तार - तार संवेदना / विजयानंद सिंह

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विजयानंद विजय »

" सुनो....।सुनो...।" दूर बस्ती की ओर से बदहवास-सी उड़ती हुई एक चिड़िया आई, और पेड़ की डाली पर बैठ गयी। " क्या हुआ...? क्या हुआ...? " - आस पास की डालियों पर बैठी चिड़ियों ने आश्चर्य व कौतूहल से पूछा।वे उसके पास आ गयी थीं। " चलो...।चलो....। मेरे साथ चलो.....।जल्दी....।" - उस चिड़िया ने हाँफते हुए कहा। " कहाँ ? किधर ? किसलिए ? " - सभी ने एक स्वर में उससे प्रश्न किया। " उधर...उस चौराहे की ओर.....। वहाँ गुंडे एक लड़की के साथ.......।" चिड़िया ने बुरी तरह घबराई हुई थी....। उसकी साँसें धौंकनी की तरह चल रही थीं...।

एक क्षण में उस बाग से हजारों पक्षियों का झुंड चौराहे की ओर उड़ चला।चौराहे पर उन्होंने अजीब-सा.....भयावह मंजर देखा.......... लड़की के बदन के कपड़े तार-तार थे.....। चीख-पुकार मची हुई थी......। सड़क पर लोग डर के मारे भाग रहे थे......। पक्षियों ने देखा......आसपास के मोहल्ले के कुत्तों ने एक साथ हमला कर गुंडों के ज़िस्मों को चीर-फाड़कर रख दिया था.......!