॅ जाय छै?"

"ई तेॅ तोहें ठिक्के कहै छौ, मतरकि एत्तेॅ बड़ोॅ कोठी। यहू केना केकरोॅ भरोसा पर छोड़तै। हम्मू तेॅ आखिर नौकर छेकियै। कोठी मेॅ मालिक रहौ कि मालकिन, एक्के बात छै। एत्तेॅ बड़ोॅ कोठी हमरोॅ भरोसा पर तेॅ नहिये नी छोड़ी देतै। हमरा लागै छै, यही लेॅ मालकिन केॅ शहर नै लै जाय छै।" मंगली चौथो कौर मुँहोॅ में डालतेॅ कहलकै। कौर चबाबै के ही क्रम में ऊ देवकी के बातोॅ के उत्तरो देलेॅ जाय छेलै। दिन भरी मेॅ यहा तेॅ एक समय होय छै, जबेॅ देवकी केॅ जी भरी केॅ आपनोॅ मोॅन खोलै के मौका मिली जाय छै। मंगली मुहोॅ के कौर कण्ठोॅ सेॅ नीचेॅ उतारलकै, तेॅ देवकी फेनू पूछलकै, "एक बात पूछै छियौं कि मालकिन के ई कोठी मेॅ ऐलोॅ पाँच साल बीती गेलौ, अब तांय गोद कैन्हेनी भरैलोॅ छै?"

"ई बारे मेेॅ हम्मेॅ की बतैय्यौ। हेना केॅ जबेॅ भी मालिक शहरोॅ सेॅ आवै छै, तेॅ डाकटर भी साथे-साथ आवै छै। लागै छै मालकिन केॅ कोय अन्दरुनी कमी छै। होना केॅ एक बात जानै छौ।"

"की?" देवकी के आँखी मेॅ उत्सुकता नाँची उठलैं।

"होना केॅ तेॅ मालकिन हमरोॅ सम्मुख होय केॅ कम्मे बतियावै छै, मतरकि ऊ दिन हुनका की होलै कि हमरोॅ नगीच आवी केॅ अजीबे सवाल करी देलकै।"

"की?"

"कहलकै, आखिर आदमी कथी लेॅ जीयै छै? की पावै लेॅ चाहै छै? केकरोॅ लेॅ जिनगी भर बेचैन रहै छै?"

"तबेॅ तोहें की कहलौ?"

"अरे हम्मेॅ की कहतियै। हेनोॅ उलझलोॅ सवालोॅ के उत्तर लेॅ मालकिन छोड़ी केॅ आरो के जानेॅ पारेॅ। हम्मेॅ चुप रही गेलियै।"

"तबेॅ?"

"तबेॅ की। मालकिनो आपनोॅ कोठरी लौटी केॅ कोय अन्दरुनी रोग रहेॅ न रहेॅ, दिमागी रोग भी कुछ छै, नै तेॅ हेनोॅ टेढ़ोॅ-मेढ़ोॅ सवाल कथी लेॅ करतियै।" ई कही केॅ मंगली मुँहोॅ मेॅ आखरी कौर राखते हुए कहलेॅ छेलै।

"हम्मेॅ एक बात कहियौं?"

"की?"

"तोहें कोठी के नौकरी छोड़ी दौ। की होय छै कि कोठी के नौकरी करला सेॅ रहै के कोठरी हमरा सिनी केॅ मगनिये मेॅ मिली गेलोॅ छै, अहाते में छै ई कोठरी तेॅ समझौ कि सौंसे कोठी केॅ जोगवारी होय जाय छै।"

"अनचोके ई बात तोरोॅ मनोॅ में कैन्हें ऐलौं?" मंगली के मुँहोॅ के कौर जेन्हैं केॅ तेन्हैं रही गेलै।

"पता नै मालकिन के करलोॅ सवाल हमरो समझै मेॅ नै ऐलै।"

