डोॅर / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

Gadya Kosh से
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गरीबी रं खंडहर में जनम लैकेॅ दुखनी नेॅ बेटा केॅ पाली-पोसी केॅ बड़ोॅ बनैलकै, आवेॅ तेॅ दूसरोॅ के खेतोॅ में बुऔनी लेलकै। रवि फसल धान काटै छेलै, मतरकि ज्यादातर हले चलावै छेलै। बेटा जवान आबेॅ होय गेलोॅ छै, मजदूरी लानै छै, माय खाना पीना बनाय केॅ बेटा केॅ खिलाय छै, दुखनी ने बेटा रोॅ शादी करी देलकै पतोहू हाथोॅ सेॅ खाना खाय लेलकै, एक दो साल बाद अचानकें दुखनी के दम टूटी गेलै। बेटा पतोहू खूब कन्ना रोहत करलकै, क्रिया कर्म करै में ऋण महाजन काढ़ै लेॅ लागी गेलै बासुकी कर्जा ऋण सटाय लेॅ भिड़ी गेलै।

अबेॅ घरोॅ में बासुकी आरोॅ राती घर में रात्रि में गुलगुदुर करै छै। दिन में तेॅ बासुकी कमाय लेॅ चल्लोॅ जाय छै। राती गामोॅ में निपाय-पोताय के काम करै छै। बहुत कम काम मिलै छेलै, आपने घरोॅ में बैठली रहै छेलै। घुर-घार घरे में करतें रहै छेलै। रत्नी बड्डी सुघड़ छेलै, स्नान-ध्यान करल्है पर खाना खाय छेलै, पहिनें पति केॅ जिमावै, तबेॅ बादोॅ में अपनें। अपनोॅ व्यवहार सें पति केॅ अपनोेॅ तरफ आकर्षित करी लै छेलै, मतरकि बासुकी एकदम उलटा छेलै।

बासुकी सेर भर चौ ॅर दिन भरी में चिबाय केॅ गटकी जाय। गमछी रोॅ फफड़ा बनाय केॅ गल्ला में ओकरोॅ एक छोर लपेटी लै छेलै, होॅर चलावै आरू मुंहोॅ में झिक्कोॅ देनें जाय। है बात गामोॅ में बहुत आदमी जानी गेलै, कुच्छू आदमी ओकरा कहलकै, "जत्तेॅ तोहें कमैवै छैं, सब तोंही खाय जैभैं, तेॅ कनियैनी की खैतौ, आरो बच्चा-बुतरु केॅ केना केॅ पालभैं-पोशभैं।" ई बात जबेॅ सब्भे कहेॅ लागलै, तेॅ ओकरा आपने आप में लाज अनुभव हुवेॅ लागलै।

पत्नी दिन-ब-दिन सुंघठी नांखी सुखली जाय रहलोॅ छेलै, पति केॅ कुच्छू नै बोलै, उल्टे बासुकियें पत्नी केॅ डांटी-डपटी दै। ऊ काफी हट्ठोॅ-कट्ठोॅ छेलै। दू मजूरोॅ रोेॅ काम खुद्दे करी लै। यही वास्तें ओकरा रोजे काम मिली जाय छेलै। लोगोेॅ केॅ काम प्यारोेॅ चाम नै, यही बात ओकरोॅ साथ छेलै।

आबेॅ घर रोॅ खर्चा बढ़ी गेलै, तबेॅ अपनोॅ मनोॅ में सोचलकै, "एत्तेॅ चौ ॅर हम्मे चिबाय जाय छी, है ठीक नै, यही सब्भे कहै छै, तेॅ की ग़लत कहै छै। एत्तेॅ चौ ॅर चिबाय जाय छी, हेकरा सें तेॅ दू शाम के खाना बनेॅ पारेॅ। केना केॅ है आदत सें छुटकारा पैलोॅ जाय, सोचेॅ लागलै।" राती ओकरा चुपचाप देखी पत्नी पुछलकै, "आय बड़ी उदास छौ की बात छै।"

हेकरा पर बासुकी बोललै, "एक बात मनोॅ में सोचनें छी, आबेॅ चौ ॅर नै चिबैबै।"

दियारा तरफ दूर बहियार पावै छेलै, वहीं एक बासा छेलै आरो होकरा पर छौनी छेलै, टाली खपड़ैलोॅ रोॅ, बासुकी दियारा में होॅल चलावै, छौंनी सें एकठो टाली खपड़ा उठाय केॅ घूरोॅ के पाझावा में दू-तीन टुकड़ा करी केॅ पकाय लै आरू ठंडा होला पर खपड़ा केरोॅ छोटोॅ-छोटोॅ टुकड़ा करी लै। ओकरे गमछा रोॅ फफड़ा में डाली केॅ गल्ला में बांधी लै आरू होॅर चलैतें वक्ती एक-एक टुकड़ा मुंहोॅ में डालनें जाय, आरू कुटुर-कुटुर करनें जाय। है रं ऊ महीनो तक करलेॅ गेलै।

ढाबा रोॅ खपड़ा खाली होय गेलै। बासा वाला नें जबेॅ देखलकै, तेॅ होकरा आचरज होलै। खपड़ा जाय कहाँ छै, लागै छै कोय भूतोॅ रोॅ भुतखेल होय रहलोॅ छै। है बियावन में खपड़ा कौंनें चोरैतै, ढावा मालिक नें खूब माथापच्ची करलकै, डरोॅ सें होकरोॅ रोंआ खाड़ोॅ होय जाय छै। केन्होॅ-केन्होॅ नी बात मनोॅ में आबै।

ढाबा पर सें खपड़ा केॅ उठाय छै, आरो कहाँ लै जाय छै, ई जानै वास्तें वैंनें एक आदमी केॅ देख-रेख लेली लगाय देलकै। रखवाला आड़ पेंच पकड़ी केॅ रखवाली करेॅ लागलै, तेॅ देखै छै, एक आदमी एक खपड़ा उतारी केॅ घूरोॅ में डाली देलकै आरो पकला पर ओकरोॅ टुकड़ा करी-करी केॅ गमछा में फफड़ा बनाय केॅ राखी लेलकै। होॅर चलैनें जाय, आरू टुकड़ा मुंहोॅ में डालनें जाय।

ई बात रोॅ चर्चा आगिन हेनोॅ पूरा गांव मेॅ पसरी गेलै, दू-चार आदमीं बासुकी केॅ ई बात कहलकै, तेॅ ऊ लाजोॅ सें हाँ-हूँ कुच्छू नै बोललकै। लाचार होय केॅ चौॅर सें छुटकारा पावै लेली ऊ खपड़ा तक के दूरी तय करी लेलेॅ छेलै। पहनें पत्नी सें पकड़ैलै, अबकी गांव वाला के नजर में अटकी-भटकी गेलै। आबेॅ ऊ अपने घरोॅ में रहै छै। बासुकी के कनियैनिये हिन्नें-हुन्नें काम पर जाय छै, मतरकि जब तांय काम पर रहै छै, ओकरा यही डोॅर लागलोॅ रहै छै कि घरोॅ के भीती केॅ नै चाटतेॅ रहेॅ। आदत तेॅ अगलो जन्म केॅ घेरे छै।