तनु और राज शेखर की 'घर वापसी' / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
तनु और राज शेखर की 'घर वापसी'
प्रकाशन तिथि :24 अप्रैल 2015


आनंद राय की 'तनु वेड्स मनु' और रांझणा' ताजी हवा की तरह फिल्में थीं। अब चार वर्ष पश्चात वे 'तनु...' का भाग दो लेकर प्रस्तुत हो रहे हैं। इस बीच 'कंगना' ने 'क्वीन' के माध्यम से नई लोकप्रियता अर्जित की है और अब कंगना अपनी समकालीन अभिनेत्रियों से अलग पहचान बना चुकी हैं। उनका अपना 'प्रशंसक आधार' अब काफी फैल चुका है। 'रंाझणा' की कामयाबी ने आनंद राय को भी नई हैसियत दी है। 'तनु' का गीतकार राज शेखर भी अपने 'घर' वापस आ गया है। इसका भाग एक का गीत 'खाकर अफीम रंगरेज पूछे रंग का कारोबार क्या है' अत्यंत सार्थक गीत था। फिल्म की प्रतीक्षा की जा रही है।

भाग दो प्रारंभ होता है भाग एक के अंत से। जब नाटकीय परिस्थितियों में तनु को लंदन के शर्मा में अपना जीवनसाथी नजर आता है। लंदन में शर्मा व्यस्त हो चुका है और तनु ऊबने लगी है। कभी ये खयाल आता है कि अगर देवदास और पारो की शादी हो जाती तो सारा पड़ोस उनके झगड़े का आनंद उठाता। प्राय: प्रेम-विवाह टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं, क्योंकि प्रेम के दौर का आदर्श आलम शादी के बाद के रोजमर्रा के जीवन की आपाधापी के यथार्थ से टकराकर टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। दरअसल, पति-पत्नी को अपने प्रेम को कायम रखने के लिए संवदेनशील होते हुए अन्वेषक होना चाहिए ताकि नया ईंधन प्रेम की ज्योत को जलाए रखे। कल्पनाशीलता के अभाव को यथार्थ के निर्मम होने का बहाना बनाया जाता है। व्यस्ततम व्यक्ति भी पल दो पल चुरा सकता है। दरअसल, आम आदमी को जिंदगी के मेले में पॉकेटमार की तरह खुशी चुराना होती है। यह चौर्य कर्म शास्त्रों में भी मान्य हैं।

बहरहाल ऊबी हुई तनु अंग्रेजी मेम बनकर अपने घर लौट आती है और पश्चाताप करता पति भी भारत आता है, परन्तु उसकी मुलाकात तनु की हमशक्ल हरियाणवी खिलंदड़ लड़की से होती है। गोयाकि फिल्म एक दंगल की तरह होगी, जिसमें अंग्रेज मेम ठेठ हरियाणवी खिलंदड़ से भिड़ेगी। जब कोई भारतीय महिला विदेश से लौटती है तब वह मूल मेम साहिबा से ज्यादा नखरीली होती है। ओढ़े हुए व्यक्तित्व प्रखर ही होते हैं। जैसा हम आए दिन नेताओं में देखते हैं। कलई लगा बर्तन हमेशा असल तांबे के बर्तन से चमकीला लगता है। बहरहाल, स्पष्ट है कि आनंद राय ने भाग दो कंगना की बहुमुखी प्रतिभा के भरपूर दोहन के लिए रची है। भारतीय फिल्म उद्योग में हमेशा सफल सितारों के दोहन के प्रयास होते हैं। सितारे के बैल पर जितना भी बोझा लादना चाहो लाद सकते हो। इसी तरह तो सितारा कोल्हू के बैल के रूप में बदला जाता है और दर्शक का धैर्य उसका साथ छोड़ देता है। परंतु यही दर्शक राजनैतिक कोल्हू के बैल को अधिक समय तक सहन करता है, क्योंकि वह लाख व्यवस्था विरोधी होने का अभिनय करे, कहीं न कहीं उसके अवचेतन में इस भ्रष्ट व्यवस्था के लिए प्रेम है। अदूर की एक फिल्म में क्रांति के समय शोषित बंधुओं के हाथ में तलवार है परंतु वह अपने 'मालिक' को नहीं मार पाता। सदियों की गुलामी उसमें एक झिझक भर देती है और यही शोषण की सबसे गहरी साजिश है।

बहरहाल, तनु को वापसी के साथ उसके गीतकार राज शेखर की वापसी हमें फिर 'अफीम खाये रंगरेज' का हाल देखने सुनने को मिलेगा। आनंद राय की फिल्म की शूटिंग लखनऊ, कानपुर, हरियाणा लंदन में हुई है। इस फिल्म में पश्चिम और पूर्व की संस्कृति की टकराहट नहीं, वरन सौहार्द की कहानी है। तनु छोटे कस्बे से लंदन जाकर एक मेम बनकर लौटती है, परन्तु उसका दिल अभी भी पूरी तरह से भारतीय है। सच्चाई तो यह है कि वह एक अदम्य प्रेमिका है, परन्तु विद्रोह का मुखौटा लगाए है। जिस पति के साथ वह ऊब गई थी, उस पति को किसी और स्त्री की ओर आकर्षित होते देखकर वह फिर से अपने प्रेम के लिए लड़ने लगती है। यह कहानी एक प्रेम त्रिकोण है और इसमें मानवीय भावनाओं का सूक्ष्म विवरण देखने को मिलता है। संस्कृतियां कभी आपस में टकराती नहीं हैं। वे तरल होती हैं और एक दूसरे से मिलकर नया प्रभाव पैदा करती हैं।