तस्वीर धुंधले भविष्य का चित्र / जयप्रकाश चौकसे

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तस्वीर धुंधले भविष्य का चित्र

प्रकाशन तिथि : 02 अप्रैल 2009


अक्षय कुमार अभिनीत निर्देशक नागेश कुकनूर की फिल्म ‘8 बाय ‘10 – तस्वीर’ का प्रदर्शन होने जा रहा है। थ्रिलर की तरह गढी गई इस फिल्म में नायक को भविष्य देखने की विशेष योग्यता प्राप्त है। हाल ही में प्रदर्शित असफल फिल्म ‘आ देखें ज़रा’ में नायक के पास पिता का पुराना कैमरा है, जिसमे भविष्य दिखता है। विपुल शाह कि निर्माणाधीन फिल्म ‘फास्ट फारवर्ड’ में भी भविष्य कि झलक नायक के लिए संभव है। आजकल फिल्मकारों का टाइम मशीन से सम्बंधित कथाओं के प्रति प्रेम बढ़ गया है। शायद उन्हें वर्तमान में कथा नहीं मिल रही है या वे वर्तमान से भय खाते हैं और विगत तथा भविष्य में सुरक्षा खोज रहें हैं। बहरहाल अक्षय कुमार ‘चांदनी चौक टू चाइना’ के हादसे के बाद अपनी फिल्म के जमकर प्रचार से बाज आ गए हैं। दशकों पूर्व अंग्रेजी भाषा में ‘ब्लो़अप’ नामक फिल्म बनी थी। इसमें एक व्‍यवसायी छायाकार पार्क में ली गई अपनी तस्‍वीर का एक बडा प्रिन्‍ट बनाता है और उसमें झाडी में एक लाश नजर आती है। वह जब पार्क में जाता है, तो वहां कोई लाश नहीं नजर आती। पुलिस रिकार्ड में भी गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट नहीं है। रात भर वह भटकता है। अलसभोर में उसे पार्क में कुछ लोग टेनिस खेलते नजर आते है। उनके पास न रैकेट है और ना ही कोई गेंद है, परन्‍तु सारे कार्यकलाप किए जा रहे हैं और एक दर्शक उसे कैच करके वापस फैंकता है। क्‍या वह लाश भी इस काल्‍‍पनिक खेल की तरह है जो उसका विचलित मन उनके साथ खेल रहा है। लाश की तस्‍वीर है, मगर लाश कहीं नहीं है। इस फिल्‍म में गहरे दार्शनिक अर्थ छिपे हैं।

एक तस्‍वीर के सहारे एक रहस्‍य की तह तक जाने पर विदेशों में कई फिल्‍में बनी हैं। आमतौर पर फोटोग्राफ वर्तमान या विगत का होता है, परन्‍तु उसमें भविष्‍य की झलक फिल्‍मकारों को संभावना देती है। इस फिल्‍म में अक्षय कुमार ने कुछ नए किस्‍म के एक्‍शन द़श्‍य किए हैं। नागेश कुकनूर गंभीर फिल्‍मकार हैं और साधारण थ्रिल के बहाने शायद कोई महत्‍वपूर्ण बात प्रस्‍तुत करने जा रहे है। भविष्‍य के प्रति अदभुत कौतुहल सहज और स्‍वाभाविक है। कुंडली और हाथ की रेखाओं के सहारों भविष्‍य बताने वालों की भीड में कुछ ऐसे भी लोग शामिल हैं, जो चेहरा पढते हैं। हमारे यहां तो ऐसी किताबों का भी जिक्र है जिसमें अगली-पिछली अनेक पीढियों का व़तांत पाया जाता है। दरअसल भविष्‍य को जानने की इच्‍छा बलवती हो सकती है, परंतु भविष्‍य जान लेने पर जीवन को रोमांस खत्‍म हो सकता है। इसकी अनिश्चितता में ही इसका रहस्‍यमय सौंदर्य छिपा है।

चुनाव के मौसम में भविष्‍य बताने वालों की चांदी हो जाती है। हर नेता तरह के टोटके करता है। आस्‍था के दिखावे का यह स्‍वर्णकाल बन जाता है। इस चुनाव से भारत में व्‍याप्‍त समस्‍याओं का निदान संभव नहीं लगता, क्‍योंकि हर दल में समान रूप से फूट मौजूद है और कोई मुखौटा निहित स्‍वार्थ को छिपाने में सक्षम नहीं है। भारत में अवतारवाद की जडें गहरी हैं और हम चाहते हैं कि कोई अवतार घटित होकर हमारे लिए सोचे, काम करे और आवश्‍यकता होने पर मर जाए। चमत्‍कारी व्‍यकित्‍तव के नेताओं ने लहर पैदा की है और बहुमत प्राप्‍त किया है। वर्तमान में किसी दल के पास सूपर स्‍टार नेता नहीं है और खिचडी सरकारें देश की दाल पतली कर सकती हैं। अगर जनता ने बहुत ही बारीक पीसा तो ऐसी खिचडी बन सकती है जिसका रूप स्‍पष्‍ट नहीं होने से एक और चुनाव का खेल-खेला जा सके। सारा राजनीतिक चित्र बहुत ही धंधला और अस्‍पष्‍ट है ।