"अरे तेॅ ओकरा समझनै कथी लेॅ छै।" मंगली ने गिलास के पानी सेॅ कौर केॅ कण्ठोॅ सेॅ नीचेॅ उतारलकै, आरो गमछी सेॅ हाथ पोछतेॅ उठी गेलै।

मंगली बीस सालोॅ के हट्ठा-कट्ठा जवान छेकै। देह-हाथ हेनोॅ गठीला कि चट्टान काटी केॅ कोय कलाकार मुर्ति गढ़लेॅ रहेॅ। एकरोॅ जन्म ही कोठी के अहाता वाला अलग सेॅ बनलोॅ घरोॅ मेॅ होलोॅ छै। मंगली के बाबूए नै, एकरोॅ दादाओ यहेॅ कोठी के पहिलकोॅ मांगलिक सिनी के सेवा करतेॅ-करतेॅ दिवंगत होलोॅ छै।

मंगली देखलेॅ छै कि मालिक के बाबुओ मंगली के बाबू साथे कभियो खराब व्यवहार नै करलेॅ छेलै, तभिये तेॅ ई अपनोॅ बाबू के मरला के बादो ई कोठी के सेवा नै छोड़लकै। भला केना छोड़तियै। जबेॅ मालिक के बाबू के इन्तकाल होलोॅ छेलै, तबेॅ हौ दरद के पुरैनकी मालकिनो नै सहेॅ सकलेॅ छेलै, आरो दसे रोजोॅ बादे देह छोड़ी देलेॅ छेलै। कोठी आरो कारोबार के सब भार नया मालिकोॅ पर आवी गेलोॅ छेलै। दुओ साल तेॅ पुरलोॅ होतै, जबे नया मालिकोॅ के बीहा होलोॅ होतै। मालकिनोॅ केन्होॅ सुन्नर मिललोॅ छै, संगमरमर के पुतला।

मंगली देखलकै, देवकी लालटेन के रास कम करी केॅ मालकिन के कोठरी दिश बढ़ी गेलोॅ छेलै। आबेॅ ऊ तहिये लौटतै, जब मालकिन कहतै 'जा' । तब तांय तेॅ मंगली नींदोॅ में चूर रहै छै।

मतरकि आय ओकरा नींद नै आवी रहलोॅ छेलै। आखिर देवकी कैन्हें कहलकै, कोठी के नौकरी छोड़ी दै लेॅ। आखिर मालकिन के सवालोॅ मेॅ ओकरा हेनोॅ की बुझैलै। मंगली बड़ी जोर दै केॅ ऊ सब सवालोॅ के अर्थ बुझै के कोशिश करेॅ लागलै।

ऊ सवालोॅ के तेॅ नै, हों ऊ सिनी बातोॅ के साथ ओकरा मालकिन के आरो-आरो सब बात याद आवेॅ लागलै "ऊ चैतारोेॅ दिन छेलै। मालकिन हठाते हमरोॅ नगीच आवी गेलोॅ छेलै, आरो पूछलेॅ छेलै," अच्छा ई बात कहोॅ, कोय मरद अपनी जनानी सेॅ प्रेम लै केॅ पहाड़ लाँघेॅ पारेॅ, पर्वत तोड़ेॅ पारेॅ? " तबेॅ हमरोॅ ई कहला पर कि पहाड़-पर्वत की सात समुन्दर लाँघेॅ पारेॅ' मालकिन की रं मुस्काय पड़लोॅ छेलै, आरो फेनू हौले-हौले गोड़ोॅ सेॅ लौटी गेलोॅ छेलै।

मंगली मालकिन के एक-एक बातोॅ को याद करी रहलोॅ छै। कत्तेॅ-कत्तेॅ बात ओकरा याद आवै छै। ऊ दिन जबेॅ हम्मेॅ माधवी लता मेॅ पानी डाली रहलोॅ छेलियै, तबेॅ खिड़की पर बैठली मालकिने केन्होॅ मुस्कैतेॅ हुएॅ कहलेॅ छेलै, "मंगल, कत्तो पानी पटावोॅ, जब तांय वसन्त के हवा नै चलतै, तब तांय नै यै में कली आवै वाला छै, नै फूल खिलैवाला छै। आरो वसन्त ऐतै तेॅ लतौ आपने गुदगुदावेॅ लागतै। मंगली मालकिन के ई बातोॅ के एक-एक अक्षर केॅ समझै के कोशिश करै छै, आरो आबेॅ ओकरा अरथ बुझावै छै। तेॅ देवकी कुछ बुझिये केॅ कहलेॅ छै," तोहें कोठी के नौकरी छोड़ी दौ। "हौं हम्मे कोठी के नौकरी ठिक्के छोड़ी देवै। अबकी मालिक शहर सेॅ ऐतै, तेॅ साफ-साफ कही देवै," जनानी के इच्छा छै, कोठी के चाकरी नै करौं, यै लेॅ आबेॅ हम्मेॅ कोठी के नौकरी छोड़ै छियौं।

मंगली मनेमन निर्णय लै लेलकै आरो ई निर्णय लेथै, ओकरोॅ जी हठाते होलकोॅ होय गेलै, जे घण्टा, दू घण्टा सेॅ एकदम भारी-भारी होय गेलोॅ छेलै।

आय पाँच साल बीती रहलोॅ छै, मंगली के कोठी छोड़लेॅ। कानपुर के एक कारखाना मेॅ काम करै छै। काम सीखै के ललक नेॅ ओकरा आधोॅ इंजिनियर बनाय देलोॅ छै। रहै वास्ते ओकरा कारखाना ओरी से क्वाटर मिली गेलोॅ छै। आरो की चाहियोॅ मंगली केॅ। कि एक दिन अनचोके कोठी के मालिक भोरे भोर मंगली के आगू आवी केॅ खाड़ोॅ होय गेलै। मंगली देखलकै, तेॅ गोड़ छूवी के भीतर लै गेलै। देवकियो गोड़ छूवी केॅ भनसा दिस झपटलै तेॅ मालिक बड्डी स्नेह सेॅ रोकी लेलकै "नै देवकी नै, हमरा तुरत लौटना, दस बजिया ट्रेन पकड़ना छै" आरो फेनू कुछू कागजात मंगली के हाथोॅ मेॅ थमैतेॅ कहलकै, "मंगल तोरोॅ मालकिन ने कोठी के आधो हिस्सा, जहाँ तोहें रहै छेल्हौ, तोरो नामोॅ सेॅ करी देलेॅ छौं। आबेॅ तोहें जे करोॅ। तोहें ओकरोॅ मालिक छोॅ। तोरोॅ मालकिन के ई आखरी इच्छा छेलै।"

"की बोलै छोॅ मालिक, मालकिन केॅ की होलै?" लागलै जेना मंगल कानी भरतै।

"मंगल, मालकिन साल भर पहिले देह तेजी देलकी। दिल के रोगी तेॅ छेवे करलै नी। छोटोॅ सेॅ छोटोॅ बात लैकेॅ एकदम बेचैन होय जाय छेलै। डाक्टरें कहलेॅ छैलै ई तेॅ हमरा मालूमे छेलै कि तोहंे कानपुरोॅ में छोॅ, मजकि साल भरी सब कुछ संभारै मेॅ ही लागी गेलै।" एतना कही हुनी मंगली के हाथोॅ में सबटा कागज थमैलकै, आरो बिना कुछ आगू बोलले निकली गेलै।

मंगली काठ बनलोॅ ठाढ़े रही गेलै। कुछ बोलेॅ नै पारलै। ध्यान तोड़ै वास्तेॅ ही देवकी हाथोॅ सेॅ कागज लेतेॅ कहलकै, "कुछुवोॅ हुएॅ लौटी केॅ कोठी पर नै जाना छै।"

"आबेॅ कथी लेॅ कोठी पर हम्मेॅ जैवै।"